मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।

मेरा काम क्या है, वह तो पता ही है आपको। चलो फिर भी बता देता हूँ। जल्लाद का काम होता है फांसी देना।

आज की जो कहानी है, काश वह न होती। इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि एक बेचारी मासूम, जो बस हालातों की मारी थी, वह मेरे हाथों मरी। मुझे वाकई दुःख था उसे फांसी देने का।

आज की कहानी है टीना की।

टीना एक साधारण मिडिल क्लास परिवार में पैदा हुई थी। उसके माता-पिता पढ़े-लिखे थे और बहुत मेहनती भी थे, जो हमेशा अपने बच्चों को अच्छी पढ़ाई-लिखाई देने में विश्वास रखते थे। टीना ने हमेशा से पढ़ाई में अच्छा किया। उसने स्कूल में हमेशा टॉप किया और अपने मां-बाप का नाम रोशन किया। उसकी माँ उसे पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी देती थीं। टीना ने अपनी ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर ध्यान दिया।

जब टीना कॉलेज में गई, तो उसने मास्टर्स की पढ़ाई का फ़ैसला लिया। वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत कर रही थी, लेकिन एक दिन अचानक उसकी ज़िंदगी में अँधेरा छा गया। उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा। टीना अपने पापा को अस्पताल में देखकर बहुत परेशान हो गई। डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें तुरंत सर्जरी की ज़रूरत है और यह सुनकर टीना के दिल में डर समा गया।

कुछ दिनों बाद, जब उसके पापा अस्पताल से घर लौटे, उन्होंने टीना से बात की। उन्होंने कहा, "बेटी, अब तुम्हारी शादी हो जानी चाहिए। मुझे चिंता है कि मैं तुम्हारी शादी नहीं देख पाऊंगा।" यह सुनकर टीना की आँखों में आँसू आ गए। वह जानती थी कि उसके पिता की सेहत सही नहीं है, लेकिन वह शादी के लिए तैयार नहीं थी। उसने कहा, "पापा, मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हूँ।"

लेकिन टीना की बातों को सुनकर उसके पापा ने कहा, "बेटा, शादी करना भी एक बहुत ज़रूरी ज़िम्मेदारी है। मेरी ज़िन्दगी का अब भरोसा नहीं है। कब भगवान अपने पास बुला लें।"

उसके मां-बाप ने अब सोच लिया कि अब उसे शादी कर लेनी चाहिए। टीना को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसके मन में पढ़ाई और शादी के बीच एक बड़ा झगड़ा चल रहा था।

 

टीना को अपनी पढ़ाई और आगे की ज़िंदगी की चिंता थी, लेकिन उसने अपने पापा की इच्छाओं की भी इज़्ज़त रखनी थी। उसने सोचा कि अगर पापा की ख़ुशी इसी में है, तो वह शादी करने को तैयार हो जाएगी। अब उसकी ज़िंदगी एक नई दिशा में मुड़ने वाली थी।

टीना के पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए उसके घरवालों ने एक अच्छे लड़के को ढूँढना शुरू कर दिया। रिश्तेदारों से बात की गई और सबने अपनी राय दी। कुछ लोग तो टीना के लिए लड़का देखने के लिए उसके घर भी आए। लेकिन कोई भी लड़का टीना को पसंद नहीं आया। फिर उसके माँ-बाप ने कंप्यूटर पर भी रिश्ते ढूँढने शुरू कर दिए। वहाँ कई लड़के थे, लेकिन टीना को किसी में भी दिलचस्पी नहीं थी। एक दिन, उसके माँ-बाप को एक लड़का मिला जिसका नाम मनीष था। मनीष एक अच्छे परिवार से था और उसकी सैलरी भी अच्छी थी। उसके पास ख़ुद का घर था और वह प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था।

मनीष का घर वैसे तो गाँव में था, लेकिन वह नौकरी के लिए यहीं टीना के शहर में रह रहा था। उसके माँ-बाप ने मनीष और उसके परिवार से बातचीत की। सभी को मनीष पसंद आया और जल्द ही दोनों परिवारों ने शादी की तैयारियाँ शुरू कर दीं। टीना थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन उसने सोचा कि शायद मनीष उसके लिए सही हो।

शादी के दिन, टीना बहुत खुश थी। उसके माँ-बाप ने उसकी शादी धूमधाम से की। जब उसने मंडप में मनीष को देखा, तो वह थोड़ा घबरा भी रही थी, लेकिन फिर भी उसने सोचा कि यह उसकी ज़िंदगी का एक नया पन्ना होगा। शादी के बाद, टीना ने मनीष के साथ अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत की।

टीना की ज़िंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन धीरे-धीरे मनीष की असली पहचान सामने आने लगी। मनीष एक शराबी था। पहले तो वह बाहर से पीकर ही आता था, लेकिन कुछ समय बाद उसने टीना के सामने ही शराब पीना शुरू कर दिया। पहले-पहल टीना ने इसे नज़रअंदाज़ किया, लेकिन शराबी मनीष ने उसके साथ मार-पीट शुरू कर दी। एक-दो थप्पड़ से शुरू हुई मार-पीट कब बेल्ट तक पहुँच गई थी, पता नहीं लगा। टीना बस चुप रहती और सहती। टीना ने अपने माता-पिता को इस बारे में नहीं बताया, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उनके पिता को फिर से दिल का दौरा पड़े।

लेकिन हर रात उसे डर और बेइज्जती का सामना करना पड़ता था। मनीष का व्यवहार हर रोज़ बुरे से बुरा होता गया। पहले जो काम रात को शराब के नशे में होता था, वह अब सुबह-सुबह होश में भी होने लग गया। बात और आगे बढ़ गई थी। मनीष ने टीना को दहेज के लिए भी ताने मारने शुरू कर दिए।

टीना ने इसकी शिकायत अपने सास-ससुर से भी की, पर वह चुप रहे। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि "बेटा, हम नहीं पड़ेंगे पति-पत्नी के बीच। हमें यहाँ शांति से गाँव में रहने दो। हमें भी नहीं पता था कि मनीष ऐसा है। हमें तो कुछ नहीं चाहिए तुमसे और ना तुम्हारे मां-बाप से। बस हम तो यही चाहते हैं कि हमारे बेटा-बहू खुशी-खुशी रहें।"

"कैसी खुशी?" टीना ने अपनी सास से कहा। "आपका बेटा है, आप समझाते क्यों नहीं उसे? आपका बेटा है। इतना तो आपका हक़ भी है और फ़र्ज़ भी।"

उसके सास-ससुर कुछ नहीं बोले और बस चुपचाप फ़ोन काट दिया।

टीना की आखिरी उम्मीद भी टूट गई थी। कोर्ट-पुलिस उसे करना नहीं था। इंसान ही तो थी बेचारी, कब तक सहती?

एक रात, जब मनीष ने फिर से टीना को मारा, तो वह टूट गई। उसने सोचा कि अब उसे कुछ करना होगा। उसने एक scheme बनाई कि वह मनीष के खाने में नींद की गोली मिलाकर उसे बेहोश कर देगी और फिर अपनी चीज़ें लेकर रात में भाग जाएगी। लेकिन जब उसने ऐसा किया, तो मनीष की हालत बिगड़ गई. मनीष ने उल्टी कर दी। उल्टी में खून निकला। शायद शराब के साथ नींद की गोली ने मिलकर उल्टा असर कर दिया होगा और टीना को यह बात पता नहीं थी। मनीष बेहोश होकर गिर गया। टीना ने उसकी नब्ज़ चेक की, वह बंद हो चुकी थी।

यह देखकर टीना का दिल दहल गया। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी एक गलती इतनी गंभीर साबित होगी।

अब वह एक अपराधी बन गई थी।

टीना को गिरफ्तार कर लिया गया और मामला अदालत में गया। अदालत ने उसे दोषी ठहराया और उसे मौत की सजा सुनाई। टीना के पिता ने जब यह सुना, तो उनका दिल टूट गया। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी इस हालात में होगी। दुख और दर्द से वे भी चल बसे।

अपने पापा के जाने पर टीना की बची हुई दुनिया जैसे ख़त्म हो गई थी। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवन में इतनी बड़ी कमी आ जाएगी। पापा उसकी ताकत थे, उसकी हर ख़ुशी और सपने का सहारा। अब जब वह नहीं थे, तो टीना को ऐसा लग रहा था कि सब कुछ बिखर गया है।

सजा के बाद टिना को जेल में डाल दिया गया। वहाँ के माहौल में उसे अपने किए पर पछतावा महसूस हुआ। उसने सोचा, "क्या यह सब सिर्फ़ एक गलती थी? क्या मैं सच में अपने पति को खोने के लिए इतनी दूर चली गई?" उसकी आँखों में आँसू थे।

जेल में रहते हुए, टिना ने अपने जीवन के हर पहलू के बारे में सोचा। उसने महसूस किया कि प्यार में कभी-कभी हम बहुत गलतियाँ कर जाते हैं। उसकी ज़िंदगी के सारे पन्ने जैसे काले हो गए थे और उसे अब उसकी सजा का सामना करना था।

फाँसी की तारीख नज़दीक आ रही थी। जब उसे इस बारे में बताया गया, तो वह एकदम से चुप हो गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या सोचे।

फिर एक दिन मैं उससे मिलने गया, सोचा बता दूं कि मैं ही तुम्हें सज़ा दूंगा। मैं चुप रहा। वह नलके पर कपड़े धो रही थी। मैंने कहा, "टीना, मैं तुम्हारा सारा केस जानता हूँ। मैं ये तो नहीं कहूंगा कि तुम्हारी कोई गलती नहीं है। गलती तो है, लेकिन तुम मजबूर थी।"

"तो जाओ, जज को समझाओ ना ये बात," टीना ने गुस्से में कहा।

ये कहते ही वह फूट-फूट कर रोने लगी। दूसरी महिला क़ैदियों ने उसे चुप कराया। एक बूढ़ी महिला क़ैदी ने उसे गीता का ज्ञान दिया, "जो आया है, वह जाएगा ही।"

मैंने कहा, "देखो टीना... तुम्हारे पास और भी रास्ते थे जो हो सकते थे। तुम उसकी पुलिस में शिकायत कर सकती थी। अपने मां-बाप के पास जा सकती थी। उसके मां-बाप के पास जा सकती थी। कितनी सारी NGO वाली बहनें हैं, जो दिनभर यही काम करती रहती हैं।"

टीना ने जवाब दिया कि मैं इतनी घबराई हुई थी, टूट गई थी और फिर मैं पछतावे में चली गई थी। मैंने बूढ़े माँ-बाप के एक बेटे को भी मारा। मैं उसको मारना तो चाहती भी नहीं थी, बस उससे दूर होना चाहती थी। नींद की गोलियाँ कब ज़्यादा हो गई, मुझे अंदाज़ा ही नहीं हुआ। ऐसा नहीं है, मैंने उसे बचाने की कोशिश नहीं की। मैंने पूरी कोशिश की। मैं चाहती थी वह बच जाए। लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। मैं बहुत रोई भी थी। जितना मनीष ने मुझे इतने दिनों में रुलाया था, उससे ज़्यादा मैं उस एक रात में रोई थी और कोई भी मेरे आँसू पोछने वाला नहीं था। मैं तो मनीष की तरह बोतल का ढक्कन भी नहीं खोल सकती थी।

टीना ने बताया कि उसने ख़ुद को भी मारने का सोचा, पर एकदम अपने पापा-मम्मी का ख़्याल आ गया। इसलिए बस करते-करते रुक गई। अब लगता है कि कर ही लेती तो अच्छा था। जिन पापा के लिए रुक गई, वह इस दुनिया से चले गए और माँ बेचारी ज़िंदा लाश है।

जेल में, वह अपने साथी कैदियों के बारे में भी सोचती थी। उसने सुना था कि जिन लोगों ने गलतियाँ की हैं, उन्हें भी समाज में एक मौका मिलना चाहिए। लेकिन उसे अपने किए पर अफ़सोस था।

जब वह फांसी के फंदे पर चढ़ने वाली थी, तो मुझे भी उस पर दया आई। उसने जाने से पहले कुछ नहीं कहा। हाँ, लेकिन एक बात बोली—कि दुआ करना अगले जन्म में। अपनी भावनाएँ मुझे सुनाई। मैंने लीवर खींचा और एक लड़की के सपने मेरी आँखों के सामने लटक गए।

मरने वाले का नाम-tina

उम्र-26 साल  

मरने का समय-सुबह 6 बज कर 11 मिनट 

मुझे ऐसा लगा जैसे उसके शरीर से एक-एक सपना उतर रहा हो और मुझे गाली देता हुआ जा रहा हो। मेरी आँखों में देख कर गाली दे रहा हो कि "तू है ज़िम्मेदार।" ऐसा कभी नहीं हुआ था मेरे साथ। मैं कई रात बेचीन रहा। सो नहीं पाया। अपने आप से पूछने लगा कि कहीं मैंने तो कभी किसी औरत के साथ ग़लत नहीं किया।

इस कहानी से हमें यह सीखने को मिला कि हमें एक-दूसरे के प्रति दिल और दिमाग़ से सोचना चाहिए। समाज में प्यार और धोखे के परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। टीना की कहानी एक चेतावनी है कि हमें अपने फैसले चौकस होकर लेने चाहिए।

इस तरह, टीना की ज़िंदगी एक दुख भरे सबक की तरह ख़त्म हो गई और साथ ही वह समाज को सोचने पर मजबूर भी कर गई। फांसी से पहले, उसने अपनी माँ से मिलने की बात की। उसकी माँ उसके पास आईं और आँसू बहाते हुए बोलीं, "बेटी, हम तुम्हें माफ़ कर देते हैं।" टीना ने उन्हें गले लगाया और कहा, "माँ, मैंने अपनी और आपकी ज़िंदगी को बर्बाद कर दिया। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।"

 

टीना की कहानी एक चेतावनी है उन सभी के लिए जो प्यार और ज़िंदगी के महत्त्व को समझते हैं। कभी-कभी, हमारी की गई छोटी-सी गलती भी बड़ी समस्या का कारण बन सकती है। हमें अपने जीवन को ज़िम्मेदारी से जीना चाहिए और सही फैसले लेने की कोशिश करनी चाहिए।

यह कहानी केवल टीना की नहीं है, बल्कि यह उन सभी के लिए है जो अपने जीवन में आगे बढ़ने का साहस रखते हैं, चाहे आस-पास की चीजें कितनी भी मुश्किल क्यों न हों। इस तरह, टीना की कहानी ख़त्म तो होती है पर अपने साथ बहुत सारे सवाल और सीख भी छोड़ जाती है।

अभी आज्ञा दीजिए। अगले एपिसोड में एक और अपराधी की कहानी लेकर आऊँगा। 
 

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