मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।

मैं पिछले पचास सालों से इस जेल में जल्लाद का काम कर रहा हूँ। मैंने कई अपराधियों को फांसी पर लटकाया है, लेकिन एक कहानी ऐसी है जिसने मुझे हमेशा सोचने पर मजबूर किया है—विशाल की कहानी। यह कहानी सिर्फ़ एक लड़के की नहीं, बल्कि एक प्यार की है जिसने उसे बर्बाद कर दिया और प्यार से भी ज़्यादा उस गंदी राजनीति की है, वैसे भी जब प्यार में राजनीति मिल जाए तो समझो तबाही पक्की है।

विशाल, 22 साल का एक होशियार और समझदार लड़का था। कॉलेज में पढ़ने वाला जिसे राजनीति में जाना था। उसके माँ-बाप ने भी कहा ठीक है कर ले राजनीति। वे समझते थे कि यह उनके बेटे के लिए एक बड़ा सपना है और उन्होंने उसका पूरा साथ किया।

विशाल का मानना था कि अगर वह कॉलेज चुनावों में जीतता है, तो वह अपने सपनों को पूरा कर सकता है। उसने कई बार अपने माँ-बाप से कहा, "मुझे कॉलेज से शुरू करना है। यहाँ से ही मैं समाज में बदलाव ला सकता हूँ।" उसके माता-पिता ने भी उसके इस सपने को समझा और आगे बढ़ने दिया।

विशाल के पिता, जो सरकारी नौकरी करते थे, अक्सर उसे राजनीति के बारे में सलाह देते। वे कहते, "बेटा, अगर तुम सच में समाज के लिए कुछ करना चाहते हो, तो तुम्हें लोगों की समस्याओं को समझना होगा।" उसकी माँ हमेशा उसे समझाती, "तुम्हारे पास शक्ति है और तुम उसका सही उपयोग करोगे।"

विशाल के परिवार का माहौल भी बहुत अच्छा था। उसके दादा-दादी तो आज़ादी की लड़ाई में भी लड़े थे और इस कारण से विशाल को हमेशा अपने परिवार की विरासत का गर्व था। उसके दादा ने उसे बताया था, "सच्चा नेता वही होता है, जो अपने लोगों के लिए काम करे।" यह बातें विशाल के मन में गहराई से बैठ गईं थीं और उसने अपने को इस दिशा में आगे बढ़ाने की क़सम खा ली।

विशाल जब कॉलेज पहुँचा, तो उसे वहाँ का माहौल बहुत अच्छा लगा। यार-दोस्त भी जल्दी बन गए। आते ही उसने पढ़ाई के साथ-साथ राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। डिबेट भी करता था और बहुत अच्छी करता था।

उसे कॉलेज में नंदिनी नाम की एक खूबसूरत लड़की मिली, जो उसके दिल को छू गई। वह किसी और शहर से थी और विशाल के शहर में पढ़ने आई थी। एक छोटा-सा कमरा किराए पर लेकर रहती थी। नंदिनी बहुत खुले विचारों की थी। नंदिनी की हंसी में एक अलग ही जादू था। जब वह क्लास में बोलती, तो लगता परी उतर आई है स्वर्ग से।

विशाल ने धीरे-धीरे नंदिनी के करीब जाना शुरू किया। दोस्ती की पहले तो। क्योंकि विशाल तेज था पढ़ने-लिखने में तो लड़की भी इम्प्रेस हो गई थी। नंदिनी की सोच भी उसकी जैसी ही थी। उसे भी समाज के लिए करना था बहुत कुछ। वह तो एक एनजीओ से भी जुड़ी हुई थी और इस सोच ने उन्हें और करीब ला दिया।

एक दिन, विशाल ने नंदिनी को एक कैफे में मिलने के लिए बुलाया। वहाँ, उन्होंने एक-दूसरे के सपनों के बारे में बात की। नंदिनी ने कहा, "मैं जानती हूँ कि तुम राजनीति में बड़ा नाम बनोगे।" इस पर विशाल ने मुस्कुराते हुए कहा, "अगर तुम मेरे साथ रहोगी, तो कुछ भी कर सकता हूँ।"

उनकी दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदलने लगी। वे अक्सर एक-दूसरे को चिढ़ाते, मस्ती करते। एक दिन दोनों साथ ही जा रहे थे क्लास रूम में और नंदिनी ने अचानक उसका हाथ खींचा और कॉलेज के स्टोर रूम में ले गई। वहाँ उन्होंने पहली बार एक-दूसरे को किस किया। ये पल तो उनके लिए ख़ास था और नंदिनी की खुली सोच ने उस पल को एक नई ही मौज दे दी।

फिर तो इश्क़ परवान चढ़ता गया। बात होंठों से शुरू होती है और ख़त्म कहीं और ही होती है। उनकी मुलाकातें ख़ूब होने लगी। कभी पार्क में, कभी कैफे में, वे घंटों बातें करते। नंदिनी की मासूमियत और विशाल की खासियत ने उनके रिश्ते को और मज़बूत बना दिया।

एक दिन नंदिनी ने विशाल को पहली बार अपने कमरे पर बुलाया। उसके कमरे पर कोई नहीं था। वह एक अलग ही एहसास था। दोनों ने उस दिन अपने दिल की सारी बातें कीं और नंदिनी ने कहा, "तुम मेरे लिए बहुत ख़ास हो।" विशाल ने कहा, "तुम भी। मैं तुमसे सच्चा प्यार करता हूँ।"

बस फिर क्या था, भड़क गई चिंगारी और दोनों हो गए एक। दोनों एक-दूसरे पर तब तक प्यार उडेलते रहे जब तक दोनों खाली नहीं हो गए।

उस रात, उन्होंने एक-दूसरे के साथ अपने दिल की बात की। नंदिनी ने कहा, "तुम्हारे साथ बिताया हर pal मेरे लिए ख़ास है।" विशाल ने जवाब दिया, "मैंने कभी सोचा नहीं था कि प्यार ऐसा होता है।"

दूसरी तरफ़ विशाल ने कॉलेज चुनावों में भाग लेने का फ़ैसला किया। उसने अपनी तैयारियों में कोई कमी नहीं छोड़ी। उसके दोस्तों और नंदिनी ने उसका पूरा सपोर्ट किया। लेकिन दूसरी तरफ, दूसरी पार्टियाँ उससे डरने लगीं। वह था स्ट्रॉंग बंदा। उन्होंने कई सालों से अपनी सत्ता को बचाकर रखा था और उन्हें चिंता थी कि विशाल की नई पार्टी उनकी सत्ता को खतरे में डाल सकती है।

दूसरी पार्टी ने अपने तरीके से काम शुरू कर दिया। उन्होंने कॉलेज के कुछ सीनियर बंदों से मिलकर चाल चली। उन्हें पता था कि अगर विशाल को किसी तरह से ग़लत साबित कर दिया जाए, तो वह चुनाव हार जाएगा। विशाल-नंदिनी की लव स्टोरी तो अब तक पूरे कॉलेज को पता लग ही गई थी। ।

विशाल ने अपनी बातें, अपनी विचारधाराओं को कॉलेज में फ़ैलाना शुरू कर दिया। वह सभाओं में बोलता और उसकी आवाज़ में एक जादू था। उसके भाषण सब ऐसे चिपक कर सुनते थे। जल्दी ही पॉपुलर हो गया वो।

एक दिन, नंदिनी ने विशाल को फिर अपने कमरे पर बुलाया। उसने कहा, "मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।" नंदिनी ने कहा, "बहुत दिन हो गए हैं हमें तूफान मचाए। तुम थके-थके रहते हो। इतना काम करते हो चुनाव आने से पहले। मैंने सोचा तुम्हें अच्छा-सा एहसास करवा दूं। जीत से पहले मिठाई खिला दूं।" उस दिन, नंदिनी ने विशाल के साथ शारीरिक सम्बंध बनाए। वासना के तूफान में डूबे विशाल को अंदाजा भी नहीं था कि अभी तो सुनामी आने वाली है। ऐसी सुनामी जो उसे उठा कर ऐसा पटकगी कि वह ज़िन्दगी भर उठ नहीं पाएगा।

अगले दिन जब विशाल कॉलेज गया तो सब उसे ही घूर-घूर कर देख रहे थे। विशाल समझ नहीं रहा था कि क्या हुआ था। तभी कॉलेज के सिक्योरिटी गार्ड आए और विशाल को पकड़ कर प्रिंसिपल के रूम में ले गए।

प्रिंसिपल ने जो बताया वह सुनकर विशाल जैसे करंट लग गया। प्रिंसिपल ने कहा कि तुमने नंदिनी का मर्डर किया है। विशाल को तो जैसे चक्कर आ गया था। मर्डर, उसने हैरानी से पूछा... पर कब, कहाँ।

यह सब पुलिस को बताना, प्रिंसिपल ने कहा। हालाँकि विशाल के दोस्तों ने उसे विश्वास दिलाने की कोशिश की कि यह सब साज़िश है, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।

पुलिस आई और विशाल को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी सारी इमेज की ऐसी तैसी हो गई। उसकी किसी ने नहीं सुनी। केस चला और उसे फांसी की सजा सुनाई गई।

विशाल के माता-पिता का दिल टूट गया। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका बेटा ऐसी मुसीबत में फंसेगा। उन्होंने सोचा कि उनके सपने चूर-चूर हो गए।

विशाल का छोटा भाई, जो उससे बहुत प्यार करता था, इस सब से इतना प्रभावित हुआ कि उसने आत्महत्या करने का सोचा। बड़ी मुश्किल से उसे समझाया गया। उसके माता-पिता के चेहरे पर आँसू थे। वे अपने बेटे को बर्बाद होते हुए देख रहे थे और उनकी आँखों में केवल निराशा थी।

विशाल की माँ हर दिन मंदिर जाती, भगवान से प्रार्थना करती कि उनके बेटे को न्याय मिले। लेकिन हर बार, उन्हें निराशा ही हाथ लगती। पिता ने तो अपनी नौकरी भी छोड़ दी, क्योंकि वह अपने बेटे के मामले में इतना परेशान हो गए थे कि काम पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे।

विशाल के परिवार का बिखरना एक बड़ा दर्द था। उसकी माँ की सेहत बिगड़ने लगी और उसके पिता लगातार चिंता में डूबे रहते थे। वे पूरा दिन बस अपने बेटे के बारे में सोचते रहते।

जेल में, विशाल ने अपने आप को पूरी तरह से अकेला पाया। उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि उसने क्या गलती की। वह सोचता रहा, "मैंने नंदिनी को प्यार किया, उसके साथ सपने बुने और क्या से क्या हो गया। पता नहीं किसने मार दिया उसे।"

जेल में दूसरे क़ैदी भी उसे नफ़रत भरी नजरों से देखते थे। वह सोचता था कि क्या वह कभी बाहर निकल पाएगा? क्या समाज उसे फिर से वापस लेगा? विशाल पूरा दिन परेशान घूमता और ख़ुद को गालियाँ देता। वह अपने अतीत को याद करता, अपनी माँ की बातें, अपने पिता की बातें और नंदिनी के साथ बिताए गए पल। वह उन खुशियों को याद करता जब वे एक-दूसरे के साथ थे। उसे यह बात समझ ही नहीं आ रही थी कि नंदिनी को किसने और क्यों मारा।

फिर धीरे-धीरे उसने मुझसे बातें करनी शुरू की और एक दिन विशाल ने रोते हुए कहा... "मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा प्यार मुझे यहाँ तक ले आएगा। मैं नंदिनी के साथ जीना चाहता था और यहाँ उसकी मौत की सजा काट रहा हूँ।"

मैंने कहा, "कभी-कभी दुनिया की सच्चाई हमारे सपनों को चूर-चूर कर देती है। तुम एक मासूम थे, लेकिन इस दुनिया ने तुम्हें बदल दिया। तुम्हें राजनीति ने मारा है। मुझे पूरा यक़ीन है कि नंदिनी का मर्डर उन्होंने किया या करवाया है जिनकी कुर्सियाँ तुम्हारे जीतने से हिल जातीं।"

विशाल ने मेरी बात सुनी। उसकी आँखों में आँसू थे। उसने कहा, "मैं चाहता था कि समाज को बदलूँ, लेकिन अब मुझे ख़ुद को बचाने का कोई मौका नहीं मिला।"

मैंने कहा, " तुम्हारी कहानी सिर्फ़ तुम्हारी नहीं, बल्कि इस दुनिया की है। यह बताती है कि कैसे राजनीति के आगे हम कुछ नहीं। कैसे पॉलिटिक्स हमें कुचल देती है।

और फिर वह मनहूस दिन आ गया जब विशाल को फांसी देनी थी। जब उसे फांसी पर चढ़ाया गया, तो उसके माता-पिता जेल में आए। उनकी आँखों में आँसू थे। उन्होंने अपने बेटे से कहा, "हमें माफ़ कर दो, हम तुम्हें बचा नहीं पाए।"

विशाल ने कहा, " मम्मी पापा, मैं एक बुरा इंसान नहीं हूँ। मैं सिर्फ़ प्यार कर रहा था। मैं पैसे और राजनीति से हार गया।

उसका दिल टूट चुका था। उसने कहा, "अगर मैं इस दुनिया से चला जाऊँ, तो मेरी कहानी को याद रखना।"

मरने वाले का नाम-vishal

उम्र-22 साल  

मरने का समय-सुबह 7 बज कर 19 मिनट 

विशाल की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि प्यार और राजनीति को मिलाना नहीं चाहिए। क्योंकि यह दुनिया बड़ी ही... अब क्या बोलूं... गाली देने की इजाज़त नहीं है।

विशाल की कहानी ने मुझे और प्रभावित किया। वह एक ऐसा लड़का था जिसने अपने सपनों के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन आख़िर में उसे धोखे का सामना करना पड़ा।

विशाल के माता-पिता ने उसके जाने के बाद कभी ख़ुशी नहीं पाई। उनकी ज़िन्दगी में केवल दुख और अफ़सोस रह गया। वे हमेशा अपने बेटे की याद में जीते रहे।

विशाल का छोटा भाई, जिसने उसे हमेशा अपना आदर्श माना था, अब केवल उसकी यादों में जीता था। उसके लिए जीवन की कोई ख़ुशी नहीं थी।

जेल में, मैं अक्सर यह सोचता कि हम एक समाज के रूप में कहाँ ग़लत हो गए हैं। क्या हम सच में अपने आस-पास के लोगों की मदद कर रहे हैं, या सिर्फ़ अपने स्वार्थों में डूबे हुए हैं?

क्या गलती थी विशाल की... प्यार ही तो किया था... लेकिन उसे थोड़ी न पता था कि जैसे गुलाब काँटों के साथ आता है, वैसे ही कई बार प्यार भी दुखों के साथ आता है। राजनीति करना सबके बस की बात नहीं होती और नंदिनी के घरवाले, बेचारों ने कितने सपनों से अपनी बेटी को दूसरे शहर में पढ़ने भेजा था। जिस बेटी के लिए लाल जोड़े के सपने देखे थे, उसे सफेद कपड़ों में वापस लेकर गए।

विशाल की कहानी ने यह दिखाया कि समाज को समझना होगा कि हर किसी की कहानी में गहराई होती है। हमें न केवल अपने सपनों की रक्षा करनी चाहिए, बल्कि दूसरों के सपनों की भी इज़्जत करनी चाहिए।

क्या हम सच में उस समाज का हिस्सा हैं, जहाँ हम दूसरों को समझें और मदद करें? यह सवाल मेरे मन में हमेशा चलता रहा।

विशाल की कहानी केवल एक इंसान की कहानी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। यह हमें सिखाती है कि हमें अपने आस-पास की चीज़ों को समझना होगा। हमें दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना होगा।


जेल में रहते हुए, मैंने बहुत कहानियाँ सुनीं, लेकिन विशाल की कहानी ने मुझे सबसे ज्यादा परेशान किया। यह कहानी हमें सिखाती है कि प्यार, धोखा, और समाज की सच्चाई कैसे एक इंसान की जिंदगी को बदल सकती है। हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए और सच्चाई को पहचानना चाहिए। समाज को बदलने की जरूरत है, और यह बदलाव हम सभी को शुरू करना होगा। विशाल की कहानी आज भी मेरे दिल में बसी हुई है, और मैं हमेशा उसकी याद में सोचता रहूँगा। उसकी कहानी हमें याद दिलाती है कि प्यार, विश्वास और सच्चाई सबसे महत्वपूर्ण हैं, और हमें इन्हें कभी नहीं भूलना चाहिए। और जहाँ तक बात है राजनीति की तो राजनीति तो कीचड़ है। उसमें उतरोगे तो सोच समझ कर उतरना क्योंकि गंदे तो होंगे ही। और राजनीति का कीचड़ किसी साबुन से नहीं धुलता।  


अभी आज्ञा दीजिए। अगले एपिसोड में एक और अपराधी की कहानी लेकर आऊँगा। 

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