मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।

मैं फ़ैसला नहीं करता कि कौन जीने लायक है और कौन मरने लायक। ये काम कानून का है। मेरा काम बस इतना है कि मैं तय वक़्त पर लीवर खींचता हूँ और लोगों की ज़िन्दगी ख़त्म कर देता हूँ।

आज भी याद है वह दिन मुझे। फांसीघर की चारदीवारी के भीतर गहरी चुप्पी छाई हुई है। एक और जान, जिसका अंत मेरे हाथों होना है। आज का क़ैदी है विकास सिंह। उम्र लगभग 40 साल, चेहरा थका हुआ और आँखों में हारे हुए इंसान की झलक। ऐसा नहीं कि ये पहला मौका है जब मैंने किसी को इस हालत में देखा हो। लेकिन विकास की आँखों में एक अजीब-सी बेचैनी है, जैसे कि वह अपनी सजा को समझ नहीं पाया हो या जैसे उसे विश्वास न हो कि उसे मौत मिलेगी।

मैंने कई क़ैदियों की फांसी दी है, हर एक का अपराध अलग होता है, मगर सबका अंत एक जैसा। लेकिन आज विकास की कहानी सुनकर मुझे कुछ अजीब लग रहा है। मैं जल्लाद हूँ, पर इंसान भी। विकास का जुर्म उसके और उसके समाज के बीच की दरार का नतीजा है। उसकी ज़िन्दगी एक सुलझी हुई किताब की तरह नहीं थी, बल्कि ऐसी उलझी हुई गांठ थी जिसे सुलझाते-सुलझाते उसकी पूरी ज़िन्दगी ख़त्म हो गई।

विकास एक simple-सा इंसान था। वह किसी भी आम भारतीय की तरह अपनी जिम्मेदारियों में उलझा हुआ था। नार्मल सी नौकरी, नार्मल सी आमदनी और एक नार्मल सी ज़िन्दगी। उसकी पत्नी, सीमा, भी नौकरी करती थी, लेकिन दोनों के बीच का रिश्ता time के साथ बिगड़ने लगा था। शादी के शुरुआती दिन अच्छे थे। हँसी-खुशी, प्यार और विश्वास की नींव पर दोनों का रिश्ता खड़ा था। लेकिन जब धीरे-धीरे ज़िन्दगी की सच्चाई सामने आने लगी तो खड़ा हुआ रिश्ता बैठने लग गया ।

विकास एक ईमानदार और मेहनती व्यक्ति था। उसने अपनी नौकरी में कभी कोई ढील नहीं दी, लेकिन उसकी मेहनत और ईमानदारी का फल उसे नहीं मिला। उसकी नौकरी में तरक्क़ी की कोई गुंजाइश नहीं थी और आर्थिक तंगी घर में दिन-ब-दिन बढ़ती गई। सीमा को भी यह बात अखरने लगी थी। दोनों के बीच के रिश्ते में पैसे का मुद्दा हमेशा झगड़े की जड़ बनता गया। विकास चाहता था कि दोनों मिलकर अपने हालात को ठीक करें , लेकिन सीमा ने पैसों की कमी को अपनी खुशियों की कमी के रूप में देखना शुरू कर दिया।

फिर, एक दिन, सीमा ने तलाक की बात छेड़ दी। विकास इस फैसले के लिए तैयार नहीं था। वह अपने रिश्ते को बचाना चाहता था, लेकिन सीमा ने जैसे अपनी ज़िंदगी के अगले क़दम तय कर लिए थे। उसे इस रिश्ते से कोई मतलब नहीं रह गया था।

समाज में तलाक लेना आसान नहीं होता, खासकर भारत जैसे देश में जहाँ रिश्ते सामाजिक मान-सम्मान से जुड़े होते हैं। तलाक एक भावनात्मक और कानूनी लड़ाई बन जाता है और यहाँ भी यही हुआ। लेकिन विकास और सीमा के तलाक की लड़ाई तब और गंभीर हो गई जब सीमा ने उससे मोटी रक़म की मांग की—एलिमनी। ये शब्द विकास के लिए एक डरावनी सच्चाई बन गया था। पहले से ही पैसे को लेकर तू-तू, मैं-मैं रहती और अब सीमा की इस मांग ने उसे अंदर तक तोड़ दिया था ।

विकास की हालत ऐसी हो गई कि उसे लगने लगा कि उसकी ज़िन्दगी झंड हो चुकी है । वह सोचने लगा कि क्या उसकी पत्नी कभी उससे प्यार करती थी, या ये रिश्ता सिर्फ़ पैसों की बुनियाद पर खड़ा था? वह अपने आत्म-सम्मान को बचाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन हर क़दम पर उसे अपमानित होना पड़ा।

सीमा ने अपने वकील के जरिए उसे और दबाव में डालना शुरू कर दिया। हर बार सीमा से मिलना विकास के लिए एक नर्क बन गया था। हर मुलाकात में उसे लगता कि उसकी इंसानियत और आत्म-सम्मान को रौंदा जा रहा है। तलाक का मतलब उसके लिए सिर्फ़ एक रिश्ता ख़त्म करना नहीं था, बल्कि एक पूरा जीवन ख़त्म हो जाना था और इस सबके बीच, विकास धीरे-धीरे ख़ुद को खोने लगा।

विकास और सीमा के बीच तलाक की लड़ाई अब एक युद्ध का रूप ले चुकी थी। विकास एक सीधा-सादा इंसान था, जो अपनी ज़िन्दगी को ईमानदारी और मेहनत से जीने में यक़ीन रखता था। लेकिन कानून, जो उसकी नज़र में हमेशा सही और न्यायप्रिय था, अब उसे उस चीज़ के लिए सजा दे रहा था जिसका वह अपराधी नहीं था—तलाक के बाद एलिमनी देना।

विकास के लिए ये मांग बेहद नाजायज़ थी। वह पहले से ही आर्थिक रूप से तंग था और सीमा द्वारा की गई बड़ी रक़म की मांग ने उसकी कमर तोड़ दी। कोर्ट में हर सुनवाई उसके लिए एक और ज़ख़्म बनती जा रही थी। वहाँ न केवल उसे सीमा के आरोपों का सामना करना पड़ रहा था, बल्कि वह अपने आत्म-सम्मान को हर बार और खोता जा रहा था। वकीलों की दलीलें, कोर्ट की कार्यवाही और समाज के ताने, ये सब मिलकर उसे अंधेरे में धकेल रहे थे।

सीमा के लिए यह लड़ाई शायद उसकी आर्थिक सुरक्षा का सवाल थी, लेकिन विकास के लिए यह उसकी पहचान का सवाल बन गया था। उसकी पूरी ज़िन्दगी उसकी आँखों के सामने बिखरती जा रही थी। जिस प्यार और विश्वास पर उसका रिश्ता खड़ा था, वह अब एक व्यापार में बदल चुका था। एलिमनी, जो कभी सिर्फ़ एक कानूनी प्रावधान था, अब उसकी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी चुनौती बन गया था।

कभी-कभी विकास को ऐसा लगता था कि उसने अपने पूरे जीवन की मेहनत और प्यार व्यर्थ कर दिया। वह इस स्थिति से बाहर निकलना चाहता था, लेकिन हर रास्ता उसे और अंधेरे की ओर ले जा रहा था। सीमा की मांगें उसे लगातार तोड़ रही थीं। उसकी ज़िन्दगी पर मानो किसी ने कब्जा कर लिया था और वह अब एक खाली खोल बन गया था।

तलाक की सुनवाई के बीच, विकास की दिमाग़ की हालत भी खराब पर खराब हो रही थी। उसने ख़ुद को दुनिया से काट लिया था। अपने दोस्तों से मिलना बंद कर दिया, काम पर जाना एक बोझ-सा लगने लगा था। वह दिनभर अपने छोटे से कमरे में बैठकर अपनी क़िस्मत को कोसता रहता था। उसके भीतर का गुस्सा और निराशा धीरे-धीरे एक सुलगती हुई आग में बदलने लगी थी। लेकिन वह आग किस ओर बहेगी, ये उसे भी समझ में नहीं आ रहा था।

फिर, एक दिन, सब कुछ टूट गया। उस दिन कोर्ट में सीमा ने फिर से उससे एलिमनी की मोटी रक़म मांगी। उसको पैसों को लेकर ताने मारे। विकास को ऐसा लगा जैसे उसके जीवन के हर कोने पर चोट की जा रही है। घर, रिश्ते, पैसे—सबकुछ एक-एक करके उससे छीना जा रहा था। वह गुस्से और अपमान से भरा हुआ कोर्ट से बाहर आया। उसकी आँखों में केवल अँधेरा था। उस रात, उसने सीमा से बात करने का फ़ैसला किया। वह चाहता था कि सबकुछ शांति से सुलझ जाए, पर उसके दिल में कहीं एक कोना अब भी नफ़रत और गुस्से से भरा था।

विकास उस रात सीमा के घर पहुँचा। उसे उम्मीद थी कि वह उससे एक आखिरी बार बात कर सकेगा, शायद कुछ समझौता हो जाए। पर जब उसने सीमा से बात शुरू की, तो एक बार फिर वही ताने, वही कड़वी बातें शुरू हो गईं। सीमा ने उसकी आर्थिक तंगी का मज़ाक उड़ाया, उसे नीचा दिखाया और उसे ऐसा महसूस कराया जैसे वह किसी काम का नहीं है।

विकास का गुस्सा अब उफान पर था। उसकी आँखों के सामने बस वह सारे अपमान और ज़ख़्म घूम रहे थे, जो उसने पिछले कई महीनों से झेले थे। सीमा की बातें जैसे एक चिंगारी की तरह उसके भीतर की आग को भड़का रही थीं। उसने अपना आपा खो दिया। गुस्से में, उसने सीमा की ओर क़दम बढ़ाए। उसे ख़ुद भी समझ में नहीं आया कि वह क्या कर रहा है। बस गुस्से में आकर उसने सीमा का गला पकड़ लिया और उसे ज़ोर से दबा दिया।

जब उसे होश आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सीमा की नब्ज़ थम चुकी थी। उसके हाथों में उसकी पत्नी की लाश थी। विकास ने अपनी पत्नी की जान ले ली थी। उसके दिमाग़ में एक पल के लिए भी यह ख़्याल नहीं आया था कि वह क्या करने जा रहा है। सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि उसने अपने गुनाह की गंभीरता का एहसास भी नहीं किया।

सीमा की मौत के बाद, विकास को गिरफ्तार कर लिया गया। कोर्ट ने उसे मौत की सजा सुनाई और अब वह मेरे सामने बैठा है, एक अपराधी के रूप में, जो अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में फांसी पर चढ़ने वाला है।

मैं विकास की कहानी को सुनकर उलझन में हूँ। क्या वह सच में सिर्फ़ एक अपराधी था, या फिर एक इंसान था जो समाज की बनाई हुई उलझनों में फंस गया था? उसकी कहानी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हम किस तरह के समाज में रहते हैं, जहाँ रिश्ते पैसों की दीवारों में क़ैद होकर टूट जाते हैं। क्या एलिमनी जैसी system सही है, अगर इससे किसी की ज़िन्दगी इस तरह बर्बाद हो जाए?

मैंने विकास से पूछा कि क्या वह अपने किए पर पछताता है। उसने अपनी सूनी आँखों से मेरी ओर देखा और कहा, "मैंने गलती की, पर मैं अकेला दोषी नहीं हूँ। इस समाज ने मुझे यहाँ तक पहुँचाया है।"

विकास की कहानी सुनकर मेरे भीतर कुछ बदलने लगा था। मैं एक जल्लाद हूँ, लेकिन कभी-कभी एक इंसान के रूप में भी मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ता है। कितनी अजीब बात है कि मैं वह इंसान हूँ जो दूसरों की ज़िन्दगी के आखिरी पलों का गवाह बनता हूँ , लेकिन उनकी ज़िन्दगी में आए तूफानों को शायद कभी नहीं समझ पाता। विकास की कहानी ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया था।

फांसीघर के भीतर अब भी गहरी चुप्पी थी। विकास अपनी फांसी का इंतज़ार कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में डर की जगह एक अजीब-सा सुकून था। शायद उसने अपनी ज़िन्दगी के अंत को स्वीकार कर लिया था। उसका चेहरा शांत था, लेकिन उस सन्नाटे में एक गहरी उलझन छिपी थी। क्या उसे इस बात का पछतावा था कि उसने अपनी पत्नी की जान ली थी? या फिर उसे इस बात का दुःख था कि उसका जीवन एक ऐसी उलझन में फंस गया था, जहाँ से बाहर निकलने का उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आया?

मेरा काम सिर्फ़ फांसी देना है, मैं भावनाओं को इस काम से अलग रखने की कोशिश करता हूँ। लेकिन आज, विकास की आँखों में जो सच्चाई थी, उसने मेरे मन में उथल पुथल मचा रखी है। ये एक ऐसा अपराधी था जिसने गुस्से में आकर अपनी पत्नी की हत्या की थी, लेकिन उसका अपराध सिर्फ़ उसका नहीं था। विकास और सीमा की शादी उस सामाजिक ताने-बाने का शिकार हो गई थी जहाँ रिश्ते सिर्फ़ पैसे और झूठी शान पर टिके हुए हैं।

तैयारी शुरू हो गई थी। जेल के अधिकारी विकास को फांसी के तख्ते की ओर ले जा रहे थे। मैं भी अपनी जगह तैयार था, लेकिन मेरे मन में कई सवाल घूम रहे थे।

विकास को जब फांसी के तख्ते पर लाया गया, तो उसने आखिरी बार मेरी ओर देखा। उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, न ही कोई प्रार्थना। वह सिर्फ़ चुपचाप खड़ा रहा, मानो अब उसे अपने जीवन की कोई परवाह नहीं थी। ये इंसान अब अपनी मौत का स्वागत कर रहा था और शायद उसे यही सुकून था कि इस मुश्किल जीवन का अंत अब होने वाला है।

मैंने तख्ते पर खड़े विकास को देखा और अपने दिल में एक आवाज़ सुनी। क्या हम वाकई ऐसे समाज में जी रहे हैं जहाँ इंसान को इस तरह टूटने पर मजबूर होना पड़ता है? क्या हमने अपने कानून, अपने सिस्टम  से  इंसानियत को  अलग कर दिया है? क्या रिश्तों की क़ीमत सिर्फ़ पैसा और झूठी शान ही रह गया है ?

मैंने लीवर खींचा और विकास का शरीर हवा में झूल गया।

मरने वाले का नाम-विकास

उम्र-40 साल  

मरने का समय-सुबह 9 बज कर 22 मिनट 

फांसीघर के भीतर चुप्पी थी, लेकिन मेरे मन में एक शोर मच रहा था। विकास मर चुका था, लेकिन उसकी कहानी मेरे साथ हमेशा के लिए रह जाएगी। एक जल्लाद होने के नाते, मैं सिर्फ़ उन अपराधियों की ज़िंदगी का अंत करता हूँ जिन्हें कानून ने सजा दी है। लेकिन विकास की मौत ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हम अपने समाज में सचमुच इंसाफ कर रहे हैं?

विकास ने गलती की थी। उसने अपनी पत्नी का क़त्ल किया था और इसके लिए उसे सजा मिली। लेकिन उसकी गलती अकेली नहीं थी। वह एक ऐसे समाज में पैदा हुआ था जहाँ रिश्तों को-को पैसों से तोला जाता है , जहाँ तलाक एक कानूनी लड़ाई बन जाता है और जहाँ एलिमनी जैसे कानून कभी-कभी एक इंसान को अंदर से तोड़ सकते हैं।

मुझे याद है कि विकास ने फांसी से पहले कहा था, "मैंने गलती की, लेकिन मैं अकेला दोषी नहीं हूँ। इस समाज ने मुझे इस मुकाम पर पहुँचाया है।"

ये शब्द अब मेरे कानों में गूंज रहे थे। फांसी देने के बाद भी मैं उस तख्ते के पास खड़ा रहा, जहाँ विकास का शरीर अब शांत था। मैंने कई लोगों को फांसी दी है, लेकिन आज पहली बार ऐसा लग रहा था कि किसी इंसान की मौत ने मुझे एक नया नज़रिया  दिया है।

हमारे समाज में रिश्तों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। शादी , जो कभी प्यार और विश्वास का बंधन था, अब एक सामाजिक और कानूनी समझौता बन चुका है। तलाक की लड़ाई में अक्सर लोग एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, और इसी चक्कर में वो अपनी इंसानियत खो देते हैं। विकास की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। वो अपनी पत्नी से प्यार करता था, लेकिन एलिमनी की मांग ने उसे इतना तोड़ दिया कि उसने अपना संयम खो दिया और अपराध कर बैठा।

लेकिन सवाल ये है कि अगर कानून और समाज थोड़ा सोच विचार करता, तो क्या विकास का जीवन इस तरह खत्म होता? क्या वो अपनी पत्नी की जान लेने पर मजबूर होता? शायद नहीं।

फांसी का दिन खत्म हो गया था। विकास की बॉडी  अब जेल के अस्पताल में रखी थी और मैं अपने कमरे में लौट आया। लेकिन आज मेरे मन में कई सवाल थे, जिनका कोई जवाब नहीं था। क्या मैं सही कर रहा हूँ? क्या हम अपने समाज में सही फैसले ले रहे हैं? या फिर हम इंसानियत को कहीं भूल चुके हैं?

अभी आज्ञा दीजिए। अगले एपिसोड में एक और अपराधी की कहानी लेकर आऊँगा। 

Continue to next

No reviews available for this chapter.