मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।

जिसे दुनिया एक क्रूर इंसान समझती है। मेरा काम है फांसी देना, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मेरे अंदर के हाव भाव  मर चुके  हैं। हर रोज़ मुझे अपराधियों को फांसी पर लटकाते हुए देखा जाता है और समाज यही मानता है कि मैं एक कठोर दिल का इंसान हूँ। लेकिन एक घटना ने मेरे दिल और दिमाग़ को पूरी तरह हिला कर रख दिया। इस घटना ने मुझे कोर्ट पर सवाल जवाब करने पर मजबूर कर दिया और मेरी ज़िंदगी को बदल कर रख दिया। यह कहानी है रामेश्वर की।

रामेश्वर एक साधारण आदमी था, जिसे देखकर कोई भी अंदाज़ा नहीं लगा सकता था कि उसकी ज़िंदगी इतनी दुख भरा मोड़ लेगी। वह एक गाँव का किसान था, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी मेहनत और ईमानदारी से जी थी। उसकी दुनिया छोटी थी—पत्नी, दो बच्चे और गाँव के छोटे से खेत में मेहनत। उसकी ज़िंदगी में कोई बड़ी उम्मीद नहीं थीं, बस अपने परिवार के साथ सुकून से जीना चाहता था। उसके खेत से जो कुछ भी मिलता था, उससे वह अपने परिवार का गुज़ारा करता था।

गाँव के लोगों के बीच रामेश्वर की छवि एक सीधे-साधे इंसान की थी। उसे कभी किसी ने ऊँची आवाज़ में बोलते हुए नहीं सुना था। उसकी ज़िंदगी गाँव के दूसरे  लोगों की तरह ही सिम्पल और शांति वाली  थी। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, ज़िंदगी की सादगी भी अचानक तूफ़ानों में बदल सकती है और रामेश्वर ki ज़िंदगी  में भी एक ऐसा ही तूफ़ान आया—जो उसकी पूरी ज़िंदगी को तबाह कर गया।

गाँव में ठाकुर रणवीर सिंह का दबदबा था। ठाकुर एक अमीर  ज़मींदार था और गाँव के बहुत से लोग उससे डरते थे। उसकी ज़मीनें दूर-दूर तक फैली थीं और वह अपने रसूख से गाँव के लोगों पर राज करता था। ठाकुर के सम्बंध गाँव के बाहरी बड़े लोगों से भी थे और इस कारण कोई भी उसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं करता था।

एक रात ठाकुर रणवीर सिंह की हत्या हो गई। गाँव में इस घटना ने तहलका मचा दिया। ठाकुर जैसे दबंग आदमी की हत्या करना कोई मामूली बात नहीं थी। पुलिस और प्रशासन तुरंत हरकत में आ गए। जाँच शुरू हुई और कुछ ही दिनों में यह ख़बर आई कि रामेश्वर को इस हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

गाँव में यह ख़बर आग की तरह फैल गई। लोग हैरान थे कि रामेश्वर जैसे सीधे-सादे आदमी पर ठाकुर जैसे शक्तिशाली आदमी की हत्या का आरोप कैसे लग सकता है। लेकिन समाज की प्रवृत्ति होती है कि वह जल्दी से निर्णय लेने लगे। रामेश्वर की निर्दोषता की बात कुछ ही लोगों ने मानी, जबकि बाक़ी लोग यह मानने लगे कि पुलिस ने उसे दोषी सही ही पकड़ा होगा।

रामेश्वर को जेल में डाल दिया गया। कानूनी प्रक्रिया शुरू हुई और गाँव के लोगों के बयान लिए गए। एक गवाह ने दावा किया कि उसने रामेश्वर को उस रात ठाकुर के घर के पास देखा था, जब हत्या हुई थी। यही बयान रामेश्वर के खिलाफ सबसे बड़ा सबूत बना। हालांकि, रामेश्वर लगातार कहता रहा कि वह निर्दोष है, लेकिन उसकी बात किसी ने नहीं मानी।

रामेश्वर ने कहा कि हत्या वाली रात वह अपने खेत में पानी दे रहा था, लेकिन उसके पास अपनी बात साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं था। रामेश्वर के पास इतना पैसा भी नहीं था कि वह अच्छा वकील रख सके। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वह सरकारी वकील की ही मदद से अपनी बात रख रहा था। वकील ने उसकी बात अदालत में रखने की कोशिश की, लेकिन कमजोर सबूतों के कारण रामेश्वर की स्थिति और कमजोर होती चली गई।

गाँव के लोगों के बीच ठाकुर रणवीर सिंह की मौत ने सामाजिक और राजनीतिक तनाव पैदा कर दिया था। गाँव के प्रतिष्ठित लोग, जो ठाकुर से जुड़े थे, उन्होंने रामेश्वर के खिलाफ एक माहौल बना दिया था। पुलिस और प्रशासन भी इस दबाव के कारण निष्पक्ष जाँच नहीं कर पाए।

रामेश्वर की बेबसी देखकर मुझे एहसास हुआ कि न्याय प्रणाली सिर्फ़ कागजों और सबूतों पर आधारित नहीं होती, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक ताकतों से भी प्रभावित होती है। एक गरीब आदमी की आवाज़ अक्सर दब जाती है और वही रामेश्वर के साथ हुआ। अदालत में जब भी उसकी सुनवाई होती, रामेश्वर बस रोता हुआ कहता, "मैं निर्दोष हूँ। मैंने कुछ नहीं किया।" उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं देता।

गाँव के लोग भी इस बात को लेकर विभाजित हो गए थे। कुछ लोग मानते थे कि रामेश्वर निर्दोष है, लेकिन उन्हें अपने समाज और ठाकुर के प्रभाव का डर था। वे खुलकर उसका समर्थन नहीं कर सकते थे। वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोग यह मानने लगे थे कि रामेश्वर ही हत्यारा है, क्योंकि पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था और अदालत में उसके खिलाफ सबूत पेश किए जा रहे थे।

कई महीनों तक मुकदमा चलता रहा और रामेश्वर की स्थिति दिन-ब-दिन कमजोर होती चली गई। उसके पास कोई ठोस सबूत नहीं था और गवाहों की गवाही ने उसे और भी फँसा दिया। आखिरकार, अदालत ने फ़ैसला सुना दिया—रामेश्वर को हत्या का दोषी ठहराया गया और उसे फांसी की सज़ा सुनाई गई।

जब मैंने इस फैसले के बारे में सुना, तो मुझे भीतर से एक अजीब-सी बेचैनी महसूस हुई। मैंने अब तक कई अपराधियों को फांसी दी थी और हर बार मैंने इसे सिर्फ़ अपना काम माना था। लेकिन इस बार कुछ अलग था। रामेश्वर की आँखों में जो दर्द था, उसने मेरे मन में गहरे सवाल खड़े कर दिए थे। क्या वह सच में दोषी था? क्या हमारी न्यायिक प्रणाली ने सही फ़ैसला किया था?

फांसी से पहले की रात, मैंने रामेश्वर से मिलने का फ़ैसला किया। यह मेरी ड्यूटी का हिस्सा नहीं था, लेकिन मेरे अंदर कुछ ऐसा था जो मुझे उससे मिलने के लिए मजबूर कर रहा था। मैं उसकी आँखों में सच्चाई देखना चाहता था, शायद उससे यह सुनना चाहता था कि वह सच में दोषी है।

जब मैं रामेश्वर के पास गया, तो वह चुपचाप बैठा हुआ था। उसकी आँखों में कोई डर नहीं था, बस एक गहरी उदासी थी। मैंने उससे पूछा, "क्या तुम सच में निर्दोष हो?"

रामेश्वर ने मेरी तरफ़ देखा और कहा, "भैया, मैंने ठाकुर को नहीं मारा। मैं उस रात अपने खेत में था। लेकिन मेरे पास इसका कोई सबूत नहीं है। मेरे पास पैसे नहीं थे कि मैं एक अच्छा वकील रख सकूँ। उन्होंने मुझे फंसाया है।"

उसकी बातों में एक अजीब-सी सच्चाई थी। उसकी आँखों में जो दर्द था, वह मेरे दिल को चीर गया। लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था। मेरे हाथ बंधे हुए थे। मुझे अपना काम करना था, चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो।

अगली सुबह, मैंने रामेश्वर को फांसीघर में बुलाया। वह चुपचाप आ गया, बिना किसी विरोध या डर के। उसकी आँखों में अब कोई उम्मीद नहीं थी, बस एक गहरी उदासी थी। मैंने उसकी गर्दन में फांसी का फंदा डाला और जैसे ही लीवर खींचा, मेरा दिल भारी हो गया। उस पल मुझे महसूस हुआ कि मैंने न सिर्फ़ एक इंसान की जान ली, बल्कि उसकी सच्चाई को भी दबा दिया। 

 

मरने वाले का नाम-रामेश्वर

उम्र-50 साल  

मरने का समय-सुबह 6 बज कर 04 मिनट 

 

जानते हैं रामेश्वर की आखिरी इच्छा क्या थी? उसकी आखिरी इच्छा थी कि उसके घरवालों को न बताया जाए कि उसे इस दिन फांसी हो जाएगी। वह चाहता था कि बस फांसी के बाद उसका शरीर उसके घरवालों को दे दिया जाए। हाँ, एक बात ज़रूर बोली थी उसने मुझे। उसने कहा था कि मेरे परिवार वालों को इतना कह देना कि ज़िंदगी में ख़ूब पैसा कमाना है। ख़ूब सारा। बैंक के बैंक भर जाएँ इतना पैसा। क्योंकि पैसे की ताकत से सब कुछ संभव है। कुछ भी असंभव नहीं है।

जब रामेश्वर का शरीर फांसी के फंदे से झूल गया, मेरे मन में गहरा पश्चाताप छा गया। मैंने एक निर्दोष आदमी की जान ली थी और यह अपराध मेरे दिल में हमेशा के लिए बस गया। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि कानून का पालन करना हमेशा सही नहीं होता। कानून में भी इंसानियत होनी चाहिए।

कुछ महीनों बाद, गाँव में एक नई ख़बर आई। असली हत्यारा पकड़ा गया था। ठाकुर रणवीर सिंह की हत्या उनके ही किसी करीबी ने की थी। रामेश्वर निर्दोष था। इस ख़बर ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मैंने एक निर्दोष आदमी की जान ली थी और यह अपराध मेरे दिल पर हमेशा के लिए एक बोझ बन गया।

उस दिन से मैं कभी चैन से नहीं सो सका। हर रात रामेश्वर की बेबस आँखें मेरे सपनों में आती हैं। मैं सोचता हूँ कि अगर मैंने उस समय कुछ किया होता, तो शायद रामेश्वर की जान बच सकती थी। लेकिन मैं सिर्फ़ एक कर्मचारी था, जिसका काम फांसी देना था।

रामेश्वर की कहानी ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि हमारी न्यायिक व्यवस्था में कितनी खामियाँ हैं। क्या कोई भी व्यक्ति बिना ठोस सबूत के दोषी ठहराया जा सकता है? क्या हमें सिर्फ़ कानून का पालन करने पर गर्व होना चाहिए, जबकि हम जानबूझकर निर्दोष लोगों की जान ले रहे हैं?

दूसरा पहलू यह है कि हमने जाने-अनजाने पैसे को कितना ताकतवर बना दिया है। पैसे से जैसे आप सब कुछ खरीद सकते हो। क्या न्याय, क्या अन्याय। पैसा फेंको, तमाशा देखो। ऐसा नहीं होना चाहिए। आए दिन आती हैं न खबरें कि अमीर के बच्चे ने गाड़ी से गरीब का पूरा परिवार उड़ा दिया और जब केस अदालत में आता है तो महंगे वकील साबित कर देते हैं कि उस रात वह बच्चा कार में क्या, इस देश में ही नहीं था। वह तो दुबई के अस्पताल में अपने दादा जी की बवासीर का ऑपरेशन करवा रहा था।

रामेश्वर की बेगुनाही की कहानी मुझे रोज़ याद आती है। उसकी पत्नी और बच्चे कैसे जी रहे होंगे? उनकी ज़िंदगी में जो दुख आया, उसका क्या? ये सारे सवाल मेरे दिल में हर रोज़ गूंजते रहते हैं। मैं जानता हूँ कि मैं इस अन्याय का एक हिस्सा हूँ। हर बार जब मैं किसी को फांसी देता हूँ, तो मेरे मन में यह सवाल उठता है—क्या वह सच में दोषी था?

अब मैं हर फांसी से पहले भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे किसी निर्दोष की जान न लेनी पड़े। मैं चाहता हूँ कि जो भी सज़ा पाए, वह सच में दोषी हो। रामेश्वर की कहानी ने मुझे यह सिखाया कि सिर्फ़ कानून का पालन करना ही काफ़ी नहीं है, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय हो रहा है या नहीं।

अब, जब भी मैं फांसी देता हूँ, तो मेरे मन में यह सवाल होता है कि क्या मैं किसी और रामेश्वर की जान ले रहा हूँ। हमारी न्यायिक व्यवस्था को सुधारने की ज़रूरत है। हर व्यक्ति को अपनी बेगुनाही साबित करने का अधिकार होना चाहिए और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी निर्दोष न फँसे।

मैंने ख़ुद से एक वादा किया है कि अब हर मामले को ध्यान से देखूँगा और कोशिश करूँगा कि कोई और निर्दोष इस तरह न मारा जाए। रामेश्वर की कहानी मेरे साथ हमेशा रहेगी, एक कड़वी सच्चाई के रूप में। उसकी फांसी के बाद, मैंने अपने काम को एक नई दृष्टि से देखना शुरू किया। मैंने समझा कि कानून केवल एक किताब नहीं है, बल्कि यह मानवता का एक सच्चा प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

अब, जब भी मैं किसी को फांसी देता हूँ, तो मैं याद करता हूँ कि वह भी एक इंसान था, जिसकी ज़िंदगी में भी परिवार, सपने और उम्मीदें थीं और मैं चाहता हूँ कि हमारी न्यायिक व्यवस्था उस इंसानियत को कभी न भूले।

मुझे रह-रह कर याद आता है जब हम रामेश्वर का शरीर उसके घर लेकर गए थे। मैं भी साथ गया था। बेचारे की पत्नी तो बेहोश हो गई थी, संभाला रिश्तेदारों ने। अच्छा, ऐसे में गाँव के कई लोग बोलने लग गए कि यह तो जेल से आया हुआ क्रिमिनल है और क्रिमिनल हमारे गाँव में नहीं जलेगा। समझ नहीं आ रहा कौन-सी गाली दूं। जब सारी सच्चाई सामने आ गई है, असली अपराधी पकड़ा गया, उसका गुनाह भी साबित हो गया, तो तुम यहाँ अपनी भैंस चराने आए हो। दिल तो कर रहा था उसे टांग दूं वहीं पर।

मैं आपको समाज का असली चेहरा दिखा रहा हूँ ये बता कर। यह तो मरने के बाद भी चैन से न मरने दें। (गहरी सांस लेते हुए) कभी-कभी लगता है कि जेल की ही दुनिया ठीक है मेरे लिए। पता तो है कि कौन कैसा है। बाहर तो सबने चेहरे के ऊपर दूसरा चेहरा लगा रखा है, दूसरे के ऊपर तीसरा और पता नहीं यह गिनती कहाँ ख़त्म होगी।

आप क्या सोचने लग गए हैं? अपने चेहरे गिन रहे हो क्या?

चलिए अब आज्ञा दीजिए। अगले एपिसोड में एक और अपराधी की कहानी लेकर आऊँगा। 

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