मैं हूँ चक्रधर. जल्लाद चक्रधर.
माँ सुनते ही हम सब को कितना प्यार भरा एहसास होता है, है न? गोदी, लोरियां, प्यार से खिलाना और कंधे से लगाकर सुलाना, लेकिन सबकी याद में माँ की ऐसी कहानियां नहीं होती। मेरी याद में तो नहीं हैं और शायद उस मासूम की याद में भी नहीं होंगी। सुनाता हूँ आज की दास्ताँ.
लगभग हर रात अपने कमरे के अंधेरे कोने में बैठ कर मैं अपने पचास सालों के काम को याद करता हूं, और आज मुझे रह रह कर एक ऐसे व्यक्ति की याद आ रही है, जिसे इसी जेल में, कुछ साल पहले, मैने ही फांसी के फंदे पर लटकाया था।
मैं अपने इन अनुभवों को आप लोगो के साथ साझा करना चाहता हूं।
आज भले ही मेरी उम्र सत्तर वर्ष की हो, लेकिन दिल से अभी भी मैं, खुद को वही छोटा बच्चा समझता हूं, जो इस जेल में पला बड़ा है।
मुझे, अपनी मां की शकल तो याद नही है, पर किसी और की मां की शकल और बातें, आज भी मेरे ज़हन में घर करी हुई है।
मेरा जन्म इसी जेल में हुआ था, मेरी मां का नाम सुनीता था, वो यहां पर एक कैदी थी, जिन्हें एक अमीर आदमी का मर्डर करने के इलज़ाम में पकड़ लिया गया था।
मेरी माँ उसके घर पर काम करती थी. उसकी बूढ़ी माँ की देखभाल के लिए रखा था और एक दिन उस राक्षस ने मौका देखकर मेरी माँ की अस्मिता को तार-तार करने की कोशिश की और आत्म रक्षा में मेरी माँ से उस हैवान का ख़ून हो गया. महंगे वकीलों ने साबित कर दिया कि मेरी माँ का ही चरित्र ठीक नहीं था और पैसे ऐंठने के लिए झगड़े में मेरी माँ ने उसे मार दिया. मेरी मां को ही दोषी माना गया, और उसे फांसी की सजा दे दी गई।
मेरी मां को जब जेल में लाया गया, तब एक दिन अचानक से वो बेहोश हो गई।
डॉक्टरों को बुलाया गया, उस दिन जेल के अधिकारियों को पता चला की वो गर्भवती है, उसके पेट में एक बच्चा है। ऐसे मामलों में कानून, गर्भवती महिला को फांसी की सजा नही दे सकता था।
इसलिए मेरी मां की जेल की सज़ा, तब तक के लिए बढ़ा दी गई, जब तक उनका होने वाला बच्चा, यानी की मैं, चक्रधर, थोड़ा बड़ा ना हो गया।
समय बीतता गया, और नौ महीनों के बाद, मेरी मां ने मुझे जन्म दिया।
मेरा नाम जेल के ही साथियों ने मिल कर चक्रधर रखा था।
मेरे थोड़ा बड़े होते ही, मेरी मां की सज़ा का वक्त भी आ गया।
भले ही उस समय, मैं बहुत छोटा था, और नादान और नासमझ भी था, लेकिन फिर भी जब मेरी मां को फांसी के तख्त पर ले जाया गया, तब अचानक से, मैं फूट फूट कर रोने लगा।
ना जाने कैसे, लेकिन मुझे अपनी मां के जाने का अहसास हो गया था।
मेरी मां की तो कोई याद मुझे नही है, लेकिन आज जिसके बारे में मैं बताने जा रहा हूं, वो एक ऐसी माँ की कहानी है, जिसने अपने बच्चे के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया।
अगर आज मेरी मां जिंदा होती, तो शायद वो भी मेरे लिए कुछ ऐसा ही करती।
जिस मां की कहानी, मैं आज सुनाने वाला हूं, उसे हालातों ने ही अपराध की दुनिया में धकेल दिया था।
उसे फांसी देने के पहले, आखिरी रात को मेरी उनसे कुछ बात हुई थी, जो मेरे लिए एक गहरी सीख बन कर रह गईं।
यह बात है एक ऐसी महिला की, जिसकी कहानी ने मुझे गहराई से प्रभावित किया है। यह कहानी मीरा की है, एक साधारण महिला जो एक अद्भुत मातृत्व की प्रतीक थी।
समाज और परिवार के दबाव की वजह से, मीरा की शादी, बहुत ही कम उम्र में हो गई थी।
मीरा का पति, एक दिहाड़ी मजदूर था, उसकी आय बहुत कम थी। बहुत बार ऐसा भी होता था की उनके पास खाने के पैसे भी नहीं होते थे।
ऐसे हालातों में भी मीरा ने अपना पत्नी धर्म बखूबी निभाया और चाहे जैसी भी हालात जैसे भी हों, मीरा ने अपने पति का साथ दिया।
शादी के दो साल के अंदर ही, मीरा पेट से हो गई।
मीरा की तबियत ठीक नहीं रहती थी, और ऐसी हालत में भी मीरा का पति, कुछ खास कमाई नहीं कर रहा रहा था।
मीरा के इलाज, और उसके खाने पीने की जरूरतों को भी, उसका पति, पूरा नहीं कर पा रहा था।
इन पूरे नौ महीने, मीरा ने अकेले ही बिताए, कोई उसका ख्याल करने वाला नही था।
जैसे तैसे कर के, मीरा ने एक खूबसूरत, प्यारी सी बच्ची जन्म दिया।
मीरा के पति को, लड़की नही, लड़का चाहिए था।
रश्मि के पैदा होते ही, उसका बाप उससे नफरत करने लगा था, उसने कभी रश्मि के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया, और अपना सारा गुस्सा मीरा पर निकालने लगा।
धीरे धीरे, मीरा का पति एक शराबी बन गया, और आए दिन, शराब के नशे में चूर हो कर, मीरा को पीटता था।
मीरा का पति शराब पीने के बाद, मीरा के साथ जबरदस्ती भी करता था और उसे अपने साथ सोने पर मजबूर भी करता था।
एक दिन, मीरा की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई. एक राक्षसी घटना ने उसकी पूरी दुनिया पलट दी। अब तक तो मीरा अपनी बेटी की खातिर सब सहती रहती थी, लेकिन एक दिन पानी सर के ऊपर चढ़ गया। एक रात मीरा की बेटी, रश्मि की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई। मीरा बहुत परेशान हो गई और बेसब्री से अपने पति के आने का इंतजार करने लगी। लेकिन मीरा का पति जब आया, तो वो पूरी तरह नशे में झूम रहा था। वो ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था।
मीरा ने बिना समय गवाएं अपने पति से रश्मि को डॉक्टर के पास ले जाने के कहा, लेकिन वो इतने नशे में था की उसने मीरा को नजरंदाज कर दिया।
मीरा ने हार नहीं मानी, वो गिडगाड़ते हुए, अपने पति के पैरों में गिर गई और उससे रश्मि को डॉक्टर के पास ले जाने की गुहार लगाने लगी।
लेकिन मीरा का पति, अपने पागलपन और शराब के नशे में इतना धुत था कि उसे अपने परिवार की कोई फिक्र ही नहीं थी। मीरा अपने पति के पैर पकड़ कर रो रही थी, इससे उसका पति चिढ़ कर गुस्सा हो गया और मीरा की चोटी पकड़ कर उसका मुंह अपने जूतों पर रगड़ने लगा।
इसके बाद उसने मीरा को चोटी से पकड़ कर ऊपर खींचा, और उसके साथ जबरदस्ती करने लगा, साथ ही उसके कपड़े फाड़ कर, उतारने लगा। मीरा से रहा नही गया, उसने चिल्ला चिल्ला कर अपने पति से रोते हुए कहा- “तुम इंसान हो या जानवर ? तुम्हारी बेटी यहां बीमारी में तड़प रही है ।”
इस बात पर मीरा का पति और भी ज्यादा चिढ़ गया और गुस्से में मीरा के गाल पर एक जोरदार तमाचा मार कर, उसे नीचे गिरा दिया।
तमाचे के बल से, मीरा टेबल के ऊपर जा कर गिर गई और टेबल के टुकड़े टुकड़े हो गए।
उसके बाद, मीरा का पति, अपनी खुद की बेटी के पास जा कर, उसके साथ जबरदस्ती करने लगा और उसके कपड़े उतारने की कोशिश करने लगा। यह देख कर मीरा चीखने चिल्लाने लगी, और मदद के लिए आवाज लगाने लगी। लेकिन उसकी गुहार सुन कर भी कोई भी नही आया।
एक माँ कब तक देख पाती यह नज़ारा। उसने अपनी बेटी की जान बचाने का फैसला किया। आस-पास देखने लगी, कुछ ढूंढने लगी। उसे टूटी हुई टेबल के टुकड़े दिखाई दिए. मीरा ने टेबल की टूटी हुई लकड़ी को उठाया, और अपनी पूरी ताकत के साथ, अपने पति के सिर पर दे मारा।
देखते ही देखते मीरा के पति के सिर से खून बहते हुए उसके चेहरे पर गिरने लगा।
वो कुछ समझ पाता, उससे पहले ही, वो जमीन पर गिर गया।
मीरा का गुस्सा अभी भी सातवें आसमान पर था, उसने लगातार अपने पति पर लकड़ी के टुकड़े से हमला करना जारी रखा, और उसकी छाती में लकड़ी का नुकीला हिस्सा घुसा दिया, जिससे खून की तेज़ बौछार निकली और मीरा का चेहरा, उसके पति के खून से भीग गया।
मीरा का पति तड़प तड़प कर मर गया।
मीरा के सब्र का बांध टूट गया था. वो फूट-फूट कर रोने लगी और अपनी बेटी को गले से लगा लिया।
इतना शोर सुन कर आस पड़ोस के लोग जमा हो गए और फोन कर के पुलिस को बुला लिया।
मीरा ने भले ही यह खून, अपनी बेटी की जान बचाने के लिए किया था, लेकिन कानून की नजरों में यह एक हत्या ही थी।
मीरा को गिरफ्तार कर लिया गया, उस पर मुकदमा चला, और अपने पति की मौत के लिए, मीरा को, सज़ा ए मौत की सज़ा सुनाई गई।
मीरा की कहानी अदालत में एक जरूरी सवाल खड़ा कर गई: की आखिर, आत्म-रक्षा की सीमा क्या है? मीरा की कहानी ने समाज को हिलाकर रख दिया था।
जब मैं मीरा से पहली बार मिला था, तो मुझे एक अपराधी से ज्यादा, एक माँ दिखाई दी थी।
मीरा अपनी बेटी को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थी। फांसी से एक रात पहले, जब मैंने मीरा से एक आखिरी बातचीत की थी तब मीरा बहुत शांत थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो मुझे अंदर तक हिला रहा था।
मीरा के चेहरे पर उदासी के साथ एक शांत भाव भी था, उसे इस बात की खुशी की थी उसने अपनी बेटी को बचा लिया था, लेकिन इस बात का भी दुख था की उसकी बेटी कुछ ही घंटों बाद, अनाथ हो जायेगी।
मैने मीरा से उस रात पूछा था,
"क्या तुम्हें अपने किए पर कोई पछतावा है?"
मीरा ने मुस्कुराया और कहा,
"अगर एक माँ को अपने बच्चे को बचाने के लिए अपराधी बनना पड़े, तो मैं हर बार वही करूंगी। मुझे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है।"
मीरा के इस जवाब में मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।
मैने अपने जीवन में कई अपराधियों को देखा था, लेकिन मीरा जैसी माँ को नहीं।
आज भी जब कभी, मैं मीरा या अपनी मां के बारे ने सोचता हूं, तो गला भर आता है।
अगले दिन सुबह, मीरा को फांसी की सजा दी जाने की तैयारियां चल रही थी।
मीरा अपनी कालकोठरी अपना आखरी समय बिता रही थी, यह पल मीरा के जीवन का सबसे मुश्किल और अंतिम पल होने वाला था।
समय होने साथ ही, दो महिला सिपाही, मीरा को उसकी कालकोठरी से ले कर, फांसी लगने वाली जगह पर ले आई।
मैंने मीरा की और देखा, मीरा मायूस थी, उसकी आंखों में हल्की उदासी की झलक दिख रही थी। तभी, जेल के जेलर ने, मीरा से उसकी अंतिम इच्छा पूछने के लिए अपने सिपाहियों को इशारा किया।
मीरा से पूछा गया की, उसकी आखिरी इच्छा क्या है?
यह सवाल सुन कर मीरा की आंखों से आंसू निकल पड़े।
मीरा की आंखें अपनी बेटी के बचपन की यादों में खोई हुई थी। अपनी बेटी की मासूमियत और प्यार भरी बातें उसकी आंखों में चमक रहा है। मीरा की आंखें भर आई, उसने गहरी सांस ली, और अपने दुख को अपने अंदर समा लिया। फिर अपने आंसुओं को पोछते हुए कहा,
"मेरी आखिरी इच्छा बस यही है कि मेरी बेटी को, मेरे बाद भी, प्यार और सुरक्षा मिले।
मुझे खुशी है कि मैंने जो कुछ भी किया, अपनी बेटी के लिए किया, लेकिन मेरा आखिरी सपना यह है कि, मेरी बेटी खुश रहें, और मेरी तरह दुखी जीवन न जिए।”
मीरा की आवाज में एक तरह की शांति और बलिदान का भाव था। मीरा की यह अंतिम इच्छा सुनकर मेरे भी आंसू निकल पड़े थे। उसकी बातों ने मेरी आत्मा की गहराई को छू लिया था। ऐसा अहसास मुझे कभी महसूस नहीं हुआ। मीरा की बातों में एक मां की चिंता और प्यार की कहानी छिपी हुई थी।
मीरा की आखिरी इच्छा में एक गहरी सीख छिपी हुई थी, कि एक मां के लिए उसके बच्चे की सुरक्षा सबसे ज़रूरी होती है और उसके बलिदान का मतलब सिर्फ न्याय नहीं, बल्कि प्यार और सम्मान भी होता है।
मीरा की आखिरी इच्छा के साथ ही, पूरे कमरे में गहरी चुप्पी छा गई, उसकी आत्मा को शांति मिले, और उसकी बेटी को आगे चलकर कोई दिक्कत न आए, यही मीरा की आखिरी और इकलौती इच्छा थी।
इसी के साथ मीरा के चेहरे पर काला कपड़ा पहनाया गया, और उसे फांसी के तख्ते पर ला कर खड़ा कर दिया गया। जब टाइम आया तो... जेलर के आदेश के साथ ही, मैने हैंडल खींच दिया और अगले ही पल मीरा फांसी के फंदे पर झूल गई।
मरने वाले का नाम - मीरा कुमारी
उम्र - 35 साल
मरने का समय - सुबह 8 बज कर 10 मिनट
मीरा की मौत, बहुत सारे सवाल छोड़ गई। मीरा ने हमें सिखाया कि न्याय की भी सीमा होती है। वो इंसान के सारे पहलू नहीं समझ पाता और शायद यही ज़िंदगी... और कानून के बीच की बारीक रेखा है, जिसे हम सब को समझने की जरूरत है।
ऐसे कैदियों से मिलने के बाद मेरे दिमाग में, सिर्फ एक ही सवाल गूंजता है, कि क्या न्याय और कानून हर बार सही होते हैं? क्या कभी-कभी इंसान के फैसले उसके हालातों पर भी निर्भर होते हैं?
मेरी आँखों में अब तक का सबसे गहरा सवाल घूम रहा था - क्या किसी माँ का अपने बच्चे को बचाने का अधिकार उसे अपराधी बनाता है? क्या मीरा को दी गई सजा न्याय है या फिर इस समाज के ढांचे की गलती है, जिसने उसे उस हद तक मजबूर किया?
मीरा की कहानी हमें सिखाती है कि न्याय और नैतिकता के बीच की रेखा कितनी बारीक हो सकती है। कभी-कभी, एक बुरे समय में लिया गया फैसला ज़िंदगी की दिशा बदल सकता है और हमें यह समझना चाहिए कि न्याय केवल कानूनी नहीं बल्कि इंसानियत का भी होता है।
चलता हूँ। अगले एपिसोड में एक और अपराधी की कहानी लेकर आऊँगा।
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