मैं हूँ चक्रधर. जल्लाद चक्रधर.
जेल की भारी और सर्द दीवारों के बीच, जहाँ जीवन की हर धड़कन दबा दी जाती है, वहाँ एक अलग किस्म का सन्नाटा होता है। मैं, चक्रधर, पेशे से जल्लाद हूँ। अब उम्र 70 के करीब है और इस जिंदगी में बहुत कुछ देख चुका हूँ। अपने हाथों से अब तक 100ं लोगों को फांसी के फंदे पर लटकाया है, जिनमें कुछ ऐसे भी थे जिनकी कहानियां आम नहीं थीं। ये कहानियां अक्सर मेरे दिमाग में घूमती रहती हैं। खासकर वह कहानी, जो मैं आज याद कर रहा हूँ—शीला की कहानी या कह सकते हैं शीला की जवानी. सही सुना आपने - शीला की जवानी! एक साधारण महिला की असाधारण और दर्दनाक यात्रा, जिसने उसके जीवन को मौत के फंदे तक पहुंचा दिया।
जब भी मैं जेल की उस गहरी कोठरी के पास से गुजरता हूँ, जहां शीला को रखा गया था, उसकी कहानी मेरे मन में ताजा हो जाती है। शीला एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की महिला थी, जो देखने में बेहद साधारण थी। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि वह इतनी बड़ी वारदात कर सकती है पर जैसे कहा जाता है, इंसानी दिल और दिमाग कभी-कभी ऐसे रास्तों पर चल पड़ते हैं, जहाँ से वापसी मुमकिन नहीं होती।
जब पहली बार मुझे बताया गया कि शीला को फांसी दी जाएगी, तो मैं चौंक गया था। एक औरत, जिसने अपने पति की हत्या की थी, और उसके साथ इस अपराध में उसका प्रेमी शामिल था। यह सुनते ही मैंने उसकी फ़ाइल पढ़नी शुरू की। पढ़ते-पढ़ते जैसे उसकी पूरी जिंदगी मेरे सामने ताश के पत्तों की तरह बिछ गई।
शीला होगी, यह कोई 40 साल के आसपास, और उसका विवाह 20 साल पहले रमेश से हुआ था। रमेश एक बैंक में काम करता था। एक आदर्श भारतीय पति की तरह, रमेश अपने परिवार के लिए मेहनत करता था, लेकिन अपने घर और रिश्ते की भावनात्मक जरूरतों को अक्सर अनदेखा कर देता था। शादी के शुरुआती साल तो ठीक चले, लेकिन धीरे-धीरे, जैसा कि अक्सर होता है, उनकी शादी में उदासीनता और एकरसता आ गई।
शीला का दिन रसोई के काम, घर की साफ-सफाई और टीवी सीरियलों में बंट जाता था। बाहर की दुनिया से उसका कोई खास संपर्क नहीं था। उसके पास न कोई खास दोस्त थे, न ही कोई हौसला देने वाला साथी। उसका एक बेटा था, जो कॉलेज में पढ़ता था। शीला की जिंदगी में सबसे बड़ी कमी थी प्यार और अपनेपन की। उनका वैवाहिक जीवन भी कुछ ज़्यादा अच्छा नहीं चल रहा था. शीला और रमेश, हम-बिस्तर तो थे, पर जैसे एक बिस्तर पर दो जिस्म पड़े रहते थे।
वह दोनों एक दूसरे की तरफ़ देखते भी नहीं थे। पीठ करके लेट जाते। छत पर लगे पंखे को देखते रहते या दीवारों पर भटकती छिपकली को। बस नहीं देखेंगे तो एक दूजे को। पड़े रहेंगे निर्जीव से। एक दूसरे से न कुछ लेना, न देना। अक्सर हम लोग शादी में इस चीज़ को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हमें लगता है ये सब तो सिर्फ़ बच्चे पैदा करने के लिए होता है। बच्चा पैदा हुआ बस चलो जी। झोला उठाया और निकल लिए। अरे दोस्तों, झोला नहीं उठाना है। झोला वहीं रखे रखो। जब तक झोला खाली ना हो जाए और अगर झोला खाली भी हो जाए तो उसको झाड़ो कई बार। उल्टा करो, सीधा करो, दायें करो-बायें करो। कुछ भी छूट ना जाए। आजकल के पति-पत्नियों का तो बिस्तर देख कर मुँह उतर जाता है। अमा मियाँ, बिस्तर देख के तो गाल लाल हो जाने चाहिएं आप लोगों के। रोंगटे खड़े हो जाने चाहिएं। पूरे जिस्म में खून बिजली की तरह दौड़ना चाहिए। जिस्म का हर पुर्जा एकदम टाइट हो जाना चाहिए । आँखों में मस्ती हो और हाथों में शरारत, तब बनेगी बात लेकिन आजकल के लोगों के तो सारे ट्यूब-बल्ब फ्यूज पड़े हैं। कहाँ चली गई है ताकत? फिर रिश्तों में धोखेबाज़ी शुरू हो जाती है। इसे रिश्ते काम नहीं समझना है। इसे आनंद समझना है। जैसे बढ़िया खाना-पीना-घूमना... इन सभी से आनंद मिलता है। वैसे ही इससे भी मज़ा लो। तो ज़िंदगी की गाड़ी भी टिकी रहेगी।
खैर, शीला पर आते हैं।
रमेश का स्वभाव ज्यादा सेन्सिटिव नहीं था। वह शीला की भावनाओं को अक्सर नज़रअंदाज कर देता था, और यही वह खालीपन था, जिसने शीला को कहीं और सुकून ढूंढने के लिए मजबूर कर दिया।
कुछ साल पहले, शीला ने अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना शुरू किया। एक दिन उसने रमेश से कहा कि वह जिम जाना चाहती है, ताकि खुद को फिट रख सके। रमेश को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ा। उसे लगा कि जिम जाना एक अच्छा शौक है, और शायद इससे शीला खुश हो जाएगी। शीला ने पास के एक जिम में नाम लिखा दिया, और वहीं उसकी मुलाकात विकास से हुई, जो जिम में ट्रेनर था।
विकास 30 साल का था, एक आकर्षक शरीर का मालिक । उसकी बॉडी और मस्तमौला स्वभाव ने शीला को शुरू से ही प्रभावित किया। विकास का जिम में सबसे ज्यादा ध्यान शीला पर रहता था। उसकी मुस्कान, बात करने का तरीका, सब कुछ शीला को रमेश से अलग लगा। धीरे-धीरे, जिम में मुलाकातें लंबी होने लगीं और दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं। विकास के साथ बिताए हुए पल शीला को उस दुनिया से दूर ले जाते थे, जहाँ वह हर दिन बंधी हुई महसूस करती थी।
विकास और शीला के बीच जो आकर्षण शुरू में था, वह जल्द ही एक गहरे भावनात्मक और शारीरिक संबंध में बदल गया। शीला को महसूस हुआ कि विकास के साथ वह सब कुछ महसूस कर रही है, जो उसे रमेश के साथ कभी नहीं मिला था। रोमांस, जुनून और आज़ादी। विकास ने शीला के दिल को फिर से जवां कर दिया था, और वह उस मोहब्बत की दुनिया में पूरी तरह से डूब चुकी थी।
धीरे-धीरे शीला का घर में ध्यान कम होने लगा। वह रमेश से दूरी बनाने लगी। रमेश ने कुछ महीनों तक इस बदलाव को नजरअंदाज किया, लेकिन फिर उसके अजीब व्यवहार को देखकर उसने सोचना शुरू कर दिया। एक दिन रमेश ने शीला से सीधा सवाल किया कि वह इतना अलग क्यों हो गई है, लेकिन शीला ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उसका मन विकास के साथ था, और रमेश अब उसे एक बोझ की तरह लगने लगा था।
विकास और शीला की मुलाकातें अब चोरी-छिपे होती थीं। दोनों को इस बात का डर सताता था कि कहीं रमेश को उनके रिश्ते के बारे में पता न चल जाए। शीला अब रमेश से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी थी। उसे लगने लगा था कि रमेश उसकी जिंदगी में एक बाधा है, और अगर वह उसे हटाने में कामयाब हो जाती, तो वह और विकास एक नई जिंदगी शुरू कर सकते थे।
विकास ने शीला को यह यकीन दिलाया कि रमेश को मारने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। उसने शीला के दिमाग में यह बात बिठा दी कि अगर रमेश जिंदा रहा, तो उनका रिश्ता कभी भी खुलकर सामने नहीं आ पाएगा, और शीला हमेशा उस कैद में रहेगी। इस बात से शीला पूरी तरह सहमत हो गई और दोनों ने रमेश की हत्या की साजिश रच डाली।
एक रात, जब रमेश घर में अकेला था, शीला ने उसकी शराब में नींद की गोलियां मिला दीं। उनका बेटा कॉलेज ट्रिप पर बाहर गया हुआ था। रमेश को शक नहीं हुआ और उसने वह शराब पी ली। शीला ने विकास को बुला लिया। जब रमेश बेहोश हो गया, तो दोनों ने मिलकर उसका गला घोंट दिया। रमेश की मौत शीला के लिए जैसे एक नई शुरुआत थी। हत्या के बाद, उन्होंने रमेश के शव को घर के पीछे बगीचे में दफन कर दिया। यह सब काम इतनी चालाकी से किया गया कि किसी को शक न हो।
लेकिन जैसा कि कहा जाता है, अपराध को ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता। रमेश के गायब होने पर उसका बेटा, उसके दोस्त और रिश्तेदार सवाल उठाने लगे। फिर एक दिन बेटा पुलिस के पास गया। पुलिस ने जब उसकी गुमशुदगी की जांच शुरू की, तो उन्हें शीला का व्यवहार अजीब लगा । शीला के फोन रिकॉर्ड्स और बैंक ट्रांजेक्शन से भी कुछ ऐसा संकेत मिला, जिससे पुलिस का शक उस पर और विकास पर गहरा गया।
पुलिस की जांच के दौरान शीला ने कई बार सच छुपाने की कोशिश की, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की, तो आखिरकार उसने अपना अपराध कबूल कर लिया। विकास को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। दोनों पर हत्या का मुकदमा चलाया गया। अदालत में जब सारे सबूत पेश किए गए, तो शीला और विकास के अपराध की सच्चाई सबके सामने आ गई।
अदालत ने शीला और विकास दोनों को दोषी करार दिया। शीला ने अदालत में अपने बचाव में कई तर्क दिए—यह कहा कि वह रमेश के अत्याचारों से तंग आ चुकी थी, लेकिन अदालत ने उसके किसी भी तर्क को मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने माना कि शीला और विकास दोनों ने मिलकर एक निर्दोष आदमी की हत्या की थी और उन्हें इसकी कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
अंततः अदालत ने शीला और विकास दोनों को मौत की सजा सुनाई। शीला के चेहरे पर फैसला सुनते ही एक अजीब सा सन्नाटा छा गया था। शायद उसे अब अपनी गलती का एहसास हो रहा था, या शायद वह अपनी नियति को स्वीकार कर चुकी थी।
फांसी का दिन करीब आ रहा था। जेल के उस सर्द कोने में जहाँ शीला को रखा गया था, मैं अक्सर जाता था, और उसे देखता था। वह अब भी चुपचाप बैठी रहती थी, जैसे उसे इस दुनिया से कोई शिकायत न हो। एक दिन मैंने उससे बात करने की कोशिश की। मैंने पूछा, "तुम्हें अपने किए पर पछतावा है?"
उसकी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन वह कुछ नहीं बोली। शायद वह समझ चुकी थी की अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती कर चुकी है। उसका एक पल का जुनून और एक क्षणिक निर्णय उसकी पूरी जिंदगी को तबाह कर गया था। अब उसके पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचा था।
फाँसी के दिन की सुबह, मैं उसके पास गया। उसने मेरी ओर देखा, और पहली बार उसकी आँखों में डर देखा। वह एक नॉर्मल मिडल क्लास औरत थी, कोई मर्डरर नहीं। अपने ही गलत फैसलों के कारण यहाँ तक पहुँच गई थी।
जैसे ही मैंने फांसी का फंदा उसके गले में डाला, उसके चेहरे पर एक शांति नजर आई। शायद उसने अपने अपराधों का प्रायश्चित कर लिया था, या शायद उसे पता चल गया था कि यह उसका आखिरी पल है। जब लीवर खींचा गया, तो कुछ पल वह ज़िंदगी और मौत के बीच झूलती रही और फिर एक सन्नाटा छा गया।
मरने वाले का नाम- शीला
उम्र - 40 साल
मरने का समय - सुबह 8 बज कर 11 मिनट
एक महिला, जिसने अपने प्यार के खातिर अपनी सारी जिंदगी दांव पर लगा दी, और अंत में अपनी ही गलती के कारण मौत के फंदे तक पहुँच गई।
असल में शीला से क्या गलती हुई... जो मुझे लगता है... उसे अपने पति से बैठकर बात करनी चाहिए थी। घर में 2 बर्तन भी होते हैं तो आपस में खड़खड़ाते ही हैं... कौन से पति-पत्नी का रिश्ता आज तक एकदम सही चला है। अरे हम तो जिन भगवानों को पूजते हैं उनके रिश्ते सही नहीं चले। क्या क्या नहीं देखा हमारे भगवानों ने, मैं क्या बताऊं, आपको पता ही है। शीला को चाहिए था कि बात करती। उसे कहती, उसे समझाती कि मेरी ये इच्छाएं हैं, मेरी ये ज़रूरतें हैं। मन की और तन की। और इन्हें पूरा करने का फ़र्ज़ तुम्हारा ही है क्योंकि तुम मेरे पति हो। मैं बाहर वाले को थोड़ी ना बोलूंगी, घर वाले को ही बोलूंगी।
आप लोगों में से बहुत होंगे शीला जैसे। शीला का मतलब ये नहीं कि मैं सिर्फ औरतों की बात कर रहा हूँ । आदमी भी शीला होते हैं। बल्कि खुद एक आदमी होकर मैं ये बात ठोक के कह सकता हूँ कि आदमी ज़्यादा शीला होते हैं। और अगर सब कुछ करने के बाद भी कुछ ठीक नहीं हो रहा है तो अलग हो जाओ। ले लो तलाक। फिर जो समझ आए वो करो। क्योंकि जो शीला ने किया अगर सभी उसी रास्ते पर निकल पड़ेंगे तो हम में और जानवरों में क्या फ़र्क रह जाएगा। फिर क्या मतलब शादी का। क्या मतलब सात फेरों का, क्या मतलब निकाह पढ़ने का। मत आओ बंधन में। गली के कुत्ते की तरह खुले घूमो। लेकिन हम गली के कुत्ते नहीं हैं। हम समाज में रहते हैं। हमारी गली है, हमारा मोहल्ला है, हमारी कॉलोनी है। और इन सब के कुछ नियम-कायदे होते हैं। जब आपने इनमें रहने का सोचा है तो नियम भी तो मानने पड़ेंगे ना भाई। मैं रहूंगा तो गली, मोहल्ले, कॉलोनी में लेकिन करूँगा अपनी। ये क्या बात हुई। कर लो फिर। जाओ ना जंगल में। रहना भी यहीं है और चलना भी अपने हिसाब से है। ऐसा होता है, पर मुझे लगता है होना नहीं चाहिए। और बात 2 लोगों की नहीं होती। बात होती है परिवार की। तुमने तो कर लिया। पर पीछे से परिवार का क्या। बच्चे हैं, माँ-बाप हैं, सास-ससुर हैं, भाई-बहन हैं। वो सब खत्म हो जाता है। ये वो चिंगारी है जो एक-एक रिश्ते को चुन-चुन कर आग लगाती है और आग भी ऐसी लगाती है कि सब कुछ भस्म... चारों तरफ बस धुआं। वो धुआं जिसमें कुछ नहीं दिखता और धीरे-धीरे आपका दम ही घुटने लग जाता है। शीला की कहानी एक चेतावनी है- कि जीवन के रास्तों पर हर कदम सोच-समझकर उठाना चाहिए, वरना इंसान अपने ही बनाए हुए जाल में फंस सकता है।
चलता हूँ. एक और अपराधी की कहानी लेकर आऊंगा।
No reviews available for this chapter.