मैं हूँ चक्रधर. जल्लाद चक्रधर.
ज़िन्दगी किस्सों का ही तो नाम है और इन किस्सों में से कोई किस्सा होता है- जो हम सभी ने कभी न कभी देखा है अपने आस-पास, सुना है किसी से, और शायद हमारे परिवारों में भी हुआ हो। कहीं आपने ही तो ऐसा नहीं किया अपनी फैमिली में? (हँसते हुए)
पैसा है ही ऐसी गंदी चीज़, जो इंसान को सही और गलत का फ़र्क भूलने पर मजबूर कर देता है। चलिए, आज की कहानी है मोहन सिंह की। क्या किया मोहन ने, और क्यों किया? क्या वो मजबूर था, या बस लालच का शिकार?
आइए जानते हैं –
रात के 10 बजे का वक्त था। ठंड बढ़ रही थी, और गाँव की गलियाँ सुनसान हो चुकी थीं। सब लोग अपने घरों में आराम कर रहे थे, और बाहर सिर्फ कुछ कुत्तों के भौंकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। इसी सन्नाटे के बीच ‘ठाकुर हवेली के अंदर एक अलग ही हलचल मची हुई थी। हवेली के अंदर से आ रही थी चीखने-चिल्लाने की आवाजें यानी घरवालों के बीच कुछ तो गड़बड़ चल रही थी। ठाकुर चंदन सिंह और उनके छोटे भाई मोहन सिंह के बीच की बहस कुछ ज्यादा ही तेज हो गई थी।
चंदन सिंह, गाँव का सबसे रसूखदार बंदा था। उनके पास काफी बड़ी ज़मीन और पैसा था, जो उनके पुरखों की विरासत थी। चंदन का कोई बेटा नहीं था, और उनकी पत्नी की भी कुछ साल पहले बीमारी के कारण मौत हो चुकी थी। पत्नी की मौत के बाद चंदन ने अपने एक दूर के रिश्तेदार से एक लड़का गोद ले लिया था, जिसका नाम विवेक था। अब विवेक ही उनके पैसे जायदाद का अकेला वारिस था। चंदन सिंह का एक छोटा भाई था मोहन सिंह। मोहन सिंह का भरा-पूरा परिवार था लेकिन उसकी चार बेटियाँ थी। बेटा कोई नहीं था। चंदन ने हमेशा विवेक को अपने बेटे की तरह पाला था। उसको अच्छी पढ़ाई करवाई, अच्छे संस्कार दिए और उसकी आगे की ज़िंदगी के लिए बड़े-बड़े सपने बुने थे। मोहन की बेटियाँ भी उसे भाई मानती थीं और राखी बाँधती थीं।
लेकिन मोहन के इरादे कभी साफ नहीं रहे। उसे हमेशा से चंदन के पैसों और हवेली की हवस थी। वह जानता था कि यदि चंदन की मौत होती है तो सारी संपत्ति कानूनी रूप से विवेक के नाम हो जाएगी, और उसे कुछ नहीं मिलेगा। इस ख्याल ने मोहन के अंदर धीरे-धीरे एक अजीब-सी जलन पैदा कर दी थी। उसे लगने लगा कि अगर विवेक को किसी तरह से रास्ते से हटा दिया जाए, तो पैसे तक पहुँचने का उसका रास्ता साफ हो जाएगा।
मोहन का लालच धीरे-धीरे हदें पार करने लगा। उसने योजना बनानी शुरू कर दी कि वह किस तरह इस दिक्कत को हमेशा के लिए खत्म कर सकता है। विवेक उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा था, और अब उसे उसी को रास्ते से हटाना था।
कई दिन बीत गए, और मोहन के खून में चढ़ी गर्मी अभी तक ठंडी नहीं हुई थी। ठंडी क्या, उसकी हवस तो और गर्म हो रही थी और इस हवस में उसने एक खतरनाक स्कीम बनाई। उसने सोचा कि वह किसी भी तरह से विवेक को खत्म कर देगा, ताकि सब कुछ उसके, उसकी बीवी और उसकी बेटियों के हाथ में आ सके।
वह धीरे-धीरे अपने भतीजे के साथ और अच्छा व्यवहार करने लगा, ताकि किसी को उस पर शक न हो। उसने विवेक को अपने दिल का टुकड़ा मानने का ढोंग किया और उसे हर समय अपने साथ रखने की कोशिश करने लगा। विवेक, जो अपने चाचा पर पहले से ही बहुत भरोसा करता था, उनकी बातों में आ गया।
फिर एक दिन, मोहन ने अपनी स्कीम को अंजाम देने का फैसला किया। उसने जानबूझकर चंदन से बहस की, ताकि चंदन थक जाए और जल्दी सोने चला जाए।
रात का समय था, जब मोहन ने अपने मन में सोच लिया कि वह विवेक को मार डालेगा। ठंड बढ़ रही थी, और हवेली के अंदर का माहौल गर्म था।
"विवेक, तुम मेरे साथ बाहर चलो, मैं तुम्हें कुछ खास दिखाऊँगा," मोहन ने बड़ी मासूमियत से कहा। विवेक, जो अपने चाचा से बेहद प्यार करता था, तुरंत तैयार हो गया। वह नहीं जानता था कि यह रात उसकी आखिरी रात होगी।
विवेक को हवेली के पिछवाड़े में एक पुराना कुआँ दिखाने के बहाने ले जाया गया। अंधेरा चारों ओर पसरा हुआ था, और वहाँ कोई देखने वाला नहीं था। मोहन ने बड़े प्यार से विवेक से कहा, "तुम्हें पता है, यह कुआँ हमारे दादा-परदादा के समय से है। इस कुएं के बारे में एक खास बात बताऊँ?"
विवेक उसकी बातों में खोया हुआ था। तभी, मोहन ने मौका देखकर अपने हाथ में पकड़ा हुआ भारी पत्थर उठाया और बिना किसी दया के विवेक के सिर पर दे मारा। एक जोरदार आवाज़ हुई, और विवेक का सिर लहूलुहान हो गया। उसकी आँखों में दर्द और हैरानी थी, जैसे वह समझने की कोशिश कर रहा हो कि उसके प्यारे चाचा ने उसे क्यों मारा।
विवेक ने मोहन से बचने की कोशिश की, लेकिन चोट लगने की वजह से वह कमजोर हो चुका था। मोहन ने बिना समय गँवाए, उसे जोर से कुएं में धकेल दिया। विवेक की बॉडी कुएं में गिर गई। वह चीखा भी, पर कौन सुनता। फिर चारों ओर सन्नाटा छा गया।
मोहन ने एक बार फिर चारों तरफ देखा, और जब उसने देखा कि कोई नहीं था, तो वह जल्दी से हवेली के अंदर वापस आया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसने खुद को सामान्य रखने की कोशिश की, लेकिन उसके दिल की धड़कनें तेज थीं।
अगली सुबह, जब विवेक के न होने की खबर चंदन सिंह को मिली, तो घर में हड़कंप मच गया। चंदन ने तुरंत गाँववालों से मदद माँगी और सभी लोग विवेक को ढूँढने निकल पड़े। गाँव के हर कोने-कोने की तलाशी ली गई, लेकिन विवेक का कहीं अता-पता नहीं था।
दिन बीतते गए, और जब कुछ नहीं मिला, तो पुलिस को फोन किया गया। पुलिस की एक टीम मौके पर पहुँची और मामले की जाँच शुरू की। सबसे पहले, पुलिस ने चंदन और मोहन से पूछताछ की। मोहन ने विवेक के बारे में पूछताछ के दौरान अपनी मासूमियत दिखाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस को उसकी बातों में कुछ गड़बड़ महसूस हो रही थी।
कुछ गाँववालों ने बताया कि आखिरी बार विवेक को मोहन के साथ देखा गया था। इस बयान ने पुलिस को मोहन पर शक करने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने मोहन से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन वह लगातार अपनी सफाई में कहता रहा कि उसने कुछ भी नहीं किया।
जाँच के दौरान पुलिस ने विवेक की आखिरी लोकेशन को ध्यान में रखकर हवेली के आस-पास के इलाके को खंगाला। पुलिस ने कुएं के पास खून के धब्बे देखे, जो सूख चुके थे। यह एक ज़रूरी सुराग था, जिसने पुलिस का ध्यान उस कुएं की तरफ खींचा।
पुलिस ने तुरंत कुएं की तलाशी शुरू की। कुछ ही घंटों के अंदर कुएं में से एक बॉडी मिली जो कि विवेक की थी। उसका चेहरा खून से सना हुआ था, और सिर पर गहरी चोट थी। विवेक की मौत की खबर सुनकर चंदन सिंह सदमे में आ गए। उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर गए और थोड़ी देर बाद उन्हें होश आया।
विवेक की लाश मिलने के बाद मोहन पर शक गहरा हो गया। पुलिस ने उसे थाने में बुलाया और घंटों तक सख्ती से पूछताछ की। कई घंटों की पूछताछ के बाद, मोहन ने धीरे-धीरे सच उगलना शुरू किया। उसने बताया कि उसने विवेक को पैसे और जायदाद के लालच में मार डाला। उसकी स्कीम थी कि अगर विवेक नहीं रहेगा, तो सब कुछ उसके और उसकी फैमिली के हाथ में आ जाएगा।
मोहन का यह इक़बाल-ए-जुर्म पुलिस के लिए काफी था। उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और उसे अदालत में पेश किया गया। अदालत ने मोहन को नाबालिग विवेक की हत्या के जुर्म में फाँसी की सज़ा सुनाई।
मोहन मेरी जेल में आया था. वह दिन भर रोता था और अपने बड़े भाई और उसी के हाथों मारे जा चुके भतीजे विवेक से माफ़ी माँगता रहता था। उसकी आंखों में पछतावे का एक समंदर था, जो उसे हर पल यह याद दिलाता था कि उसने अपने ही परिवार के एक प्यारे सदस्य की जान ले ली थी।
हर रात, जब चाँद की रोशनी उसकी जेल की दीवारों पर गिरती, वह विवेक की मासूम मुस्कान को याद करता और सोचता कि अगर वह उस रात अपनी हवस को काबू में रख पाता, तो आज वो अपने परिवार के साथ होता।
एक रात उसने चिल्लाते हुए कहा - "मुझे मार दो, मुझे अभी मार दो। ओ जल्लाद भाई साहब, कहां हो, लटका दो मुझे।" उसकी ये बात सुनकर मेरे पैर ठिठक गए थे। मैंने सोचा कि कितनी बुरी तरह ये अपनी मौत चाहता है। वह अक्सर अपनी पत्नी और बेटियों के बारे में भी सोचता, उन्हें याद करता, लेकिन इस घटना के बाद उसकी पत्नी और बेटियों ने उससे अपना नाता तोड़ लिया था। मोहन को एहसास हुआ कि उसने न केवल विवेक की जान ली, बल्कि अपने परिवार को भी हमेशा के लिए खो दिया।
हर बार जब वह अपनी पत्नी की हंसती हुई तस्वीर देखता, उसकी आंखों में आंसू आ जाते। वह जानता था कि उसकी गलती ने उसके परिवार की ज़िंदगी भी बर्बाद कर दी। उसकी पत्नी, जो हमेशा उसके साथ खड़ी होती थी, अब उसे नफरत के साथ देखती थी। बेटियों की आंखों में भी वही उदासी थी, जो मोहन के दिल को और भी तोड़ देती थी। इस सोच ने उसे अंदर से और भी कमजोर बना दिया था। मोहन अब अकेला और लाचार महसूस करता था, अपनी ही बनाई हुई दीवारों में कैद।
जेल के अंदर मोहन की मानसिक हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी। वह बार-बार अपने किए पर अफसोस करता और सोचता कि उसने क्यों अपने बड़े भाई और प्यारे भतीजे के साथ ऐसा किया। उसे अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस होती थी, लेकिन अब कुछ भी बदलना संभव नहीं था। वह खुद को यह कहकर दिलासा देने की कोशिश करता कि वह मजबूर था और ये सब तो उसने अपने परिवार के लिए किया। मोहन की जिंदगी अब बस एक सजा बन गई थी, जिसमें उसे अपनी गलती की सजा भोगनी थी।
और फिर वो सुबह आ गई जब मोहन का फंदा मैंने तैयार कर दिया। मैंने उससे उसकी आखिरी इच्छा पूछी। उसने कहा- "मेरी आखिरी इच्छा यह है कि मैं अपने परिवार से एक बार मिलना चाहता हूँ। मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि मैं कितना पछता रहा हूँ और मेरी गलती के लिए मैं कितना दुखी हूँ।"
लेकिन देखिए ऊपरवाले की लाठी। उसकी फैमिली ने तो मिलने से मना कर दिया था। मोहन के परिवार ने उसे इस कदर नकार दिया था कि वे उसकी सच्चाई को सुनने को भी तैयार नहीं थे। इस मना करने से मोहन का दिल और भी टूट गया।
मोहन की आवाज़ में एक गहरी सच्चाई थी, जो उसके दिल की गहराइयों से निकल रही थी। वह चाहता था कि उसकी पत्नी और बेटियाँ उसे माफ कर दें, भले ही वह जानता था कि यह अब हो ही नहीं सकता।
मुझे तो अपना फर्ज अदा करना था। कर दिया अदा, जैसे हमेशा से करता आया हूँ। शायद विवेक की आत्मा को शांति मिल गई होगी।
मरने वाले का नाम- मोहन
उम्र - 52 साल
मरने का समय - सुबह 4 बज कर 11 मिनट
मोहन को सज़ा मिलने के बाद भी चंदन सिंह का दिल चैन नहीं पा सका। उन्होंने अपने बेटे जैसे विवेक को खो दिया था, जिसे उन्होंने अपने बच्चे की तरह ही तो पाला था। चंदन सिंह की प्रॉपर्टी अब उन्हें एक बोझ की तरह महसूस होने लगी। एक दिन उन्होंने वकील को बुलाया और सारी प्रॉपर्टी के पाँच हिस्से कर दिए। एक हिस्सा मोहन सिंह की पत्नी को और बाकी चार उसकी चार बेटियों के नाम कर दिए।
मोहन ने जो बीज बोया था, उसका अंजाम तो वही होना था। लालच के अंधे कुएं में खुद मोहन ही गिर गया। जब इंसान अपनी हवस और लालच में इतना खो जाता है कि रिश्तों का भी गला घोंट देता है, तो वो मोहन की तरह एक लाश बनकर ही बाहर आता है।
कहते हैं, जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वो खुद ही उसमें गिर जाता है। मोहन ने भी यही किया।
चंदन सिंह ने अकेले रहने का फैसला कर लिया। वे गाँव से दूर एक मंदिर के पास अपनी ज़िंदगी के बचे हुए दिन बिताने लगे। उनके लिए अब दौलत का कोई मायने नहीं रह गया था।
हम कई बार पैसे को कितना ज़रूरी मानने लग जाते हैं ना। रिश्तों का खून करने से भी बाज़ नहीं आते। अब मोहन को ही ले लो। जिस पैसे के लिए भतीजे को मारा, वो पैसा तो उसकी पत्नी-बच्चों को ऐसे ही मिल गया। चंदन सिंह कर गए न उनके नाम। सोचिए अगर मोहन ने बैठकर आमने-सामने अपने बड़े भाई चंदन से छोटा भाई बनकर बात की होती, तो शायद आज सभी खुशी-खुशी जी रहे होते, लेकिन वो तो सभी ने सुना है कि विनाशकाल में विपरीत बुद्धि।
बस मोहन की बुद्धि भी भटक गई थी। पैसे का लालच जब दिमाग पर चढ़ जाए, तो कुछ और नजर नहीं आता। गर्मी कुछ ऐसी ही होती है पैसों की। क्या कर सकते हैं आप? यह दुनिया ही ऊट-पटांग सी है।
अभी आज्ञा दीजिए। अगले एपिसोड में एक और अपराधी की कहानी लेकर आऊँगा।
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