टीम "अर्जुन" को मंदिर दिखाई दे गया था, लेकिन वहाँ तक पहुँचने के लिए उन्हें उस ख़तरनाक घाटी को पार करना था। टीम को आगे बढ़ने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। सबकी नजरें "अर्जुन" पर आ टिकी, , क्योंकि उनके उपकरणों के बॉक्स "पाइथागोरस" में इस तरह की मुश्किल स्थिति से निपटने के लिए कोई न कोई उपकरण ज़रूर होता था।

उन्होंने "पाइथागोरस" से एक स्पेशल उपकरण निकाला, जो देखने में धनुष जैसा दिखाई देता था। अर्जुन ने निशाना साधा और ट्रिगर दबाया, लेकिन ये क्या...

अर्जुन, अपना पहला निशाना चूक गए। अपनी टीम के सामने इतनी बड़ी गलती अर्जुन कैसे कर सकते थे, इसलिए उन्होंने तुरंत ही स्थिति संभालते हुए कहा,

अर्जुन: कोई बात नहीं, गाय्ज़ ... हो जाता है कभी-कभी। फिर से ट्राई करता हूँ, देखना इस बार निशाना ज़रूर लगेगा।

अर्जुन ने इस बार अपना पूरा ध्यान अपने निशाने पर लगाया और ट्रिगर दबा दिया। उनके धनुष जैसे उपकरण से एक नुकीला और पतला तार, बल खाती नागिन की तरह लहराता हुआ निकला और एक पेड़ में जाकर फिक्स हो गया। अब टीम इस तार को रोप-वे की तरह इस्तेमाल करके आराम से घाटी से नीचे उतर सकती थी।

घाटी से नीचे उतरने और थोड़ी देर चलने के बाद टीम अर्जुन एक प्राचीन मंदिर के सामने जा पहुँचे। मंदिर की बनावट से वह लगभग 2000 साल पुराना लग रहा था। हजारों सालों से बंद होने और रख-रखाव में अभाव के कारण इस मंदिर की दीवारें कई जगह से टूटी फूटी थीं।

मंदिर में अंदर जाने के लिए एक ही प्रवेश-द्वार था, जिसे देख के लगता था कि ये सदियों से बंद है। प्रवेश द्वार इतना विशाल था कि यह टीम अर्जुन और मंदिर के बीच एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हो गया था। अब ज़रूरत थी, ताले और दरवाजे तोड़ने में स्पेशलिस्ट मिस्टर सम्राट की, लेकिन यह क्या? 

सम्राट महोदय, टीम अर्जुन की चिंताओं से मुक्त होकर, एक पेड़ की छांव में, जिल-ए-इलाही अकबर की तरह इस तरह लेटा हुआ था, जैसे उसकी सेवा में अनारकली अपना डांस पेश करने वाली हो। सम्राट के बीयर-बार की ओपनिंग सेरेमनी होने ही वाली थी कि तभी अर्जुन की गरजती आवाज़ उसके कानों में पड़ी।

अर्जुन: सम्राट... वहाँ पेड़ के नीचे सोने के लिए आया है क्या तू यहाँ? अगर अगले 30 सेकंड में तू यहाँ नहीं पहुँचा, तो मैं उसी पेड़ के नीचे तेरी कब्र बना दूंगा।

अर्जुन की आवाज़ सुनकर सम्राट जल्दी से भागता हुआ आया। भागते हुए उसकी सांसें चढ़ गई थीं। अर्जुन ने उसकी तरफ़ घूरकर देखा। टीम के लोग, उसे हांफता देख हंस पड़े।

मास्टर का गुस्सा देख विक्रम ने बात संभालते हुए सम्राट से मंदिर के मुख्य-द्वार को तोड़ने के लिए कहा। सम्राट को तो जैसे अपना पसंदीदा काम मिल गया हो, वह तुरंत दरवाजे के पास जाकर उसका मुआयना करने लगा। उसने दरवाजे से जैसे ही हाथ लगाया... तभी, दरवाजे से एक तीर निकला और नागिन की तरह लहराता हुआ... सामने के एक पेड़ में जाकर घुस गया।

सम्राट बुरी तरह कांप रहा था। विक्रम को इस तरह की किसी भी अनहोनी का पहले से अंदाजा था, इसलिए तीर के निकालने के पहले ही उसने सम्राट को एक तरफ़ खींच लिया, नहीं तो उस जंग लगे तीर से आज, सम्राट की समाधि बननी तय थी।

अर्जुन: मैंने इसलिए तुम सब लोगों को बहुत सतर्क रहने के लिए कहा था। यहाँ कभी भी और कुछ भी हो सकता है। भूलो मत, हम इस खतरनाक जंगल में मिशन पर आए हैं, पिकनिक मनाने नहीं।

आईशा: लेकिन यह बात, हमारे सम्राट महाराज समझें तब न। इनकी हरकतों की वज़ह से किसी दिन ये ख़ुद तो मरेंगे ही, साथ में हमें भी...

सम्राट: अगर मौत से इतना ही ज़्यादा डर लगता है, तो फिर यहाँ आना भी नहीं चाहिए था।

सम्राट और आइशा में कहासुनी हो गई। सम्राट अभी तीर वाले हादसे से पूरी तरह से बाहर भी नहीं आया था कि तभी एक आवाज़ ने फिर से सब को चौंका दिया।

"तुमसे पहले भी मैं ही था... और तुम्हारे बाद भी मैं ही रहूँगा... मैं ही सत्य हूँ और मैं ही अनंत।"

इसके बाद वह आवाज़ ख़ामोश हो गई। इस आवाज़ को सुनकर ऐसा लग रहा था, जैसे भविष्यवाणी हो रही हो; उसने सब को सोचने पर मजबूर कर दिया। सब अपने-अपने हिसाब से जवाब दे रहे थे, लेकिन इस अबूझ पहेली को कोई नहीं सुलझा पाया। तभी अचानक आइशा ने कहा,

आइशा: समय... इस पहेली का सही उत्तर है, समय... क्योंकि समय हमसे पहले भी था और बाद में भी रहेगा, है न?

डॉ. मीरा: सही उत्तर "संसार" भी तो हो सकता है? आख़िर वह भी हमसे पहले था और बाद में भी रहेगा...

आइशा और मीरा सही जवाब को लेकर बहस कर ही रही थीं कि चर्रर्रर्रर की आवाज़ के साथ सालों से बंद पड़ा दरवाज़ा धीरे-धीरे खुल गया। टीम खुश होकर सावधानी के साथ मंदिर के अंदर गई और दरवाज़ा फिर से बंद हो गया।

डॉ. मीरा: ये क्या हो रहा है? ये दरवाज़ा तो फिर से बंद हो रहा है... अब हम बाहर कैसे निकलेंगे?

डॉ. मीरा बहुत ज़्यादा घबराई हुई थी। मास्टर ने उसे समझाया, "हम कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे, अभी मिशन पर ध्यान दो।"

टीम, मंदिर के प्रांगण से निकलकर थोड़ा और आगे बढ़ी। अंदर का नज़ारा देखकर टीम दंग रह गई, क्योंकि बाहर से देखने पर वह प्राचीन मंदिर छोटा ही लग रहा था, लेकिन अंदर से उसका कोई छोर ही नज़र नहीं आ रहा था। सैकड़ों सालों से बंद होने की वज़ह से मंदिर के भीतर विशालकाय और ज़हरीले सांप खुलें में घूम रहे थे, जिनके डंसते ही इंसान की जान जाना तय था। अर्जुन पूरे मंदिर में इधर-उधर नज़रे घुमाकर स्थिति को समझने लगा।

अर्जुन: यह मंदिर इतना बड़ा है कि हम एक ज़िंदगी में तो अपने मिशन को पूरा नहीं कर पाएंगे, इसलिए हमें दो टीमों में डिवाइड होना होगा। हमें यह काम बहुत सावधानी से करना होगा, क्योंकि यहाँ कब और किस तरह मौत से सामना हो जाए, कह नहीं सकते।

इसके बाद मास्टर और आइशा एक दिशा में आगे बढ़ गए थे और विक्रम, मीरा और सम्राट दूसरी दिशा में।

उधर, टीम अर्जुन का पीछा करते हुए राजवीर के आदमी मंदिर तक पहुँच गए थे। मंदिर का दरवाज़ा बाहर से बंद था, लेकिन उन्होंने अर्जुन और उसकी टीम को मंदिर में अंदर जाते हुए देख लिया था, इसलिए वे दरवाज़ा खोलने की कोशिश करने लगे और इसी कोशिश में दरवाज़े से निकले जंग लगे तीरों से राजवीर के आधे लोग मारे गए थे, लेकिन बचे हुए लोग दरवाज़ा तोड़कर मंदिर में घुस आए थे।

उधर अर्जुन और विक्रम अपने साथियों के साथ अलग-अलग दिशा में जाकर भटक गए थे। वे मंदिर की उस भूल-भुलैया में पूरी तरह से फंस चुके थे और बाहर आने की जितनी कोशिश करते, उतना ही अंदर जाते जा रहे थे। अचानक अर्जुन की नज़र एक टूटे हुए पत्थर पर पड़ी, जिस पर एक अजीब निशान बना हुआ था। अर्जुन और आइशा उस निशान को समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन समझ नहीं पा रहे थे। कुछ सोचते हुए आइशा ने वह टुकड़ा अपने पास रख लिया।

ऐसा ही एक टुकड़ा सम्राट को मिला और आगे चलकर एक टुकड़ा मीरा को भी मिल उधर राजवीर की टीम के टीम-लीडर, मानसिंह ने खजाना ढूँढने के लिए अपने आदमियों की टुकड़ी बनाकर, उन्हें मंदिर की भूल-भुलैया में हर तरफ़ भेज दिया था।

अर्जुन समझ गया था कि वे लोग एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस चुके थे, जिससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल है। अर्जुन को पता था कि ऐसी भूल-भुलैया दुश्मनों को जाल में फंसाकर मारने के लिए बनाई जाती हैं और आज वे सब उसी जाल में क़ैद हो गए थे।

उसने अपने साथियों को सिग्नल भेजा, लेकिन उस चक्रव्यूह में सिग्नल जैसा पावरफुल डिवाइस भी काम नहीं कर रहा था। उसी वक़्त एक चमत्कार हुआ और सम्राट और मीरा के पास रखे पत्थरों के टुकड़े अर्जुन के सिग्नल से चिपक गए, शायद इनमें इलेक्ट्रो-मैगनेट पावर थी।

अर्जुन: आइशा, ये देखो, उस पत्थर के बाक़ी के दो टुकड़े भी हमें मिल गए हैं। अब हमें इन्हें जल्दी से डिकोड करना होगा।

अर्जुन ने तीनों पत्थरों को आपस में मिलाया। उसके सामने चक्रव्यूह की आकृति और उससे बाहर निकलने का रास्ता बन गया। अर्जुन ने उस आकृति की मदद से सबसे पहले अपने साथियों को देखा और एक-एक दरवाज़ा खोलते हुए उनके पास पहुँच गया।

अर्जुन अपने साथियों को लेकर उस चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए आखिरी दरवाज़ा खोलने की कोशिश की लेकिन वह दरवाज़ा नहीं खुला। उसने कई बार कोशिश की लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला। अर्जुन थककर सोचने लगा।

अर्जुन: पहले सभी दरवाजे आसानी से खुल रहे थे लेकिन अब नहीं, ऐसा क्यों? कहीं मैं कोई गलती तो नहीं कर रहा?

अर्जुन ने तीनों पत्थरों को फिर से मिलाया, लेकिन इस बार उस पर कोई आकृति नहीं बनी। अर्जुन और उसकी पूरी टीम निराश होकर बैठ गई, तभी सम्राट की नज़र एक लटकती हुई रस्सी पर पड़ी। सम्राट ने उस रस्सी को खींच दिया।

रस्सी खींचते ही उस भूल-भुलैया का सुरक्षा प्रणाली सक्रिय हो गया। टीम अर्जुन को ऐसा लग रहा था जैसे प्रलय आ गया हो। उन पर हर तरफ़ से तीरों की बारिश होने लगी थी। अर्जुन ने बचने के लिए अपना शील्ड बैग से निकाल और खोल दिया, तब जाकर वह उन ख़तरनाक तीरों से बच पाए।

अर्जुन और उसके साथियों को अब जल्दी से जल्दी बाहर निकलने का रास्ता खोज निकालना था, वरना वे लोग बच नहीं सकते थे। एक आवाज़ उन्हें फिर से आई, "अगर बाहर निकलना है तो इस पहेली को हल कर दो, 'मिट्टी में छिपा मेरा घर, मैं खो चुका हूँ अपने समय में, मुझे ढूँढने वाले को दूंगा वह, जो भूला है हर कोई मन में।'"

अर्जुन और उसकी टीम इस पहेली को सॉल्व करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कोई भी उसका सही जवाब नहीं बता पा रहा था। समय हाथ से निकलता जा रहा था, किसी भी समय उन पर तीरों की बारिश फिर से शुरू हो सकती थी।

क्या अर्जुन और उसकी टीम इस पहेली का जवाब दे पाएगी? या उन्हें बाहर निकालने के लिए अभी और भी इंतहान देने होंगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

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