आधे घंटे बाद, रसोई का दरवाजा खुलता है और श्री बाहर आती है। वो माई को ढूंढती है पर माई उसे कहीं भी नहीं मिलती।


माई - “बिटिया... आ गई  बाहर।"

श्री - “आप कहां चलीगई थी माई ?"

माई - "बाबा जी को खाना देने गई थी.. तुम बताओ कैसा लगा तुम्हें?"

माई कुर्सी पर बैठकर पूछती हैं।


श्री - “बहुत बढ़िया.. बहुत अलग सा ही लगा.. एकदम शांतिपूर्ण। मेरा तो मन ही नहीं कर रहा था वहां से आने का। पर कैसे? कैसे वहां की वाइब  इतनी अलग है?”,

माई - “1000 से भी ज्यादा सालों से इस कमरे में ध्यान करने की क्रिया की जा रही है.. कितने ही महान साधुओं ने सिद्धियां प्राप्त की हैं यहां...इस छोटे से कमरे में।"

श्री  जिज्ञासु होकर पूछती है,

श्री - “माई  क्या आपके पास कोई जादुई शक्ति है? क्या आपके पास भी वो शक्तियां हैं.. वो भविष्य देखने वाली।”

माई - “ये तो बिटिया में तुम्हें नहीं बता सकती पर इतना जरूर कहूंगी कि इस कमरे से मुझे मेरे गुरु ने मिलवाया था और आज मैंने तुम्हें दिखाया। तुम वो पहली  इंसान हो जिसमें मैंने ये कमरा  दिखाया है और यहां कुछ अनुभव करने का समय दिया है।”

श्री - “पर क्या मैं पूछ सकती हूं कि आपने मुझे ही क्यों ये दिखाया?”

माई अपनी आंखें कुछ सेकंड के लिए बंद कर लेती हैं और फिर श्री  को कहती हैं,

 


माई - “कुछ सवालों के जवाब समय देता है बिटिया।” तुम्हे भी मिलेंगे.. अभी तुम जाओ और जाकर तैयार हो जाओ। हम अस्सी की ओर जा रहे हैं, तुम्हें छोड़ देंगे वहीं। नौका चलती है वहां.. आज नौका विहार कर देख कर आओ सारे घाट।”

श्री - “नौका मतलब.. बोट  ना?"


श्री  खुश होकर पूछती है और माई की हम्म सुनने के बाद तैयार हो जाती है। .अक्सर बनारस आकार लड़कियां साड़ी या सूट पहन कर बोटिंग करने जाती हैं.. जहां तक मुझे समझ आता है.. ये पहनने के पीछे का उनका मकसद सुंदर फोटो खींचना होता होगा और अगर दूसरा कोई कारण हो भी तो उनकी वो जानें। श्री  ने आज सूट नहीं पहना है और साड़ी भी  नहीं। वो अपनी पसंदीदा ग्रे कार्गो पैंट और सफेद टी शर्ट के साथ  लाल टोपी लगाकर तैयार है... और इस आउटफिट को चार चाँद लगा रहा है उसका प्रिंटेड दुपट्टा।

अपने कमरे से बाहर आकर श्री  माई को आवाज देती है, “मैं तैयार हूं माई .. जल्दी आइए।"

माई I5 मिनट बाद अपने कमरे से निकलती हैं और श्री  को बाहर जाकर रिक्शा रोकने को कहती हैं।

श्री - “पर माई .. यहां रिक्शा नहीं मिलता. हमें बाहर  तक जाना पड़ेगा”, श्री  बड़ी ही आत्मविश्वास से बोलती है।

माई - “बहार से निकलने वाला है एक रिक्शा.. जाओ जाकर रोको उसे.. कहना अस्सी होते हुए लंका जाना है",

माई  बोलकर पीछे के दरवाजे को  ताला लगाने चली जाती है और श्री बाहर  आ जाती है।

श्री - “माई  तो ऐसे बोली जैसे आ ही जाना है रिक्शा.. हालांकी नई हूं पर इतना तो मुझे भी समझ आ गया है कि यहां से रिक्शा नहीं मिलता। चलकर आगे जाना ही पड़ेगा।”

खुद में बड़बड़ाती हुई श्री  गेट के पास पहुंच जाती है और बार-बार पलटकर माई के आने का इंतजार करती है ताकि उन्हें बता सके कि कोई रिक्शा नहीं आ रहा है।

और जैसे ही “माई  बाहर  आती है, एक रिश्ता आकर रुकता है।


हरिया - “जय बाबा विश्वनाथ..जय माई की।"


माई - “जय बाबा की.. और हरिया कैसे  हो?..",

माई  पहले रिक्शे वाले की ओर देखती हैं और फिर श्री  को देखती हैं.. जिसकी आंखें इस सब पर विश्वास नहीं कर पा रही हैं।

हरिया - “बस बाबा की कृपा है.. कहाँ जाएगी माई ?"

हरिया उतरकर रिक्शा का गेट खोल देता है जो उसने छोटे बच्चों के साथ सवार होने वाली सावरियों के लिए रिक्शे के पिछले हिस्से में लगा रखा है।

माई  हरिया को अस्सी से होते हुए लंका जाने को कहती हैं और रिक्शे में बैठ कर श्री  की ओर अपना हाथ बढ़ा देती हैं... अगर आप वाकिफ नहीं हैं तो मैं आपको बता दूं कि काशी में साइकिल वाले रिक्शे चलते हैं जिनमें सवारियों के बैठने के लिए पिछले हिस्से में जगह बनाई जाती है।

तो अब श्री  भी माई के पास आ कर बैठ गई है और उन्हें बड़े ही अचंबे से देख रही है,

श्री - “माई ..कैसे? आपको कैसा पता था?”

माई  मुस्कुरा देती हैं और श्री  को एक ठेले की ओर इशारा कर कहती हैं,

माई - “बड़े स्वाद गोल गप्पे बनाते हैं ये.. लौटकर आओ तब खाना।''

श्री  हां कहकर आगे देखने लगती है और रिक्शे वाले से उसके बारे में पूछने लगती है। रिक्शे वाला भी बड़े ही प्यार से श्री  से बातें कर रहा है और कैसे वो बनारस पहुंचा , कब से रिक्शा चला रहा है, घर में कौन - कौन है उसके ... ये सब बता रहा है। माई , श्री  को बड़े ही गौर से देख रही हैं और उन्हें उसकी मासूमियत पर प्यार आ रहा है। कुछ दूर चलकर, माई  हरिया को रिक्शा रोकने को कहती हैं।


माई - “हम दो मिनट में आये.. थोड़ा रोक लो इधर साइड में.. बिटिया तुम बैठो यहीं।"

माई के जाते ही श्री  हरिया से पूछती है,

श्री - “आप माई को जानते हैं? ”


हरिया - “माई को कौन नहीं जानता दीदी.. यहां सब उन्हें जानते हैं।"

श्री - “तो क्या आज उन्होंने आपको फोन किया था आने के लिए?”,

हरिया- “नहीं दीदी.. माई कभी फोन नहीं करती.. बस हमारा निकलना होता है और माई रोक लेती हैं…”,

श्री - “अच्छा…!!”

हरिया - “दीदी माई इतनी आसानी से समझ नहीं आएंगी.. बस जो वो कहें उन पर विश्वास कर लो.. फिर धीरे - धीरे समझ में भी आने लगेंगी",

हरिया बोलता ही है कि माई हाथ में एक बड़ा सा थैला लेकर आ जाती है।

कुछ ही देर में अस्सी घाट आ जाता है और घाट के गेट पर आ कर हरिया रिक्शा रोक देता है। श्री  उतारती है और हरिया और माई को बाय करके चली जाती है। माई हरिया को लंका की ओर चलने को कहती हैं और हरिया का रिक्शा  लंका की ओर बढ़ जाता है।

बोट वाला - “मैडम जी एक पूरे बड़े चक्कर का 2000 रुपये। आपको हर एक घाट की कहानी बताएँगे और इतमीनान से सब घुमाएँगे… ”,


श्री - “भाई जी 2000 तो बहुत ज्यादा हैं.. एक सही कीमत बताएं।"

बोट’वाला - “अरे मैडम जी, अपने हाथों से चप्पू चलाएगे.. मेहनत लगती है ना। बढ़िया से घुमाएँगे, कर लें ना पक्की मैडम जी”, (बोटिंग वाला ज़ोर देकर बोलता है।)

श्री - “भाई जी 1000 रुपये दूंगी.. ले चलेंगे तो बतायें..",

श्री  भी बड़े आत्मविश्वास से बोलती है.. जैसे कई बार यहां बोटिंग करने के लिए आ चुकी है और सही दाम जानती है।

बोट वाला - “अरे मैडम जी.. इतने कम में कैसे होगा.. अच्छा चलो एक्स.. एक्सकलोसिव आपके लिए.. एकदम खास ऑफर.. 1500 रुपये"


श्री  सुनते ही थोड़े आगे बढ़ती है और फिर पलट कर कहती है, "1200, ना आपके ना मेरे।"

इस तरह 1200 रुपये में बोटिंग की डील पक्की हो गई है और श्री  बोटिंग वाले के पीछे - पीछे चल दी है।

नाव वाला - “आइए मैडम जी.. हाथ दीजिए।"

श्री  नाव वाले का हाथ पकड़ कर, नाव में आ जाती है और सबसे पहले अब उसका नाम पूछती है। नाव वाला पहले एक मुस्कान देता है और फिर ज़ोर से कहता है,

नाव वाला - “संतोष केवट”

नाव आगे बढ़ती है और बढ़ते हुए एक-एक घाट के आगे से गुजर रही है..श्री  का ध्यान कभी घाट पर होता है, कभी पानी पर तो कभी आहिस्ता - आहिस्ता चल रहे चप्पू पर। और फिर नारद घाट पर पंहुंचकर, संतोष नाव को रोक देता है और नारद घाट से जुड़ी कथा सुनाने लगता है। हर दूसरी कथा की तरह, ये कथा भी श्री  के फोन में रिकॉर्ड हो रही है पर... उसका ध्यान, एक दूसरी नाव पर चला गया है...


श्री - “शिट.. वह मेरा है। भैया जल्दी हमें उस नाव के पास लेकर चलो। वो मेरा कैमरा है... कैसे यार? यह कैसे हुआ?",

श्री  खड़ी हो जाती है और दूसरी नाव वाले को रुकने का इशारा करने लगती है।


बोट वाला - “मैडम जी...आराम से..आराम से, अभी आप ज्यादा हिलेंगी डुलेंगी तो बोट पलट जाएगी।"

श्री - “भैया.. आपको नहीं पता.. वो कैमरा मेरे लिए कितना महत्वपूर्ण है.. आप प्लीज जल्दी चलाइए..",

श्री  बहुत घबरा गई है और बस संतोष को जल्दी से दूसरी नाव के पास चलने को कहे जा रही है...संतोष भी  गति बड़ा देता है...पर श्री  देखती है कि उसकी नाव से पहले, कोई तीसरी ही नाव उस दूसरी नाव के पास पहुँच जाती है जिस पर श्री  का कैमरा लिया एक लड़का बैठाहै.और देखते ही देखते, श्री  का कैमरा अब उस तीसरी नाव में पहुंच चुका है...

श्री - “ये सब हो क्या रहा है?..",

श्री  की आंखों में आंसुओं आ जाते हैं.. संतोष उसे धीरज रखने को कहते हैं.. और ज़ोर-ज़ोर से चप्पू चलाने लगता है और फिर वो देखता है कि वो तीसरी नाव उनकी ओर ही आ रही है।


बोट वाला - “मैडम जी देखिये ना.. वो बोट तो हमारी ही हैओर आ रही है.. देखिये आप रोइये मत.. मिल जायेगा आपका कैमरा आपको ..'',

श्री  अपने आंसुओं को पोछती है और देखती है कि सच में वह नाव उसके पास आ रही है।

“पर मैडम जी आपने कैमरा रखा कहां था?”, संतोष पूछता है।

श्री - “मैंने तो यहीं नाव पर रखा था.. घाट देखने के लिए मैं इस साइड आ कर बैठी और फिर जब नज़र उधर गई तो कैमरा गायब..", (श्री  पछताते हुए बताती हैं।)

नाव वाला - “अब देखिये ना मैं भी आपको कथाएं सुनाने में इतना मगन हो गया कि मेरा भी ध्यान नहीं गया..।सॉरी मैडम जी..”
श्री - “अरे नहीं - नहीं आप क्यू सॉरी बोल रहे हैं... मुझे ध्यान रखना चाहिए था...पर आपको क्या लगता है संतोष ये बोट कैमरा वापस देने ही आ रहा है.."

नाव वाला - "पक्का किसी बाहर वाले ने आपका कैमरा लिया था.. हम लोगों का तो रोज़ का ही काम है.. चोरी करके भला कितना ही जी पाएंगे.. हम जैसा ही कोई आपकी मदद को आया है मैडम जी.. हम देखें थे की किसने  यह नाव से  उस नाव में छलांग लगाई थी और फिर उस लड़के के हाथ से कैमरा लेलिया था.. जरूर ये बोट कैमरा लौटाने ही आ रही है, (संतोष श्री  को सांत्वना देते  हुए कहता  हैं..)

और फिर वो तीसरी नाव श्री  की नाव के करीब आ जाती है। और श्री  देखती है कि उसका कैमरा लिये  कोई और नहीं, बाल्की वसन ही उस नाव में खड़ा हुआ है...

श्री  – “वसन…।”

श्री  ज़ोर से आवाज़ देती है और ताली बजाकर उचकने लगती है..श्री  के उचकने से नाव का संतुलन बिगड़ जाता है और नाव पलट जाती है.. अब श्री  पानी में है..।संतोष पानी में है और नाव उलटी हो गई है... कुछ देर की मशक्कत के बाद, संतोष नाव को सीधा कर लेता है और श्री  को ढूंढने की कोशिश करता है पर उसे कहीं भी श्री  नजर नहीं आ रही है।

श्री  की जान खतरे में आ गई है और नाव वाला परेशान हो रहा है.. क्या वे श्री  को ढूंढ पाएंगे? या पानी का बहाव श्री  को अपने साथ बहा ले जाएगा? 
 

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