श्री के ना दिखने पर, बोट्स पर मौजूद सभी लोगों को अब उसके डूब जाने का डर सता रहा है। संतोष की सवारी के साथ ऐसा हुआ है इसलिए वह भी बहुत घबराया हुआ है।


बोट वाला - "कोई मदद करो.. मैं अकेला हूँ। कोई तो मदद करो.. मैम जी कहीं नजर नहीं आ रही हैं.."
 

वसन अपनी बोट से पहले संतोष की बोट में छलांग लगाता है, और फिर उसे कैमरा पकड़ा कर पानी में कूद जाता है। वसन सतह पर आ-आकर गहरी-गहरी सांसें ले-लेकर… नदी में अंदर जाकर देख रहा है.. पर उसे कहीं भी श्री नहीं मिल रही है, कुछ देर बोट के आसपास ढूंढने के बाद वसन आगे जाकर देखने का तय करता है और आगे निकल जाता है।
इससे पहले कि वसन ज्यादा आगे निकल जाए, संतोष उसे आवाज देकर रोकता है,
 

बोट वाला - "भैया आगे पानी गहरा है और बहाव बहुत ज्यादा है। मानिए.. हम घाट से जाकर मदद लेकर आते हैं.. किसी तैराक को बुलाकर लाते हैं।"
वसन दो पल के लिए रुककर सोचता है और फिर संतोष को घाट पर जाकर मदद लाने का कहकर आगे बढ़ जाता है। संतोष बिना एक भी सेकंड गंवाए... दुगनी गति से चप्पू चलाने लगाता है और अस्सी की ओर निकल जाता है...
 

वसन - "कहाँ हो श्री?... बस एक इशारा.. एक इशारा मिल जाए कि कहाँ हो तुम.. हे माँ गंगे, मदद करो.."
 

और इतने में ही पूर्व की दिशा से एक दिया बहता हुआ वसन की ओर आता है.. नदी के बीचों-बीच इस तरह किसी दिए का मिलना किसी चमत्कार से कम नहीं है.. पर अभी चमत्कार से ज्यादा वसन को किसी इशारे की जरूरत थी... वसन दिए की दिशा में आगे बढ़ जाता है और करीब 1 मील बाद उसके पैर में एक कपड़ा उलझता है.. जिसके बाद वसन गहराई में जाकर देखता है तो उसे श्री के होने का एहसास होता है.. वह एक हाथ से श्री को पकड़ता है और उसे ऊपर लाने की कोशिश करता है.. इतने में संतोष भी अपने साथ दो तैराकों को ले आया है... जिनकी मदद से वसन श्री को बोट में ले आता है। श्री बेहोश है और तैराक... तैराक उसका पेट दबा-दबा कर, शरीर में गए पानी को निकालने की कोशिश कर रहे हैं.. वसन एक तरफ बैठा सब कुछ देख रहा है.. फिर वह संतोष को जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी घाट पहुंचने का इशारा करता है।
 

अगले 15 मिनट में... बोट घाट पर पहुंच गई है... और अब वसन ने श्री को हाथों में उठा लिया है,
 

वसन - "यहां नजदीक में कोई डॉक्टर है? कोई क्लिनिक है?"
 

बोट वाला - "हां भाई जी आइए.. हम आपको ले चलते हैं.. बस मैम सही हो जाएं भोले.. हम पांच सोमवार नंगे पैर आएंगे तेरे दर्शन को.."
 

संतोष जय भोले, जय भोले बोलते-बोलते आगे चल रहा है..
 

कैसे देखते ही देखते एक सुहानी सी शाम कुछ लोगों के लिए इतनी गंभीर हो गई.. ऐसा ही तो होता है जब कुछ होना होता है…. कैमरा चोरी हुआ, चोरी होने के बाद दिख गया.. दिखने के बाद स्वयं चलकर पास आ रहा था.. पर ये होना था.. वो होता है न कभी-कभी कुछ बड़ा होने की जगह कुछ छोटा हो जाता है.. वैसे ही आज कुछ छोटे ने बड़ा रूप ले लिया है।
 

बोट वाला - "देखिए न डॉक्टर साब दीदी होश में ही नहीं आ रही हैं" (संतोष घबराते हुए बोलता है)
 

डॉक्टर - "जरा साइड हटिए..." डॉक्टर उलटे हाथ की कलाई पकड़कर, श्री की नब्ज चेक करता है।
 

"हुआ क्या था? कैसे ये इस हाल में पहुंची?" (डॉक्टर गंभीर होकर पूछता है)
 

"वो.. बोटिंग..." वसन बताता ही है कि संतोष उसका हाथ पकड़ लेता है और बोलना शुरू कर देता है,
 

बोट वाला - "डॉक्टर साब.. दीदी बोटिंग करके लौटी... फिर सीढ़ी पर पैर रखा तो देखा नहीं.. काई थी वहां और उनका पैर फिसल गया.. और फिर आप तो जानते ही हैं.. गंगा मइया की लीलाएं.. शाम को बहाव बढ़ जाता है.. बस हम इन भाईया की मदद से दीदी को बचाए और सीधा आपके पास ले आए।"
 

डॉक्टर संतोष की बातों पर वैसे ही यकीन कर लेता है जैसे घर की खिड़की पर गेंद लगने से शीशा टूट जाता है और एक मां अपने बच्चे के ये कहने पर यकीन कर लेती है कि उसने शीशा नहीं तोड़ा।
 

चेकअप करने के बाद डॉक्टर बताता है कि श्री के फेफड़ों में पानी भरने के चांस हैं इसलिए उसे कुछ देर अंडर ऑब्जर्वेशन रखना होगा..
 

वसन - "क्या वह होश में आई डॉक्टर?"
 

डॉक्टर - "हां हां उन्हें होश आ गया है पर हेवी इंजेक्शन की वजह से वो पूरी तरह से होश में नहीं हैं.. बेहतर होगा कि उन्हें आराम करने दिया जाए.. और हमें उनके कुछ टेस्ट भी करने होंगे.. अभी मैं आपको उन्हें कुछ समय यहीं रखने की एडवाइस दूंगा।"
 

वसन डॉक्टर को थैंक यू बोलकर नर्स से दवाइयों का पर्चा कलेक्ट करता है और क्लिनिक से बाहर चला जाता है। संतोष भी डॉक्टर को धन्यवाद देता है और भागा-भागा वसन के पीछे आता है।
 

बोट वाला - "रुकिए भाईया.. रुकिए.."
 

संतोष वसन के पैर पकड़ जमीन पर गिर गया है,
 

बोट वाला - "आपका खूब-खूब आभार भाईया.. आपका खूब आभार। हमें बचा लिया आपने.. वरना वो डॉक्टर हमारी कंप्लेंट कर देता और फिर ना जाने क्या-क्या.. हमारी बोट जब्त हो जाती.." 
 

वसन - (वसन संतोष को पकड़कर उठाता है), "अरे.. इसमें आभार किस बात का.. एक तो तुम्हारी कोई गलती नहीं थी और दूसरा यदि हम एक-दूसरे का साथ नहीं देंगे तो फिर कौन देगा.."
 

बोट वाला - "पर आप तो हमें जानते भी नहीं भाईया.." (संतोष बड़ी ही मासूमियत से पूछता है)
 

वसन - "भला कैसे नहीं जानते.. बताओ, आप भारतवासी हो?"
 

बोट वाला - "हां, हैं।"
 

वसन - "आप दाल रोटी खाते हो?"
 

बोट वाला - "हां, खाते हैं।"
 

वसन - "आप जय भोले करते हो?"
 

बोट वाला - "हां करते हैं.."
 

वसन - "लो.. आप तो वो सब करते हो.. जो मैं करता हूं.. और इन सब से ऊपर हम इंसान हैं, अपनी इंसानियत तो साथ रख सकते हैं न.."
 

ये सुनते ही संतोष वसन के गले लग जाता है और फिर वसन उसे अपने घर लौट जाने को कहकर, श्री की दवाइयां लेने मेडिकल स्टोर की ओर चल देता है। रास्ते में चलते हुए... उसे फिर वही चेहरा दिख रहा है और वो उसे देख खुद से बातें कर रहा है...
 

वसन - "फिर आ गई मुझे छेड़ने.. म्म्म ऐसे मुझे गीले कपड़ों में देखकर हंस रही है... अभी दवाइयां ना लानी होती तो सीधा हाथ पकड़ कर ले जाता और लगवा देता डुबकी। फिर हंसकर बताती ऐसे.. ह हा आ हा.. ह्म्म बड़ी आई मुझपर हंसने वाली.."
 

"हां जी, बताएं पर्चा... अरे ओ भाई साब.. हैलो..."
 

मेडिकल स्टोर वाला लड़का वसन की आंखों के सामने हाथ घुमाते हुए, बार-बार उससे दवाइयों का पर्चा मांग रहा है पर वसन तो जैसे अपनी ही किसी दूसरी दुनिया में खोया हुआ है।
अब वह वसन के कंधे पर हाथ रखता है और जोर से बोलता है,
 

"भाई साब पर्चा.. सुन रहे हैं न आप.. पर्चा दीजिए। आप पर्चा देंगे तो मैं दवाई दूंगा.."
वसन एकदम से हिलता है और अब उसे सामने मेडिकल स्टोर वाला लड़का नजर आ रहा है। वह उसे पर्चा थमा कर... अपने आसपास देख रहा है पर अब उसे वो चेहरा कहीं भी नहीं दिख रहा।
 

"भाई साब ये रहीं आपकी दवाइयां.. आप ठीक तो हैं न। कब से मैं आपको आवाज दे रहा था.. लगता है कोई बहुत नजदीकी है.. जिसके लिए आप दवाइयां ले जा रहे हैं। ठीक हो जाएगा सब.. थोड़ा धैर्य रखिए.." (मेडिकल स्टोर वाले लड़के ने तसल्ली देते हुए वसन को कुछ ऐसा बोल दिया है.. जिससे उसे एक धक्का सा लगा है)…
 

हाथ में दवाइयां लिए वसन अब क्लिनिक की ओर जा रहा है पर उसके मन में बार-बार वही शब्द चल रहे हैं.. क्लिनिक पहुंचते ही उसने, नर्स को दवाइयां दे दी हैं और वह सीधे श्री के कमरे में चला आया है। कुछ देर वहीं बेड के पास बैठने के बाद वसन श्री का सारा सामान पास रखी टेबल पर रखकर कमरे से बाहर आकर बेंच पर बैठ गया है और कुछ सोच रहा है।
 

डॉक्टर - "मिस्टर मल्होत्रा " डॉक्टर वसन के पास आकर बैठता है।
 

वसन - "यस डॉक्टर."
 

डॉक्टर - "सभी टेस्ट की रिपोर्ट एकदम नॉर्मल हैं.. दो घंटे में ड्रिप चढ़ जाएगी फिर आप इन्हें ले जा सकते हैं,"
 

यह बताकर डॉक्टर चला गया है और वसन उठ खड़ा हुआ है.. वह एक बार फिर श्री के कमरे में झांक कर देखता है और फिर सीधे वहां से बाहर चला आया है।

वसन - "भैया... गोदोलिया चौक चलेंगे?"
 

रिक्शा वाला - "बैठिए सेठ जी.."
 

भागा-भागा, रवि श्री के कमरे में पहुंचा है और वहां मौजूद नर्स से सब पूछ रहा है। नर्स बता ही रही होती है कि श्री की आंखें खुलती हैं और वह रवि को वहां देखकर उसे आवाज देती है..
 

श्री - "रवि भाई जी.."
 

रवि - "दीदी.. दीदी आप ठीक हैं न?"
 

श्री - "हां.. हां भाई जी मैं ठीक हूं.. वो वो संतोष.." (श्री पूरे कमरे में नजर घुमाते हुए बोलती है)
 

रवि - “संतोष.. कौन संतोष। क्या बोल रही हैं दीदी.. कोई नहीं है यहां..”और फिर रवि नर्स से श्री को घर ले जाने का पूछता है। नर्स उसे बताती है कि ड्रिप खत्म होते ही वह श्री को घर ले जा सकता है।
 

श्री - "रवि भाई जी.. ये लीजिए आप जब तक फीस भर दीजिए.." (श्री अपने बैग से कुछ रुपये निकालकर रवि को देती है)
 

नर्स - “आपके बिल तो क्लियर हो गए हैं मैम जी.. वो जो आपको लेकर आए थे, उन्होंने कर दिए और ये टेबल पर आपका सारा सामान रखा हुआ है,”यह बताकर नर्स कमरे से चली जाती है। कुछ देर बाद नर्स फिर आती है और सिरिंज निकालकर, श्री को उठने में मदद करती है।


श्री अब रवि के ऑटो में सवार होकर घर जाने के लिए क्लिनिक से निकल गई है..
 

रवि - "माना कि गंगा मइया के पवित्र जल में डुबकी लगानी थी पर ऐसे.. दीदी? ये थोड़ा ज्यादा वो नहीं हो गया.. वो क्या कहते हैं उसे.. एडवेंचर.. जैसे ही हमें पता चला न दीदी कि आप यहां हैं, हम तो घबर ही गए थे।"
 

श्री - "पर आपको कैसे पता चला भाई?" (श्री अचंभित होकर पूछती है)
 

रवि - "हम.. हम तो माई के पास गए थे कुछ काम से.. उन्होंने कहा कि हम अस्सी पर जाकर आपको ले आएं। वहां पहुंचे.. सब दूर देखा.. आप नहीं दिखीं.. फिर ये भी पता चला कि अभी किसी के साथ कोई हादसा हुआ है बोटिंग के दौरान.. बस फिर क्या था, फिर तो हमने फोन निकाला और आपके नंबर पर फोन घुमा दिया। फोन किसी लड़के ने उठाया था और उसने हमें वो क्लिनिक का पता दे दिया.. बस फिर क्या 100 की रफ्तार से आपके पास पहुंच गए.."
 

रवि की बातें सुनकर श्री कुछ बोलती तो नहीं पर सभी कड़ियों को जोड़ने की कोशिश करने लगती है और इस मानसिक उलझन में अब वह घर पहुंच गई है।
क्या श्री को पता चल पाएगा कि संतोष ने नहीं, वसन ने उसकी जान बचाई है? क्या वसन फिर दुबारा उससे मिलने आएगा? श्री और वसन की इस कहानी में अभी और क्या नया मोड़ आएगा, ये जानने के लिए पढ़ते रहिए ..

 

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