गजेन्द्र अस्पताल के गेट के पास खड़ा था। उसकी आँखों में थकावट थी, और उसके चेहरे पर वो गहरी चुप्पी जो मानो एक लंबे समय से रिया के जागने का इंतजार कर रही हो। उस पर डॉक्टर सुधांशु के उस सवाल ने कि कैदी नंबर 47 कौन है, गजेन्द्र को और भी ज्यादा परेशान कर दिया।
इसी बीच रिया के कमरे से एक नर्स बाहर आई और उसने गजेन्द्र के एक हाथ में रिया की डायरी और दूसरे हाथ में मोबाईल थमाया। गजेन्द्र ने धीरे से डायरी खोली और पन्ने पलटने लगा- “Operation Pawn: V.S. – The Royal Mole” पन्ने पर यही लिखा था।
उसने गहरी सांस ली और फिर देखा कि डॉक्टर सुधांशु उसके पास आकर खड़ा है और काफी नर्म आवाज में उसके कानों के पास आकर कहा-"रिया अब खतरे से बाहर है, लेकिन वो अभी भी कोमा है। श...श..शांत रहो, और ज्यादा खुशी जाहिर मत करना, मुझे लगता है उसकी जान को खतरा है। कोई है, जिसकी नजर रिया के वार्ड पर है।"
डॉक्टर की बात सुन गजेन्द्र ने बिना जवाब दिए डायरी को एक बार फिर से पलटा और पढ़ने लगा। जैसे-जैसे गजेन्द्र उस डायरी के पन्नों को पलट रहा था, उसकी आँखें डायरी में गहरी होती जा रही थी। मानो हर शब्द उसे कोई ऐसा राज़ बता रहा था, जो उसके अपनों का था। ऐसे में डायरी के लास्ट पन्ने को पढ़ते हुए गजेन्द्र ने बड़बड़ाते हुए कहा- "कोमा में रिया नहीं, असल में तो मैं भी बीस साल से था… फर्क बस इतना है, मैं आँखें खोल के मरता रहा… वो बंद कर के ज़िंदा है।"
डॉक्टर सुंधाशु गजेन्द्र के केस के बारे में मीडिया टेलिकास्ट और सोशल मीडिया की वजह से पहले से सब कुछ जानता था। ऐसे में वो बिना कुछ कहे वहां से चल गया। जिसके बाद गजेन्द्र फिर से डायरी के पन्ने पलटने लगा। उसने देखा कि रिया की डायरी में एक गहरा राज़ छिपा हुआ था— जो था किसी V.S. का नाम...। लेकिन इसका मतलब क्या था? और रिया इसे कैसे और क्यों जानती थी?
जहां एक तरफ रिया की डायरी से खुले राजघराना महल के राज़ गजेन्द्र को अंदर तक झकझौर रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर राजमहल के मेन हॉल में गहमा-गहमी का माहौल था। गजेन्द्र सिंह, मुक्तेश्वर, प्रभा ताई और राज राजेश्वर सभी एक साथ आमने-सामने बैठे थे। बैठक का माहौल गंभीर था, लेकिन हर कोई जानता था कि मामला आज सुबह मुक्तेश्वर के कमरे में अचानक लगी आग का है।
"हम कब तक खामोश रहेंगे? आखिर कौन बतायेगा कि मेरे कमरे में आग लगने और जानकी की उन चिट्ठियों को जलाने के पीछे किसका हाथ है… आखिर कब तक इस तरह सिर झुकाए बैठना हैं सबको…?"
राज राजेश्वर, जो अब तक चुप था, वो अचानक बोल पड़ा— "आप भूल रहे हैं भैया, जिस वक्त आपके कमरे में आग लगी, हम सब भी अपने-अपने कमरों में थे। राणाजी के चीखने की आवाज सुनकर हम लोग यहां आये थे।
राज राजेश्वर की ये बात सुनते ही मुक्तेश्वर भड़क जाता है और गुस्से में सौफे से खड़ा होकर अतीत के पन्नों को खोलते हुए कुछ ऐसा बोलता है, जिसे सुन राज राजेश्वर का खून खोल जाता है— "बीस साल पहले जब तुमने मेरे साथ वो सब किया, तब मुझे समझ आया कि तुम राजघराना की सियासत पर राज करना चाहते हो… पर अब तुम्हें सत्ता की गद्दी अपने किस वारिस के लिये चाहिये…? तुम्हारी तो ना कोई संतान है और ना ही किसी संतान के पैदा होने की अब कोई उम्मीद बची है।"
सीधे-सीधे अपनी मर्दानगी पर उठे सवाल सुन राज राजेश्वर तिलमिला उठा। वो पलटकर गुस्से में वार करने ही वाला होता है कि तभी गजराज सिंह चिल्लाते हुए दोनों को खामोश करा देता है— “बस! अब और नहीं। गजेन्द्र मेरा उत्तराधिकारी है…और मैं खुद उसे न्याय दिलाने में उसका साथ दूंगा।”
गजराज सिंह जैसे ही गजेन्द्र के उत्तराधिकारी होने की बात कहता है, राज राजेश्वर और राघव भौंसले दोनों वहां से बिन पानी जैसी मछली की तरह फड़फड़ाते हुए चले जाते हैं। वहीं उनके जाने के बाद गजराज भी अपने प्राइवेट रुम में चला गया, जहां किसी को जाने की इजाज़त नहीं थी।
आज की रात एक गहरी काली अमावस जैसी रात थी, जहां एक तरफ गजेन्द्र अपने प्यार रिया के कोमा से जागने का इंतजार कर रहा था, तो वहीं दूसरी ओर गजराज सिंह और राज राजेश्वर एक साथ अकेले अपने उस प्राइवेट कमरे में बैठे थे। दोनों भले ही बाप-बेटे थे, लेकिन दोनों के बीच का रिश्ता कभी भी सीधा नहीं था।
गजराज सिंह की आँखों में गहरी चुप थी, मानो वह एक खतरनाक खेल खेल रहा हो। राज राजेश्वर ने उसके सामने एक गिलास रखा और काफी तीखे अंदाज में बोला- "साफ-साफ बताइये कि आखिर आप किसके साथ है, और अगर भाई साहब का ही साथ देना था तो बीस साल पहले वो सब क्यों किया था आपने?"
गजराज सिंह ने गिलास उठाया और फिर धीरे से जवाब दिया, जैसे उसकी आवाज़ में गहरे पानी की गूंज हो।
"दुबारा ये शब्द कभी अपनी जुबान पर मत लाना, भूलों मत दीवारों के भी कान होते है। और रही बात उन दोने की तो अभी उन्हें यही रहने दो…वक्त आने पर वो मोहरों की तरह काम आएंगे। और जब खेल खत्म होगा... राजा सिर्फ एक बचेगा।"
राज राजेश्वर ने चुपचाप गजराज सिंह की तरफ देखा, मानो वह कुछ और समझ रहा हो, लेकिन गजराज का चेहरा अब भी ऐसा था, मानो जैसे अंदर कोई गहरा राज, कोई गहरी चाल समेटे हो।
वहीं अस्पताल में रिया की डायरी पढ़ने के बाद गजेन्द्र जेल में कैदी नंबर 47 से मिलने की ठान लेता है। ऐसे में वो सबसे पहले पुलिस स्टेशन में अपने देश छोड़कर भागने की झूठी खबर पहुंचवाता है। जिसके बाद जब पुलिस की टीम असपताल में छापा मार उसे वहां मौके से गिरफ्तार कर लेती है, तो वो जेल में पहुंच कैदी नंबर 47 की तालाश शुरु कर देता है।
काफी तलाश के बाद गजेन्द्र को जेल के सबसे कोने वाली सेल में एक कैदी नजर आता है, जिसके चेहरे पर एक गहरी चुप्पी थी, मानो उसने दुनिया की सारी सच्चाइयों को समझ लिया हो। गजेन्द्र के कदमों की आहट सुनते ही वो कैदी बिना पलटे कहता है- “क्या जानने आये हो मिस्टर गजेन्द्र सिंह?”
"आपका रिया से क्या रिश्ता है? क्या आप भी उसके मिशन में उसके साथ है?"
कैदी ने सिर उठाया, और गजेन्द्र को देखा। उसकी आँखों में जलती हुई गुस्से की लपटें थीं।
"अर्जुन रायजादा नाम है मेरा… और ये बताओ तुम होते कौन हो मुझसे कोई भी सवाल करने वाले... "
गजेन्द्र एक पल के लिए खामोश हो गया। वो समझ गया था कि कैदी नंबर 47 का राज़ जानना इतना आसान नहीं होगा, लेकिन उसने हार ना मानने की ठान ली थी।
"देखिये मुझे आपकी मदद की जरूरत है"
अर्जुन रायजादा ने जैसे ही ये सुना कि गजेन्द्र को उसकी मदद की जरूरत है, उसकी हंसी छूट गई और वो मजाक उड़ाते हुए बोला- “लगता है राजगढ़ की राजघराना हवेली का बुरा वक्त आ गया है, जो जेल के कैदियों से मदद मांगनी पड़ रही है? वरना राजघराना के लोग तो दूसरो को जेल में डालकर खुश होते हैं।”
अर्जुन की तीखी बातों और गुस्से से ये तो साफ था कि वो भी राजघराना के लोगों की गंद्दी राजनीति का कोई मोहरा रह चुका है, लेकिन किसका ये पता लगाना मुश्किल था। लेकिन तभी उसने गजेन्द्र को एक ऐसा राज़ बताया, जिसे सुन उसके होश उड़ गए।
"देखो गजेन्द्र मैं कौन हूं और किसके लिये काम करता था, ये तो तुम मेरे मुंह से कभी नहीं उगलवा पाओगे… लेकिन हां एक राज़ बताता हूं-”
"राज़… कौन सा राज़-” गजेन्द्र जैसे ही अर्जुन के उस राज़ को जानने की हैरानी और जिज्ञासा जाहिर करता है, वैसे ही अर्जुन बोलता है- "रिया पर गोली चलाने वाला मोहरा ही असली खिलाड़ी है, और तुम्हें मैच फिक्सिंग के केस में भी असल में उसी ने फंसाया है।"
15 दिन इन्हीं सब तानाकशी और राजनीति में कब बीत जाते हैं कुछ पता नहीं चलता। वहीं आज कोर्ट में गजेन्द्र के केस को लेकर उस पेन ड्राइव के साथ गवाहों की पेशी की तारीख होती है। गजेन्द्र अपने वकील विराज प्रताप राठौर के साथ जयपुर कोर्ट पहुंचता है। जहां गजेन्द्र के पिता मुक्तेश्वर सिंह और दादा गजराज सिंह कोर्ट के बाहर पहले से मौजूद होते है।
दोनों पक्ष के लोगों के कोर्ट रुम में पहुंचने के बाद जज पेन ड्राइव और बाकी सबूतों को पेश करने का ऑर्डर देते हैं, पेन ड्राइव की बात सामने आते ही कोर्ट में हलचल मच जाती है। तभी गजेन्द्र कटघरे में जाकर खड़ा हो जाता है और एक सरकारी अधिकारी पेन ड्राइव लाकर उसके हाथों में थमा देता है। जिसे गजेन्द्र का वकील विराज प्रताप जज के साथ खड़े सहायक दरबान के हाथों में देता है। इसके बाद कोर्ट में जैसे ही रिकॉर्डिंग चलने लगी, उस वीडियो से एक नया ही चौंकाने वाला सच सामने आया।
इस सच ने राजघराने की नींव को हिला कर रख दिया। वीडियो के मुताबिक "राजगढ़ हवेली से हर महीने जो रकम निकलती है, वो सीधा वी.एस. नाम के किसी आदमी के अकाउंट में जाती है…" वीडियो में उस आदमी की आवाज तो साफ सुनाई दे रही थी, लेकिन शक्ल नहीं… क्योंकि उसने चेहरे पर नकाब लगा रखा था।
वीडियो के हर पहलू को देख कोर्ट में सब लोग हैरान थे। जज ने अपनी नजरें गजेन्द्र पर डाली और सवाल करते हुए पूछा- "इस वीडियो में एक नाम बार-बार दोहराया गया है — Vidyut Surajbhan… आखिर ये है कौन और इसका इस केस से क्या नाता है?"
जज के इस सवाल से गजेन्द्र के चेहरे पर पहली बार एक हलकी थकावट और डर दोनों साफ नजर आ रहे थे। क्योंकि वो खुद नहीं जानता था कि आखिर इस V.S. यानि विद्युत सूरजभान की कहानी क्या है? और उसका रिया की उस डायरी से क्या रिशता है? गजेन्द्र खमोश खड़ा अपने अंदर के इन सवालों से जूझ ही रहा था कि तभी उसके वकील विराज राठौर ने कहा-
“सर, ये वो नाम है जो सिर्फ स्याही से नहीं... खून से लिखा गया है।”
विराज आगे कुछ कहता उससे पहले ही कोर्ट में आज की कार्रवाई का समय खत्म हो गया, जिसके बाद जज ने केस की अगली तारीख देते हुए मामले की आगे की सुनवाई उस दिन पर टाल दी। धीरे-धीरे कर लोग कोर्ट रुम से बाहर निकलने लगे।
इस दौरान सबसे हैरान करने वाली बात ये थी कि विद्युत सूरजभान का नाम सुनते ही राज राजेश्वर और राघव भौसले दोनों ही कोर्ट से पहले ही गायब हो गए थे। दूसरी तरफ गजराज सिंह भी अपने पोते से ये जानने के लिये काफी बेताब था, कि वो विद्युत सूरजभान को कैसे जानता है और उसका नाम उसे कैसे पता चला? लेकिन गजराज अपने पोते गजेन्द्र से कोई सवाल करता उससे पहले ही गजेन्द्र का फोन बजने लगा।
गजेन्द्र ने फोन उठाया तो दूसरी ओर से आवाज आई- “रिया की आँखों में हल्की सी हलचल आई है, जल्दी अस्पताल पहुंचों।”
डॉक्टर सुंधाशु की आवाज सुनते ही गजेन्द्र घबराकर कार में बैठा और कार को कोर्ट से सीधे अस्पताल की ओर दौड़ा दिया। एक घंटे का सफर उसकी कार ने बीस मिनट में तय किया। अस्पताल पहुंचते ही वो सीधे ICU की ओर दौड़ पड़ा, लेकिन डॉक्टरों ने उसे रोक लिया। तो उसने शीशे के दरवाजे से देखा कि रिया की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। और वो होश में आते ही कांपती-लड़खड़ाती आवाज में बोलीं- "V…S… तहखाना… कागज…"
ये सुनते ही डॉक्टर सुधांशु ने तुरंत उसे इंजेक्शन देकर फिर से बेहोश कर दिया। ये देख गजेन्द्र दौड़ता हुआ अंदर आया और बोला, "ये आपने रिया को इंजेक्शन देकर दुबारा बेहोश क्यों कर दिया?”
गजेन्द्र को अपने पीछे खड़ा देख डॉक्टर सुधांशु घबरा जाता है और अपने माथे से बह रहे पसीने की धार को पोछते हुए कुछ कहने के लिये अपना मुंह खोलने ही वाला होता है कि तभी उसका फोन बजने लगता है।
डॉक्टर सुंधाशु फोन उठाकर कुछ कहता या सुनता उससे पहले गजेन्द्र डॉक्टर के हाथ से फोन छीनकर उसे स्पीकर पर डाल देता है। ये देख डॉक्टर का चेहरा एकाएक सफेद पड़ जाता है।
आखिर डॉक्टर सुंधाशु ने क्यों किया था रिया को बेहोश?
क्या कहने वाली थी रिया?
डॉक्टर सुंधाशु को आया था किसका फोन, जिसने उड़ा दिया था उसके चेहरे का रंग?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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