कोर्ट रूम की दीवारें अब भी गूंज रही थी — उस गोली की आवाज़ से, जिसने न सिर्फ जर्नलिस्ट रिया शर्मा के जिस्म को छल्ली कर पूरे मीडिया में खलबली मचा दी थी, बल्कि साथ ही गजेन्द्र की पूरी दुनिया भी हिला कर रख दी थी। एक तरफ उसका अधूरा प्यार रिया शर्मा जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी, तो वहीं दूसरी ओर जिस मैच फिक्सिंग के केस में उसे फंसाया गया था, उसकी रिया एकलौती गवाह थी। 

कटघरे के पास रिया शर्मा खून से लथ-पथ अब भी ज़मीन पर गिरी, दर्द से कराह रही थी। उसकी सफेद शर्ट पर गहरा लाल धब्बा उसके जिस्म से निकलते खून की धार से बढता जा रहा था... और उसकी आंखें अधखुली थीं, जैसे किसी सवाल ने रोक कर रखा हो या फिर कुछ कहना चाहती हो। ऐसे में अब वहां मौजूद सभी लोगों के दिमाग में एक ही सवाल था कि, “क्या सच को गोली से दबा दिया जाएगा?”

रिया को बेसूध जमीन पर पड़ा देख गजेन्द्र अपने कटघरे से निकल भागता हुए सामने के कटघरे में आ जाता है और रिया के खून से लथपथ हाथों को अपने कांपते हाथों से थामता हैं। लेकिन इस दौरान उसकी आंख से एक भी आंसू नहीं गिरता। और वो बस इतना कहता है — “रिया… मत जाओ। तुम सच के लिए लड़ी हो… झूठ को नहीं जीतने दूंगा, तुम्हें मेरे लिये नहीं, हमारे लिये जिंदा रहना होगा। तुमने वादा किया था।”

गजेन्द्र की आवाज और उसकी प्यार भरी छुअन से रिया की पलकें हलकी सी फड़फड़ाती हैं। और होंठों से एक टूटी-फूटी सी आवाज में फुसफुसाहट निकलती है- “त...त...तुम... झूठ से... मत हारना... गजेन्द्र…। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।”

कांपती और लड़खड़ाती आवाज में इतना कहते-कहते रिया की आंखें बंद हो जाती हैं। तब तक कोर्ट रुम के बाहर एम्बुलेंस के सायरन की आवाज आने लगती है, जिसे सुन गजेन्द्र रिया को गोद में उठा भागता हुआ एम्बुलेंस के पास जाता है, लेकिन जैसे ही वो रिया को नर्स की मदद से एंम्बुलेंस की गाड़ी में रखे बेड पर लेटा देता है… वैसे ही दो पुलिस कॉन्सटेबल आते हैं और उसे हथकड़ी पहनाकर अपने साथ वापस ले जाने लगते हैं। 

गजेन्द्र उनके आगे खुद को छोड़ने के लिये चिल्लाता और मदद की भीख मांगता है, लेकिन कोई भी कानून के फैसले के खिलाफ नहीं जा सकता था। ऐसे में उसके पिता मुक्तेश्वर से लेकर दादा गजराज सिंह तक हर कोई खामोश खड़ा बस इस नजारे को देखता है।
 
हीं दूसरी तरफ मामले की गंभीरता को देखते हुए विराज जज के सामने गजेन्द्र की एंटीसिपेटरी बेल के लिये अप्लाई करता है, जिसे जज साहब इस शर्त के साथ मंजूरी दे देते है कि गजेन्द्र रोज जयपुर पुलिस स्टेशन में अटेंडस लगाने पहुंचेगा।

इसके बाद गजेन्द्र तुरंत अपने पिता और दादा गजराज सिंह के साथ कार में बैठ एम्बुलेंस की गाड़ी का पीछा करते हुए अस्पताल पहुंच जाता है, जहां रिया को एम्बुलेंस से उतारते के साथ इमरजेंसी वार्ड में ले जाया जाता है। कुछ देर तक रिया की हालत की एग्जामिन करने के बाद डॉक्टर सुंधाशु वॉर्ड से बाहर आते हैं और कहते है-

"गोली बहुत नाज़ुक जगह पर लगी है, ब्लड लॉस बहुत ज्यादा है। हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अगले 12 घंटे बेहद क्रिटिकल हैं।"

डॉक्टर की ये बात सुनते ही गजेन्द्र के कदम डगमगा जाते है और वो ऑपरेशन थिएटर के बाहर रखीं कुर्सी पर गिर जाता है। हालांकि कुछ देर में वो खुद को संभालते हुए फिर से खड़ा होता है, और दरवाजे के शीशें से अंदर बेसुध बेड पर लेटी रिया को खड़ा होकर निहारता रहता है। उसके चेहरे पर दर्द का साया है, लेकिन वो चुप है। मानों जैसे गुस्सा और ग़म, दोनों को लहू की तरह अपनी रगों में समेटे खड़ा हो। उसे इस वक्त ना खुद की परवाह थी और ना ही अपने ऊपर लगे इल्जाम की। वो बस भगवान से रिया को ठीक कर देने और उसकी सांसे लौटा देने की भीख मांग रहा था।

तभी पीछे से गजेन्द्र के पापा मुक्तेश्वर आ गए और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहते कहा- "माफ कर बेटा… मैंने उसी को अपना दुश्मन मान लिया जो तेरे सारे दुश्मनों के आगे तेरी ढाल बनकर खड़ी थी।"

अपने पिता की ये बात सुन गजेन्द्र पलटता है और बस एक ही बात कहता है — "इस राजघराने ने पहले मुझसे मेरी मां को छीना… अब अगर रिया को भी कुछ हुआ… तो राजघराने की ये गद्दी सिर्फ खून से नहीं, लाशों से ढकेगी। याद रखना पापा, आपने इन लोगों को माफ किया था, पर मैं नहीं करूंगा।…"

अपने बेटे की आंखों में गुस्से से खौलते खून को देख मुक्तेश्वर डर जाता है। उसे पहली बार अपने बेटे की जुबान अपने पिता गजराज सिंह जैसी लगती है। दूसरी ओर कोर्ट की ओर से मामले की जांच-पड़ताल और रिया के ठीक होने तक केस को टालते हुए केस की अगली सुनवाई 15 दिन बाद की रखी जाती है, जिसके बाद गजेन्द्र का वकील विराज चुपके से जज के करीब जाता है और एक पेन ड्राइव उनके हाथ में थमा देता है —

"सर, गोलीबारी के दौरान ये पेन ड्राइव मैंने खुद सुरक्षित उठाई थी। शायद यही इस केस की असली चाबी है….मुझे यकीन है गजेन्द्र की बेगुनाही का ताला इसी चाभी से खुलेगा।"

विराज की बात को जज साहब गंभीरता से लेते हुए उस पेन ड्राइव की तरफ देख कहते है— “इसे अभी के अभी फॉरेंसिक टीम को सौंपो। इसकी सुरक्षा अब अदालत की जिम्मेदारी है।”

आज के कोर्ट के खूनी तमाशे से लेकर अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही रिया शर्मा तक के हंगामें ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। वहीं इसका सबसे ज्यादा असर राजगढ़ के राजघराना महल के लोगों पर पड़ा, जिनमें से कुछ लोग इस हादसे से खुश थे, तो कुछ की जिंदगी सर से पैर तक बिखर गई थी। 

दूसरी ओर उसी रात जयपुर जेल में भी कुछ बड़ा होने वाला था। दरअसल जेल की सबसे कोने वाली सेल में अंधेरे में बैठे एक कैदी के पास एक कॉन्सटेबल चुपके से एक पर्ची लाता है… और धीरे से उसे कैदी के पास फेंककर वहां से भाग जाता है।

कैदी धीरे से उसको उठाता है— जिसमें सिर्फ एक लाइन लिखी थी, “रिया शर्मा – ज़िंदा है।”

वो शख्स मुस्कुराता है… और पलटकर कॉन्सटेबल की तरफ देखता है। इस दौरान उसके हाथ पर पुराने राजघराने की मोहर का टैटू साफ नजर आता है। लेकिन वो कौन है ये कोई नहीं जानता। तभी वो जेल की सलाखों के पास आता है और खुद से ही बड़बड़ाते हुए कहता है- “अब मेरा असली खेल शुरू होता है...। कैदी नं. 47… लौट आया है गजराज सिंह...हाहाहाहा।”

वहीं अस्पताल में गजेन्द्र ICU के बेड पर लेटी रिया के पास बैठा एक टक बस उसे ही निहारे जा रहा था, कि तभी रिया के बेजान पड़े शरीर में कुछ हरकत हुई। ऐसे लगा जैसे पलभर के लिए रिया की उंगलियां हिली।

ये देख गजेन्द्र बुदबुदाता है- “तुम हारी नहीं हो रिया… ये सिर्फ एक लड़ाई थी… जंग अभी बाकी है…और अब मैं अकेला नहीं, तुम्हारा सच भी मेरे साथ लड़ेगा…।”

रिया के बेजान शरीर में एकदम से तेज-तेज सांसे लेना शुरु कर दिया। ये देख गजेन्द्र घबरा गया और उसने तुरंत डॉक्टरों और नर्स को आवाज लगाई। गजेन्द्र की चीख सुनते ही अस्पताल स्टाफ भागता हुआ कमरे में आया, तो देखा रिया की हालत और भी ज्यादा बिगड़ती जा रही थी। 

इसी बीच डॉक्टर सुधांशु ने गजेन्द्र को रिया के वॉर्ड से बाहर निकलने को कहा- देखिये मिस्टर गजेन्द्र, आपकी बाते रिया के दिमाग पर गहरा असर डाल रही है, जिसकी वजह से दर्द से जूझ रहा उसका शरीर बस जल्द से जल्द उठने की कोशिश कर रहा है। अगर ऐसा दुबारा हुआ तो रिया को हार्ट अटैक भी आ सकता है। मेरी बात मानिये, आप रिया को शांति से गहरी नींद लेने दीजिये, ताकि वो जल्द से जल्द रिकवर कर होश में आये। 

"ज...ज...जी डॉक्टर, मैं अब रिया से एक शब्द भी नहीं कहूंगा। स..स...सॉरी, प...प...पर ये ठीक तो हो जायेगी ना?”

“देखिये फिलहाल कुछ भी कह पाना मुश्किल है, हम कल सुबह रिया को एग्जामिन करने के बाद ही आगे कुछ कह सकते हैं।”

इतना कह जहां डॉक्टर कमरे से बाहर चला गया, तो वहीं गजेन्द्र भी रिया के कमरे से बाहर जाकर खड़ा हो गया। वो दरवाजे के शीशे से बस एक टक बेसूध इंजेक्शन की बेहोशी में सो रही रिया को निहार रहा था।

वहीं, दूसरी ओर गजराज और मुक्तेश्वर राजमहल लौट गए थे। आज के हगांमें से भरे दिन ने दोनों के बूढ़े शरीर को बहुत ज्यादा थका दिया था। जिसकी वजह से जहां गजराज सिंह को जल्दी नींद आ गई, तो वहीं मुक्तेश्वर को एक अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी, जिसकी वजह से वो आधी रात में उठकर महल में टहलने लगा। 

टहलते-टहलते ना जाने कैसे मुक्तेश्वर के कदम प्रभा ताई के कमरे की ओर बढ़ गए। उसने देखा कमरे का दरवाज़ा खुला हैं। वो बाते करने के इरादें से अंदर घुसा, तो उसने देखा कमरे में सब कुछ बिखरा हुआ था, जैसे कोई जल्दबाज़ी में कुछ ढूंढ़ रहा हो।

तभी मुक्तेश्वर की नजर कमरे के दूसरे कोने पर पड़े एक भारी लकड़ी के संदूक पर जाती है। उसके ऊपर जमीं धूल की परते देख साफ लगा रहा था कि जिसे शायद कई सालों से किसी ने छुआ भी नहीं था।

मुक्तेश्वर धीरे से उस संदूक को खोलता हैं, तो देखता है कि उसके अंदर कुछ पुराने कपड़े, फोटो एल्बम और… कुछ चिट्ठियाँ रखी हैं। लेकिन तभी उसकी नजर उन चिट्ठियों पर लिखे नाम पर पड़ती है और उसके चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है। वो सब कुछ नीचे फेंक, हड़बड़ाहट में उन चिट्ठीयों को खोलता है— "मेरे अजन्मे बेटे के नाम….जानकी सिंह"

ये पढ़ते ही मुक्तेश्वर के हाथ कांपने लगते हैं। वो पहली चिट्ठी खोलता हैं-

“अगर मेरे साथ कुछ हो जाए, और ये चिट्ठी तुझे मिले मेरे बेटे, तो जानना… तेरे पिता ने तुझे कभी नहीं छोड़ा था।

बस इस हवेली के सच इतने जहरीले थे कि उन्होंने तेरे जन्म से पहले ही तेरे पिता को हम दोनों से दूर कर दिया, लेकिन तू कमजोर मत बनना। तेरे अंदर तेरे सच्चे पिता और मेरा खून है, मेरे बेटे- गजेन्द्र। और मुझे यकीन है एक दिन तू ही उस राजघराने का सच दुनिया के सामने लायेगा और मेरी मौत का इन्साफ भी करेगा।”

अपनी पत्नी जानकी की चिट्ठी पढ़ मुक्तेश्वर की आंखों से आंसू बहने लगे। रोते-रोते वो बेसुध हो फर्श पर बैठ गया। उसकी घुटन अब और भी ज्यादा बढ़ गई थी, मानों जैसे अपने ही वजूद के नीचे दब गया हो। राजघराने के साथ अपने खून के रिश्ते पर अब उसे घिन्न आ रही थी।

तभी पीछे से प्रभा ताई की आवाज आती है— “अब समझ में आया, जानकी ने क्यों कहा था कि अगर कोई सच बता सकता है, तो वो सिर्फ उसकी चिट्ठियाँ होंगी।”

प्रभा ताई की आवाज सुन मुक्तेश्वर झटके से उठ खड़ा होता है और कांपती हुई आवाज में बोलता है— “अब देर नहीं कर सकता। गजेन्द्र को इन चिट्ठियों की जरूरत है… और मुझे अपनी बेगुनाही साबित करने की।”

इतना कह मुक्तेश्वर उन चिट्ठियों को लेकर सीधे अपने कमर में चला जाता है। वो अगली सुबह उन चिट्ठियों को लेकर अपने बेटे गजेन्द्र से मिलने के बारे में सोचता-सोचता कब सो जाता है, उसे पता भी नहीं चलता। 

आग-आग… भागों। आग-आग… भागों...।

राजघराने के एक कमरे में ना जाने कैसे आग लग जाती है, चारों तरफ अफरा-तफरी मच जाती है। इस शोर से जब मुक्तेश्वर की नींद टूटती है, तो वो देखता है कि आग उसी के कमरे में लगी है। वो भागकर कमरे का दरवाजा खोलता है और सीधे बाहर निकल जाता है।

दूसरी ओर नौकर पानी की बालटियाँ ला मुक्तेश्वर के कमरे के अंदर फेंकने लगते है। इसी दौरान वहां गजराज सिंह आ जाता है और मुक्तेश्वर को गले लगाते हुए पूछता है— तू ठीक तो है मुक्तेश्वर बेटा?

अपने पिता गजराज सिंह के मुंह से बीस साल बाद बेटा सुन मुक्तेश्वर भावुक हो जाता है और उसकी आंखे से आंसू छल्क जाते है। लेकिन तभी उसे अपनी पत्नी जानकी की चिट्ठियों की याद आती है और वो आग में झुल्स रहे अपने कमरे में कूद जाता है, लेकिन जैसे ही उसकी नजर मेज पर रखी उन चिट्ठियों पर पड़ती है वो देखता है कि सारी चिट्ठिया जलकर राख हो गई है। 

दूसरी ओर आज की सुबह गजेन्द्र के लिये भी किसी भारी परीक्षा से कम नहीं थी। वो डॉक्टरों का रिया को एग्जामिन कर उसके वार्ड से बाहर आने का इंतजार कर रहा था। उसकी आंखें अभी भी एकटक दरवाजे के शीशे से अंदर ही झांक रही थी। करीब आधे घंटे बाद डॉक्टर और दो नर्से रिया को एग्जामिन कर बाहर आई, जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला… वैसे ही गजेन्द्र ने अपने सवाल पूछना शुरु कर दिया—

“डॉक्टर वो ठीक तो है ना? रिया अब खतरे से बाहर है ना…? वो जल्द ठीक हो जायेगी ना—?”

लेकिन डॉक्टर गजेन्द्र के किसी भी सवाल का जवाब नहीं देता, बल्कि वो ही पलटकर गजेन्द्र से एक ऐसा सवाल पूछता है, जिसे सुन उसके होश उड़ जाते है—ये कैदी नंबर 47 कौन है और इसका रिया ये क्या रिश्ता है?

 

क्या है कैदी नंबर 47 संग जर्नलिस्ट रिया शर्मा का रिश्ता? 

मुक्तेश्वर के कमरे में लगी आग का राज कैसे आएगा सामने? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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