मुक्तेश्वर के उस जोरदार चाटे से सिर्फ रिया ही ज़मीन पर नहीं गिरी थी, बल्कि उसका वो भरोसा भी गिर गया था, जो उसकी आंखों में था कि गजेन्द्र की तरह ही उसके पिता भी उसे पसंद करते है। उसके गाल पर ताज़ा पड़े थप्पड़ की जलन से ज्यादा, आँखों में टूटते भरोसे की बेबसी साफ नजर आ रही थी।
रिया उस फोन कॉल को लेकर अपनी सफाई में मुक्तेश्वर से कुछ कहती उससे पहली ही गजेन्द्र दोनों के बीच में आ गया और उसने पूरी ताकत से अपने पिता मुक्तेश्वर को पीछे रिया से दूर धकेल दिया। इसके बाद जो शब्द गजेन्द्र ने अपने पिता मुक्तेश्वर से कहे, वो सीधे उसके दिल पर जाकर चुभें- “बस करिए पापा, ये राजघराना महल या फिर रिया आपकी जागीर नहीं है! रिया ने मेरी जान बचाई है और वो लगातार अपनी जान पर खेल कर मेरा साथ दे रही है। ऐसे में आप उसे ऐसे धक्का दे रहे हैं, थप्पड़ मार रहे है… आखिर क्यों? आप क्या चाहते है कि मां की तरह ये भी मुझसे दूर हो जाये… और वो भी आपकी गलतियों की वजह से?”
गजेन्द्र की बाते सुन मुक्तेश्वर का गुस्सा अब हैरानी में बदल जाता है, कि आखिर गजेन्द्र ऐसा क्यों कह रहा था? पिछले बीस सालों में तो उसने कभी कोई ऐसी बात नहीं कहीं थी, फिर आज इस तरह अचानक…ये ही सोचता हुआ मुक्तेश्वर अपनी सफाई में गजेन्द्र से कुछ कहने ही वाला था कि तभी रिया बोल पड़ती है- “सुनो गजेन्द्र… मुझे जाने दो। आपके पिता को सिर्फ अपनी नफरत की कहानी सुनाई देती है, किसी का सच नहीं। सिर्फ एक फोन कॉल से ही उन्होंने ये समझ लिया कि मैं तुम्हारी दुश्मन हूं, तो अब मुझे कुछ नहीं कहना।”
इतना कह रिया मुड़कर पुलिस स्टेशन से बाहर जाने लगती है, लेकिन तभी वहीं गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर की एंट्री होती है। इतना ही नहीं वो आते के साथ कुछ ऐसा कहता है, जिसे सुन वहां मौजूद सभी लोग दंग रह जाते है।
“रिया कहीं नहीं जाएगी…। क्योंकि अब से ये सिर्फ केस नहीं, साज़िशों के महल राजघराना की आखिरी जंग है। और इस जंग में रिया सिर्फ गवाह ही नही है, वो सबूत भी है… और शायद राज़ भी।”
जहां एक तरफ विराज प्रताप राठौर मुक्तेश्वर और गजेन्द्र को आगे के केस के बारे में समझा रहा था, तो वहीं दूसरी ओर राजगढ़ के राजघराना में एक नया ही तमाशा चल रहा होता है। जहां गजराज सिंह अपने पूरे परिवार की सभा के साथ बैठा मुक्तेश्वर के महल में लौटने का इंतजार कर रहा था। राजघराना महल का माहौल तो ठंडा होता है, लेकिन सबके चेहरों पर अंदर ही अंदर जैसे लावा खौल रहा होता है। राज राजेश्वर, राघव भोंसले, प्रभा ताई, सब अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठे थे कि तभी वहां मुक्तेश्वर की एंट्री हुई… जिसके बाद गजराज ने कुछ ऐसा कहा, जिसमें उसका बीस साल का दर्द साफ झलक रहा था।
“बीस साल पहले राजघराना महल की दीवारों में जो दरार पड़ी थी, आज वो खाई बन चुकी है। भले ही मुक्तेश्वर वापस लौटा है… लेकिन उसे गद्दी नहीं, इन्साफ चाहिए। और मैं अब उसे वो मौका दूंगा।”
अपने पिता गजराज सिंह की ये बात सुनते ही राज राजेश्वर चौक जाता है। हालांकि वो अपनी परेशानी को अपनी हंसी के पीछ छुपाते हुए ताली बजाने लगता है और कहता है- “वाह! गद्दी पर बैठा बूढ़ा शेर, अब खुद ही शिकार की पैरवी कर रहा है?”
राज राजेश्वर आगे कुछ कहता उससे पहले प्रभा ताई बोल पड़ी। हैरान करने वाली बात ये थी कि प्रभा ताई पहली बार मुक्तेश्वर के पक्ष में बोल रही थी- “कभी तूने हवेली के बाहर देखा होता, तो समझ आता…शिकार कौन है और शिकारी कौन बन गया है? पिता जी जो कह रहे हैं, उसे समझने की कोशिश कर राज राजेश्वर!”
प्रभा ताई के ताने सुन राज राजेश्वर गुस्से से आग-बबूला हो जाता है, और तिलमिलाता हुआ वहां से सभा छोड़कर चला जाता है। जिसके बाद एक-एक कर घर के बाकी लोग भी अपने-अपने कमरे में चले जाते है। सबके जाने के बाद जब प्रभा ताई वहां अकेली रह जाती है, तो वो अपनी सबसे पुरानी नौकरानी चंदा दाई को इशारा कर राजघराना महल के तहखाना में चलने का इशारा करती है।
प्रभा ताई और चंदा दाई अकेले दोनों उस तहखाने में जाते है और वहां रखे एक बहुत पुराने संदूक को खोलते है, जिसमें मुक्तेश्वर की पत्नी जानकी की डायरी और कुछ वीडियो टेप्स थे। उने देख चंदा दाई कांपती आवाज़ में कहती है- “छोटी ठकुराइन ये वो रिकॉर्डिंग… जिसमें राघव और राज राजेश्वर, जानकी को रेस फिक्सिंग के केस में चुप कराने की बात करते हैं और...”
“श्श्..श्… धीरे बोल चंदा, किसी ने सुन लिया तो दोनों की कब्र यहीं खोद देंगे। राघव भले ही मेरा पति हो, और भले ही मुझे इस राजघराना हवेली की गद्दी का लालच हो… पर जानकी के साथ जो उस रात हुआ, मैं एक औरत होकर उसके गुनहगारों का साथ अब और नहीं दे सकती। मुझे यकीन है अब मुक्तेश्वर जानकी के खून का हिसाब लेगा और उसका बेटा गजेन्द्र गद्दी तक पहुंचेगा।”
"प...प...पर आप चाहती है छोटी ठकुराइन..?”
"जानकी के साथ इंसाफ… और भले ही इसमें मैं मुक्तेशर का साथ सीधे सामने तौर पर ना दूं, लेकिन मैं उसकी ढ़ाल बनने से बिल्कुल पीछे नहीं हटूंगी।"
जहां एक तरफ राजघराना की हवेली में रिश्तों का समीकरण बदलने लगा, तो वहीं दूसरी ओर बेल पर जेल से बाहर आया गजेन्द्र अपने दादा गजराज या पापा मुक्तेश्वर सिंह से मिलने के बजाये सबसे पहले जर्नलिस्ट रिया शर्मा से मिलने एक कॉफी हाउस में जाता है। जहां दोनों काफी देर तक बस एक-दूसरे को देखते रहते हैं। गजेन्द्र को समझ नहीं आता कि आखिर वो रिया से अपने पिता के किए बर्ताव के लिये माफी कैसे मांगे? काफी देर की खामोशी के बाद आखिरकार रिया बोलती है- “मैं जर्नलिस्ट हूं… सबूत खोजती हूं, कहानियां नहीं। लेकिन तुम्हारे साथ… मुझे हर सच के पीछे एक रिश्ता दिखाता है गजेन्द्र।”
रिया की बात से गजेन्द्र के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून आ जाता है और वो पलटकर कुछ ऐसा पूछता है, जिसे सुन रिया शर्म से लाल हो जाती है…“सुनो रिया अगर कल के बाद मैं इस केस से बाहर आया… तो क्या तुम हमारे इस रिश्ते को कोई नाम देना पसंद करोगी?”
दुनिया की नजरों के सामने बेबाक जर्नलिस्ट का खिताब अपने नाम करने वाली रिया कुछ नहीं कहती, लेकिन उसकी आंखें, जो शर्म से झुक जाती है...वो जवाब दे देती हैं।
जहां एक तरफ गजेन्द्र अपनी नई प्रेम की दुनिया को रिया संग सजाने के सपने देख रहा होता है, तो वहीं दूसरी ओर उसके चाचा राज राजेश्वर और फूफा राघव भौसंले एक अंधेरे कमरे में किसी विदेशी शूटर से बात कर रहे थे। इस दौरान राजघराने की कुर्सी हाथ से जाने के डर से तिलमिलाया राज राजेश्वर उस शूटर को ऑर्डर देता है- “कल कोर्ट में बहस से पहले… गजेन्द्र को खत्म कर दो। और वो पेन ड्राइव… उसे जला दो, उस रिपोर्टर रिया शर्मा के साथ।”
ऑर्डर देने के साथ ही राज राजेश्वर फोन काट देता है और राघव भौंसले की तरफ देखते हुए एक अजीब शैतानी हंसी हंसता है। दोनों की रात कल के इंतजार में बड़ी मुश्किल से कटती है। दोनों को सुबह से काफी उम्मीदें होती है। ऐसे में दोनों सुबह जल्दी तैयार होकर कोर्ट के लिये निकल जाते है। वहीं गजराज भी मुक्तेश्वर के साथ कोर्ट पहुंचता है और गजेन्द्र के आने का इंतजार करने लगता है।
गजेन्द्र के केस की सुनवाई शुरु होने में अब सिर्फ 10 मिनट रहते है, लेकिन वो अब तक कोर्ट नहीं पहुंचा। ऐसे में जहां एक तरफ इस बारे में सोच-सोच कर मुक्तेश्वर और गजराज सिंह के चेहरे पर पसीना आने लगता है। वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर अपने दाई तरफ खड़े राघव भौंसले से कहता है- "लगता है शूटर ने अपना काम कर दिया"
"सहीं कह रहे हो, इसलिए अभी तक गजेन्द्र और वो चालाक लोमड़ी रिया शर्मा कोर्ट नहीं पहुंचे…हाहाहाहा!”
कोर्ट के बाहर खड़ा राघव भौंसले अभी अपनी खुशी पूरी तरह मना भी नहीं पाता कि उसकी नजर सामने से आ रहें गजेन्द्र, रिया शर्मा और विराज प्रताप राठौर पर पड़ती हैं। तीनों एक साथ कार से निकलकर कोर्ट के अंदर आ रहे होते है। इस दौरान रिया के हाथ में वो पेन ड्राइव भी साफ नजर आ रही थी, जिसे देख राघव और राज राजेश्वर दोनों का चेहरा सफेद पड़ जाता है।
सबके फीके चेहरे देख गजेन्द्र धीरे से रिया के कानों में कहता है- “सबकी नजरें तुम्हारे हाथों की तरफ है, ध्यान रखना आज अगर तुम कांप गई… तो एक इतिहास फिर से झूठ में दब जाएगा। और एक बेगुनाह फिर से गुनहगारों के आरोप के नीचे दब जायेगा”
रिया ने एक नजर गजेन्द्र की तरफ देखा और पलटकर बोली- “मैं कांपूंगी नहीं… लेकिन अगर मर गई, तो भी रिकॉर्डिंग ज़िंदा रहेगी। मैंने पहले से सारे इंतजाम कर दिये थे।”
सभी लोग कोर्टरूम में दाखिल होते हैं और अपनी-अपनी जगहों पर बैठ जाते हैं। तभी जज के साथ खड़ा दरबान गूंजती आवाज़ में एलान करता है — 'The Honourable Court is now in session.' चारों ओर एकदम सन्नाटा छा जाता है, लेकिन जैसे ही कोर्ट रुम में गजेन्द्र की एंट्री होती है लोग हाय-हाय के नारे लगाने लगते है। तभी जज की आवाज गूंजती है-
"Order in the Court! Silence, please."
और इसी के साथ अदालत के दरवाजे बंद होते हैं और पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा छा जाता है। विराज प्रताप राठौर और रणविजय बजाज दोनों अपने-अपने क्लाइंट के साथ खड़े होकर जज के सामने आदर में सर झुकाते है, जिसके बाद जज कार्रवाई शुरु करने का ऑर्डर देते हैं।
इसी के साथ दोनों वकील तनाव और गुस्से से भरी नजरों से एक दूसरे की तरफ देखते है। और चंद मिनट में ही दोनों वकीलों के बीच में एक घनी बहस शुरू हो जाती है। इस दौरान केस की शुरुआत करते हुए आरोपी पक्ष से वकील रणविजय बजाज कहता है-
"आपके क्लाइंट गजेन्द्र सिंह ने एक घोड़े की रेस में फिक्सिंग की है, राठौर साहब। ये सिर्फ आरोप नहीं, बल्कि सबूतों से भरपूर मामला है। हम सब जानते हैं कि गजेन्द्र सिंह ने करोड़ों रुपए लेकर रेस को फिक्स किया, और ये सबूत तो अब हर किसी के सामने खुद मीडिया ने लाइव टेलिकास्ट कर दिखाये है, क्यों मिस जर्नलिस्ट रिया शर्मा… सही कहा ना मैंने?"
जवाब में विराज प्रताप राठौर थोड़ी तंझी हुई आवाज के साथ अपने क्लाइंट का पक्ष रखता है-
“आपका 'सबूत' कितना भी मजबूत हो, बजाज साहब, लेकिन कोर्ट रुम में केवल सच ही खड़ा रह पाता है...और सच क्या है, वो मैं आज और अभी यहीं सबके सामने पेश करूंगा। जो खुद बतायेंगे कि रेस फिक्सिंग केस में गजेन्द्र का कोई हाथ नहीं है। और जरा ये तो बताइये कि आप किस सबूत की बात कर रहे हैं? क्या आपने कोई गवाह पेश किए? या फिर कोई चश्मदीद गवाह है आपके पास?”
विराज राठौर सी सीधी तीर जैसी बाते सुन न्यायालय तालियों की आवाज से गूंज उठता है, जिसके बाद रणविजय बजाज चिढ़ते हुए कहता है-
"बातों से नहीं सबूतों से अपने क्लाइंट को बचाने की कोशिश कीजिए राठौर साहब। और आपको क्या लगता है ये रिया शर्मा... क्या ये किसी फिल्म की हीरोइन है, जो पहले हीरों से नफरत करती है तो दुनिया के सामने उस पर कीचड़ उछाली और अब प्यार हो गया, तो साथ देने आ गई। तो जज साहब मैं बता दूं कि रिया शर्मा भी गजेन्द्र के साथ इस फिक्सिंग केस में शामिल है।"
विरोधी पक्ष की ये सारी बाते सुन विराज अपनी आवाज बुलंद करते हुए पलटवार करता है और कहता है- "सुनिए रणविजय, आपको अपने शब्दों की मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। ये अदालत है, कोई आपका मुहल्ला नहीं, जहां आप लोगों की निजी जिंदगी में झांकते फिरें।
दोनों के बीच केस से परे बहस होती देख जज साहब भड़क जाते है और अपने इंसाफ के हथौड़े को टेबल पर ठोकते हुए कहते है-
"Enough! Mr. Bajaj, Mr. Rathore... इस अदालत में किसी भी तरह की बहस की अनुमति नहीं है। मैं चाहूंगा कि आप दोनों सिर्फ तथ्यों पर बात करें। अगर आप दोनों ने अदालत का समय बर्बाद किया, तो परिणाम भुगतने होंगे।"
जज की तीखी आवाज और धमकी सुनकर दोनों वकील चुप हो जाते हैं, और तभी गजेन्द्र का वकील विराज राठौर मामले को गंभीरता की तरफ मोड़ते हुए कहता है, बता दूं जज साहब... रिया शर्मा सिर्फ पत्रकार नहीं, बल्कि हमारे केस की एक सबसे अहम गवाह है। जिसे मैं कटघरे में बुलाने की इजाजत चाहता हूं।"
लंबी बहस के बाद विराज कोर्ट में अपने पहले और सबसे अहम गवाह जर्नलिस्ट रिया शर्मा को पेश करने की इजाजत मांगता है, जिसे जज साहब ग्रांट कर देते है।
रिया के कटघरे में आते ही विराज कहता है- "Your Honour, हम सिर्फ सच्चाई का साथ दे रहे हैं। गजेन्द्र सिंह ने जो रेस जीती है, वह पूरी तरह से कानूनी तरीके से जीती है। जो आरोप उस पर लगाए गए हैं, वे पूरी तरह से बेबुनियाद और झूठे है। इसके लिए मैं आपके सामने रिया की गवाही के साथ-साथ एक पेन ड्राइव भी पेश करूंगा, जिसमें गजेन्द्र का नाम नहीं, बल्कि उसके खिलाफ साजिश करने वाले लोगों के नाम का खुलासा होगा, जो देश में ना जाने कितने सालों से रेस फिक्सिंग की सट्टेबाजी का खेल खेल रहे है।"
विराज राठौर का पक्ष सुनते के साथ रणविजय बजाज उस पर पलटवार करता है और जानबूझ कर केस में देरी करने की कोशिश करता है, "बाते नहीं सबूत पेश करिए राठौर साहब, अदालत का समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है।"
दोनों के बीच एक बार फिर बहस छिड़ती देख जज साहब नाराज हो जाते है और चिल्लाकर कहते है- “Enough! Mr. Bajaj, I’ve already warned you. Present the evidence, or else we will proceed with the hearing.”
जज के इस ऑर्डर के साथ कोर्ट रुम में सन्नाटा पसर जाता है... कोर्ट में सबकी निगाहें पेन ड्राइव और उन दोनों वकीलों के चेहरे पर टिकी होती है।
इसके बाद जैसे ही जर्नलिस्ट रिया शर्मा गवाही देने के लिए कटघरे में पहुंचती है, वो पेन ड्राइव को मेज पर रखते हुए जज की ओर देखती है। जज साहब सामने रखी फाइलें पलटते है… और ये नजारा देख कोर्ट रूम की हवा और राघव भोंसले की घबराई सांसों के बीच, घड़ी की टिक-टिक और तेज़ हो जाती है...।
इसके बाद रिया गजेन्द्र के पक्ष में अपनी गवाही पेश करने ही वाली होती है कि तभी कोर्टरूम के अंदर जोरदार धमाके जैसी आवाज़ होती है। एक बिजली सी चमकती है... और अगले ही पल, रिया की आंखें चौंधिया जाती हैं। वो अपनी आंखों को मलते हुए खोलने की कोशिश करती है, तो देखती है कि- कोर्ट में अफरातफरी मच जाती है। तभी किसी की चीख सुनाई देती है — “रिया को गोली लगी है!”
कटघरे के पास खून के छींटे पड़े थे...
आखिर किया हुआ जर्नलिस्ट रिया शर्मा के साथ?
पुलिस फोर्स की मौजूदगी में कोर्ट रुम के अंदर किसने मारी रिया को गोली?
अब क्या होगा गजेन्द्र के साथ?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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