रिया शर्मा के दिल की धड़कनें बहुत तेज़ थीं। वहीं जब दुबारा उसका फोन बजा तो उसकी घंटी की आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी और डर के मारे उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन उसने जब स्क्रीन की तरफ देखा तो उसकी किसी दोस्त का फोन था। ऐसे में उसने फोन काट दिया और खुद से ही बात करने लगीं- "मुझे अभी के अभी जेल के पिछले दरवाजे पर पहुंचना होगा, वरना वो लोग गजेन्द्र को मार डालेंगे।"

ये ही बड़बड़ाते हुए रिया के हाथ से चाय का कप गिर गया और वो तुरंत अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ी। इस दौरान पूरे रास्तें उसे बस गजेन्द्र की ही चिंता सता रही थी। वो बार-बार खुद से सवाल कर रही थी- "गजेन्द्र ठीक तो होगा ना.. उस आदमी ने कहा था मुझे जरा भी देर हुई, तो वो गजेन्द्र को मार डालेगा। मुझे गाड़ी की स्पीड और बढ़ाने की जरूरत है।"

जहां एक तरफ रिया शर्मा को कार चलाते हुए भी लगातार गजेन्द्र की चिंता सता रही थी, तो वहीं दूसरी ओर राजगढ़ हवेली में जश्न का माहौल अपने चरम पर था। बाहर आतिशबाजी हो रही थी, लेकिन भीतर कुछ और ही धमाके की तैयारी थी। 

प्रभा ताई, राघव भोसलें और राज राजेश्वर तीनों हवेली के पिछले हिस्से के एक सीकेट रूम में बैठे थे। और उनके सामने टेबल पर एक नक्शा फैला हुआ था – जेल का, महल का और अदालत के मुख्य न्यायालय का। तीनों आपस में उस नक्शे को काफी ध्यान से देख रहे थे। इसी बीच प्रभा ताई बोलीं- “अब वक्त है आखरी वार का। कल पांचवा दिन है, और जैसा राघव ने कहा था… कल से पहले सब खत्म होना चाहिए।”

प्रभा ताई की ये बात सुनते ही राज राजेश्वर ने गुस्से से तिलमिलाये स्वर में कहा- “गजेन्द्र को जेल में ही खत्म कर दो। बाहर आया तो मेरे रास्ते का सबसे बड़ा कांटा बन जाएगा।”

दोनों भाई-बहनों की बात सुनने के बाद राघव ने अपनी तैयारी और गजेन्द्र की आखरी रात का जिक्र करते हुए कहा- “सब तैयारी हो चुकी है। आज रात का इंतज़ार करो। आज सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी…”

इस दौरान इस प्लानिंग के बीच एक बात बेहद अजीब हुई, जिसे राज राजेश्वर ने भी नोटिस किया। दरअसल जिस वक्त ये राज राजेश्वर और राघव गजेन्द्र की मौत की प्लानिंग का जश्न मना रहे थे, उस वक्त प्रभा ताई फोन पर किसी से बाते कर रही थी और कह रही थी, कि उसका ख्याल रखना.. उसे एक भी खरोच नहीं आनी चाहिये। 

जयपुर जेल – देर रात 11:15 बजे

रिया शर्मा, जेल के पीछे वाले गेट पर पहुंच चुकी थी। वहां अंधेरा था और चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। उसने चारों तरफ जब नजर घुमाई तो अधेंरे में एक काला साया खड़ा नजर आया। उस साये ने जैसे ही रिया की तरफ कदम बढ़ाया, रिया ने तुरंत अपने बैग से पेपर स्प्रे निकाल लिया और चिल्लाकर बोली।

“कौन हो तुम? और क्या चाहते हो?”
 
उस काले साये वाले आदमी ने धूरे से जवाब में कहा- “डरो मत मैडम… मैं गजेन्द्र की गैंग का वो कैदी हूं जिसने उसकी जान बचाई थी। आपके लिये संदेश है – गजेन्द्र पर आज रात हमला होने वाला है। जेल के अंदर के कुछ अफसर बिक चुके हैं… वो उसे मार डालना चाहते है। हमें अगर उसे बचाना है तो आज और अभी ही कुछ करना होगा।”

रिया कुछ सोच ही रही थी कि तभी उसकी आंखों के सामने जेल की छत की तरफ एक परछाई सी दिखी – और फिर धड़ाम! एक छोटा सा ब्लास्ट हुआ, जिसकी आवाज़ से रिया सहम गई और चिल्लाकर बोली- “हे भगवान! गजेन्द्र!”

उसी वक्त राजघराना हवेली का नजारा बिल्कुल अलग था। मुक्तेश्वर अपने कमरे में बैचेन टहल रहा था। बीते कल की घटनाएं उसके मन में हलचल मचा रही थीं। गजराज सिंह की बातें, गजेन्द्र की मासूम आंखें, जानकी के अंतिम शब्द… और फिर आज रिया का झलकता चेहरा – सब एक साथ घूम रहे थे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि वो क्या करें?

तभी मुक्तेश्वर के कमरे का दरवाजा खुला। सामने खड़ी थी एक बूढ़ी पर तेज़ आंखों वाली महिला – मालकिन चंदा – जो एक ज़माने में राजघराने की राजदाईन रह चुकी थी, और पिछले बीस साल से निर्वासन में थी।

“मुक्तेश्वर… समय आ गया है, जब आपको जानकी की आखिरी बातों की असली सच्चाई बतानी चाहिए।”

दाई की वो बात सुनते ही मुक्तेश्वर चौक जाता है, उसे समझ नहीं आता आखिर वो दाई किस राज की बात कर रही है। और आखिर बीस साल बाद अचानक उसके महल लौटने की वजह क्या है? ऐसे में मुक्तेश्वर चौक कर पुछता है- “आप…यहां इतने सालों बाद?”

मैं मेरी जिंदगी की आखरी सांसे गिन रही हूं। ऐसे में मैं अपने पापों का प्रश्चाताप करना चाहती हूं, मैं जो कहना चाहती हूं, तुम उसे ध्यान से सुनों-” 

"दरअसल जानकी की मौत एक हादसा नहीं था, उसे मारा गया था। और वो भी… राघव भोसलें के कहने पर। वो सब जानती थी – हवेली की रेस फिक्सिंग की डील, हवेली की ब्लैक मनी, और राज राजेश्वर की असलियत।”

दाई की ये बात सुनते ही मुक्तेश्वर के रौंगटे खड़े हो गए, क्योंकि ये वो सच था जो जानकी ने मरने से पहले भी नहीं बताया था। ब्लकि उसने तो हवेली का कोई और ही राज खोला था। ऐसे में मुक्तेश्वर ने उस बूढ़ी दाई से उसके आरोपों के सबूत मांगे और बोला- “क्या सबूत है आपके पास?”

“वो सबूत अब रिया शर्मा के पास हैं… और अगर वो लड़की बच गई, तो गजेन्द्र भी बच जाएगा। वरना इस राजघराने की एक और कहानी अधूरी रह जाएगी।”

दूसरी ओर जेल का नजारा – ठीक उसी वक्त...

जेल के अंदर तीन खूंखार कैदी गजेन्द्र की सेल में घुसे। इस बार उनके हाथों में लोहे की रॉड और धारदार चाकू सहित और भी कई हथियार थे। वो धीरे-धीरे कर गजेन्द्र की तरफ बढ़ रहे थे। उनके हाथों में धारदार चाकू देख इस बार गजेन्द्र की सांसे उसके मुंह को आने लगी थी। तभी उनमें से जो सबसे लंबा और मोटा था वो गजेन्द्र के बिल्कुल करीब पहुंच गया और अपने चाकू से हमला करने के लिये हाथ को हवा में लहरा दिया, लेकिन जैसे ही उसने पहला वार किया, उसी वक्त जेल का अलार्म बज उठा….

सायरन
“Attention! Block C breached. Unauthorized movement detected.”

गजेन्द्र ने मौका देखकर अपने साथियों की मदद से एक को नीचे गिरा दिया और दूसरे को पीछे धकेल कर दरवाजे की तरफ भागा और दरवाजा खेल दिया। गजेन्द्र अपने साथियो के साथ दायं-बायं बस वहां से निकलने का रास्ता तलाश रहा था। कि तभी अचानक वहां ना जाने कहां से जर्नलिस्ट रिया शर्मा एक पुलिस फोर्स के साथ आ गई।

“हाथ ऊपर करो! ये हमला जेल प्रोटोकॉल का उल्लंघन है!”

पुलिस ने तुरंत तीनों कैदियों को पकड़ लिया। जेलर सहित तीनों हमलावर कैदी हक्के-बक्के रह गए। हैरान करने वाली बात ये थी कि ना जाने कहां से रिया के पास जेल के अंदर का एक वीडियो भी था, जिसमें जेलर एक मास्क पहने आदमी से इस हमले के लिये रिश्वत लेता नजर आ रहा था। 

गजेन्द्र पर हुए इस हमले की राजघराना हवेली में किसी को भनक तक नहीं लगी। लेकिन ना जाने क्यों आगली सुबह हवेली का नजारा रोज से थोड़ा अलग था– हवेली में सन्नाटा था। इस बीच गजराज सिंह ने घर के सदस्यों को मुख्य हॉल में इकट्ठा होने का फरमान सुनाया। एक-एक कर जैसे ही घर के सारे लोग इकट्ठा हुए गजराज सिंह एक बड़े से सोफे पर पूरे शाही अंदाज में एक पैर पर दूसरा पैर को चढ़ा कर बैठ गए और बोले….

“अब वक्त है सच्चाई को उजागर करने का और साथ ही ये बताने का कि मेरे घर में सेंध मेरे अपने ही लगा रहे हैं। तो मैं उन्हें बता दू कि शेर बूढ़ा भी हो जाये, तो भी शेर ही रहता है। गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर ने वो सच ढूंढ निकाला, जो पिछले बीस सालों में नहीं निकाल पा रहा था। बता दूं गजेन्द्र के केस की सुनवाई अगले महीने की पहली तारीख को होने वाली है और विराज सारे सबूत उस दिन पेश करेगा।

गजराज की बातें और उनका तीखा रवैया देख प्रभा ताई का चेहरा पीला पड़ गया। वहीं राघव भोसलें गुस्से में बाहर निकल गया। लेकिन इससे पहले कि वो हवेली से बाहर निकलता, दरवाजे पर वकील विराज प्रताप सिंह राठौर से उसकी टक्कर हो गई। ऐसे में विराज ने उसे टोकते हुए कहा- “मिस्टर राघव भौंसले, लगता है कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी में है। या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि मुंह छिपाने की जगह तलाशने जा रहे है।”

वकील विराज प्रताप की बात सुन राघव भौंसले ऊपर से नीचे तक तिलमिला उठा। और आवाज को बुलंद करते हुए बोला- कहना क्या चाहते हो मिस्टर राठौर? ज्यादा हवा में उड़ने की जरूरत नहीं है, वरना कहीं ऐसा ना हो… कब्र किसी ओर के लिये खुदी, लेकिन दफनाया कोई ओर गया। 

इतना कहकर राघव भौंसले वहां से चला जाता है। लेकिन उसके शब्दों का विराज पर कोई असर नहीं होता। क्योकि विराज किसी मामूली परिवार से ताल्लुक़ नहीं रखता था, बल्कि वो शहर के सबसे बड़े शाही वकील खानदान मारवाड़ों के ठाकुर का एकलौता वारिस है। ऐसे में वो राघव भोसलें जैसे दल्ले आदमी को पलटकर कुछ नहीं कहता और सीधे महल के अंदर गजराज सिंह से मिलने चला जाता है। 

वही दूसरी तरफ राजघराना महल की दीवारों के अंदर मुक्तेश्वर का दम ये सोच-सोच कर घुट रहा होता है, कि ना जाने जेल में उसका बेटा गजेन्द्र कैसा होगा। ये ही सोच कर वो अचानक से अपने कमरे से निकल सीधे अपने बेटे से मिलने जयपुर पुलिस स्टेशन पहुंच जाता है। जहां पहुंचते के साथ सबसे पहले मुक्तेश्वर अपने बेटे गजेन्द्र को गले लगाता है – और कहता है, "तेरी मां की आखिरी इच्छा थी कि मैं तुझे राजघराने की गंदगी से दूर रखूं… लेकिन अब वक्त है इस गंदगी को साफ करने का, और फिर गद्दी तक तुझे ले जाने का।”

उसी वक्त जर्नलिस रिया शर्मा भी पुलिस स्टेशन आ जाती है, लेकिन जैसे ही वो मुक्तेश्वर सिंह को अपने बेटे गजेन्द्र से गले मिलते और इमोशनल बात करते देखती है। वो एक कोने में चुपचाप खड़ी हो जाती है। उसकी आंखों में राहत होती है… लेकिन कहीं एक कोना अपने दिल से लड़ते हुए भी नजर आता है। जो बार-बार उससे ये सवाल करता है कि गजेन्द्र के चेहरे पर खुशी देख उसके दिल को क्यों सुकून मिलता है। वो अभी ये सब सोच ही रही होती है, कि तभी गजेन्द्र की नजर उस पर पड़ती है – और पहली बार वो रिया शर्मा के सामने मुस्कुराता है। दरअसल जब से रिया और गजेन्द्र की मुलाकात हुई थी, हर बार गजेन्द्र किसी ना किसी ऐसी बड़ी मुसीबत में ही होता था कि मुस्कुराना तो दूर की बात है उसके चेहरे से शिकन और परेशानी की लकींरे ही साथ नहीं छोड़ती थी।

वहीं अपने बेटे को जेल की सलाखों के पीछे भी मुस्कुराता देख मुक्तेश्वर को बहुत खुशी मिलती है। वो खुशी से गजेन्दर को छेड़ते हुए कहता है, "लगता है कोई खास रिश्ता है दोनों के बीच?”

गजेन्द्र तुरंत पलट कर कहता है- "ऐसा कुछ नहीं है पापा… दरअसल मुझे इस मैंच फिक्सिंग के केस में पहला धक्का मारने वाली… मेरा मतलब है पहली बार आरोप लगाने वाली जर्नलिस्ट ये ही रिया शर्मा है"

रिया जैसे ही अपना ये इंट्रोडक्शन सुनती है, भागती हुई मुक्तेश्वर के पास आती है और कहती है- "नहीं अंकल वो तो बस मुझे एक गलतफेहमी हुई थी, जो अब दूर हो गई है… और तब से मैं गजेन्द्र को इस झूठे केस से बाहर निकालने के लिये दिन-रात भागदौड़ कर रही हूं।"

“अच्छा, ऐसा है क्या… यानि मैं फालतू में ही सपने देखने लगा?”

गजेन्द्र जैसे ही ये लाइन बोलता है, रिया का चेहरा शर्म से लाल पड़ जाता है। लेकिन तभी दुबारा उसका फोन बजता है और वो फोन उठाने ही वाली होती है, कि तभी मुक्तेश्वर उसकी फोन स्क्रीन पर फ्लैश हो रहे नंबर देख उसे फोन उठाने से रोक देता है और गुस्से में चिल्लाकर पूछता है- तुम इस आदमी को कैसे जानती हो…? आखिर कौन हो तुम…? सुनों मेरे बेटे से दूर रहो, वरना तुम्हारी जान लेने से पहले मैं एक बार भी नहीं सोचूंगा। दूर हटो मेरे बेटे से...।

इतना कहने के साथ मुक्तेश्वर रिया को जोर से धक्का देकर जमीन पर गिरा देता है। कुछ देर पहले उससे अच्छे से बात कर रहे मुक्तेश्वर की अचानक से आई ऐसी प्रतिकिया और गुस्सा देख रिया डर से सहम जाती है। और वो गजेन्द्र से बात करने के लिये एक बार फिर से खड़ी हो उसकी तरफ बढ़ती ही है, कि तभी मुक्तेश्वर उसे एक जोरदार चाटा मार देता है।

"पापा, ये क्या किया आपने.. क्या आप मेरी खुशियों में कभी खुश नहीं हो सकते। मैं जिसे पसंद करता हूं, आप उसे अपनी नफरत से मेरी जिंदगी से आखिर क्यों निकाल फेंकते है। आखिर क्या गलती है रिया की...?"


आखिर क्या गलती की थी रिया ने जिसकी वजह से मुकेश्वर उस पर इतना ज्यादा गुस्सा हो गया? 

किसका फोन आया था रिया को, जिसका नंबर देखते ही मुक्तेश्वर ने मार दिया उसे जोरदार चाटा...? 

 जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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