राजगढ़ हवेली में जैसे ही मुक्तेश्वर, गजेन्द्र और गजराज सिंह की वापसी हुई, वैसे ही हवेली के बुजुर्ग दरबारी और सेवक कुछ अनकहे डर में डूबे हुए नजर आये। जहां एक ओर हवेली के बाहर शाही ढोल-नगाड़े बज रहे थे, तो वहीं हवेली के एक कौने में बीस साल बाद फिर साजिश की बिसात बिछाई जा रही थी। प्रभा ताई को मुक्तेश्वर का अपने बेटे गजेन्द्र के साथ लौटना बिल्कुल पसंद नहीं आया था। ऐसे में प्रभा ताई, कमरे के कोने में कुर्सी पर बैठी किसी से बात कर रही थीं। दरअसल ये आदमी कोई नहीं, रेस फिक्सिंग माफिया किंग राघव भोसलें था। 

राघव भोसलें और प्रभा ताई के बीच गहरा कनेक्शन था। दरअसल प्रभा ताई ने बीस साल पहले राघव भोसलें के लिये ही अपने पिता गजराज से बगावत की थी। इतना ही नहीं वो उसे घर जमाई बनाकर राजघराना के महल में भी ले आई थी। और तभी से शुरु हुआ था राजघराना महल में असली गद्दी का खेल। राघव और प्रभा ताई गजेन्द्र के साथ भी वहीं करना चाहते थे, जो उसके पिता मुक्तेश्वर के साथ किया था और उसे राजगद्दी के हकदार की लिस्ट से बाहर करने के लिये भाई-बहन के रिश्ते को ही शर्मसार नहीं किया, बल्कि हैवानियत की हद तक पार कर दी थी।

वहीं आज भी राघव भोसले और प्रभा ताई वहीं हैवानियत दोहराने जा रहे थे-“गजेन्द्र जेल से छूटा तो है, लेकिन इस बार उसे हमेशा के लिए मिटाना होगा... वर्ना सबकुछ हाथ से निकल जाएगा।” 

गजेन्द्र के महल में आने से प्रभा ताई को राजघराने की गद्दी अपने हाथ से फिसलती दिख रही थी, ऐसे में राघव भोसले ने उसके हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा- "चिंता मत करो, चार दिन जश्न मनाने दो… हम वार पांचवे दिन करेंगे। चलो तब तक इनकी खुशियों में शामिल होते है"

इतना कह प्रभा ताई और राघव भोसलें एक साथ अपने कमरे से बाहर आए और राजघराना हवेली में चल रहे जश्न में शामिल होने पहुंच गए, लेकिन जैसे ही राघव की एंट्री हॉल में हुई मुक्तेश्वर चिल्ला पड़ा और बोला, ये आदमी यहां क्या कर रहा है राजा साहेब? इसकी मौजूदगी सबूत है कि आज भी आपको अपने बेटे पर विश्वास नहीं और आप अपनी बहू यानि मेरी पत्नी जानकी की मौत के बाद भी उसे इंसाफ नहीं दे पाये है।

नही ऐसा नहीं है मुक्ति, मैं सच कहता हूं उस काली रात के बाद ही मैने इसे इस दहलीज से घक्के मारकर निकाल दिया था। ये तो कुछ दिन पहले ही…

राघव भोसले को देखते ही मुक्तेश्वर की बीस साल पुरानी यादे और पत्नी जानकी की मौत का दर्द एक झटके में आखों के आगे घूमने लगा। ऐसे में उसने अपने पिता गजराज की पूरी बात नहीं सूनी और उनकी बात को बीच में काटते हुए बोला - बस बहुत हो चुके आपके झूठ और प्रभा ताई के प्यार का पागलपन का खेल। चल बेटा गजेन्द्र, जहां तेरी ये नेवले जैसी बुआ हो वहां तेरा रहना… हर रोज जहर पीने के बराबर है। 

इतना कह मुक्तेश्वर ने गजेन्द्र का हाथ पकड़ा और उसे राजघराना के महल से बाहर ले जाने लगा, लेकिन तभी गजराज सिंह अपने बेटे मुक्तेश्वर के पैरों में गिर गया और हाथ जोड़कर बोला - “मत कर ऐसा मुक्तेश्वर… ये मेरे खानदान का एकलौता वारिस है। मुझसे मेरे बूढ़े कंधो का सहारा मत छीन, मैं तुझसे भीख मांगता हूं” अपने पिता को अपने पैरों में पड़ा देख मुक्तेश्वर की अंतर-आत्मा कांप गई, लेकिन वो पिता मोह में अपने बेटे को भी खोना नहीं चाहता था। 

ऐसे में उसने अपने पिता को उनके कंधो से पकड़ कर उठाया और सामने रखे सोफे पर बैठाते हुए बोला - "देखिये पिता जी, आप और मैं दोनों जानते है कि प्रभा ताई के इरादें क्या है। वो अपने बेटे के अलावा कभी किसी को आपकी विरासत, आपकी गद्दी का वारिस नहीं बनने देंगी। और ऐसे में अगर मेरा बेटा, मेरा एकलौता बुढ़ापे का सहारा प्रभा ताई के उन इरादों और उनकी राजनीति के आड़े आया तो वो उसे मार डालने में जरा भी नहीं हिचकिचायेंगी।"

"मुक्ति अपने पिता पर भरोसा कर, जो गलती मैंने तेरे वक्त की मैं उसे कभी नहीं दोहराउंगा। रुक जा बेटा।"

अपने पिता गजराज सिंह के मुंह से भरोसे की बात सुनकर मुक्तेशर बीस साल पुराने उस दिन की यादों में खो गया, जब इसी तरह वो अपने पिता के सामने हाथ जोड़कर रोते-भिलखते हुए माफी और खुद पर भरोसे की भीख मांग रहा था। 

फ्लैशबैक – बाप-बेटे के रिश्ते में पहली दरार

राजघराना हवेली के बड़े से हॉल में, मुक्तेश्वर और गजराज सिंह एक-दूसरे के सामने बैठे थे। दोनों के बीच खून के रिश्तों की धोखेबाजी की जुबानी जंग चल रही थी। “आखिर मेरी पत्नी जानकी को हुआ क्या था? अभी तो प्रेगनेंसी के सिर्फ 7 महीने हुए है, फिर इस तरह अचानक डिलिवरी… कैसे?

देर रात उसके कमरे से चीखने की आवाजें आई, कमरे में जाकर देखा तो जानकी जमीन पर गिरी पड़ी थी। इसके बाद हम लोग उसे तुरंत यहां ले आये। 

मुक्तेश्वर आगे कोई सवाल करता उससे पहले जानकी के डिलिवरी रुम से एक नर्स बाहर आई और बोली - मुबारक हो बेटा हुआ है। लेकिन आपकी पत्नी जानकी की हालत ज्यादा खराब है और वो तुरंत आप से मिलना चाहती है। नर्स की बात सुनते ही मुक्तेश्वर भागता हुआ कमरे के अंदर गया। लेकिन इस दौरान उसने एक बार फिर अपने नवजात बच्चे की तरफ नहीं देखा। वो बस लगातार जानकी को देख रहा था। कि तभी बेहोश जानकी ने मुक्तेश्नर का दायां हाथ अपने हाथ में लिया और कसम ली - मेरे बेटे को लेकर हवेली से दूर बहुत दूर चले जाना मुक्ति। हमारे बच्चे पर राजघराने के किसी भी शख्स की गंदी परछाई मत पड़ने देना। खासतौर पर प्रभा ताई के पति राघव भोंसले की।

"क्या हुआ जानकी, तुम ऐसा क्यों कह रही हो? क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहती हो? बोलों जानकी मैं सुन रहा हूं।"

इसके बाद अपनी आखरी सांस लेते हुए जानकी ने जो कहा, उसे सुन मुक्तेश्वर सीधे अपने नवजात बेटे को गोद में लिए सीधे अपने पिता गजराज के पास पहुंचा और सवालों की बौछार कर दी - "मेरी गैरमौजूदगी में मेरी पत्नी के साथ इतना सबकुछ होता रहा और आप खामोश रहें, घिन्न आ रही है मुझे आपसे। क्या अगर वो आपकी बेटी होती, तो भी आप वो सब होने देते?"

"पहली बात तो ये कि वो मेरी बेटी नहीं है और उसे जबरदस्ती की बहू भी तुमने बनाया है। और हां, झोपड़पट्टी में रहने वाली लड़कियों को ये सब झेलने की आदत होती है, तो चुप रहो और तमाशा मत करो।'

अपनी पत्नी के लिये अपने पिता के मुंह से ऐसी शर्मनाक बाते सुन मुक्तेश्वर खामोश नहीं रह पाया और बोला - मुबारक हो राजा गजराज सिंह, आज तुम्हारी बहू के साथ-साथ तुम्हारे बेटे मुक्तेश्वर और तुम्हारे पोते गजेन्द्र का भी निधन हो गया। 

पोते के जन्म की बात सुन गजराज की जुबान में थोड़ी नर्मी आ गई, और वो बात को संभालने की कोशिश करते हुए बोला - “मैंने जो किया, राजघराने की खातिर किया। और तुम इस तरह एक औरत के जाने से राजघराने के नाम को खुद से अलग नहीं कर सकते”।

पिता के लाख समझाने पर भी मुक्तेश्वर नहीं माना। उसके दिल में उसकी पत्नी के आखरी शब्द और उसकी सच्चाई किसी तीर की तरह चुभी थी। ऐसे में वो समझ गया कि उसके साथ हुई हर नाइंसाफी में उसकी प्रभा ताई के साथ उसके पिता गजराज सिंह भी मिले हुए है। वहीं प्रभा ताई मुक्तेश्वर के राजघराने से चले जाने के बाद अपने दूसरे भाई राज राजेश्वर को परिवार का उत्तराधिकारी बना देती है। वो ऐसा इसलिए करती है क्योंकि वो राज राजेश्वर की वो कमजोरी जानती है, जिससे वो वक्त आने पर उसे राजघराना की गद्दी से उतार अपने बेटे को उस पर बैठा सकें।

मुक्तेश्वर एक कुर्सी पर बैठा अतीत के उन पन्नों के बारे में गहराई से सोच रहा होता है कि तभी उसके कमरे के दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज आती है। वो पलट कर देखता है, तो ये कोई और नहीं उसका छोटा भाई राज राजेश्वर ही है, जो इस समय राजघराने की सत्ता की गद्दी का राजा है। 

बीस साल बाद लौटें और अपने भाई के बारे में पूछा तक नहीं आपने मुक्ति भैया?

उस भाई के बारें में क्या ही पूछने का दिखावा करता, जो मेरी मौत की खबर सुनने को बेताब हो।

मुक्तेश्वर के दिल में छुपी नफरत धीरे-धीरे राजघराने के हर सदस्य पर उसके शब्दों के साथ तीर की तरह चल रही थी। राज राजेश्वर जो पैर छूकर बीस साल बाद अपने भाई का आशीर्वाद लेने आया था, उसे एक झटके में आइना दिखा मुक्तेश्वर ने अपने कमरे से बाहर कर दिया। 

राज राजेश्वर, गजराज सिंह का दूसरा बेटा है, लेकिन उसकी छवि मुक्तेशवर से बिल्कुल अलग है। वो राजघराने की गद्दी और सत्ता के पीछे इतना पागल है कि उसने गद्दी के लालच में अपनी पत्नी तक को शादी के छह साल बाद ही छोड़ दिया था। ऐसे में जहां एक तरफ राजघराना महल में उसकी एंट्री से नौकरों में डर और खौफ का माहौल बढ़ा तो वहीं दूसरी ओर प्रभा ताई मुक्तेश्वर की तरफ एक अलग ही झुकाव दिखा रही है। 

दूसरी ओर अपने बड़े भाई मुक्तेशवर के मुंह से कड़वी तानों भरी बाते सुनने के बाद राज राजेश्वर सीधे अपने पिता गजराज के कमरे में जाता है, और चिल्लाकर कहता है - “राजघराना अब तिकड़म से नहीं, ताकत से चलेगा। और गजेन्द्र? उसे मैं कभी स्वीकार नहीं करूंगा।

“मेरा वारिस तुम्हारे पास नहीं मुक्तेशवर के पास है, ऐसे में जैसा मैं चाहता हूं वैसा ही होगा।” इतना कहते के साथ जहां गजराज सिंह अपने बेटे राज राजेश्वर को अपने कमरे से बाहर निकाल देता है, तो वहीं दूसरी ओर किसी को फोन कर कहता है - "पहली चाल कामयाब हुई, अब बताओ आगे क्या करना है एडवोकेट विराज प्रताप सिंह राठौर"

गजराज सिंह ने देश के सबसे बड़े वकील विराज प्रताप सिंह राठौर को केस के लिए अपाइंट किया था। विराज, जो खुद एक रॉयल बैकग्राउंड से आता है, केस के तथ्यों को देखकर चौंक जाता है, लेकिन फिर वो सारे पहलुओं को पढ़ने के बाद कहता है - “यह सिर्फ फिक्सिंग का केस नहीं है... इसमें राजनीति, बदला और मीडिया हेरफेर का पूरा जाल है, मुझे थोड़ा वक्त दिजिये।”

विराज धीरे-धीरे गजेन्द्र की मासूमियत पर यकीन करने लगता है और केस की पूरी कमान अपने हाथ में ले बारिकी से जांच पड़ताल शुरु कर देता है। वहीं दूसरी ओर बेल पर छुटा गजेन्द्र फिर से एक नया वीडियो सामने आने के बाद जेल पहुंच जाता है। इस बार उसके जेल में जाने के बाद एक नया ही तमाशा शुरु हो जाता है। दरअसल जेल में गजेन्द्र को जानबूझकर कुछ खतरनाक कैदियों के साथ रखा जाता, जो उसे मारना चाहते थे। 

ऐसे में देर रात खाना खाने के बाद जब जेल में सारे कैदी सो जाते है, तब अचानक से तीन कैदी, जो गजेन्द्र के साथ उसके ही सेल में थे वो उस पर हमला कर देते है। उनमे से एक गजेन्द्र के मुंह में कपड़ा ठूस देता है, ताकि उसकी चीख की आवाज बाहर किसी को सुनाई ना दें।

तीन कैदियो के सामने अकेले पड़ जाने के बावजूद गजेन्द्र हार नहीं मानता और पूरी हिम्मत से लड़ता है। कि तभी इस दौरान उसी सेल में मौजूद दो दूसरे कैदी भी गजेन्द्र की मदद के लिये आ जाते है। हालांकि हमलावर तीन कैदियों में से जो सबसे ज्यादा खतरनाक और मोटा होता है, वो उन दोनों के गले में रस्सी डाल उनका गला घोटने की कोशिश करता है। ऐसे में गजेन्द्र अपनी फाइट स्किल से उन दोनों को बचा लेता है और कहता है - “मेरे पिता ने कहा था... जीत सिर्फ मैदान में नहीं, अपनी आत्मा में होती है।”

उसकी ये बात सुनते ही दोनों कैदी उसके गैंग में शामिल हो जाते है और हर जेल में उसकी हर लड़ाई में उसका साथ देने का वादा करते है। वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र की बेगुनाही के सबूत इक्कठा कर रही रिया शर्मा पर भी कुछ लोग लगातार नजर रख रहे थे। जर्नलिस्ट रिया शर्मा जाने-अनजाने में राजगढ़ के सबसे रईस सिंह खानदान की परिवारिक राजनैतिक लड़ाई का हिस्सा बन गई थी, जिसकी वजह से ही कुछ दिन पहले उस पर जानलेवा हमला भी हुआ, जिसे वो सिर्फ एक एक्सीडेंट समझ रही थी। 

आज रिया शर्मा अपने उन सबूतों के साथ गजेन्द्र के पिता मुक्तेश्वर से मिलने की प्लानिंग कर रही थी, लेकिन उसके पास मुक्तेश्वर का नंबर नहीं था। ऐसे में वो राजघराना महल से कुछ दूरी पर बैठी हुई मुक्तेश्वर के महल से बाहर आने का इंतजार कर रही थी। उसे मुक्तेश्वर की शक्ल अच्छे से याद थी, क्योंकि उसने उसे पुलिस स्टेशन में गजेन्द्र के वकील विजय प्रताप सिंह के साथ देखा था।

महल से कुछ दूरी पर चाय की टपरी पर बैठी चाय की चुस्की लेती हुए रिया शर्मा ने आज खुद से ही एक अजीब सवाल किया - आखिर मैं गजेन्द्र को बचाने का जिम्मा क्यों अपने सर लेकर बैठी हूं, अरे शहर के सबसे रईस खानदान का वारिस है, वो लोग उसे बचा सकते है। कहीं ऐसा तो नहीं, वो कॉन्सटेबल जो कह रहा था वो सच है, मुझे सच में गजेन्द्र से प्यार हो गया है। नहीं…नहीं हरगिज नहीं।

रिया शर्मा अपने प्रोफेशन और प्यार की भावना के बीच एक अलग की अंदरुनी जंग लड़ रही थी, कि तभी उसका फोन बजा। वो फोन उठाकर कुछ कहती उससे पहले सामने वाला शख्स अपनी बात बोलकर फोन काट देता है। सामने वाले की बात सुन रिया के चेहरे से पसीने की धार बहने लगती है और वो यहां-वहां चारों तरफ नजर घुमाते हुए अपना पसीना पोछती है।


 

आखिर किसका फोन था जिसकी आवाज सुनते ही कांप गई रिया शर्मा जैसी बेबाक जर्नलिस्ट? 

अब जेल में आगे क्या होने वाला है गजेन्द्र के साथ? 

 जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग। 

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