गजेन्द्र हवेली में अकेला बैठा अपनी मां की पुरानी तस्वीर और अपने पिता के कमरे से मिली उस डायरी के पन्ने पलटता हुए खुद से ही बाते कर रहा था, “मां… क्या वो सच में एक हादसा था या कोई साज़िश?” कि तभी पीछे से उसके दादा साहेब गजराज सिंह आ जाते है, और साफ-सीधे शब्दों में गजेन्द्र से कहते है।
“तेरे पिता का गुन्हेगार मैं हूं, लेकिन मैं तेरा नहीं बनना चाहता… तो तू इस डायरी को पढ़कर जो फैसला लेगा मुझे मंजूर होगा। पर हां एक भीख जरूर मांगता हूं तुझसे, कि इस डायरी में लिखे राजघराना के काले राज को कभी इस चौखट से बाहर मत जाने देना।”
गजराज के कमरे से जाने के बाद गजेन्द्र उस डायरी के पन्नों को पढ़ता और पलटता-पलटता कब सो गया, उसे पता भी नहीं चला। वहीं उसकी नींद अगले दिन तब खुली जब सुबह गजराज की आवाज उसके कानों में पड़ी-"गजेन्द्र, बेटा उठो… आज तुम्हारा दिन है, तुम्हें अपने और अपने पिता के नाम पर लगे दाग को मिटाना है… चलों।"
दादा की आवाज कान में पड़ते ही गजेन्द्र झटके से उठा और सीधे तैयार होने बाथरुम में चला गया। कुछ आधे घंटे बाद वो तैयार होकर जब अपने कमरे से बाहर निकला, तो उसके कपड़ों से लेकर उसके जूते तक... सब शाही अंदाज के थे। मानों जैसे कोई राजकुमार हो। गजेन्द्र को देखते ही गजराज की आंखे नम हो गई और वो बुदबुदाती हुई आवाज में बोला - "मेरा वारिस लौट आया, मेरे मुक्ति का बेटा, मेरा पोता… गजेन्द्र"
अपने दादा साहेब की आखों में आंसू देख गजेन्द्र फिर बोल पड़ा- “ये क्या आपने फिर से अपने आंखों की टोटी चला दी, चलिये, हम लेट हो रहे है। ”
गजेन्द्र के रूखे बर्ताव से गजराज समझ जाता है, कि उसने पूरी डायरी पढ़ ली है और अब वह राजघराने के हर घिनौने राज जानता है। इसके बाद दोनों कार में बैठते है और ड्राइवर कार को सीधे द रेस क्लब, जयपुर के स्टेडियम के बाहर रोकता है। आज का दिन गजेन्द्र के लिये बहुत बड़ा था, क्योंकि आज ना सिर्फ उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी रेस थी, बल्कि साथ ही आज उसकी आंखो के सामने उसकी पिता और मां… दोनों के दुश्मन भी थे, जिनसे वो हर हाल में बदला लेना चाहता था।
आंखों में बदले की आग और दिल में जीत का जज्बा लिये गजेन्द्र मैदान में उतरता है। दरअसल पिछली जीत ने उसे स्टार बना दिया था। ऐसे में चारों तरफ से उसके नाम का शोर सुनाई दे रहा था, लेकिन उसी के साथ एक छुपी हुई नजर भी उसे फॉलो कर रही होती है—और ये नजर थी राघव भोंसले की।
राघव… गजेन्द्र की आंखों की तरफ देखते हुए एक अजीब सी शैतानी हंसी हंसता है, जिसे गजेन्द्र भांप लेता है। लेकिन वो उसकी चाल को लेकर कुछ सोचता उससे पहले वहां उसका घोड़ा अग्निपुत्र आ जाता है और गजेन्द्र उसके साथ बिजी हो जाता है। वहीं राघव किसी से फोन पर बात करते हुए कहता है कि उसने रेस के कुछ ही सेकंड पहले, अग्निपुत्र के नाल में कुछ इंजेक्ट कर दिया है, जिससे घोड़ा मैदान में उतरने के कुछ ही सैंकेड बाद लंगड़ाने लगेगा और उसका प्लान पूरा हो जायेगा।
कॉमेन्टेटर की अनाउंसमेट और सीटी की आवाज के साथ रेस का आगाज होता है, लेकिन गजेन्द्र का घोड़ा दौड़ की शुरुआत में ही लड़खड़ा कर गिर जाता है। गजेन्द्र उसे फिर खड़ा करता है, लेकिन वो दोबारा लंगड़ाता हुआ कुछ दूर चलकर गिर जाता है। तभी भीड़ में से किसी के चिल्लाने की आवाज आती है-“गजेन्द्र हार कैसे सकता है… ये घोड़ा तो अजेय था…”
इस बीच कॉमेंटेटर भी अनाउंसमेंट करता है-“ये बहुत अजीब है… क्या ये एक एक्सीडेंट था या कुछ और…”
इस पूरे नजारे को राघव स्टेडियम के VVIP कमरे में बैठा हाथ में सिगार लिये देख रहा होता है। उसके चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल होती है और वो खुद से बात करता हुआ कहता है-“अब अगला काम मीडिया करेगा… और सट्टा बाजार भी। लगाओ फोन मीडिया के छु-छुंदरों को…।”
उसके इतना कहते ही स्टेडियम के चारों तरफ मीडिया की भीड़ लग जाती है। हर तरफ कैमरे और माइक के बीच घिरा गजेन्द्र घबरा जाता है। वो कुछ करता या समझता, उससे पहले ही न्यूज रिपोर्टर अपनी ब्रकिंग खबर के लाइनें अपने-अपने माइक के साथ दागना शुरु कर देते है..
- BREAKING News- “राजघराने का वारिस रेस फिक्सिंग में शामिल?”
- “गजेन्द्र सिंह पर फिर लगा फिक्सिंग का आरोप
- इस बार 50 करोड़ के सट्टेबाज़ी स्कैंडल में फंसा नाम।”
- “क्या अग्निपुत्र की हार पहले से प्लांड थी?”
टीवी पर गजेन्द्र की क्लिप बार-बार चलती है। पूरे स्टेडियम में खामोशी पसर जाती है। गजेन्द्र चारों तरफ नजर घुमा कर सिर्फ अपने दादा साहेब गजराज सिंह को ढूंढता है, लेकिन वो उसे कहीं नजर नहीं आते। उसकी आंखों के साथ-साथ दिल की उम्मीद भी दम तोड़ने लगती है, कि कोई उसे बचाने आयेगा। वहीं दूसरी ओर उसके पुणे वाले घर में उसके पापा मुक्तेश्वर की हालत भी टीवी पर खबर देख खराब होने लगती है।
उसकी आंखे भी टीवी पर अपने बेटे गजेन्द्र की मदद के लिये अपने पिता को ही ढूंढ रही होती है, लेकिन उसे कहीं कोई नजर नहीं आता और वो खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है - "दे दिया मेरे पिता और राजघराने के किंग गजराज सिंह ने मेरे बेटे को भी धोखा… और वहीं नासूर से भरा दर्द…। मैं क्या करूं। नहीं मैं हार नहीं सकता, मुझे मेरे बेटे के लिये राजस्थान की उस जमीन पर कदम रखना ही होगा। मुझे राजघराना महल लौटना ही होगा।"
मुक्तेश्वर अभी ये सब सोच ही रहा होता है, कि तभी उसका फोन बज उठता है।
“हैलो, क्या आप गजेन्द्र सिंह के पिता हैं?”
“जी हां, मैं ही हूं गजेन्द्र का पिता, मेरा बेटा ठीक तो है ना?”
“जी नहीं, और हा ये भी जान लीजिये… कि आपके बेटे को जयपुर के रेस कल्ब से हॉर्स रेस फिक्सिंग और धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।”
सामने वाले शख्स की ये बात सुनते ही फोन मुक्तेश्वर के हाथ से गिर जाता है। वो कुछ पल तक स्तब्ध खड़ा रहता है और फिर वहीं ज़मीन पर बैठ जाता है। दूसरी ओर पुलिस स्टेशन में भी गजेन्द्र की आंखें अपने दादा साहेब के आने का इंतजार करती है। लॉकअप में बैठा गजेन्द्र मीडिया की भीड़ और सिंह परिवार के नाम पर उसके दाग लगा देने के आरोपों से डर जाता है। उस पर मीडिया के कैमरे बाहर मौजूद हैं। अंदर एक अफसर आकर पूछताछ शुरू करता है।
“तुम्हारे अकाउंट में दो दिन पहले 5 करोड़ का ट्रांसफर हुआ… ये क्या है...और इतना पैसा तुम्हें किसने दिया?”
कुछ देर गजेन्द्र चुप रहता है, लेकिन फिर कहता है, ये सब उसके दादा साहेब गजराज सिंह ने दिये है। वो बस उन्हें एक फोन कॉल कर बुलाना चाहता है और उसके बाद सब क्लीयर हो जायेगा, कि मैं दोषी नहीं हूं।
दूसरी ओर मुक्तेश्वर सिंह जल्दबाजी में अपना सारा सामान पैक करता है और सीधे राजस्थान के राजगढ़ के लिये निकल पड़ता है। गजेन्द्र को बचाने इस दौरान कोई नहीं आता। पुलिस के सवालों से परेशान गजेन्द्र को अब अपने पापा मुक्तेश्वर की याद सताने लगती है। इतना ही नहीं वो उस पल को भी याद करने लगता है, जब उसके पिता ने उसके आगे गजराज सिंह के साथ ना जाने के लिये हाथ-पैर तक जोड़े थे।
राजस्थान की जमीन पर कदम रखते ही मुक्तेश्वर सबसे पहले राजघराना हवेली, राजगढ़ अपने पिता गजराज सिंह से मिलने जाता है। मुक्तेशर के दिमाग में बस एक ही सवाल होता है कि इस तरह उसके बेटे गजेन्द्र को मैंच फिक्सिंग के केस में फंसाने और फिर अकेला जेल में छोड़ देने के पीछे गजराज सिंह का क्या मकसद है। लेकिन जैसे ही वो राजघराना हवेली के अंदर कदम रखता है, वैसे ही उसकी पहली मुलाकात प्रभा ताई से होती है, जो चोरी-छिपे किसी से फोन पर बात कर रही थी, लेकिन मुक्तेश्वर को देखते ही वो झटके से फोन काट देती है और कहती है-
"ओह, आखिरकार तुम लौट आये मेरे फेवरेट भाई साबह"
“सिर्फ लौट ही नहीं आया मैं ताई, हर किसी को उसके हिस्से की नफरत लौटाने भी आया हूं”
जहां एक तरफ मुक्तेश्वर अपनी बड़ी ताई(बहन) को उसकी ही जुबान में जवाब दे रहा होता है, तो वहीं पीछे से उसके पिता गजराज सिंह आते है और आते के साथ कुछ ऐसा कहते है, जिसे सुन मुक्तेश्वर के बीस साल पुराने जख्म ताजा हो जाते है।
“ये सब राघव भोंसले की चाल है… लेकिन अब अदालत नहीं, खेल के मैदान में मेरा पोता, मेरा वारिस गजेन्द्र उसे जवाब देगा।”
अपने पिता गजराज को मुक्तेश्वर के बेटे गजेन्द्र की तरफ ऐसा झुकाव देख प्रभा ताई गुस्से से बौखला जाती है और तुंरत उसे जाहिर करते हुए कहती है - “पहली बात तो ये कि वो आपका वारिस नहीं है, और दूसरा कि जिस बगावत के साथ वो रेस जीतना चाहता था, उसी बगावत में डूब गया…”
प्रभा ताई की ये बात सुन मुक्तेश्वर इस बार खुद को बोलने से रोक नहीं पाता। वो नहीं चाहता कि राजघराना की जिस राजनीति ने उसकी पूरी जिंदगी को निगल लिया, वो उसके बेटे गजेन्द्र की जिंदगी भी तबाह कर दे। ऐसे में वो पलट कर जवाब देता है और अपना गुस्सा और प्यार एक ही लाइन में जाहिर कर देता है-ताई मेरे गजेन्द्र से दूर रहना और उसे अपनी राजनीति से भी दूर रखना, वर्ना याद रखना बीस साल पहले जो कुछ भी मैं तुम्हें और राज राजेश्वर को भीख में दे कर गया था, वो सब सूत-समेत छीन लूंगा।
इतना कहते के साथ मुक्तेश्वर अपने पिता गजराज का हाथ पकड़ता है और सीधे पुलिस स्टेशन की ओर निकल जाता है।
दूसरी तरफ अस्पताल से भाग कर जर्नलिस्ट रिया शर्मा जिस औरत को सबक सिखाने की प्लानिंग के साथ राजगढ़ की राघरानी हवेली में कदम रखती है, वहां उसकी मुलाकात एक बूढ़ी काकी से होती है, जो दरवाजे पर ही उसे रोककर कहती है, अंदर मत जाओ… फंस जाओगी। और वैसे भी गजेन्द्र गिरफ्तार हो गया।
बूढ़ी काकी की ये बात सुन रिया डर जाती है और कार में बैठ तुरंत फोन के गूगल मैप सेट कर पुलिस स्टेशन की तरफ निकलती है।
“मुझे अभी के अभी वहां पहुंचना होगा… मेरे पास वो सबूत है जो उसे निर्दोष साबित कर सकता है। ”
जयपुर पुलिस स्टेशन के बाहर का माहौल अब भी गर्म था। मीडिया की भीड़, कैमरों की चमक और लोगों की कानाफूसी के बीच गजेन्द्र लॉकअप में अकेला बैठा था। उसकी आंखों में सवाल थे, दर्द था, और सबसे ज़्यादा जो था वो था इंतज़ार—अपने पिता मुक्तेश्वर सिंह का। इसी बीच दरवाज़ा खुलता है और दो सख्त पुलिसवाले अंदर आते हैं।
“चलो, इंस्पेक्टर साहब ने बुलाया है। तुम्हारे वकील और पिता आए हैं।”
ये सुनते ही गजेन्द्र तुरंत उठता है, लेकिन चेहरे पर अब भी डर और उलझन की परछाइयाँ थीं। बाहर निकलते ही उसे सबसे पहले अपने पिता मुक्तेश्वर की झलक दिखाई पड़ती है—पलकों में आंसू और होठों पर सख्ती का लहजा लिये वो बस एक टक उसे ही निहार रहें होते है।
“पापा…”
“कुछ नहीं होगा तुझे बेटा, तेरा बाप अब यहां है।”
गजेन्द्र अपने पिता से लिपट जाता है। ये वही बाप था जिसे उसने कई बार गलत समझा था। लेकिन आज उसकी मौजूदगी सबसे बड़ी राहत बन गई थी, लेकिन तभी उसने देखा कि उसके दादा गजराज सिंह भी वकील के साथ आये है और पुलिस से बात कर रहे हैं। गजेन्द्र उनसे सवाल करने के लिये आगे बढ़ता है, लेकिन तभी मुक्तेश्वर अपने बेटे को रोक देता है और वापस हवेली जाकर बात करने की बात कहकर बात को टाल देता है।
जहां एक तरफ गजेन्द्र जेल से रिहा हो अपने पिता और दादा के साथ कार में बैठ राजघराना हवेली के लिये निकल पड़ता है, तो वहीं दूसरी ओर उसके निकलने के ठीक पांच मिनट बाद जर्नलिस्ट रिया शर्मा पुलिस स्टेशन पहुंचती है और गजेन्द्र के बारे में पुछती है।
"क्या मेरी मुलाकात गजेन्द्र सिंह से हो सकती है, मैं उनकी बेल करवानें और उनकी बेगुनाही के सबूत दिखाने आई हूं"
पर उनकी बेल तो कुछ देर पहले ही हो गई और वो अपने पापा और दादा के साथ यहां से चले गए"
“ओह… यानि मैं आज फिर उससे नहीं मिल पाई”
गजेन्द्र के जेल से रिहा होने की खबर सुनकर रिया खुशी तो होती है, लेकिन साथ ही गजेन्द्र से ना मिल पाने को लेकर उसका मुंह लटक जाता है।
“लगता है जर्नलिस्ट रिया को उस रेसर गजेन्द्र से प्यार हो गया है, मैंने गजेन्द्र के पिछले केस के टाइम भी इन्हें पुलिस स्टेशन में उसके लिये पुलिस से लड़ते देखा था”
“इश्क का केस है भाई, हमारी समझ से परे… चल यहां से, वर्ना सुन लेगी तो फालतू में बवाल हो जायेगा”
दोनों हवलदार की बात सुन रिया झेप जाती है, उसके चेहरे का रंग अचानक से लाल हो जाता है। हालांकि वो सब को झुटलाते हुए कहती है… "मैं बस उसे उस डायन आंटी के बारे में बताना चाहती हूं। वो बस उसे बर्बाद करना चाहती है। प्यार-व्यार जैसा कुछ नहीं है"
एक तरफ रिया खुद को ये समझा रही होती है कि गजेन्द्र एक अच्छा इंसान और अच्छा खिलाड़ी है और वो सिर्फ उसकी मदद करना चाहती है, तो वहीं दूसरी ओर गजराज सिंह आज अपने बेटे मुक्तेश्वर और पोते गजेन्द्र के साथ राजघराना के महल में कदम रखता है। उनके आने की तैयारी में उसी बूढ़ी काकी ने ना सिर्फ महल को सजवाया था, बल्कि साथ ही उसके वैलकम का शाही इंतजाम भी किया था। इन सब से परे प्रभा ताई अपने कमरे में राघव भोंसले के साथ एक सीक्रेट मीटिंग कर रही थी।
“वो जर्नलिस्ट रिया शर्मा ज़िंदा है?” राघव पूछता है, सिगार का कश लेते हुए।
“हां, और वो पुलिस स्टेशन पहुंच चुकी है। उसके पास कोई सबूत है जो गजेन्द्र को बरी करा सकता है,” प्रभा ताई की आवाज में हैरानी और परेशानी दोनों झलक रही थी।
राघव हँसता है, “तो फिर अब वक्त है उस कार्ड को खेलने का जो हमने इतने सालों से संभाल रखा है… राज राजेश्वर।”
प्रभा ताई की आंखें चमक उठती हैं। वो आगे कुछ कहने ही वाली होती है कि तब तक बाहर से नांचने-गाने और जश्न मनाने की आवाज आती है और वो भाग कर महल के दरवाजे के नजारे को देखने पहंचती है, लेकिन जैसे ही वो वहां खड़े लोगों को देखती है मानों प्रभा ताई की सांसे उनके गले में अटक जाती है और वो वहीं बेहोश हो जाती है।
आखिर किसके लौटने के खौफ से बेहोश हो गई प्रभा ताई?
क्या सच में गजेन्द्र से नफरत करने वाली जर्नलिस्ट रिया पड़ गई है उसके प्यार में…?
जानने के लिये पढ़िये राजघराना कहानी का अगला एपीसोड।
Anonymous
16 Jun 2025