जबरदस्ती रिया को इंजेक्शन लगाने के बाद जैसे ही डॉक्टर सुधांशु पीछे मुड़ते हैं तो वहां गजेन्द्र खड़ा होता है, जो डॉक्टर सुंधाशु की हरकत देख सवालों की बौछार कर देता है - ये आपने रिया को जबरदस्ती इंजेक्शन लगा कर बेहोश क्यों किया? आखिर क्या इरादा है आपका?
गजेन्द्र के मुंह से एक के बाद एक शक भरे सवाल सुन डॉक्टर सुधांशु चौंक जाते है, हालांकि फिर वो मामले की गंभीरता को समझते हुए गजेन्द्र को शांति से समझाते हैं - “दरअसल रिया की हालत अभी भी बहुत नाज़ुक है, और ऐसे में अगर वो होश में आते ही तुम्हारे केस को लेकर बात करेगी, तो उसकी मांसिक हालत बिगड़ सकती है।”
गजेन्द्र डॉक्टर सुधांशु की बात पर यकीन कर शांत हो जाता है और रिया के बेड के पास रखे टेबल पर बैठ जाता है और उसका हाथ पकड़े कहता है - “रिया… तुमने मेरे यकीन को और भी मजबूत कर दिया है, देखना अब मैं नहीं रुकूंगा। अब तुम्हारा सच मेरी इस लड़ाई में मेरी सबसे बड़ी ताकत है। तुम देखना मैं राजघराना हवेली के लोगों को पलटकर वहीं लौटाउंगा, जो उन्होंने मुझे और मेरे अपनों को दिया है।”
दूसरी ओर कोर्ट से लौटते के साथ मुक्तेश्वर राजमहल के एक कोने में चुपचाप बैठा था। उसकी आँखों में आज कोर्ट की कार्रवाई और विद्युत सूरजभान को लेकर कई सवाल घूम रहे थे। उस पर हाथ में पत्नी की आखरी निशानी उसकी चिट्ठियो की राख लिये वो अभी कशमकश में फंसा हुआ था। कि तभी पीछे से आवाज आई - "कभी-कभी कुछ बातें जलकर ज़िंदा हो जाती हैं। जानकी का सच अब उसके बेटे में है मुक्तेश्वर, अतीत भूलकर आज में जियो…"
मुक्तेश्वर पीछे मुड़ा, तो देखा प्रभा ताई खड़ी थी। ऐसे में उसने तुरंत अपनी आंखों के आंसू छिपा लिये और धीरे से बोला, "अगर वक्त रहते मैंने उसकी बात पर यकीन किया होता… तो न जानकी मरती, न गजेन्द्र इतना टूटा होता।"
एक तरफ मुक्तेश्वर अपने अतीत की परछाई से बेटे का भविष्य तबाह होने के पश्चाताप की आग में जल रहा था, तो वहीं दूसरी ओर वो इस बात से बिल्कुल अंजान था कि उसका एक इससे भी बड़ा अतीत जेल की सलाखों के पीछे बंद है।
कैदी नं 47 यानी अर्जुन सिंह अकेला सलाखों के पीछे बैठा था, उसके चारों ओर अंधेरा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, मानो वह कुछ बड़ा करने की तैयारी कर रहा हो, जिसकी प्लानिंग करता हुआ वो अकेले में खुद से ही बातें करते हुए कह रहा था - "राजघराने ने तब मुझे मिटाने की कोशिश की थी, और तब उनकी नजरों में मैं मर गया था। लेकिन अब जो लौटा है, वो सिर्फ सच है….और वो सच उनकी गद्दी की बुनियाद हिला देगा।"
रिया की डायरी में सिर्फ इस कैदी नंबर 47 का नाम ही नहीं था, बल्कि साथ ही इसके नाम के साथ एक आखिरी पंक्ति भी लिखी थी-
“झूठ अगर महल में बैठा हो… तो सच को तलवार उठानी ही पड़ती है।”
ये बात गजेन्द्र के दिमाग में लगातार घूम रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो कैदी नंबर 47 और राजघराना के बीच के कनेक्शन का पता कहां से लगाये। आखिर उस आदमी का रिया से क्या रिश्ता है? और वो राजघराने के लोगों से इतनी नफरत क्यों करता है?
राजगढ़ के आसमान में धुंध सी छाई हुई थी। उस पर काले बादलों के साथ पूरे राजघराना महल में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था, जो आज की कोर्ट कार्रवाई की वजह से सबके चेहरों पर साफ नजर आ रहा था। सबके बीच की वो खामोश घड़ी की टिक-टिक करती आवाज के साथ हवाएं में फुसफुसा कर बात करती हैं, मानों जैसे आज की रात महल के लोगों पर कोई नई गाज बनकर गिरने वाली हो।
दूसरी ओर आधी रात हो चुकी थी, लेकिन गजेन्द्र का वकील विराज प्रताप जयपुर कोर्ट से लौटने के बाद से अपने कमरे से बाहर नहीं निकला था। उसके लिये अब गजेन्द्र का केस सिर्फ केस नहीं रहा था, बल्कि उसके दो दोस्तों की जिंदगी और मौत की जंग बन गया था। ऐसे में उसने ठान लिया कि वो इस केस की शुरुआत से जांच करेगा।
ये ही सोचकर वो सीधे अपनी कार लेकर रेसिंग कमिटी के पुराने रिकॉर्ड ऑफिस में जा पहुँचा। इस केस के बाद से वो ऑफिस सील था, ऐसे में वहां दीवारों पर धूल की परतें थीं, और फाइलों के ढेर उस सड़ते हुए सिस्टम की तरह बिखरे पड़े थे। ये देख विराज खुद से बात करते हुए बोला - "अगर इस साज़िश का सिरा वहीं है जहां मुझे लग रहा है, तो ये महज़ ‘मैच फिक्सिंग’ नहीं, साजिश की इस मंजिल की नींव मुझे यही मिलेगी। और इसे चलने वाले शैतानों का पता मैं लगा कर रहूंगा।"
ये ही सोचता हुआ विराज उस कमरे के हर कोने में रखी फाइल को तलाशने लगा। तभी उसने देखा कि वहां पर मैच के लाइव वीडियो के सीसटीवी फुटेज की डिटेल की भी एक फाइल मौजूद है। उसने उस फाइल के उस हिस्से को खंगाला, जिसमें गजेन्द्र की रेस की तारीख वाली फुटेज डिटेल थी।
"ऐसा करता हूं सबसे पहले पुराना CCTV फुटेज ही देखता हूं— गजेन्द्र की रेस के दिन का, जब उसे दोषी ठहराया गया था। उसमें कुछ ना कुछ तो मिल ही जायेगा।"
ये ही सोचते हुए विराज उस दिन के वीडियो फुटेज को बार-बार रिवाइंड करके देखने लगा। काफी देर तक देखने के बाद उसे कुछ ऐसा नहीं मिला, जिस पर शक किया जा सकें। लेकिन तभी फुटेज के बैकग्राउंड में एक अजीब सी आवाज आई और उसी जगह विराज की नज़र और उसके कान दोनों टिक गए।
विराज देखता है कि कैमरे की स्क्रीन पर एक आदमी का चेहरा कुछ सेकंड के लिए साफ़ दिखता है, लेकिन तभी वो आदमी भीड़ के शोर में कहीं गुम हो जाता है। काफी गौर से देखने पर विराज को एक न्यूज याद आती है, जिसके साथ ही ये भी याद आता है कि वो आदमी कोई आम आदमी नहीं, बल्कि रेस कमिटी का सस्पेंड किया गया स्टीवर्ड, रंजीत तोमर है।
उसे देख विराज शॉक में आ जाता है और खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है - "ये तो वो ही है… जिसने पापा के उस मैच फिक्सिंग केस की दिशा ही मोड़ दी थी। पर इसे तो दो साल पहले ही रिश्वतखोरी के मामले में दोषी पाये जाने के बाद ब्लैकआउट कर दिया गया था। फिर ये उस दिन वहाँ क्या कर रहा था?"
तभी विराज का फोन बजा, उसने देखा रात के दो बजे चुके थे, और इस वक्त किसी ने उसे एक अजीब सी मेल आईडी से ईमेल किया था, जिसके सब्जेक्ट में लिखा था- "वक्त आ गया है, सबका चेहरा बेनकाब होगा।"
इस मेल के साथ में एक वीडियो क्लिप भी अटैच थी। जिसमें दो आदमी काले अंधेरे कमरे में बैठे बाते कर रहे थे।
“...गजेन्द्र को फँसाना जरूरी था, वो सब जान गया था। रिया को भी चुप करवाना ज़रूरी हो गया था। V.S. की असल पहचान… तहखाने के दस्तावेज़ों में है। हमे जल्द से जल्द इस केस को इन दोनों की मौत के साथ खत्म करना होगा।”
विराज की आँखों में एक भय और जिज्ञासा की जुगलबंदी चमकने लगती है। उसे अपने सवालों के जवाब कुछ हद तक मिल गए थे, लेकिन साथ ही उस अंजान मेल और वीडियो के साथ कई नए सवाल भी खड़े हो गए है।
दूसरी ओर अस्पताल में रिया ICU में सो रही थी, लेकिन अब उसके कमरे के बाहर पुलिस तैनात थी। डॉक्टर सुधांशु कमरे के बाहर बैठा था, उसकी बेचैनी अब उसके माथे से टपकते पसीने में साफ झलक रही थी। मानों जैसे वो डॉक्टर रिया की जिंदगी को लेकर कोई खेल खेल रहा हो। तभी गजेन्द्र वहां आ जाता है और सीधे-सीधे पूछता है, "डॉक्टर, मुझे जानना है—उस दिन रिया ने 'V.S.' नाम के जिक्र को लेकर और क्या-क्या कहा था? मुझे नर्स ने बताया कि होश में आने के बाद उसने आपसे 'तहखाने के कागज़' को लेकर भी कुछ बात की थी?"
गजेन्द्र के सवाल सुन डॉक्टर ने नजरें चुराना शुरु कर दिया। मानों जैसे वो कोई बड़ा राज़ छिपा रहा हो...। तभी उसने खुद को संभालते हुए कहा - “वो सब... मैं नहीं जानता। शायद रिया के मिशन का हिस्सा रहा हो। देखों, अब अगर वो होश में आई, तो तुम खुद बात कर लेना।”
डॉक्टर की बात सुन गजेन्द्र शांत हो गया और वहां से जाने लगा। जाते-जाते उसने पलटकर कहा- "या शायद... कोई नहीं चाहता कि वो दुबारा बोल सके?"
गजेन्द्र के इतना कहते ही डॉक्टर सुंधाशु चौक गए और एक पल को दोनों की नज़रे टकराईं। तभी डॉक्टर ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन तभी उसकी जेब में रखा फोन वाइब्रेट करने लगा। वो देखता है—‘Blocked Number’। उसका चेहरा फिर सफेद पड़ गया।
गजेन्द्र ने फोन छीनकर कॉल बैक किया और फोन का स्पीकर ऑन कर दिया।
दूसरी ओर से धीमे, लेकिन सख्त लहजे में आवाज आई- "अगर लड़की दुबारा होश में आई, तो खेल खत्म हो जाएगा… डॉक्टर, तुम्हें पता है ना, तुम्हें क्या करना है।"
गजेन्द्र के चेहर पर अब कोई डर नहीं था….था तो सिर्फ गुस्सा - अस्पताल का नजारा गजेन्द्र के गुस्से से मानों किसी बड़े तुफान के आने का इशारा कर रहा था। दूसरी ओर गजराज सिंह राजमहल की पुरानी हवेली के तहखानें में बैठा कुछ ढूंढ रहा था और खुद से बाते कर रहा था- "इस तहखाने के बारे में सिर्फ तीन लोग ही जानते हैं— मैं, राजराजेश्वर और पुराना महल सेवक...। फिर वो फाइल कहां गई। वो किसी के हाथ लगी तो सब खत्म हो जायेगा।"
कि तभी तहखाने की तरफ कुछ लोगो के आने की आवाज सुनाई दी, तो गजराज ने तुरंत तहखाने की लाइटे बंद कर दी। तभी उसने देखा की गजेन्द्र अपने वकील विराज को लेकर रात के अंधेरे में वहां आया है। इतना ही नहीं दोनों टॉर्च की रोशनी में दीवारें टटोल रहे थे।
तभी विराज ने धीरे से गजेन्द्र के कानों के पास जाकर कहा- "याद है ना... होश में आने के बाद रिया के आखिरी शब्द थे—'V.S.… तहखाना…दीवार… और कागज़'। यहाँ कुछ न कुछ तो है, जो तुम्हारे केस और राजघराने के बीच के राज़ को जोड़ता है।"
तभी उसने देखा कि दीवार पर टंगी एक बड़ी सी तस्वीर के नीचे का एक पत्थर हल्का-सा हिला था—विराज ने उसे जोर से दबाया। तभी एक हल्की सी "खट" की आवाज़ के साथ दीवार खुल गई, जिसके बाद वहां का नजारा सर से पैर तक हिला देने वाला था..।
उस दीवार के पलटते ही एक ऐसा सीक्रेट कमरा खुला, जिसके अंदर लकड़ी के संदूक में पीले पड़े दस्तावेज़, बैंक ट्रांजेक्शन स्लिप्स और एक पुराना पासपोर्ट था—और उस पर लिखा नाम था- Vidyut Surajbhan।
और उसी के नीचे एक पुरानी तस्वीर भी रखी थी—जिसमें गजराज सिंह, राजराजेश्वर और विद्युत सूरजभान एक साथ खड़े, हाथ में शराब के गिलास लिये पोज दे रहे थे। उनकी तस्वीर के पीछे बैकग्राउंड में रेसिंग क्लब की टेबल भी मौजूद थी।
इन तस्वीरों को देखते ही विराज प्रताप राठौर अपना आपा खो बैठा और गजेन्द्र की तरफ उसे बढ़ाते हुए बोला - देखो ये हैं तुम्हारे दादा का असली चेहरा… दोगले है वो दोगले...। हमें जो चाहिए था वो मिल गया, अब जल्दी चलो यहां से।
वहीं उन लोगों के चले जाने के बाद गजराज सिंह भी बाहर निकल आया और सीधे अपनी लाइब्रेरी में जाकर बैठ गया। वहां बैठे-बैठे उसने एक के बाद एक कई सिगार पी, कि तभी वहां राज राजेश्वर आ गया।
“कया ये सच है कि वो तहखाना खुल चुका है? और अगर ऐसा है, तो अब हम लोगों का क्या होगा?”
राज राजेश्वर डर से कांप रहा था, ये देख गजराज ने सिगार की राख को झटकते हुए कहा - "ये सब मेरे खेल के मोहरे है बेटा, और याद रखना जब तक मोहरे जिंदा है, खेल का मजा भी तब तक ही है।"
राज राजेश्वर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके पिता इतने शांत कैसे थे। एक तरफ गजेन्द्र उनके लिये मौत का साया बन रहा था, तो दूसरी तरफ मुक्तेश्वर ने भी जानकी की मौत के सच को ढूंढ लिया था। ऐसे में उसे अपने पिता का ये शांत रवैया बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था।
यहां राज राजेश्वर को अब गजेन्द के चेहरे में अपनी मौत नजर आने लगी थी, तो वहीं जेल की कोठरी में बैठा कैदी नंबर 47 अर्जुन सिंह आज कुछ ज्यादा ही खुश था। हद तो तब हो गई जब सुबह-सुबह वो चाय की चुस्की के साथ अखबार पढ़ते-पढ़ते अचानक दहाड़े मारकर मुस्कुराते हुए बड़बड़ाने लगा - "जाल अब तंग हो रहा है... गजराज, तुमने जो चेहरा सालों से छुपाया था, वो अब राख से झाँकने लगा है।"
ये ही बड़बड़ाते हुए उसने कोठरी की दीवार पर अपनी उंगलियों से एक नाम लिखा—“Vidyut = Gajraj”।
अर्जुन की इस हरकत को देखते ही गजेन्द्र समझ गया कि उसे और उसके पापा को खतरा बाहर के लोगो से नहीं, महल के लोगों से है। ऐसे में उसने ठान लिया कि अब राजघराना महल अपने दादा गजराज सिंह के पास लौट जायेगा। जहां उसे नाम, पैसा, राजघराने की सत्ता की गद्दी और वारिस होने का हक सब मिल जायेगा।
आखिर क्या है गजेन्द्र के इरादें?
अपार नफरत के बाद भी आखिर क्यों लौटना चाहता है वो राजघराना महल?
ये सत्ता और पैसों का लालच है या वो चल रहा है कोई गहरी चाल?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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