राजघराना महल के लोगों की असलियत खुलने और उनके चालबाज चेहरे सामने आने के बाद भी गजेन्द्र वापस राजघराना महल जाने की जिद्द पकड़ लेता है। जिसके बाद उसका वकील दोस्त विराज प्रताप राठौर उसे वहां जाने से रोकने की काफी कोशिश करता है, लेकिन वो नहीं मानता।
ऐसे में इस बार जेल से बेल मिलने के बाद गजेन्द्र सीधे अपने दादा के घर राजघराना महल की ओर बढ़ जाता है। कुछ आधे घंटे कार के सफर के बाद जैसे ही वो राजघराना की दहलीज पर कदम रखता है, वैसे ही उसके दादा गजराज सिंह के चिल्लाने की आवाज आती है - वहीं रूक जाओ, गजेन्द्र!
क्या हुआ दादा साहेब, आप ही तो चाहते थे कि मैं अपनी विरासत संभालने के लिये महल लौट आऊं, फिर आप मुझे अंदर आने से क्यों रोक रहे हैं?
गजेन्द्र का सवाल सुन गजराज सिंह हंस पड़ता है... और कहता है - “राज राजेश्वर अपनी प्रभा ताई से कहो, बीस साल बाद आज असल मायने में मेरा वारिस मेरी दहलीज पर कदम रख रहा है… स्वागत की तैयारी करें। और तुम सारे नौकर-चाकर भी सुनो 56 भोग बनवाओ, हवेली को दुल्हन की तरह सजाओ। पूरे राजगढ़ में खबर फैल जानी चाहिये कि म्हारो लाडलो वारिस, बरसां बाद म्हारी दहलीज पर पधार्यो है।”
कुछ ही घंटों में राजघराना महल एक नई-नवेली दुल्हन की तरह सज गया। प्रभा ताई मंदिर में रखी पूजा की थाली लेकर आई और चेहरे पर एक अजीब सी शिकन के साथ गजेन्द्र का राजमहल में स्वागत किया। प्रभा ताई के चेहरे पर छाई लकीरों से साफ था, कि वो नहीं चाहती थी कि गजेन्द्र राजघराना महल में कभी भी कदम रखें।
वहीं गजेन्द्र के लौटने से अगर कोई खुश था, तो वो थे उसके पापा मुक्तेश्वर सिंह। जिन्हें देख गजेन्द्र तुरंत उनके गले लग गया। वहीं सबसे मिलने के बाद गजेन्द्र उस कमरे में गया, जिसे गजराज सिंह ने खास तौर पर उसके लिये तैयार करवाया था।
गजेन्द्र अपने कमरे में खड़ा हाथ में एक पुरानी तस्वीर को लिये बस उसे निहारे जा रहा था। उसमें उसके दादा गजराज सिंह, चाचा राज राजेश्वर एक साथ एक ऐसे शख्स के साथ खड़े थे और ये वहीं शख्स था, जिसने उसकी पूरी जिंदगी को इस समय नर्क बना रखा था। इतना ही नहीं उसके पिता को बीस साल पहले राजघराना महल से निकालने, उसकी मां की मौत के पीछे भी इसी आदमी का हाथ था। ऐसे में वो उस तस्वीर को देखते हुए खुद से बात करते हुए बोला….
“मेरे दादा और चाचा... जिनकी वजह से आज मेरा परिवार बर्बाद है, जिन्होंने मेरी मां की हत्या की… जिन्होंने मेरी और पापा की जिंदगी को अंधेरे में डुबो दिया...अब मैं वही गलती नहीं करूंगा जो वो चाहते थे...। अब मैं उन्हें उनकी हर सांस में मौत की भीख मांगने पर मजबूर करूंगा।”
इसके साथ ही गजेन्द्र गहरी साँस लेकर उस तस्वीर को ज़ोर से दीवार पर फेंकता है। उसकी आँखें बदला और गुस्से की चमक से पूरी तरह लाल पड़ी हुई थी।
“अब मैं वो सब इन लोगों से वापस छिनूंगा, जिस पर मेरे पापा का हक था। कोई नहीं रोक सकता मुझे।”
दूसरी ओर गजेन्द्र का सबसे अच्छा दोस्त और वकील विराज उससे मिलने के लिये महल में आता है, लेकिन जैसे ही वो उसके कमरे में आता है वो गजेन्द्र का गुस्सा देख डर जाता है… और उसके कंंधे पर हाथ रखते हुए कहता है - “गजेन्द्र, तुम क्या सोच रहे हो! आखिर क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग में? देखों इस महल — कुर्सी — इन सब पर तुम्हारा अधिकार है, लेकिन इन्हें हासिल करने के लिये कुछ ऐसा मत करना की बाद में पश्चताना पड़े।
विराज की बात सुन गजेन्द्र पलटा और तिलमिलाती हुई आवाज में बोला— “मेरे खून में वही आग है, जो मेरे दादा और चाचा के खून में थी….मेरी मां की मौत को मैं किसी भी कीमत पर नहीं भूल सकता विराज। मैं अब उनके सामने जाकर अपनी ताकत दिखाऊंगा। मैं उनके सामने रहकर ही उन्हें अपने हाथों से जहर पिलाउंगा। तुम बस देखते जाओं।”
गजेन्द्र की बातों में बदले की आग देख विराज और भी परेशान हो गया, क्योंकि गजेन्द्र पहले से रेस फिक्सिंग केस में फंसा हुआ था, उस पर अब वो नई जंग की तैयारी भी कर रहा था, जिसका अंत सिर्फ और सिर्फ जेल की सलाखें थी।
“तुम्हें एक बार सोचना होगा, गजेन्द्र। इस कुर्सी की लड़ाई में तुम्हारी जान को भी खतरा है। और मुझे सिर्फ तुम्हारी नहीं, बल्कि रिया की भी चिंता है। वह इस केस की अहम गवाह है। वह भी तुम्हारी तरह राजघराना के खेल में फंस चुकी है। तुम नहीं समझ रहे हो, गजेन्द्र! महल में घुसते ही सबकी जान खतरे में पड़ जाएगी, तुम्हारी, रिया की, और... मेरी भी।”
विराज की चिंता देख गजेन्द्र थोड़ा शांत हुआ और फिर उसे समझाते हुए बोला- “देखो दोस्त, तुम मेरी चिंता मत करो, और रही बात रिया की… तो उसे मैं हमेशा अपनी नजरों के सामने रखूँगा। मगर मुझे ये साबित करना होगा कि राजघराने के लोग दरिंदे है। और अब मेरे लिये बदला लेने का वक्त है। तुम बस मुझे ये बताओ कि तुम मेरे साथ हो, या मेरे रास्ते में खड़े हो?”
गजेन्द्र की बात पर विराज तुरंत खड़ा हो गया और उसके कंधों पर हाथ रखते हुए बोला - “मैं तुम्हारा दोस्त हूँ, गजेन्द्र... हमेशा तुम्हारें साथ ही रहूँगा। लेकिन तुम मेरी बात मानो, और रिया को नुकसान से बचाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ, पर इस गलत रास्ते पर तुम्हें रोकना मेरा काम है।”
इतना कह विराज गजेन्द्र के कमरे से बाहर चला जाता है। दूसरी ओर रिया अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद अपने अपार्टमेंट में रहने चली जाती हैं। जहां बैठी वो अपने फोन में कुछ दस्तावेज़ देख रही थी, कि तभी उसकी नज़र एक संदिग्ध व्यक्ति पर पड़ती है, जो बाहर खड़ा है। वह कुछ देर देखती है, फिर खिड़की से बाहर झांकती है, लेकिन वो आदमी अभी भी वहीं खड़ा था।
“आखिर ये है कौन... और मेरे अपार्टमेंट के बाहर क्यों खड़ा है इतनी देर से? मुझे अभी के अभी इसके बारे में विराज और गजेन्द्र को बताना चाहिये।”
हैरान-परेशान रिया तुरंत अपना फोन उठाकर गजेन्द्र को कॉल करती है…“गजेन्द्र, कुछ तो गड़बड़ है। बाहर कोई खड़ा था... मुझे लगता है वो मुझे देख रहा था। क्या तुम मेरे पास आ सकते हो?”
रिया की बात सुन गजेन्द्र का चेहरा डर से सफेद पड़ जाता है। उसे तुरंत समझ में आता है कि उसे रिया को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। अभी-अभी वो मौत के मुंह से बाहर आई है, कहीं फिर….“मैं अभी आता हूँ, रिया। तुम कहीं मत जाना, और किसी भी अजनबी के लिये दरवाजा मत खोलना।”
गजेन्द्र तुंरत अपनी कार में बैठ, कार को रिया के घर की तरफ दौड़ा देता हैं। पूरे रास्ते उसके दिमाग में अपने दुश्मनों, अपने दादा गजराज सिंह और चाचा राज राजेश्वर की तस्वीर घूम रही है। वह नहीं जानता कि यह कदम आखिर किसने उठाया होगा। ये ही सब सोचता हुआ वो दस मिनट में रिया के घर पहुंच जाता है और आस-पास चारों तरफ देखता है, लेकिन वहां उसे कोई ऐसा आदमी नजर नहीं आता जिस पर शक किया जा सकें।
“लगता है उसे मेरे आने की भनक लग गई, फिर तो जरूर उस आदमी के कनेक्शन राजघराना के लोगों से है।” ये ही बड़बड़ाता हुआ गजेन्द्र रिया के घर के दरवाजे पर जाता है और घंटी बजाते हुए धीरे से कहता है- "चिंता मत करो रिया, मैं हूं गजेन्द… दरवाजा खोलों।"
रिया जैसे ही दरवाजा खोलती है, वो डर से कांपती हुई गजेन्द्र के गले लग जाती है। इसके बाद गजेन्द्र रिया को उसके साथ राजघराना महल चलने के लिये कहता है, लेकिन रिया साफ-साफ इंकार कर देती है। जिस पर गजेन्द्र भड़कते हुए कहता है- "तो तुम क्या चाहती हो रिया, मैं अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जंग के दौरान.. बार-बार इस तरह तुम्हारे एक फोन कॉल पर दौड़ कर आता-जाता रहूं?”
“मैं क्या चाहती हूं वो छोड़ों गजेन्द्र… पहले ये सोचो कि शहर की सबसे बड़ी जर्नलिस्ट का इस तरह बिना किसी रिश्ते के तुम्हारे साथ तुम्हारे घर पर रहना क्या सही है? पागल मत बनो, वरना कल सुबह चाय की चुस्की के साथ सब लोग हमारे अफेयर की खबरों पर चुटकी लेते नजर आयेंगे। अखबार से लेकर टीवी चैनल तक सिर्फ हम दोनों ही होंगे।”
रिया की बातों ने गजेन्द्र को सोचने पर मजबूर कर दिया था, लेकिन कुछ देर सोचने के बाद उसने फिर अपने ही पक्ष में बात कहीं और बोला- "दुनिया क्या कहेगी या सोचेगी… मुझे इस बात से ना कल फर्क पड़ता था ना आज। मेरे लिये तुम्हारी जिंदगी की सुरक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है।"
गजेन्द्र की जिद्द देख रिया उसे एक बार फिर समझाने की कोशिश करती है और कहती है- देखो कल तक तुम पुणे में रहने वाले एक मामूली होर्स रेसर खिलाड़ी थे, लेकिन अब दुनिया जानती है कि तुम राजगढ़ के राजघराना सिंह परिवार के एकलौते वारिस हो।
"प...प..प...पर रिया....।"
"पर-वर छोड़ों और भूलों मत… मैं जूडो-कराटे चैंपियन हूं।"
रिया के इस मजाक को सुनते ही गजेन्द्र के चेहरे पर हंसी आ गई। इसके बाद दोनों ने कुछ देर एक साथ बैठकर बात की। तभी गजेन्द्र का फोन बजा… दूसरी ओर से आवाज आई- "अरे कहां हो राजघराना के होने वारिस साहब, कोर्ट में पेशी है तुम्हारी भूल गए क्या…?”
कोर्ट में आज अहम सुनवाई है। गजेन्द्र की तरफ से सबूत पेश होने हैं, जबकि दूसरी ओर आज प्रॉसिक्यूटर का वकील भी काफी कॉनफिडेंट नजर आ रहा था। सभी की नजरें कोर्ट के दरवाजे पर थी, क्योंकि गजेन्द्र अब तक कोर्ट नहीं पहुंचा था। तभी सुनावाई शुरु होने के बिल्कुल आखरी सैकेंड में गजेन्द्र भागता हुआ कोर्ट पहुंच गया। लेकिन जैसे ही वो कोर्ट के अंदर कदम रखता है, वहां सुनवाई शुरु हो जाती है, जिसके साथ ही उसे कटघरे में सवाल-जवाब के लिये बुला लिया जाता है। ऐसे में वो विराज से आज की सुनवाई के बारे में कुछ भी नहीं पूछ पाता, जिसका नुकसान उसने प्रॉसिक्यूटर यानी अपने दुश्मनों की टीम के वकील के कड़वे सवालों से चुकाना पड़ता है-
“तो गजेन्द्र साहब, क्या आप इस अदालत को बता सकते है कि आपके पिता बीस साल पहले राजगढ़ में अपना सब कुछ छोड़कर क्यों भाग गए थे? क्योंकि कोई भी आम इंसान अपनी अरबों की दौलत, अपने पिता और परिवार को इस तरह आधी रात बिना बताये बेवजह तो नहीं भाग सकता।"
आज प्रॉसिक्यूटर वकील की आवाज में एक अजीब सी खनक थी, जैसे वो आज गजेन्द्र के खिलाफ कोई बड़ा सबूत पेश करने वाला हो। उसकी आवाज़ में चिढ़ और बेवजह का विश्वास साफ नजर आ रहा था। तभी गजेन्द नें उसके सवाल का जवाब देते हुए कहा- “मेरे पिता मुक्तेश्वर सिंह बीस साल पहले अपने लिये नहीं मेरे लिये भागे थे, और क्यों भागे थे.. मुझे नहीं लगता उस बात का मेरे रेस फिक्सिंग केस से कोई लेना-देना है।”
सभी की निगाहें गजेन्द्र के जवाब पर टिक गई। वहीं मुक्तेश्वर के साथ बैठे गजेन्द्र के दादा गजराज सिंह ने बेटे मुक्तेश्वर के कंधे पर हाथ रखते हुए, उसकी आंखों से छल्लकते उसके आंसुओं को संभालने का इशारा किया, लेकिन तभी उन्होंने गजेन्द्र की तरफ देखा, उसकी आँखों में छिपा बदला सुनामी की तरह महसूस हो रहा है। मानों जैसे वो भी आज कोर्ट में कोई राज खोलने के इरादें से ही आया है।
प्रॉसिक्यूटर वकील गजेन्द्र के इस जवाब को घुमाते हुए उसके पिता मुक्तेश्वर सिंह के बीस साल पुराने मैच फिक्सिंग केस का खुलासा सबूतों के साथ कोर्ट के सामने करने ही वाला होता है कि तभी वहां गजेन्द्र के वकील विराज प्रताप राठौर का पर्सनल असिसेंट आ जाता है, जो तीस सैंकेड में विराज के कानों में कुछ ऐसा कहता है, जिसे सुन उसके चेहरे पर एक बड़ी सी कॉन्फिंडेंट हंसी आ जाती है और वो दमदार आवाज में कहता है-
"प्रॉसिक्यूटर साहब आपके इस सवाल का जवाब टीवी पर लाइव दिखाया जा रहा है, देखना पंसद करेंगे। वैसे मैं जज साहब से कोर्ट के सामने लाइव टेलिकास्ट के जरिये उसे दिखाने की इजाज़त चाहता हूं-”
“इजाज़त है...” जज की परमिशन मिलते ही विराज अपने फोन को कोर्ट की स्क्रीन से कनेक्ट कर एक लाइव न्यूज चैनल चला देता है, जिसकी स्क्रीन पर रिया को देख कोर्ट में मौजूद कुछ लोगों के चेहरे सफेद पड़ जाते हैं। वहीं जब विराज उसे प्ले के बटन पर क्लीक कर लाइव चलाता है, तो रिया कोर्ट के सामने बीस साल पुराने गजेन्द्र के पापा मुक्तेश्वर के हॉर्स रेस मैच फिक्सिंग केस का वो सबूत पेश करती है, जिसे देख जज की आंखे भी फटी की फटी रह जाती है।
वहीं गजेन्द्र उस वीडियो को देखते के साथ हक्का-बक्का रह जाता है और गुस्से से आग बबूला हो विराज की तरफ देखने लगता है।
आखिर क्या है विराज की चाल?
रिया ने मुक्तेश्वर के बीस साल पुराने मैच फिक्सिंग केस का ऐसा कौन सा वीडियो लाइव टेलिकास्ट में दिखाया?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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