जज ने जैसे ही विराज को लाइव टेलिकास्ट न्यूज दिखाने की परमिशन दी, कोर्टरूम की घड़ी की टिक-टिक अचानक थम-सी गई। रिया शर्मा की तस्वीर जैसे ही स्क्रीन पर उभरी, पूरा कोर्टरूम... जज से लेकर वकील, पुलिस टीम और दर्शक सभी लोग एक पल के लिए सन्न रह गए। स्क्रीन पर देश की सबसे बड़ी जर्नलिस्ट ही नहीं बल्कि खुद गजेन्द्र के केस की सबसे बड़ी गवाह रिया शर्मा लाइव टेलिकास्ट के लिये मौजूद थी। 
 
इस समय रिया की आँखों में वैसी ही आग थी, जैसी एक शिकारी की होती है। उसका चेहरा ऐसा लग रहा था मानों उसे आख़िरकार अपना शिकार मिल गया हो। तभी लाइव न्यूज शुरु हो गई और रिया की आवाज प्रॉसिक्यूटर के कानों में सीधे किसी तीर की तरह लगी-
 
“इस केस से जुड़ी सच्चाई सिर्फ कागज़ों में नहीं, रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है... और आज, ये सच्चाई सबके सामने आएगी,” रिया के इतना कहते ही टीवी की स्क्रीन ब्लैक हो गई, और उस पर एक पुराना ब्लैक एंड वाइट फुटेज चलना शुरू हो गया…
 
ये वीडियो बीस साल पुराने हॉर्स-रेसिंग ट्रैक का था। कैमरा घुमाते हुए कैमरापर्सन उसे एक बूढ़े आदमी की तरफ कर मेन फोकस में सेट कर देता हैं। दरअसल ये शख्स कोई आम इंसान नहीं, बल्कि राजघराने के भरोसेमंद नौकरों में से एक था। उस वीडियों में साफ-साफ नजर आ रहा था कि वो एक नौकर होकर भी एक विदेशी खिलाड़ी से ना सिर्फ हाथ मिला रहा था, बल्कि उसके हाथ से एक नोटों की गड्डी लेकर छुपके से उसे अपनी जेब में डाल लेता है। 
 
ये वीडियों देख एक पल के लिये तो गजेन्द्र सदमें में आ जाता है और अपने पिता की ओर देखते हुए उसकी आंखों से आंसू छल्क जाते हैं। लेकिन दूसरे ही पल वो जज की तरफ देखते हुए चिल्लाता है-
 
“देर से हुआ पर सच के साथ इंसाफ हुआ…। देखा जज साहब, मेरे पिता निर्दोष थे। बीस साल पहले जो हुआ वो एक सौदा था, जिसकी वजह से मेरे पिता मुक्तेश्वर सिंह को दोषी ठहराया गया था। जबकि असली दोषी… ये रहा!”
 
जैसे ही गजेन्द्र ये कहता है वीडियो का आख़िरी फ्रेम फ्रीज़ हो जाता है — और उसमें गजराज सिंह के सबसे करीबी सलाहकार की झलक साफ नजर आती है, जिसके साथ बीस साल पुराने केस की वो सच्चाई आज कोर्ट के सामने खुल जाती है, जो भले ही सालों पहले कहीं झूठ की मिट्टी में दफ्न तो हो गई थी, लेकिन गजेन्द्र के मैच फिक्सिंग केस ने उसे ना सिर्फ खोदकर बाहर निकाल दिया… बल्कि साथ ही गजेन्द्र के माथे पर चोर बाप की चोर औलाद का टैग भी लगा दिया था।

इसके बाद गजेन्द्र अपने दादा गजराज सिंह की तरफ देखते हुए कुछ कहने ही वाला होता है, कि उसे अपनी मां के कातिल को ढ़ूंढने की कसम याद आ जाती है और वो ना चाहते हुए भी शांत हो जाता है। क्योंकि वो जानता है कि उसकी मां के कातिल और उसके दादा के बीच कोई ना कोई रिश्ता तो जरूर है। 

तभी गजेन्द्र खुश, लेकिन हैरानी से भरे चेहरे के साथ विराज की तरफ देखता है। और धीरे से बोलता है- “तुमने मुझसे ये बात क्यों छुपाई? जानते हो ना इस वीडियो को लाइव टेलीकास्ट कर रिया ने अपनी मौत को न्यौता दे दिया है।”

"इसलिए, क्योंकि ये लड़ाई तुम्हारे खून की थी... पर ये सबूत तुम्हारी माँ की आत्मा की जीत है, जो अपनी उस डायरी के आखरी शब्द तक कह रही थी कि तुम्हारे पिता निर्दोष है।

जहां एक तरफ विराज और गजेन्द्र के बीच कोर्टरुम में फुसफुसाते हुए ये बाते चल ही रही थी, तो वहीं दूसरी ओर रिया के चैनल इंडिया न्यूज फोरम में एक जबरदस्त तमाशा शुरु हो चुका था।

“रिया तुमने ये क्या किया, तुमने मुझे जो वीडियो दिखाया था…ये तो वो नहीं था। तुम जानती भी हो बदमाश लड़की, कि तुमने मेरे चैनल के साथ क्या किया है। वो अब तुम्हारे साथ-साथ मुझे भी मार डालेगा”
 
“देखिये मिस्टर कुरैशी मैंने एक जर्नलिस्ट होने के कर्म के साथ सिर्फ अपना धर्म निभाया है, और लोगों तक सच पहुंचाया है। आपको तो खुश होना चाहिए कि आपके चैनल के जरिये एक बेगुनाह आदमी को इंसाफ मिला”

रिया शर्मा की ये बात सुनते ही इंडिया न्यूज फोरम चैनल का मालिक मिस्टर कुरैशी भड़क उठा और उसने पानी से भरा एक ग्लास सीधे रिया के मुंह पर फेंक दिया और बोला - “सच-झूठ, इंसाफ का खेल… बंद करों अपनी ये बकवास बातें और मेरी बाते कान खोलकर सुनों। तुम अभी के अभी दुबारा चैनल पर लाइव न्यूज करोगी, जिसमें कहोगी- कि ये वीडियो एडिट करके बनाया गया है और तुम अपने झूठ के लिये शर्मिंदा हो। या फिर तुमने ये सब उस गजेन्द्र की बातों और बहकावे में आकर किया।”

रिया अपने चैनल मालिक के इस बयान को सुन सर से पैर तक हिल गई और उसे सारा खेल समझ आ गया कि कैसे बीस साल पहले मीडिया को खरीदा गया था। ऐसे में वो अपने बॉस मिस्टर कुरैशी की किसी बात का जवाब नहीं देती और उसके मुंह पर रिजाइन लेटर मार… वहां से चली जाती है और सीधे कोर्ट पहुंच जाती है।
 
और ठीक उसी पल कोर्ट रूम में…

रिया शर्मा कोर्ट के अंदर दाखिल होती है। उसे देख वहां एक लंबा स्लो-मोमेंट छा जाता है। सफेद कुर्ते और गहरे नीले दुपट्टे में रिया शर्मा कैमरे के सामने नहीं, अब सच्चाई के क़रीब खड़ी थी। जिसकी चमक उसके चेहरे पर थी। वो वहां पहुंचते के साथ कुछ कहने की कोशिश करती है, जिस पर जज साहब उसे डाटतें हुए कहते हैं- “कोर्ट की कार्रवाई में दखल देने के आरोप में मैं तुम्हें जेल भेज सकता हूं, तो अच्छा यहीं होगा कि शांति से अपनी सीट पर बैठ जाओ।”

जज की ये बात सुनते ही विराज अपने क्लाइंट गजेन्द्र के मैच फिक्सिंग केस को उसके पिता मुक्तेश्वर के केस से जोड़ते हुए कहता है- "जज साहब, रिया जो कह रही है वो बिल्कुल सही है। गजेन्द्र को उसके पिता मुक्तेश्वर की तरह ही मैच फिक्सिंग के केस में फंसाया गया है, जिसके सबूत कोर्ट के सामने पेश करने के लिये मुझे थोड़ी मोहलत चाहिये-”

"परमिशन ग्राटेंट..!”
 
इतना कह जज ने विराज को एक महीने की मोहलत देते हुए केस की अगली तारीख रख दी, जिसे सुनते ही जहां गजेन्द्र और रिया के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कुराहट दौड़ गई, तो वहीं विपक्ष का वकील तिलमिला उठा और बोला- ये कोर्ट का समय बर्बाद कर रहे है जज साहब… जरूरी नहीं कि पिता बेगुनाह निकला तो बेटा भी बेगुनाह हो। मेरी मानिये एक बार आप मेरे गवाह को भी सुन लिजिये।
 
गुस्से से तिलमिलाया विपक्ष के वकील मिस्टर राणा की ये बात सुन जज ने एक लाइन कहीं और सीधे कोर्टरूम से बाहर चले गए।

"बिल्कुल मिस्टर राणा हम आपके गवाह को भी अगली सुनवाई में जरूर सुनेंगे। आपने सुना है ना कि कानून कहता है कि भले ही 100 गुनहगार छूट जाये पर एक बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिये।"

कोर्ट की आज की कार्रवाई खत्म हो गई, जिसके बाद गजेन्द्र अपने पिता मुक्तेश्वर सिंह, रिया और विराज के साथ राजघराना महल पहुंचा, लेकिन वहां का नजारा देख उसकी आखें चौंधिया गई।

दरअसल आज राजघराना महल एक बार फिर किसी दुल्हन की तरह सजा हुआ था, दरवाजे पर प्रभा ताई पूजा की थाली लिये खड़ी थी, “आओ-आओ मेरे भाई मुक्तेश्वर… मुझे तो बीस साल पहले ही पता था कि तुम बेगुनाह हो।”
 
इतना कह जहां प्रभा ताई मुक्तेश्वर की आरती उतारने लगी, तो वहीं गजेन्द्र-विराज और रिया एक-दूसरे की आंखों में देख एक अजीब सी शैतानी हंसी हंस रहे थे। तभी गजेन्द्र ने कहा- “बुआ साहेब जब आप जानती थी कि पापा बेगुनाह है, तो आपने पिता जी के घर छोड़कर जाने के बाद एक बार भी उनसे मिलने की कोशिश क्यों नहीं की थी”

“व...व...वो गजेन्द्र बेटा, वो कानून और सबूतों...”

प्रभा ताई अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही गजेन्द्र ने उनकी बात को बीच में काट दिया और बोला, सुनिये बुआ साहेब सिर्फ पापा की ही नहीं, बल्कि मेरी दोस्त रिया का भी इस महल में आरती के साथ स्वागत करिये… आज के बाद ये यहीं रहेगी, हमारे साथ...।

गजेन्द्र की ये बात सुनते ही प्रभा ताई से लेकर राजराजेश्वर और राघव भौसले तक सभी चौक गए और एक साथ पूछ पड़े - "ये यहां क्यों रहेगी…?”
 
सबको एक साथ चौकता देख, गजेन्द्र दंग रह गया। हालांकि उसने बात को अपने अंदाज से घुमाते हुए कहा- “क्योंकि ये अब मेरी जिंम्मेंदारी है। इसने मेरे पापा को बेगुनाह साबित करने के लिये मेरे दुश्मनों के मुंह पर सच का जोरदार चाटा मारा है, तो मेरा फर्ज बनता है मैं इसकी रक्षा करूं… क्यों दादा साहेब सहीं कहा ना मैंने।”

आज कोर्ट की कार्रवाई के बाद गजराज पहले ही अतीत के पन्नों में अपने बेटे मुक्तेश्वर की जिंदगी के बीस साल बर्बाद होने का गुनहगार बन चुका था, ऐसे में वो अब पोते गजेन्द्र की नजरो में और नहीं गिरना चाहता था। थोड़ी ही देर में रिया एक-एक कर महल के लोगों से मिलने लगी, लेकिन जैसे ही वो प्रभा ताई के पास पहुंची… उन्होंने उसे धकेलते हुए कहा-

"सुन छोरी, मारा सूं दूर ही रैहजे... थारा जैसां चालाकी सूं म्हारा गजेंद्र ने फंसाय कै महल मं तो घुस आई, पर ए महल सूं बहार अब थारी लाश ही जासी!"

रिया विदेश में पली-बड़ी थी, ऐसे में राजस्थानी भाषा में प्रभा ताई ने क्या कहा… उसे कुछ समझ नहीं आया पर गजेन्द्र सब समझ कर भी अंजान बन रिया को वहां से गेस्ट रूम की तरफ लेकर चला गया। वहीं उन दोनों के वहां से जाने के बाद राजघराना में नौकरों के बीच उसे लेकर चुगलीबाजी शुरु हो गई।

"वो जयपुर सूं आई है... पत्रकार है... पर लागे कोनी के कोई साधारण रिपोर्टर होवे।"

"ठीक ही कहे है, घणी चालाक छोरी है — जेके हुस्न रा जाल में राजघराने रा वारिस ने ही फांस लियो!"

जहां एक तरफ महल के एक कोने में ये सारी बातें चल रही थी, तो वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र ने फाइनली रिया से वो सवाल पूछ ही लिया, जिसे पूछने के लिये वो कोर्ट से बाहर निकलने के बाद से बेताब था।

"तो ये सब तुम्हारी चाल थी?" गजेन्द्र की आवाज ओर गुस्सा दोनों बंद कमरे में गूंज जाते हैं।

रिया ने गजेन्द्र की आंखों में आंखें डालकर जवाब दिया — “अगर सच्चाई को चाल मानते हो, तो हाँ… ये चाल मेरी थी। लेकिन मैंने किसी को बेनकाब नहीं किया, सिर्फ आईना दिखाया है।”
 
गजेन्द्र कुछ कहने ही वाला था कि तभी राजघराना महल में पुलिस के चिल्लाने की आवाज गूंजने लगती है— “गजेन्द्र सिंह! आपको कोर्ट की अवमानना और गवाह को धमकाने के मामले में दोबारा पूछताछ के लिये बुलाया गया है!”
 
पुलिस ऑफिसर के इतना कहते ही रिया जोरदार अंदाज में ठहाके मारकर हँसती है और कहती है— “Breaking News: राजघराना का वारिस फिर पुलिस की गिरफ्त में!”

गजेन्द्र को रिया का ये बदला अंदाज बिल्कुल समझ नहीं आता। वो सोच में पड़ जाता है कि राजघराना महल में कदम रखते ही रिया कैसे बदल गई… और वो उसकी गिरफ्तारी पर आखिर खुश क्यों हो रही थी। कि तभी वो देखता है कि उसका वकील विराज प्रताप सिंह दौड़ा हुआ आता है और रिया के बगल में आ उसके कानों में कुछ कहता है, जिसे सुन रिया के चेहरे की हंसी और भी ज्यादा बड़ी हो जाती है.…

गजेन्द्र रिया और विराज की करतूत को समझ पाता या उनसे कोई सवाल कर पाता उससे पहले ही पुलिस गजेन्द्र को पुलिस जीप में बैठा वहां से लेकर चली जाती है। जिसके बाद रिया तुरंत किसी को फोन लगाती है-

फोन के दूसरी ओर एक बेहद खूबसूरत, लेकिन उम्र दराज महिला थी। जो जयगढ़ के एक बड़े से महल में चल रही था, फोन पर बाते करते-करते वो एक तहखाने के पुराने दरवाज़े को खोलती है, जहां से काफी धूल उड़ती है… उस महिला की कलाई में बंधी हुई सोने की चूड़ी, जिसकी बनावट बताती है कि वो राजस्थान की किसी रॉयल फैमली से है...। तभी रिया की आवाज फोन पर गूंजती है-

खम्मा घणी रानी सा! काम हो गया… उम्मीद करती हूं आप खुश होंगी।

 

आखिर कौन है रिया? और वो चाल चल रही है वो गजेन्द्र और राजघराना के लोगों के साथ? 

क्या गजेन्द्र सच में मासूम है, या विरासत की आग और रिया के प्यार ने उसे अंधा बना दिया है?  

कौन है ये औरत, जिसका साथ दे रही है रिया? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।

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