राजमहल में गजेन्द्र की गिरफ्तारी के बाद सनाटा छा गया था। सबके चेहरे पर सवाल था कि क्या गजेन्द्र सच में दोषी है?
वहीं रिया अपने कमरे में बैठी एक पुरानी डायरी के पन्ने पलट रही होती है। ये डायरी उसी रहस्यमयी रानी सा की थी, जिससे वो कुछ देर पहले फोन पर बात कर रही थी। उन पन्नों को पटलते हुए वो खुद से ही बातें कर रही थी - "सच इस दुनिया का सबसे बड़ा हथियार है… जब सामने लोगों को अपने पैरों तले रौंद कर खुद को राजा समझता है। तब रानी ही होती है, जो शतरंज का पूरा खेल अपने हिसाब से पलट देती। हाहाहाहा"
दूसरी ओर अपने कमरे में बैठी प्रभा ताई राघव भौसले से कहती है- "मैंने उस चालाक लोमड़ी रिया को किसी से फोन पर बात करते सुना। वो उसे रानी सा कह रही थी। हमे जल्द से जल्द इस रानी सा के राज़ से पर्दा उठाना होगा।"
प्रभा ताई की बात सुन राघव भौसले पलटा और बोला- “मुझे पूरा यकीन है ये लड़की राजघराना के दुश्मनों में से किसी के लिये काम करती है। क्योंकि आज जब पुलिस गजेन्द्र को गिरफ्तार करके ले जा रही थी, तो वो बड़ी खुश थी। लेकिन उसे क्या पता वो अंजाने में हमारी मदद ही कर रही है, हाहाहाहा।”
आखिर कौन है ये रानी सा? सबके दिमाग में ये ही एक सवाल घूम रहा था। दरअसल ये असल में गजेन्द्र की सौतेली दादी है। यानि गजराज सिंह की दूसरी पत्नी, जिन्हें आजादी की लड़ाई के समय महल से निकाल दिया गया था, क्योंकि वो "विदेशी" थी।
हालांकि रिया का उनसे क्या नाता था और वो असल में गजेन्द्र का भला चाहती थी या बूरा… ये खुद रिया भी नहीं जानती थी। वो बस फिलहाल वो कर रही थी, जो रानी सा उससे करवा रही थी, लेकिन ये भी सच था कि रिया अब गजेन्द्र की सच्चाई से प्यार करने लगी थी।
जहां एक तरफ रिया रानी सा और गजेन्द्र के बीच उलझी अपनी इस जिंदगी के सवालों को समेट रही थी, तो वहीं दूसरी ओर विराज, जो अब तक गजेन्द्र का वकील और दोस्त था, दरअसल रिया का कॉलिज फ्रेंड और एक्स बॉयफ्रेंड रह चुका था।
वो सबकी नजरों से छिपकर रिया की प्लानिंग में उसका साथ तो दे रहा था, लेकिन वो ऐसा कुछ नहीं कर रहा था जो गजेन्द्र के खिलाफ हो। क्योंकि वो दिल से गजेन्द्र का दोस्त बन चुका था। वहीं अब रिया भी उसकी महज दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं थी।
वहीं जेल की सलाखों के पीछे बंद गजेन्द्र इस कशमकश में था कि आखिर रिया उसकी गिरफ्तारी पर खुश क्यों थी। आखिर वो और विराज दुबारा ऐसी कौन सी चाल चलने वाले है, जिसके बारे में उसे नही पता… गजेन्द्र अभी ये सब सोच ही रहा होता है, कि तभी रिया विराज के साथ गजेन्द्र से मिलने जयपुर जेल पहुंच जाती है... और कुछ ऐसा कहती है, जिसे सुन गजेन्द्र के पैरों तले जमींन खिसक जाती है।
"और कैसी लग रही है जेल की सलाखें गजेन्द्र?”
"आखिर तुम कौन सी चाल चल रही हो रिया? आखिर तुम मेरी गिरफ्तारी पर इतनी खुश क्यों थी? और तुम विराज ये दोस्त का मुखौटा पहन कौन सी दुश्मनी निभा रहे हो?”
गजेन्द्र के मुंह से एक साथ इतने सवाल सुन रिया और विराज दोनों पहले उसे शांत कराते हैं और फिर रिया कहती है - “चाल हम नहीं चल रहे गजेन्द्र… चाल तो राजघराना महल में रह रहें तुम्हारे वो अपने रच रहे हैं। दरअसल उनकी प्लानिंग आज तुम्हें मार डालने की थी। इसके लिये उन्होंने गुंडो को भी हायर किया था। ऐसे में मुझे और विराज को तुम्हारे लिये सबसे सेफ जगह जेल ही लगी।”
"क्या… ये क्या कह रहे हो तुम दोनों… कहीं फिर कोई नई चाल तो नहीं चल रही तुम रिया?”
अगर तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं, तो मैं आज और अभी राजघराना महल से निकल जाती हूं। मैं क्यों फालतू में एक शकी बॉयफ्रेंड के लिये अपनी जान दांव पर लगाऊ?
गजेन्द्र पलट कर रिया पर एक और सवाल दागने ही वाला होता है, कि तभी उसे याद आता है कि रिया ने अभी-अभी क्या कहा, “क्या कहा तुमने.. बॉयफ्रेंड… ओह माई गॉड रिया… तुमने तो जेल की सलाखों के पीछे भी मेरा दिन बना दिया। अब तो चाहे मैं जेल में बंद हूं या काल कोठरी मे… सब जन्नत ही नजर आयेंगे।”
गजेन्द्र की बातें सुन रिया शर्म से लाल हो जाती है। लेकिन तभी वो बात को पलटते हुए कहती है - देखों तुम यहां भी काफी सचेत रहना.. किसी पर भी जरा सा भी शक हो तो पुलिस को या फिर हमें फोन कर जरूर बताना। बाकी राजघराना के उन शातिर लोगों की चिंता तुम मत करों... उन्हें तो मैं अकेली ही सीधा कर दूंगी। उनके मुंह से तुम्हें मैंच फिक्सिंग के केस में फंसाने से लेकर तुम्हारी मां की मौत की गुत्थी भी सुलझा कर मानूंगी।
इतना कह जहां रिया विराज के साथ वापस राजघराने की ओर चली जाती है, तो वहां पहुंचते ही वो फोन पर बताये उसी रानी सा के गुप्त तहखाने में जाती है, जहां उसे एक और पुरानी डायरी मिलती है। रिया उसे लेकर अपने कमरे में आ जाती है, लेकिन जैसे ही कमरे के दरवाजे को बंद कर वो उसका पहला पन्ना खोलती है वो उस पर लिखे नाम को पढ़ सुन्न पड़ जाती है।
दरअसल ये डायरी किसी और की नहीं बल्कि रिया की मां की थी। असल में रिया का रिश्ता भी राजघराने से जुड़ा हुआ था। डायरी के मुताबिक रिया की मां कभी राजघराने में नर्स थी, और गजराज सिंह के एक गहरे राज की गवाह भी, जिसका खुलासा उस डायरी के अंत पेज पर अधूरा था। उसे पढ़ते के साथ रिया बेचैन हो उठती है और आधी रात दुबारा उस तहखाने में उस डायरी के आगे की कहानी की तालाश में पागलों की तरह सामान को इधर-उधर फेंकने लगती है।
उसी रात जेल की सलाखों के पीछे बंद गजेन्द्र रिया के प्यार के इजहार की दुनिया में मग्न होता है, कि तभी उस जेल की कोठरी में अंधेरे के कोने में बैठा एक बूढ़ा कैदी धीरे से गजेन्द्र के पास सरकता हुआ आता है। उसकी आँखों में वक्त की धूल और अनुभव की चिंगारी दोनों चमक रही थी। वो धीरे से गजेन्द्र के कानों के पास आता है और कहता है - “तू जिस खेल में फंसा है, बेटा... उसके मोहरे तेरे महल में नहीं, रेसिंग बोर्ड की सबसे ऊँची कुर्सियों पर बैठे हैं। दिमाग पर अच्छे से जोर डाल और सोच... तेरी हार से किसे सबसे बड़ा फायदा हुआ?”
गजेन्द्र चौंककर उस बूढ़े आदमी की तरफ देखता है, लेकिन उससे पहले ही वो बूढ़ा खांसता है और फिर चुप होकर वापस उसी कोने में जाकर बैठ जाता है। मानो जैसे उसे गजेन्द्र से डर लग रहा हो।
इस एक अमावस की काली रात में सभी की जिंदगिया उलझ गई थी। जहां रिया उस डायरी को पढ़कर परेशान हो गई थी, तो वहीं गजेन्द्र उस बूढ़े काका से सवालों से चौक गया था। और इसी वक्त दूसरी ओर, विराज अपनी कार में बैठा होता है और तभी उसके मोबाइल पर एक अज्ञात नंबर से कॉल आता है।
फोन उठाते ही दूसरी ओर से आवाज आती है - "पैडॉक एरिया की असली फुटेज चाहिए थी ना? देख लो, तुम्हारे दोस्त गजेन्द्र को वाकई फँसाया गया था। अब फैसला तुम्हारे हाथ में है। मुझे यकीन है तुमने जैसे उसके पिता मुक्तेश्वर को बचाया, तुम उसे भी बचा ही लोगे"
विराज पलट कर उस शख्स से उसकी पहचान पूछता है… वो बार-बार अपना सवाल दोहराता है, लेकिन वो शख्स अपनी बात खत्म कर सीधे फोन काट देता है। कॉल कट जाता है, और अगले ही पल विराज के घर के दरवाजे की घंटी बजती है। वो दरवाजा खोलता है तो बाहर एक पैकेज डिलीवर होता है। वो आस-पास चारों तरफ देखता है, लेकिन वहां उसे उस पैकेट को लाकर दरवाजे पर रखना वाला कोई शख्स दिखाइ नहीं देता। ऐसे में वो पैकेट को खोल उसमें रखे सामान को बाहर निकालता है, तो देखता है कि उसमें— एक पेन ड्राइव रखी थी।
विराज तुरंत उसे लैपटॉप में लगाता है और जैसे ही फुटेज प्ले होती है, उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं। वो खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है-"गजेन्द्र... तू सही था यार... असली साजिश तो वहां से चली थी, जहां से सबसे ज्यादा न्याय की उम्मीद थी! ये मैंने क्या किया अपने ही दोस्त पर भरोसा नहीं किया।"
विराज फुटेज में देखता है कि एक जानी-पहचानी शक्ल, रेसिंग बोर्ड का एक बड़ा अफसर… एक रहस्यमयी अंजान आदमी से पैसे लेते हुए, और कुछ पेपर पर गजेन्द्र के नाम से फर्जी साइन करता है।
ये देख विराज दंग रह जाता है और कहता है- “शतरंज की बिसात अब उलट चुकी है... अब हर चाल मेरी होगी, और हर मात गजेन्द के दुश्मनों की। मैं किसी को नहीं छोड़ूगां। एक-एक को जेल की सलाखों के पीछे डलवाउंगा”
विराज अभी ये सब बोल ही रहा होता है, कि तभी उसकी नजर उस वीडियो के एक ऐसे हिस्से पर पड़ती है, जिसे देख वो तुरंत फुटेज को रिवाइंड करता है और फिर एक फ्रेम पर रुक जाता है और कंप्यूटर की स्क्रीन को ज़ूम इन करता है। इस दौरान वो जैसे ही स्क्रीन पर नजर आ रहे चेहरे को गौर से देखता है उसके चेहरे का रंग उड़ जाता है। और वो खुद से कहता है - "ये कैसे हो सकता है...। न..न...नहीं ये सच नहीं हो सकता।"
कि तभी उसके दरवाजे की घंटी बजती है। विराज चौक जाता है कि इतनी रात आखिर कौन आया होगा, वो तुरंत लैपटॉप की स्क्रीन को बंद कर देता है और दरवाजा खोलता है। लेकिन जैसे ही वो दरवाजे पर खड़ी रिया को देखता है, उसके चेहरे पर पसीने के धार बहने लगती है। वो रिया को घर के अंदर कर तुरंत दरवाजा बंद करता है और उसे एक-एक कर उस पेनड्राइव वाली पूरी बात बताता है। रिया उसके लैपटॉप की तरफ बढ़ती है और स्क्रीन पर देखती है।
फुटेज में साफ-साफ नजर आ रहा था कि प्रभा ताई, जो पैडॉक एरिया में एक संदिग्ध आदमी को निर्देश दे रही है। रिया ये देख चौक जाती है और चिल्लाकर हैरानी से कहती है- “प्रभा ताई!? इसका मतलब ये साजिश सिर्फ बाहर से नहीं... घर के अंदर से भी रची गई थी!”
विराज खड़ा हो जाता है, उसकी आंखों में अब संदेह नहीं, जंग झलक रही थी। इसके साथ ही वो प्रभा ताई से नजर हटा उसे पीछे नकाब पहने शख्स पर गौर करने को कहता है, जिसे देख रिया गुस्से से तिलमिला उठती है - "अब बहुत हो गया... अब वक्त है उस खेल को ख़त्म करने का, जो 'राजघराना' के नाम पर खेला गया।"
रिया की आंखों में आंसू हैं, लेकिन चेहरा पत्थर सा सख़्त हो जाता है। उसे मन ही मन गजेन्द्र के लिये बहुत बुरा लगता है। ऐसे में वो विराज को उस गुप्त तहखाने के बारें में बताते हुए कहती है-
“मेरी मां की डायरी अधूरी नहीं थी विराज... उसे अधूरा छोड़ना पड़ा था… क्योंकि वो सच जान गई थी। और अब मैं भी वो सच जानकर रहूंगी। तुम्हें पता है जो अधूरी डायरी मेरे पास थी, उसका दूसरा चैप्टर मुझे उसी तहखाने में मिला। लेकिन वो भी अधूरी है, जिसका मतलब है कि मेरी मां ने तीसरी डायरी भी लिखी थी। अब मुझे वहीं तीसरी डायरी मेरे जन्म की कहानी से लेकर मेरी मां का राजघराने से रिश्ता और उसे आखिर किसने चुप करवाया था, इन सारे सवालों के जवाब दे सकती है!”
तभी रिया का फोन बजता है और दूसरी ओर से उसी रहस्यमयी रानी सा की आवाज आती है, जो कहती है— “असली खेल शुरू हो चुका है... याद रखना अब अगर तुमने एक भी चाल गलत चली तो तुम हो या राजघराने का वो एकलौता वारिस गजेन्द्र… सब मर जायेंगे! हाहाहाहाहा।”
उस रहस्यमयी रानी सा से बात करने के बाद रिया तुंरत विराज की तरफ मुड़ती है और कहती है— “अब ये सिर्फ गजेन्द्र और उसकी मां की मौत की लड़ाई नहीं है विराज...। ये मेरी मां के अधूरे सच, और उस हर औरत की लड़ाई है, जिसे राजघरानों की उन काली कोठरियों में दफ़न कर खामोशी की नींद सुलाया गया है। उन सभी बेजुबान औरतों की कसम अब एक औरत ही इस खेल को 'Checkmate' करेगी!”
आखिर क्या करने वाली है रिया?
विराज वीडियो में किस शख्स का चेहरा देख सर से पैर तक कांप गया?
और अब आगे क्या होने वाला है गजेन्द्र के साथ?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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