रिया का चेहरा तेज़ी से सख्त हो जाता है। रानी सा की धमकी भरी आवाज अब भी उसके कानों में गूंज रही थी। वह फोन बंद करते हुए ना सिर्फ कांप रही थी, बल्कि खुद से ही बातें भी कर रही थी— "अब ये खेल सिर्फ महल का नहीं, इतिहास का बदला है। मैं डरूंगी नहीं, मैं हर जवाब हासिल करूंगी।"

रिया की ऐसी हालत देख विराज डर गया। उसने एकाएक रिया को झकझौर कर उसके डर से बाहर निकाला और चिल्लाकर बोला— कौन था फोन कॉल पर रिया? और आखिर ऐसा क्या कहा उसने तुमसे, जिसे सुन तुम इतना ज्यादा डर गई हो...? कुछ तो बोलो रिया...? मुंह तो खोलों, मुझे डर लग रहा है तुम्हारी ऐसी हालत देखकर।
 
रिया ने विराज के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया और अपना पर्स उठा सीधे उसके के घर से बाहर निकल गई। विराज ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिया डर से मानों बेकाबू हो चुकी थी। 

वहीं दूसरी ओर जैसे ही रिया विराज के घर से निकलकर वापस राजघराना महल पहुंची तो उसने देखा, महल को आज किसी दुल्हन की तरह साजाया गया है। बड़े-बड़े झूमर, कांच की चमकदार दीवारें और राजघराने की बरसों पुरानी पेंटिंग्स आज ऐसे चमक रही थी, मानों नई हो। 

आंखे बड़ी कर रिया पूरे महल के हर कोने को निहार रही थी, कि तभी गजेन्द्र के दादा यानि राजघराना किंग गजराज सिंह वहां आ गए और रिया को देख कर कहा— "सुनों लड़की बीस साल बाद मेरा पूरा परिवार एक साथ है… ऐसे में आज राजघराने की एकता और अखण्डता को दुनिया के सामने दिखानें के इरादे से ये ग्रैंड पार्टी रखी गई है तो तुम भी कुछ अच्छें कपड़े पहन कर हमारी खुशियों में शामिल होने आ जाना शाम को।

गजराज के दिखावे पर रिया का मुंह बन गया और उसने पलट कर जवाब देते हुए कहा— देखिये दादा जी, राजघराने के लोगों में आपस में कितनी एकता और कितना प्यार है, ये कल कोर्ट रुम के लाइव टेलिकास्ट में पूरी दुनिया देख चुकी है। खैर मेरे पास आपकी इन फालतू पार्टीज के लिये टाइम नहीं है।

इतना कह जहां रिया सीधे अपने कमरे में चली जाती है, तो वहीं उसकी बातों से तिलमिलाया गजराज सिंह भी पार्टी के लिये तैयार होने चला जाता है। शाम होते ही पार्टी में मेहमानों का आना शुरु होता है। इसी दौरान हॉल में जैसे ही राज राजेश्वर सिंह की एंट्री होती हैं, सभी मेहमान खड़े हो जाते हैं। हाथ में जाम, आंखों में चाल और होंठों पर मुस्कराहट लिये राजेश्वर एक पॉलिटिशियन की तरह आया और सबसे मिलने लगा।

तभी मंच पर से एक आवाज सुनाई दी और सभी मंच की तरफ मुड़ गए— “और अब आपके सामने आ रहे है— राजघराने के वारिस मुक्तेश्वर सिंह जी, जो बीस सालों बाद राजघराना महल में लौटे हैं। और उनके लौटते ही राजा गजराज सिंह ने राजघराना की कमान उनके हाथों में देने का फैसला किया है।”

मुक्तेश्वर के वारिस होने की घोषणा सुनते ही जहा राज राजेश्वर का चेहरा सफेद पड़ गया, तो वहीं पार्टी में मौजूद भीड़ में फुसफुसाहट शुरु हो गई। हालांकि इस दौरान कुछ लोगों में ताली बजाकर मुक्तेशर का मंच पर स्वागत भी किया। मंच पर आते ही गम्भीर, शांत व्यक्तित्व वाले मुक्तेश्वर सिंह के चेहरे पर अनुभव की रेखाएं और आंखों में जले हुए सपनों की राख उसके शब्दों के रूप में सामने आने लगी।

तभी, मंच के बिल्कुल ठीक सामने खड़ा राज राजेश्वर सिंह ठहाके मारकर हंसता है और फिर हाथ में शराब का एक कड़वा जाम उठाते हुए बोलता हैं — “वाह! बीस साल बाद हमारे बड़े भाई साहब लौट आए हैं! क्यों नहीं आते? जब महल की गद्दी हिल रही हो और बेटे पर केस चल रहा हो — तब तो लौटना बनता है ना?”
 
पार्टी में मौजूद भीड़ के बीच सन्नाटा पसर जाता है। तभी हाथ में जाम का ग्लास लिये राज राजेश्वर आगे बढ़ता हैं और मंच के पास जाकर मुक्तेश्वर की आंखों में आंखें डालकर कहता हैं — “सवाल मेरा नहीं है भाईसाहब… सवाल इस महल का है। तो क्या आप बतायेंगे, कि आप किस लालच में लौटे हैं... सत्ता की कुर्सी की भूख में, या अपने उस हॉर्स मैच फिक्सिंग के आरोपी बेटे को बचाने की मजबूरी में?”
 
पार्टी हॉल के पहले फ्लोर पर खड़ा गजराज सिंह अपने दोनों बेटों को इस तरह सरेआम राजघराना की इज्जत को तार-तार करते ऐसे खामोंशी से बेजान खड़ा था, मानों जैसे वो मर गया हो।
 
काफी देर से अपने छोटे भाई राज राजेश्वर के मुंह से इस तरह सरेआम बेइज्जत होने के बाद भी खामोश खड़ा मुक्तेश्वर सिंह गहरी सांस लेता है, वो कुछ कहने के लिये मुंह खोलने ही वाला होता है कि तभी पार्टी हॉल का दरवाजा खुलता है और सामने से रिया की एंट्री होती है….एकाएक सबका ध्यान उसकी ओर चला जाता है। कंधे पर झोला, हाथ में डायरी और चेहरे पर ठंडे भाव लिये रिया मंच के पास जाती है और अपनी ऊंची आवाज़ में कहती है —

“अरे राज राजेश्वर चाचा जी, आप भी तो अपने बड़े भाई मुक्तेश्वर अंकल को कुर्सी के लालच में ही तो इतना सुना रहे हैं। दरअसल क्या है पार्टी में मौजूद दोस्तों राजेश्वर अंकल ने बीस साल पहले मुक्तेश्वर अंकल को रेस फिक्सिंग के केस में फंसा कर पहले उनके पिता गजराज सिंह की नजरों में गिराया और फिर उन्हें घर से निकाल अपनी मां के सारे गहने चोरी कर भागने का आरोप भी लगा दिया। बाकी आप लोग खुद समझदार है।”
 
इतना कह रिया वहां से जाने लगीं और पूरी पार्टी में हंगामा मच गया। हर कोई राजघराना की अंदरुनी कुर्सी की लड़ाई और झूठे दिखावटी रिश्तों पर थू-थू करने लगा, लेकिन तभी अपना बीस साल पूराना सारा खेल बिगड़ता देख राज राजेश्वर तिलमिला उठा और रिया पर चिल्लाते हुए बोला - "बकवास बंद कर, दो कौड़ी की जर्नलिस्ट लड़की… तेरे पास क्या सबूत है, जो इस तरह सबके सामने मुझ पर इल्जाम लगा रही है।"

"सबूत मेर हाथ में ही है, कहियें तो अभी सबके सामने लाइव दिखा दूं। आप जानते है ना जर्नलिस्ट होने के नाते मुझे लाइव सबूत दिखाना कितना पंसद है। हाहाहाहा"

रिया की बातों में कॉन्फिडेंट साफ झलक रहा था, जिसे देख राजेश्वर हां नहीं कह पाया, हालांकि रिया ने उसकी खामोशी को भांपते हुए आगे कुछ ऐसा कहा जिसे सुन राजेश्वर के साथ-साथ प्रभा ताई उसका पति राघव भौंसले और गजराज सिंह सभी के होश उड़ गए।

छोड़िये राजेश्वर अंकल मैं जानती हूं आप सबूत दिखाने के लिये कभी हा नहीं करेगें, लेकिन अब मैं दिखा कर रहूंगी, वो भी यहीं लाइव...।

इतना कहते के साथ रिया ने अपने उस झोले में से दो डायरी निकाली और उसे गजराज के हाथ में देते हुए बोलीं- “इस राजघराने की असल कुर्सी अब राजनेताओं की नहीं, सच्चाई की होगी! और जिस दिन तीसरी डायरी का सच बाहर आएगा… उस दिन इस महल की नींव हिल जाएगी!”
 
रिया की तीसरी डायरी वाली बात सुन जहां गजराज और राजेश्वर के चेहरे पर परेशानी के बादल छा गए, तो वहीं मुक्तेश्वर और पार्टी में मौजूद सभी लोगों में हड़कंप मच गया... कि आखिर रिया किस डायरी की बात कर रही है? और उसमें राजघराना का ऐसा कौन सा राज है, जो सबको बर्बाद कर सकता है?

तभी राज राजेश्वर रिया की तरफ बढ़ता है और उसे अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से घूरते हुए कहता है- "दो टके की छोरी को गजेन्द्र ने अपने साथ-साथ हमारे सर पर भी बैठा दिया है। ना जाने किस डायरी की बात कर रही है…? “

राज राजेश्वर का ये सवाल सुनते ही रिया पलट कर फिर कुछ ऐसा कहती है, जिसे सुन पार्टी में मौजूद सभी लोग वहां से चले जाते हैं- "राजेश्वर सिंह… अगर आपकी याद्दाश्त कमज़ोर है, तो इस डायरी के पन्ने शायद उसे ताज़ा कर देंगे। आप जानते है इसमें उस रात की पूरी कहानी… जब आपने महल की एक औरत की आवाज़ हमेशा के लिये बंद कर दी थी!"

रिया के इतना कहते ही राजेश्वर चिल्ला पड़ता है… जिसके बाद एक-एक कर पार्टी के सभी मेहमान चले जाते है और पूरे राजघराने में सन्नाटा पसर जाता है।
 
गजराज और राजेश्वर दोनों को ये समझ नहीं आता कि आखिर रिया के पास ये दोनों डायरी कहा से आई और वो जिस तीसरी डायरी की बात कर रही है, वो उसने कहां छिपाई है? दोनों महल के उस गुप्त कमरे में बैठे इस बारे में बात कर ही रहे थे कि तभी राज राजेश्वर का फोन बजा। उसने फोन स्क्रीन पर अननोन नंबर देखा तो गुस्सें में काट दिया, लेकिन बार-बार फोन बजने के बाद उसने आखिरकार गुस्से में फोन उठाया और चिल्लाकर बोला- "कौन है…? फोन काटने का मतलब समझ नहीं आता क्या…? नहीं बात करनी मुझे!!!”
 
"तो यहां भी कौन तुम जैसे नामर्द से बात करने के लिये मरा जा रहा है। मैंने तो बस ये बताने के लिये फोन किया है कि मैं हम दोनों के बीच का रिश्ता आज खत्म कर रही हूं। आज के बाद ना तुम मुझे जानते हो ना मैं तुम्हें। समझे!!!”

ये आवाज सुनते ही राज राजेश्वर का गुस्सा एकदम से ठंडा पड़ गया और कुछ देर पहले गुर्राने वाला राज राजेश्वर अब उसी फोन करने वाले शख्स के आगे गिड़गिड़ाने लगा।

नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकती। देखों हमने तय किया था कि हम इस रिश्तें को कभी खत्म नहीं करेंगे। 
 
हां, लेकिन अब मेरा मन बदल गया है। मैं सारी उम्र लोगों की वो गाली नहीं सुन सकती, जिसके असल हकदार तुम हो...।

श...श...श् चुप हो जाओ भाग्यवान… जानती हो ना राजघराने की दीवारों के कान बहुत तेज है।

दरअसल राज राजेश्वर जिससे बात कर रहा था, वो औरत और कोई नहीं… उसकी पत्नी मिनाक्षी देवी थी। लेकिन वो राज राजेश्वर से उसके दुश्मनों से भी ज्यादा नफरत करती थी। ऐसे में मिनाक्षी अपनी बात कहकर फोन कांट देती है, जिसके बाद राजेश्वर गुस्से में अपना फोन दीवार पर दे मारता है। दरवाजे के बाहर खड़ी प्रभा ताई ये सारा नजारा देख चौक जाती है- क्या हुआ राजेश्वर तू इतना गुस्से में क्यों है…? आखिर ऐसा कौन था फोन पर, कि तूने अपना फोन ही तोड़ दिया?
 
राज राजेश्वर अपनी निजी जिंदगी के राज किसी को नहीं बताता था। ऐसे में जब उसकी बड़ी बहन प्रभा ताई ने इस बारें में पूछा तो वो और भी ज्यादा गुस्सा हो गया और बोला- प्रभा ताई, क्या आप राजघराना की मर्यादा भूल गई है, जो बिना दरवाजे को खटखटाये मेरे कमरे में कदम रखा।

मर्यादा मैं नहीं, तुम भूल रहे हो राजेश्वर और साथ ही ये भी भूल रहे हो कि मैं तुम्हारी बड़ी ताई हूं। 

फिलहाल राज राजेश्वर प्रभा ताई के किसी भी सवाल का जवाब देने की हालत में नहीं था। उसके दिमाग में उसकी पत्नी के उसे छोड़ देने की बात लगातार घूम रही थी। ऐसे में वो बिना कुछ कहें, उस कमरे से बाहर चला गया और अपनी कार में बैठ खुद से ही बातें करने लगा - ऐसा लग रहा है मेरे ग्रह उल्टे चल रहे हैं… मुझ पर शनि की साढ़े साती चल रही है। एक तरफ मेरा राजघराने की गद्दी पर बैठने का सपना.. मेरे उस गवार बड़े भाई मुक्तेश्वर के लौटने से मिट्टी में मिल गया। तो वहीं अब मेरी पत्नी मिनाक्षी मुझसे अलग होकर पूरी दुनिया को मेरा वो राज भी बता देगी, जिसे मैं आज तक अपने पिता से भी छिपा रहा हूं। 

जहां एक तरफ राज राजेश्वर अपना सबसे बड़ा सच खुलने के डर से बहुत परेशान था, तो वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र जेल की अंधेरी कोठरी में बैठा अपनी मां जानकी की पुरानी तस्वीर निहार रहा था, जिसे वो हमेशा अपने पर्स की जेब में रखता था। कि तभी अचानक से जेल का दरवाजा खुलता है और एक जेलर गजेन्द्र से कहता है- "गजेन्द्र सिंह, तुम्हारे लिए किसी ने ये पैकेट और एक चिट्ठी छोड़ी है।"

हैरान-परेशान गजेन्द्र पैकेट खोलता है। अंदर एक पुरानी, जली हुई सी डायरी का अधजला हिस्सा और एक चिट्ठी है। जिसमें में लिखा था—

"तेरी मां की मौत हादसा नहीं थी... और अब वक्त है तेरे ये जानने का कि उस रात उसके कमरे में आख़िरी बार कौन गया था। ये डायरी सिर्फ उस रात का ही नहीं, बल्कि राजघराने के काले कांडो का भी सच है... बाकी सच उसी तीसरी डायरी में है, जिसे तेरी प्रेमिका रिया ढूंढ रही है...। बता दूं वो डायरी अब भी उसी महल की दीवारों में दफ्न है। लेकिन ज्यादा वक्त नहीं है... राज़ खत्म हो जाए, उससे पहले सच को सामने लाना होगा..."

उस चिट्ठी को पढ़ते ही गजेन्द्र के चेहरे पर गुस्सा, दर्द और हैरानी सारे भाव एक साथ फैल जाते है। वो ज़ोर से चिल्लाकर कहता है...

"मेरा सच सामने आये ना आये… मैं रेस फिक्सिंग केस में बेगुनाह साबित भाले ही ना होऊं… लेकिन अब उन सब लोगों का सारा खेल खत्म होगा... अब इस राजघराना महल की तीसरी दीवार गिरेगी।" मेरे दादा मुझे जिस पैसे की चकाचौंध दिखाकर अपना वारिस बनाने का वादा कर यहां लाये ना… मैं उन्ही पैसों की ताकत से सारा सच सामने लाउंगा और उनके इस झूठे महल की ईंट से ईट बजा दूंगा।

 

आखिर कौन से सच की बात कर रहा है गजेन्द्र? 

उस रात क्या हुआ था गजेन्द्र की मां और राजमहल की बड़ी बहूं जानकी के साथ? 

क्या गजेन्द्र कभी निकल पायेगे जेल और अपने ऊपर लगे इल्जामों से बाहर? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।

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