आख़िर क्या है इस शहर में ऐसा जिससे शुक्रवार का पूरा दिन ही यहां के लोगों की जिंदगी से गायब हो जाता है?

कहते हैं जब दर्द, सहन करने की क्षमता से ज्यादा हो जाए तो इंसान कुछ भी महसूस नहीं कर पाता। सब कुछ सुन्न पड़ जाता है। कोटी पहाड़ी और उसके आसपास की जगह ने भी अब कुछ भी महसूस करना छोड़ दिया था। दहशत उस जगह होती है जहां किसी खतरे के आने की संभावना हो पर यहां कोई खतरा आता नहीं बल्कि यहीं रहता है। भूत, पिशाच, चुड़ैल इन सबसे परे है वो। अभी कल रात की ही तो बात है जब सड़क पर उस विदेशी महिला के शरीर के चिथड़े पड़े थे, चारों तरफ खून ही खून फैला हुआ था, मानो खून की होली खेली गई हो लेकिन आज सड़क इतनी साफ़ है जैसे कल कुछ हुआ ही ना हो।

सुबह, समीर अपने होटल लॉबी की खिड़की के नीचे फर्श पर बेहोश पड़ा था, होटल का एक सफाई कर्मी समीर को उठाता है और उसे कमरे में ले जाता है। बिस्तर पर लेटते ही समीर चौंक कर उठ जाता है और सफ़ाई कर्मी से पूछता है -

समीर - यहाँ क्या हुआ था?

सफाई कर्मी ने कहा, “लगता है साहब आपने रात कुछ ज्यादा ही पी ली और फ़र्श पर ही सो गए।”

समीर - क्या बकवास कर रहे हो? आज दिन कौन सा है?

सफाई कर्मी ने जवाब दिया, “मुझपर क्यूँ गुस्सा हो रहे हो साहब मैंने तो बस आपकी मदद की। ख़ैर, मैं चला मुझे अभी बहुत काम करना है। वैसे शनिवार है आज।”

इतना कहकर सफाई कर्मी वहाँ से चला गया और शनिवार सुनकर समीर के रोंगटे खड़े हो गए।

समीर - कल फिर कुछ हुआ होगा जो मुझे याद नहीं। ये किस लूप में फस गया हूँ मैं?

समीर जल्दी से अपनी डायरी खोलता है और देखता है कि पिछले दिन का पन्ना भी खाली था। ये बात समीर को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी कि ऐसा हो कैसे सकता है? जरूर कोई सुराग होगा जिसे समीर अभी तक खोज नहीं पाया।

वो गौर से देखता है कि उसके कलम की स्याही गीली है मगर उस नीली स्याही वाली कलम से लाल रंग निकल रहा है। ऐसा कैसे हो सकता है?

समीर -क्या कोई जादू टोना कर रहा है यहां? या कोई अदृश्य शक्ति है? यहां जो भी हो रहा है वो मेरी सोच के परे है।

वो होटल से बाहर निकल कर गौर से एक एक चीज़ पर नज़र डालता है, इस उम्मीद में कि शायद उसे वहाँ कुछ बदला हुआ सा दिख जाए। दुकाने, रास्ते , चौराहे हर जगह रुक कर देखता है उसे हर जगह कुछ अलग सा लगता है पर समझ नहीं आता कि क्या? तभी उसकी नज़र एक जगह रुक जाती है। एक बूढ़ी महिला, जिसकी एक पुरानी सी दुकान है। वो अपनी दुकान पर खड़ी समीर की तरफ देख रही थी। समीर उस दुकान की तरफ़ चल पड़ता है इस उम्मीद में कि शायद वहाँ पहाड़ी सभ्यता से जुड़ी चीज़ें मिलती हों जो उसके काम आ सकती हों या छैल का कोई इतिहास पता चल सके जिससे उलझी हुई गुत्थी सुलझ पाए।

समीर जैसे ही उस दुकान की तरफ बढ़ता है, अचानक से रुक जाता है क्यूंकि उसके सामने एक शख्स आ कर खड़ा हो जाता है।

रवि - समीर.. आशा करता हूँ आप मुझे भूले नहीं होंगे। मैं यहीं ऊपर कोटी जंगल के पास...

समीर - अपनी पत्नी अंजलि और अपने दस बरस के बेटे अथर्व के साथ एक छोटे हिल हाउस में रहते हैं।

रवि - जी बिल्कुल। मतलब याद है आपको सब कुछ।

समीर (angrily) - आपको कैसे पता कि मैं भूल जाता हूँ? और क्या क्या जानते हैं आप इस शहर के बारे में? कहीं आप मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे?

रवि (smiling) - अरे, अरे समीर जी! एक साथ इतने सारे सवाल? आप जब मेरे घर आए थे पहली बार तो आपने बताया था कि आपको भूल जाने की बीमारी है। मुझे लगा आप भूल गए होंगे।

समीर - डॉक्टर रवि एक सवाल का जवाब देंगे आप? क्या आपको याद है कल आपने सुबह से रात तक क्या क्या किया था?

रवि - जी मैं सुबह उठा नाश्ते के बाद शहर में मरीज़ देखने निकल पड़ा। कल शाम तक यहीं रहा लोगों से मिला, दवाइयां दी और रात को अपने घर।

समीर - और आपका बेटा अथर्व? वो कहाँ था?

रवि(थोड़ा सा हिचकिचाते हुए) - वो.. वो भी ठीक है कल से थोड़ा बीमार है, मौसम की वजह से। दवा दे दी है, घर पर ही आराम कर रहा है। चलिए मिलते रहेंगे अब तो आप अपनी किताब पूरी लिख कर ही जाना यहां से।

समीर रवि को शक़ भरी नज़र से जाते हुए देख रहा था। उसे लगा कि हो ना हो डॉक्टर रवि उससे कुछ तो छुपा रहे हैं।

डॉक्टर रवि के जाते ही समीर उस दुकान के अंदर गया और चारों तरफ गौर से देखने के बाद भी उसे समझ नहीं आया कि वो वहाँ से क्या खरीदे? तभी उसकी नजर उस बूढ़ी औरत के गले में लटके मैग्नीफाइंग ग्लास पर पड़ी।

समीर - ये Magnifying ग्लास जो आपने गले मे पहना है,  इसकी क्या खासियत है?

बूढ़ी महिला ने कहा, “ खासियत तेरी नियत पर निर्भर करती है। ये काँच वो दिखाता है जो तेरी नज़र नहीं देख सकती।”

समीर - कीमत क्या है इसकी..?

बूढ़ी महिला बोली,  “कीमत इसकी इतनी महंगी कि तू जान भी दे दे तो ना पा सके, और इतनी सस्ती कि किसी की जान बचा के भी पा ले। चल दिया तुझे ये! बस ध्यान रखना कि  इससे तू वही देखना जिसे खोज रहा है और जब वो मिल जाए तो मुझे वापस कर देना।”

वो बूढ़ी महिला अपने गले से निकाल कर वो काँच समीर के हाथ पर रखती है और समीर को बाहर निकलने का इशारा करती है।

समीर बाहर निकलता है और सबसे पहले अपनी डायरी खोलता है और उस पन्ने को देखता है जो शुक्रवार को साफ हो गए थे। समीर को जो दिखता है वो उसके होश उड़ा देने के लिए काफी था। एक निशान! जो किसी प्राचीन सभ्यता को दर्शा रहा था जैसे किसी negative energy का प्रतीक हो। समीर हर जगह जहां टूरिस्ट रुकते हैं वहाँ के रजिस्टर में शुक्रवार की तारीख का पन्ना खोलता है और हर जगह वो निशान पाता है। बहुत कोशिश के बाद समीर को ये याद आता है कि उसने ये निशान कहाँ देखा है। अथर्व की आंखे! ये निशान हू ब हू वैसा ही है जैसे अथर्व की आँखों के आसपास काले गड्ढे से बने थे।

समीर अगले शुक्रवार से पहले सच जानने के लिए पूरी तैयारी में जुट जाता है। अगले दिन वो डॉक्टर रवि से मिलने जाता है और इधर उधर की बातें कर के थोड़ी ही देर में वहाँ से निकल जाता है। 5 दिन बीत जाते हैं वो लगातार ऐसा ही करता है और उस को रवि के घर में कुछ भी अजीब नहीं दिखता सिवाए इसके कि उसने कभी भी अथर्व की आवाज़ नहीं सुनी। रोज़ाना डायरी लिखना और इस केस को सुलझाने की कोशिश में लग जाना समीर की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था।

आज फिर से शुक्रवार है और समीर डॉक्टर रवि के घर में बैठा अपने काम में लगा हुआ था। वो देखता है कि अथर्व अपने घर से बाहर निकल कर ऊपर आ रहे एक टूरिस्ट को घूर रहा था जैसे उसने उसे चुन लिया हो किसी खास मकसद के लिए।

समीर फौरन बाहर निकल कर उस टूरिस्ट से बात करता है और पता करता है कि वो कहाँ रुका है? समीर उसके होटल का पता पूछ सीधा उसके होटल की तरफ भागता है जहां वो देखता है कि डॉक्टर रवि पहले से ही खड़े थे। समीर गुस्से में डॉक्टर रवि की तरफ जाता है और कहता है -

समीर - मुझे पता है आप यहां क्या कर रहे हैं। ये जो टूरिस्ट गायब हो रहे हैं जरूर इन सब में आपका हाथ है।

रवि - आप बाहर के हो । आपको कुछ नहीं पता और अगर पता होता तो कब का ये शहर छोड़ कर भाग चुके होते। जान प्यारी है तो चुपचाप अपने होटल के कमरे में जाओ और सुबह होने तक बाहर मत आना।

रवि की ये बात समीर को समझ आयी या नहीं ये उसे भी नहीं पता पर उसके कदम खुद ब खुद उसके होटल की तरफ बढ़ने लगे जैसे उसपर किसी ने जादू कर दिया हो। होटल के कमरे में पहुंचते ही समीर वापस ठीक हो गया। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये हुआ कैसे?

समीर ने देखा कि उसके कमरे की खिड़की खुली है जिससे वो सुरंग साफ़ दिख रही है। उसने वो कांच का ग्लास निकाला और साफ देखने की कोशिश की। समीर को वो निशान जो अथर्व की आँखों के पास बना था वहाँ भी दिखा, फर्क़ सिर्फ इतना था कि उस निशान पर एक क्रॉस बना हुआ था जैसे यहां उस निशान का होना वर्जित है।

समीर के दिमाग में बहुत से सवाल थे लेकिन उसने देखा कि रात होने वाली है और चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है। उसने सोचा कि उसे उस टूरिस्ट के होटल जा कर उसे बचाना चाहिए। समीर भाग कर उस टूरिस्ट के होटल गया और उसके कमरे में जा कर देखा तो वो अकेला बैठा था। समीर के बार बार बोलने पर भी वो कोई बात नहीं कर रहा था जैसे डर के मारे उसकी आवाज बंद हो गई हो। इस सन्नाटे को चीरती हुयी एक भारी सी आवाज मानो गुस्से में चीख रही हो, उनकी तरफ़ बढ़ रही थी।

एक-का-एक वो आवाज उस खिड़की के पास से आने लगी जैसे उसके नीचे कोई खड़ा हो। फिर पल भर के लिए वो आवाज शांत हो गई। जैसे ही समीर ने उस टूरिस्ट का हाथ पकडा वो चीख तेज़ हो गई और वो टूरिस्ट अपना हाथ छुड़ा कर कमरे की खिड़की से कूद पड़ा। समीर ने भाग कर उस खिड़की  से नीचे की तरफ देखा तो उसे गहरी धुंध के अलावा कुछ भी नहीं नजर आ रहा था। उसने उस बूढ़ी महिला का दिया हुआ कांच निकाला और जब उससे देखा तो उसकी रूह कांप उठी। अथर्व जो ज़मीन से कुछ ऊपर उठा था, उसके ठीक सामने ये टूरिस्ट भी ज़मीन से ऊपर उठ गया हवा में और अथर्व के ठीक पीछे एक धुएँ से बनी कोई आकृति थी, डरावनी, जैसे कोई खड़ा था। दिख रहीं थीं तो सिर्फ लाल आंखें, जैसे किसी आत्मा को निगल लेने को तैयार थी। समीर की आँखों के सामने उस टूरिस्ट का शरीर टुकड़ों में फट जाता है और चारों तरफ सिर्फ खून और मांस के चिथड़े फैल जाते है। उस टूरिस्ट की आत्मा उसके शरीर से निकल कर अथर्व के पीछे खड़ी उस परछाई के भीतर चली जाती है ,और अथर्व गिर पडता है। ये दृश्य किसी की मौत से भी भयानक था क्यूंकि मौत सिर्फ शरीर को नष्ट करती है। ये अदृश्य शक्ति जो अथर्व के पीछे खड़ी थी वो आत्मा को कैद करती है। आत्मा नश्वर नहीं शाश्वत है सुना था, पर इसे भी कोई कैद कर सकता है ये बात अपने आप में एक खौफनाक दास्तान को जन्म दे रही थी। ये सब देख कर समीर की हालत पहले से ज़्यादा ख़राब हो गयी।

क्या ये सब देखने के बाद भी समीर बच पाएगा? बच भी गया तो क्या समीर इस रहस्यमयी मौत के खेल को रोक पाएगा?


जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.