आरु उस दिन उदास ज़रूर हुआ था पर उसे अपनी ज़िम्मेदारी का भी एहसास था। वो जानता था के इस गांव को उसकी बहुत ज़रूरत है।
अगले दिन सुबह जब भीमा और आरु ने अपना खाना ख़त्म किया , और आरु की तरफ देखते हुए भीमा ने कहा
भीमा- आज तुम बच्चों के साथ खेलने जाओ, मुझे कुछ काम है मैं सरपंच के पास जा रहा हूँ.
आरु ये जान चुका था कि उसकी कल वाली बात सुनकर ही भीमा ने उसे खेलने जाने के लिए बोला है पर आरु इतना भी नादान नहीं रहा था, उसने भीमा से माफ़ी मांगी और कहा।
आरू- बाबा मैं जनता हूँ आप मेरी कल वाली बात से परेशान हो गए थे । मैं आपसे इतना ज्ञान ले चुका हूँ की सही गलत में फर्क जान सकूँ। आप कहीं नहीं जाओगे , आज हम फिर से अपनी कक्षा शुरू करेंगे।
आरु की ये बात सुनकर भीमा हंस दिए और वे दोनों मैदान की तरफ चल दिए। पर जैसे जैसे आरु बड़ा हो रहा था , वैसे वैसे प्रेताल भी अपनी शक्तियां बढ़ा रहा था। आज जंगल में कुछ हलचल थी। जिस प्रेताल से सब डरते थे आज वो प्रेताल किसी के सामने चेहरा नीचे करके खड़ा हुआ है। जो प्रेताल के सामने इस समय खड़ा है उसका नाम है ‘चंद्रा’
जी हाँ ये वही चंद्रा था जिसके बारे में भीमा ने आरु को बताया था। ये ही प्रेताल को शैतानी शक्तियां दे रहा था। ये चंद्रा ही था जो प्रेताल को सबसे ताकतवर बनाने में लगा हुआ था। आज प्रेताल की कुछ परीक्षा ली जा रही थी।चंद्रा की आवाज़ जंगल में गूंज रही थी उसने प्रेताल को कहा ।
चंद्रा- प्रेताल … । कब तक ये छोटे मोटे साये इकट्ठे करके इनके साथ खेलते रहोगे तुम भूल गये हो क्या के तुम्हारा लक्ष्य क्या है?
प्रेताल- नहीं उस्ताद, मैं हर रोज़ अभ्यास करता हूँ.
चंद्रा ने प्रेताल की परीक्षा लेनी शुरु की, उसने जंगल के एक खली हिस्से में पड़ी एक बड़ी चट्टान को तोड़ने को कहा। प्रेताल ने ऑंखें बंद की और किसी मंत्र का ध्यान किया, कुछ ही पल में प्रेताल के हाथों में एक चमकता हुआ आग का गोला प्रगट हो गया। प्रेताल ने पुरे ज़ोर से वो गोला उस बड़ी चट्टान की और फेंका। एक ज़ोर के धमाके से वो चट्टान टुकड़ों में बिख़र गयी। और उसके छोटे छोटे टुकड़े पूरे खली मैदान में फैल गए। जिस जगह वो चट्टान थी , उस जगह एक बहुत बड़ा गड्ढा बन चुका था। धमाके की भयानक आवाज़ सुनकर पेड़ों पर बैठे पक्षी उड़ गए। ये दृश्य देख कर चंद्रा ने प्रेताल से कहा -
चंद्रा- पहले से काफी सुधार हुआ है तुम्हारी शक्ति में, पर ये सबसे कम स्तर की शक्तियां है , तुम्हें इसे सबसे ऊपर के स्तर पर लेकर जाना है।
प्रेताल- जी उस्ताद जी प्रयास जारी है।
सोचने वाली बात ये थी की जिस शक्ति का प्रेताल ने उपयोग किया था , ये सबसे कम स्तर की शक्ति थी और जब प्रेताल, ऐसी शक्तिओं का अभ्यास कर के और भी ताकतवर बना देगा , तो इसे रोक पाना तो असम्भव हो जायेगा। ये जंगल भी कोई आम जंगल नहीं था , ये इतना विशाल है के 'विघात’ जैसे 500 गांव इसमें समा जाएँ। यहां के जीव जंतु पृथ्वी से बिलकुल अलग और आकार में बहुत बड़े थे। जो बच्चा ऐसे जंगल में पल रहा हो, उसकी ताकत का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल ही है। प्रेताल इस जंगल के पेड़ों पर भी अपना अभ्यास करता रहता है। वो ज़मीन से पेड़ की जटा पकड़ता है , और पल भर में उस जटा के सहारे अपने शरीर को ऊपर खींचते हुए , पेड़ के शिखर पर पहुँच जाता है। उसकी फुर्ती से तो वहां के पक्षी भी डरते थे। डरावना सा दिखने वाला ये लड़का कुछ पलों में पेड़ों पर चढ़ कर , उन बड़े बड़े पक्षियों को पकड़ लेता है। अपनी मन की शक्ति का प्रयोग करके ही, इसने प्रेतों को अपने वश में कर रखा था। प्रेताल के साथ एक ऐसी घटना जुड़ी थी , जिसका किस्सा पुरे जंगल में मशहूर था। उसने एक साल पहले ही गुस्से में आकर अपनी तलवार के एक ही वार से बड़ा पेड़ गिरा दिया था। छोटी सी उम्र में ही उसके इतना बलवान होने के पीछे भी एक रहस्य जुड़ा है , और भविष्य में ये रहस्य कब और कैसे खुलेगा इसका पता किसी को नहीं था सिवाय भीमा और चंद्रा के। आज चंद्रा ने प्रेताल को इसलिए बुलाया था की वो आगे की योजना के बारे में भी जानना चाहता था। प्रेताल अपने विचार रखते हुए कहता है।
प्रेताल- उस्ताद जी, मैंने आपके कहने पर एक ‘ज्वाल’ पक्षी गांव में भेजा था, पर वो घायल होकर उस गाँव से वापस आ गया था
चंद्रा- उस आरु ने ही ‘ज्वाल’ पर हमला किया होगा, क्योंकि भीमा उस पक्षी को एक वार में ही मार सकता था। चलो इस घटना से हमें उस बच्चे की शक्तियों का अंदाज़ा तो लगा।
प्रेताल- अगर हम और भी ‘ज्वाल’ पक्षी एक साथ भेज दें , तो वो गांव तो वैसे भी तबाह हो जायेगा।
चंद्रा- अगर हम ऐसा कर सकते तो मैं अभी तक जंगल के सारे जानवर उन पर छोड़ चुका होता, पर हमारी शक्तियों को भीमा ने एक सीमा में बांध दिया है. खैर आने वाले समय में मेरी कोशिश है की गाँव में कुछ ऐसा भेजूँ जो उनकी रातों की नींद तक खराब कर दे।
प्रेताल- जी उस्ताद जी, मैं तो कहता हूँ इस बार एक ‘म्रष्ट’ उनकी तरफ भेज दो।
चंद्रा - नहीं …! धरती के रास्ते तो फ़िलहाल कोई भी वहां नहीं जा सकता, वो ज्वाल भी बहुत मुश्किल से गांव में पहुंचाया था, पर जल्द ही उन गांव वालों के लिए ज्वाल जैसा ही एक और तोहफा भेजूंगा ।
धीरे धीरे जंगल के रहस्य भी अब उजागर होने शुरू हो गए थे। ये जंग इतनी आसान नहीं है जितनी दिख रही थी । अभी तो इसकी शुरुआत भी नहीं हुई है, ना जाने कौन कौन से जीव इस जंगल से बाहर आने वाले थे। इस तरफ गाँव में फिर से खुशहाली का माहौल था। लोग इस बात से खुश थे की आरु के एक वार से ही , वो भयानक पक्षी घायल होकर उड़ गया था। आरु में उन्हें एक हीरो नज़र आने लगा था। पर वो शायद ये नहीं जानते थे की आने वाला ख़तरा बहुत भयंकर हो सकता हैं। यहाँ आज फिर पेड़ के नीचे आरु की शिक्षा जारी थी। भीमा कहता है
भीमा- आरु छोटी जीत से खुद हो हौसला ज़रूर देना , पर कभी भी छोटी छोटी जीत का अंहकार मत करना। ये शक्तियां कब दिमाग में अहंकार का विष भर दे, इंसान को पता भी नहीं चलता।
आरू- जी बाबा, इसलिए उस दिन हुई घटना के बाद से मैंने अपना अभ्यास और तेज़ कर दिया है, ताकी आने वाले समय के लिए खुद को तैयार कर सकूँ।
भीमा- तुम बिलकुल सही रास्ते पर हो बेटा, और आज हम एक नयी शिक्षा की शुरुआत करेंगे। लड़ाई में सिर्फ शस्त्र ही नहीं बल्कि शरीर की फुर्ती भी काम आती है। आज से तुम्हारे शरीर को फुर्तीला बनाने का अभ्यास भी शुरू होगा।
आरू- इसके लिए मुझे क्या करना होगा बाबा ?
भीमा- तुम्हें सबसे पहले इस पेड़ पर चढ़ने का अभ्यास करना होगा , जिसके नीचे इस समय हम बैठे हैं।
भीमा की बात सुनकर आरु हैरान हो गया था। इतने बड़े पेड़ की ऊंचाई देखते ही आरु का हौसला डर में बदल गया था। भीमा ने उसे समझाया और बताया की इस पेड़ की जटा को पकड़ कर , तुम्हें अपनी बाज़ुओं का ज़ोर लगाकर , धीरे धीरे खुद को ऊपर की ओर लेकर जाना है। ये बात सुनकर आरु ने घबराते हुए पूछा
आरू- बाबा पर ये करना ही क्यों है, आप मुझे शक्तियों के बारे में तो बता ही रहे हो ना। मैं उसी से हर लड़ाई जीत जाऊंगा।
भीमा- बेटा सिर्फ शक्तियां ही सब कुछ नहीं होती, अगर सामने वाला इतना तेज़ हो की तुम्हें शक्ति चलाने का मौका ही ना दे तो फिर तुम कुछ नहीं कर पाओगे।
आरू- पर बाबा ये पेड़ बहुत ऊँचा है।
भीमा- हाँ मैं जनता हूँ, मैंने ये तो नहीं कहा के तुम्हें पेड़ के शिखर तक जाना है। तुम बस आज कुछ ऊंचाई तक जाओ और नीचे आ जाओ।
आरु मुश्किल से ही कुछ ऊंचाई तक पहुंच पाता है, उसके कोमल हाथ पेड़ की जटा को ज़ोर से पकड़े रहने के कारण लाल हो गए थे। थोड़ी सी ऊंचाई पर जाने के बाद आरु वापिस नीचे आने के लिए बाबा से विनती करता है। बाबा ने उसकी बात मान ली। नीचे आते आते आरु की धड़कन और साँसे तेज़ हो चुकी थी, उसने नीचे उतरते ही बाबा से कहा।
आरू- मैं नहीं जानता था की इस पेड़ पर चढ़ना तो शक्तियां हासिल करने से ज़्यादा मुश्किल है।
भीमा- बेटा शक्तियां भी तुम्हें अभ्यास से ही मिली थी, कुछ अभ्यास के बाद तुम इस पर चढ़ने में भी माहिर हो जाओगे।
बाबा ने आरु को फुर्तीला बनाने का काम शुरू कर दिया था, शायद बाबा प्रेताल की शक्तियों को जानते थे। पर दूसरी तरफ चंद्रा ने भी नए हमले के संकेत दिए थे। क्या इस बार गांव में कोई नया जीव हमला करेगा? कौन सा है वो नया जीव जिसकी बात चंद्रा, प्रेताल से कर रहा था ? और क्या आरु उसका सामना करने के लिए तैयार था ? जानने के लिए पढ़ते रहिए...काल का जाल
No reviews available for this chapter.