उस दिन गाँव वालों ने भी पहली बार, किसी आग उगलने वाले पक्षी जो देखा था, उस घटना ने गांव में सबकी चिंताएं बढ़ा दी थी। आज सरपंच फिर एक बार भीमा बाबा की कुटिया में आया हुआ है । उसके माथे पर चिंता की लकीरें साफ़ देखीं जा सकती थी। बाबा से अपने डर का ज़िक्र करते हुए सरपंच ने कहा। 

सरपंच- बाबा ये कैसे कैसे जीव गांव में आने शुरू हो गए हैं । आपसे मैंने इनके किस्से सुने थे पर जब हकीकत में देखा , तो रातों की नींद उड़ गयी है। क्या आगे ऐसे और भी हमले होंगे गाँव पर। 

भीमा- भंवर इस बात में कोई शंका नहीं है की अगर आज ये हमला हुआ था, तो भविष्य में भी इसकी पूरी संभावना है। 

सरपंच-  पर बाबा हम कैसे मुकाबला कर पाएंगे ऐसे जीव जंतुओं का। 

भीमा- जैसे उस दिन मुकाबला किया था, वैसे ही भविष्य में भी हम मुकाबला करेंगे। तुम घबराओ ना। वो शक्तियां इतनी भी बलवान नहीं हुई है की गाँव पर इतनी जल्दी बड़ा हमला करें। 

उनके पास ही बैठा आरु ये सब बातें सुन रहा था। भीमा की दी हुई शिक्षा के प्रभाव से आरु बाकी गाँव बालों की तरह इतना डरा , तो नहीं था पर कुछ चिंता तो उसे भी हो रही थी। इसलिए उसने भीमा से पूछा। 

आरू- बाबा आप कैसे कह सकते हैं की वो बड़ा हमला नहीं करेंगे। 

भीमा- बेटा तुम्हें याद है ना उस रात सरपंच और मैं भस्म लेकर कहीं चले गए थे। असल में उस रात हम नदी के पास नहीं गए थे, बल्कि हम जंगल के पास उस लाल धागे पर अनुष्ठान करने गए थे। हमने उस भस्म को वहां फैला दिया था, ताकि इन शैतानी ताकतों का प्रभाव कम हो सके। 

गांव पर कुछ मुसीबतें तो आती थी पर अब उन शैतानी शक्तियों ने सीधा हमला करना शुरू कर दिया था। असल में आरु के आने के बाद से उन शैतानी शक्तियों में भी बेचैनी थी। बहुत साल से शांत बैठी इन शक्तियों ने अभी अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी थी। भविष्य में आने वाले ख़तरे को भांपते हुए भीमा ने फैसला किया की वो आरु को अब उन जीव जंतुओं के बारे में भी बताएगा ,जो उस जंगल में रहते हैं। इस बार जब भीमा और आरु उस मैदान वाले पेड़ के निचे बैठे थे , तो भीमा ने आरु की शिक्षा शुरू करते हुए कहा। 

भीमा- आरु बेटा आज हम किसी शस्त्र , शास्त्र या मंत्र के रहस्य के बारे में बात नहीं करेंगे। आज मैं तुम्हें उन जीव जंतुओं के बारे में बताऊंगा, जिनके साथ हमारा भविष्य में सामना हो सकता है।
 

भीमा ने आरु की कक्षा शुरू करते हुए कहा, जो आग उगलने वाला पक्षी उस दिन सबने देखा था , उसका नाम था “ज्वाल” यह नाम उसे इस लिए ही मिला था, क्योंकि उसके मुख से ज्वाला निकलती थी। असल में यह एक पक्षी नहीं बल्कि दैत्य था, जिसकी चोंच की जगह लम्बा सा मुँह था और बड़े बड़े दांत थे, और सर पर इसके चार छोटे-छोटे सींग थे। इसके अलावा कुछ लम्बी चोंच वाले ऐसे पक्षी भी थे , जो आग नहीं उगलते थे, पर उनके पंजों में इतनी ताकत है की एक साथ बीस इंसानों को पकड़ कर मार दें, इन पक्षियों को कहते हैं ‘कृकाली’ . यह नाम इन्हें इनके काले रंग की वजह से मिला था। भीमा ने आगे जिन जानवरों के बारे में बताया , उनके बारे में जानकर आरु के होश उड़ गए। भीमा ने बताया के जंगल में एक 20 फुट ऊँचा जानवर है, जिसके चार पैर और बाघ जैसा मुंह है, और उसकी चार ऑंखें हैं। उनके बड़े-बड़े तीखे दांत उन्हें इस इलाके का सबसे खूंखार जानवर बनाते हैं। इस जानवर का नाम था ‘दैत्यार’ है, इसे यह नाम इसके दैत्य जैसे रूप की वजह से मिला था। इसके बाद भीमा ने एक ऐसे जानवर के बारे में बताया, जिसकी पूंछ 4 मीटर तक लंबी थी। दिखने में यह जानवर ‘मुष्ट’ जैसे थे , पर इनका आकार मुष्ट से 3 गुना बड़ा था। माथे पर तीन आँखों वाला यह जानवर रंग से हल्का भूरा है , और यह अपने शिकार को अपनी काँटों से भरी पूंछ से पकड़ कर मारता है। इस जानवर का नाम है ‘म्रष्ट’ । भीमा आज सिर्फ इन पांच जानवरों के बारे में आरु को जानकारी देते हुए कहते हैं।

भीमा- आरु यह कुछ ऐसे जानवर और पक्षी हैं, जिनसे मुकाबला करना हर किसी के बस की बात नहीं है। ऐसे तो कुछ और जानवर भी हैं , पर मैंने तुम्हें फ़िलहाल उन जानवरों के बार में बताया है , जिनसे हमें ज़्यादा ख़तरा हो सकता है।

भीमा से इन खूंखार जानवरों के बारे में सुनकर ,आरु के भी माथे पर पसीना आ गया था। उसकी आवाज़ में कुछ घबराहट थी , और उसने हिचकिचाते हुए भीमा से पूछा। 

आरू- बाबा … क्या यह जानवर हम पर जल्द हमला करेंगे? 

भीमा- नहीं नहीं बेटा, बहुत वर्ष हो गए हैं वो जानवर तो जंगल के उस पार रहते हैं, वो इस तरफ नहीं आएंगे, मैं तुम्हें बस आने वाली हर संभव घटना के बारे में जागरूक कर रहा हूँ। 

आरू- पर जैसे वो आग उगलने वाला पक्षी आ गया था, तो ऐसे भी तो हो सकता है , यह जानवर भी किसी दिन हमला कर दें तो ? 

भीमा- वो आकाश मार्ग से आया था बेटा, मैंने तुम्हें बताया ना की, उनकी शक्ति की भी सीमा है. कुल देवी की कृपा भी है हमारे साथ, उस लाल धागे को फ़िलहाल कोई भी पार नहीं कर सकता।


यह जंगल जितना दिखने में खूबसूरत है , यह उतने ही डरावने रहस्य अपने अंदर समाये हुए है। आरु जैसे ही खुद को मज़बूत बनाता है, उस के कुछ दिनों में ही कोई ऐसी घटना हो जाती है, जिससे उसके मनोबल को ठेस पहुंचती है। पर धीरे धीरे आरु अपनी कमियों को दूर करता जा रहा था। भीमा ने आरु को अब उन जानवरों से बचने और उन्हें ख़त्म करने के तरीकों के बारे में बताना शुरू कर दिया था। यह आम शस्त्र से मरने वाले जानवर नहीं थे, इनके लिए आरु को अब अलग से शिक्षा लेनी थी। कई दिनों तक लगातार अपनी शिक्षा में व्यस्त आरु भूल ही गया था की, गांव में उसके कुछ दोस्त भी हैं , जिनके साथ वो खेलने जाया करता था. उन्हीं में से उसकी एक पक्की दोस्त थी श्रुति, आज बहुत दिनों बाद आरु को मौका मिला था श्रुति से मिलने का ।

आरु और श्रुति शाम के वक़्त नदी किनारे बैठे थे, तब श्रुति ने बात की शुरुआत करते हुए कहा 

श्रुति- आजकल तुम दीखते ही नहीं, भीमा बाबा बहुत काम करवाते हैं क्या तुमसे ?

आरू- अरे नहीं नहीं , वो कोई काम नहीं करवाते बल्कि मुझे शिक्षा दे रहें हैं। 

श्रुति- क्या वो भी तुम्हें अपनी तरह बाबा बना देंगे ? 

आरू- नहीं पगली, वो मुझे बस ताकतवर बनाना चाहते हैं। 

श्रुति- ताकत हासिल करने के चक्कर में , ये मत भूल जाना के तुम्हारे दोस्त भी हैं। 


श्रुति की इस बात ने आरु को बहुत सारे विचारों की उलझन में डाल दिया था। आरु खुद के लिए समय ही नहीं निकल पा रहा था। सबके जीवन की अलग कहानी होती है , आरु का जीवन खुद से ज्यादा दूसरों को समर्पित था। समय ने सबके जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारित किया होता है। जहां गांव वालों का लक्ष्य फसलों की देखभाल करके , जीवन के चक्र को आगे बढ़ाते रहना था , वहीँ आरु और भीमा का लक्ष्य था इस गांव की रक्षा। रात होते ही आरु जब कुटिया में वापस आया , तो भीमा ने उस से कहा 


भीमा- आरु मैं जानता हूँ, तुम्हारा मन भी बाकी बच्चों की तरह खेलने कूदने में समय बिताने का करता है। पर कुदरत ने तुम्हारे लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित किये हैं , जिन्हें अगर तुम हासिल ना कर पाए , तो गांव वालों के ये मुस्कुराते चेहरे शायद तुम्हें भविष्य में मुस्कुराते हुए नज़र ना आएं। इसलिए अपने लक्ष्य को कभी मत भूलना। 

भीमा बोलते जा रहे थे पर आरु इस वक़्त ज़मीन की ओर देखते हुए चुप चाप उनकी बातें सुन रहा था। शायद आरु आज कुछ बोलना ही नहीं चाहता था। पर भीमा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा

भीमा-बेटा हमारे त्याग में ही गाँव के सुनहरे भविष्य की नींव है, और हमें उस नींव पर ऐसे गांव का निर्माण करना है जिसे चारों और से कोई भी ख़तरा ना हो .

भीमा की बातें सुनकर आखिरकार आरु ने अपनी चुप्पी तोड़ी , और अपने मन की बात बाबा से कही। 

आरू- बाबा पिछले जन्म में भी मेरे माँ बाप मेरे साथ नहीं थे, इस जनम में भी नहीं है। कुछ दोस्त बने थे , पर अब मैं उनके पास भी नहीं जा पाता। मेरा कई बार मन करता है, उन बच्चों की तरह खूब खेलूं पर चाह कर भी मैं ऐसा नहीं कर पाता। मैं मानता मुझ पर ज़िम्मेदारियाँ हैं , पर मैं हूँ तो छोटू बच्चा ही हूँ।

आरु की इन बातों का जवाब भीमा भी नहीं दे पा रहे थे। तो क्या आरु का हौसला अभी से डगमगाने लगा था। जिस आरु के मन को भीमा मज़बूत करना चाहते थे, क्या आरु का वो मन इतना मज़बूत बन पायेगा के वो भविष्य की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले सके।

इन जिम्मेदारियों के चलते भीमा और आरु में दूरियां तो नहीं बढ़ने वाली? क्या आरु हार मान जाएगा ? क्या होगा इस कहानी के अलगे हिस्से में ये जानने के लिए पढ़ते रहिए  “काल का जाल”.

Continue to next

No reviews available for this chapter.