अपनी माँ की कहानी सुनने के बाद आरु के स्वभाव में वो चंचल पन कम हो गया था। अब वो ज़िन्दगी में थोड़ा गंभीर हो गया था, भीमा ने उसके अतीत की कहानी तो बताई थी , पर अब भी ऐसे कई राज़ थे जिनके बारे में आरु कुछ भी नहीं जानता था। आरु का ध्यान अतीत को जानने से ज्यादा, अब अपनी शक्ति को बढ़ाने में था। वो अक्सर यही सोचता के जिन शक्तियों को भीमा नहीं हरा पाए , उसे उन शक्तियों का सामना करना है। ये युद्ध कब और कैसे होगा इसका अनुमान किसी को भी नहीं था। आज भीमा और आरु फिर से गाँव से कुछ दूर मैदान में बड़े पेड़ के नीचे बैठे थे। हलकी हलकी चल रही ठंडी हवा वातावरण को और भी अच्छा बना रही थी। भीमा ने आरु को एक बात बताने की ठानी - 

भीमा- आरू तुम जानते हो इस पेड़ का क्या इतिहास है? और मैंने गाँव से दूर सिर्फ इसी पेड़ को ही क्यों चुना है तुम्हें शिक्षा देने के लिए । 

आरू- क्योंकि ये पेड़ गांव से दूर है इसलिए? या फिर इसलिए की मैं यहाँ आपसे जो भी सीखूंगा वो किसी को पता नहीं चलेगा।

भीमा- हाँ तुम्हारा जवाब कुछ हद तक ठीक है, पर इसके पीछे एक और कारण भी है, ये वही पेड़ है जिसके नीचे तुम्हारी माँ ने आख़री सांस ली थी।

ये बात सुनते ही आरु की आँखों में पानी आ जाता है, वो ये सोच कर दुखी हो रहा था की जब उसकी माँ भगवान के पास गयी, उस वक़्त यहाँ उसके साथ कोई नहीं था। गाँव की वो लड़की जो उस कबीले का उज्वल भविष्य बनने वाली थी, वो जब इस दुनिया से गयी तो उसके कबीले वालों को भी ख़बर तक नहीं हुई। ये ज़िन्दगी भी बहुत अजीब खेल खेलती है। एक तरफ गाँव के बच्चे अपने माँ बाप के साथ रह रहे थे, और दूसरी तरफ आरु की किस्मत में इस जन्म में भी माँ बाप का साथ और स्नेह नहीं लिखा था। आरु को रोता देख भीमा ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा 

भीमा- इन आंसुओं को यूँ ही मत बहाओ आरु, इस गाँव को तुम्हारी ज़रूरत है। अपने लिए तो हर कोई जीता है पर तुम्हें दूसरों के लिए जीना है।

अपने आंसू पोंछते हुए आरु ने भीमा से कहा. 

आरू- ठीक है बाबा आज से मैं और मज़बूत बनने की कोशिश करूँगा। 

उस पेड़ के साथ जुड़ी कहानी को जानने के बाद, आरु को ऐसा लगता था मानो उसकी माँ आज भी इस पेड़ के रूप में उसे अपने पत्तों की छाया दे रही है। भीमा ने धीरे धीरे आरु को और भी मज़बूत बनाने पर ज़ोर दिया। धीरे धीरे अब आरु मंत्र विद्या सीखने में निपुण हो रहा था। ऐसे बहुत से मंत्र थे जिनके बारे में भीमा ने अब तक आरु को बताया नहीं था। भीमा नहीं चाहता था की अपने अतीत की गहराइयों से विचलित हो। आरु अब कुछ ऐसा न करे जिससे उसे नुकसान हो। आज आरु आँखें बंद करके पेड़ के निचे बैठा था, और वो भीमा के बताये हुए नए मंत्र का जाप कर रहा था. जाप करते समउ उसे ऐसा लगा की कोई उसे किसी चमकती हुई सुरंग में लेकर जा रहा है। इस सुरंग की दीवारें सूर्य की तरह चमक रहीं थी पर सामने सिर्फ काला अँधेरा नज़र आ रहा था। आरु उस रास्ते की ओर बढ़ता जा रहा था। वो खुद नहीं समझ पा रहा था की उसके साथ हो क्या रहा है। कुछ देर बाद उसे एक गूंजती हुई आवाज़ सुनाई देती है। 

आरु जागो, आरु जागो, तुम अब रुक जाओ उस रस्ते पर आगे मत बढ़ो. 

आरु जान नहीं पा रहा था की उसे कौन बुला रहा है, अचानक से आरू अपनी आंखें खोलता है. 

भीमा- जागे आरु जागो, बस करो उस रास्ते पर और आगे मत जाओ। 

आंखें खोलते ही आरु ने देखा उसकी सांसे तेज़ चल रही थी, उसके माथे पर पसीना था। और जो आवाज़ वो सुन रहा था असल में वो भीमा की थी। भीमा ने आरु को पानी पिलाया  जब आरु की सांसे थोड़ी धीमी हुई तो भीमा ने बताया। 

भीमा- आरु तुममें एकाग्रता की बहुत कमी है, इस मंत्र के जाप से तुम्हारा मन एकाग्र हो गया था। वैसे मन कभी इतनी जल्दी एकाग्र नहीं होता , पर तुम पहली बार में ही इसमें सफल हुए। 

आरू- ये सब आपकी शिक्षा से ही सम्भव हुआ है बाबा, पर मुझे एक रास्ता नज़र आया था, वो रास्ता ख़त्म ही नहीं हो रहा था। 

भीमा- हाँ बेटा वो रास्ता कभी ख़त्म नहीं होता, इस मंत्र का काम सिर्फ मन को शून्य की स्थिति में लेकर जाना होता है। इस शून्य की स्थिति के लाभ भी हैं और नुकसान भी। 

आरू- इसका एक लाभ तो आपने बताया था की कुल देवी की साधना के दौरान मनुष्य को शुन्य की स्थिति में रहना पड़ता है। क्या उसके अलावा और भी फायदे होते है?

भीमा- हां, जब मन बहुत सारी चिंताओं और भ्रम में उलझ जाए , तो ये शून्य की स्थिति ही मन को ऊर्जा देती है और उन मुसीबतों से लड़ने की ताकत भी देती है। 

आरू- तो बाबा इसके नुकसान क्या हैं। 

भीमा- नुकसान ये है के अगर इसका सही उपयोग ना आये , तो इंसान हमेशा उस अँधेरे रस्ते की ओर चलता रहता है। तुम्हें कभी अकेले में इसका अभ्यास नहीं करना है, जब मैं तुम्हें कहूं तब ही इसका अभ्यास करना। धीरे-धीरे तुम जब इस स्थिति पर काबू पाना सीख जाओगे, तब तुम्हारा मन कभी भी, किसी भी घटना को देखकर विचलित नहीं होगा। 

भीमा की शिक्षा से आरु का मनोबल धीरे-धीरे मज़बूत हो रहा था. शून्य की स्थिति के अलावा आरु और भी कई ऐसी शक्तियां प्राप्त कर रहा था, जो भविष्य में उसके काम आएंगी। भीमा ने आरू को इन शक्तियों के बारे में एक नया रहस्य बताया। 

भीमा- आरू जो भी शास्त्र और मंत्र तुम सीखोगे, उसकी ताकत कम और ज्यादा होती है. 

आरू- मैं समझा नहीं बाबा 

भीमा- मैं आसान भाषा में समझाता हूँ, जो ‘वेग’ शस्त्र मैंने तुम्हें दिया था, उसका भी एक निचला स्तर होता है और एक सबसे ऊपर का स्तर होता है। जब तुम्हें वो अस्त्र मिला था, तब वो अपने सबसे कम स्तर की ताकत वाला था, जैसे जैसे तुम आगे अभ्यास करते जाओगे, वैसे वैसे उन शास्त्रों की ताकत भी बढ़ती जाएगी। 

आरू- मतलब मेरे पास जो शस्त्र है वो आपके वाले शास्त्र से काम शक्तिशाली है। 

भीमा- हां, पर समय के साथ साथ ये शस्त्र और भी शक्तिशाली होंगे और अगर तुम मेहनत करते रहोगे तो, हो सकता है एक दिन तुम मुझसे भी बलवान हो जाओ। 

भीमा ने आरु को हर शक्ति की बारीकियाँ बताना शुरू कर दिया था। आरु अब पहले से ज़्यादा बलवान हो रहा था। अपनी शक्तियों में विस्तार करते हुए, वो उन पर नियंत्रण करना भी सीख रहा था। आरु पहले ही कई ऐसी गलतियां कर चुका था, जीससे वो परेशानी में पड़ जाता था। पर अब वो भीमा की बताई हुई बात पर ही ध्यान देकर हर विद्या में निपुण होता जा रहा था। अभ्यास करते करते कई दिन ऐसे ही बीत गए, आज भीमा और आरु जब सुबह सुबह नदी में स्नान करने जा रहे थे, तो आरु को एक ज़ोरदार आवाज़ आयी।

जब गांव की ओर दोनों वापस गए, तो उन्होंने देखा के एक काला सा विशाल पक्षी गांव के ऊपर उड़ रहा था। ये पक्षी उन्हीं पक्षियों की तरह दिख रहा था जिन्हें आरु ने जंगल में देखा था। मुंह से आग उगलने वाले इस पक्षी ने गांव में तबाही मचानी शुरू कर दी थी। ये देखते ही भीमा ने आरु से सूर्य शस्त्र का मंत्र जाप करने को कहा। 

मंत्र जाप के बाद कुछ ही पल में आरु के हाथ में सूर्य शस्त्र था, भीमा के कहने पर आरु ने पूरी ज़ोर से उस शस्त्र को उस काले पक्षी की ओर फेंका। शास्त्र लगते ही वो पक्षी बुरी तरह घायल हो गया. घायल होने की वजह से उसकी डरावनी चीख निकली, जिससे पुरे गाँव में डर का माहौल पैदा कर दिया। वो पक्षी आसमान में कहीं गायब हो गया। उसके जाने के बाद आरु ने भीमा से पूछा।

आरू- बाबा मैंने पहली बार आग उगलने वाला पक्षी देखा है, कहीं इसे प्रेताल ने तो नहीं भेजा था 

भीमा- नहीं ये प्रेताल के वश में रहने वाला पक्षी नहीं है

आरू- तो इसे किसने भेजा था ? 

भीमा- ये तुम्हें मैं समय आने पर बताऊंगा, पर आज तुम्हें मैं शुभकामनायें देना चाहता हूँ, तुम्हारे वार ने उसे भगा दिया, तुम पहले से ज़्यादा ताकतवर हो रहे हो.

आरू- पर बाबा वो सिर्फ घायल हुआ है, मरा नहीं। 

भीमा- मैंने तुम्हें बताया था ना , समय के साथ साथ तुम्हारे शस्त्र की शक्तियां बढ़ेंगी, तुम बस अभ्यास जारी रखो। 
 

आज आरु को अपनी बढ़ती शक्ति का एहसास पहली बार हुआ था, लेकिन सोचने वाली बात यह थी की अगर उस पक्षी को प्रेताल ने नहीं भेजा था, तो वो कौन था जो गाँव में तबाही मचाना चाहता था? इस गांव का और कौन कौन दुश्मन है? क्या आने वाले समय में ऐसे और भी हमले होंगे? क्या इस जगह उस पक्षी की तरह और भी कई अनोख़ी प्रजाति के पक्षी और जानवर मौजूद हैं? कहानी में कौनसा रोचक मोड़ आने वाला है और काल का जाल कहाँ तक फैला है ? जानने के लिए आगे ज़रुर पढ़ें। 

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