कुछ दिनों तक पेड़ पर चढ़ने का अभ्यास करते करते आरु के नरम हाथ अब सख्त होने शुरू हो चुके थे। पर अभी समस्या ये थी के आरु को ऊंचाई से डर लगता था, वो पेड़ की जटा पकड़ कर कुछ ऊंचाई तक पहुंचने के बाद घबरा जाता और वापिस नीचे आ जाता। आरु अभी तक पेड़ की आधी ऊंचाई पर भी नहीं पहुँच पा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे इस ऊँचे पेड़ पर बैठे पक्षी मानो आरु को चिड़ा रहे थे। निराश हुआ आरु नीचे आकर भीमा से कहता है।

आरू- बाबा …! फुर्तीला होना तो दूर की बात है मैं तो ये सोच रहा हूँ कि, क्या मैं कभी भी इस ऊँचे पेड़ पर चढ़ पाऊँगा। 

भीमा- तुम कोशिश जारी रखो बहुत जल्द तुम इसमें सफल हो जाओगे . 

आरू- पर बाबा क्या ऐसा हो सकता है कि इसका भी कोई मंत्र हो , जिसके जाप करने से शरीर में फुर्ती आ जाए , और मैं झट से पेड़ पर चढ़ जाऊं . 

भीमा- हर चीज़ का हल सिर्फ मंत्र जाप नहीं होता। कुछ चीज़ों को हासिल करने के लिए शरीर को बलवान ही बनाना पड़ता है। जैसे मंत्र जाप की शक्ति को सहन करने के लिए तुमने अपने मन को मज़बूत बनाया था, वैसे ही इस मंज़िल को हासिल करने के लिए तुम्हें अपने शरीर को मज़बूत बनाना होगा। जब तुम्हें अपने शारीरिक बल पर भरोसा होगा , तब तुम्हें ऊंचाई से भी डर नहीं लगेगा। 

जैसे पक्षियों को आसमान की ऊंचाई में भी कभी डर नहीं लगता , क्योंकि उन्हें अपने परों पर भरोसा होता है, वैसे ही भीमा अब आरु को समझना चाहते थे की , उसे खुद पर यकीन करना होगा, तभी वो पेड़ के शिखर तक पहुँच सकता है। आरु का अभ्यास ऐसे ही जारी रहता है, वो धीरे धीरे पेड़ के आधे हिस्से तक पहुंचना शुरू हो गया था। कुछ ही दिनों बाद अचानक आरु के साथ अजीबो गरीब घटनायें होनी शुरू हो गयी। सारा दिन अभ्यास करके थका हुआ आरु रात को जब सो रहा था तो उसे आवाज़ आयी। 

प्रेताल- तुम्हें कोई नहीं बचा सकता, तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। 

सपनें में आरु ने देखा के प्रेताल ने उसे मैदान वाले पेड़ पर बांध दिया था, आरु के आस पास जंगल के जानवर थे, और आरु के सामने खड़ा हुआ प्रेताल कहता है 

प्रेताल- जंग खत्म हो गयी, तुम हार गए हा हा हा 

प्रेताल धीरे धीरे आरु के पास आकर अपनी तलवार से ज़ोर से आरु पर वार करता है 

आरू- छोड़ दो मुझेझेझे….! 

सपना टूटते ही आरु चिल्लाते हुए उठ कर बैठ जाता है। पास वाले कमरे में सो रहे भीमा बाबा दौड़ते हुए आरु के पास आते हैं, आरु रोते हुए उन्हें बताता है। 

आरू-  बाबा वो सबको मार देगा, वो सबको मार देगा . 

भीमा- बेटा कौन किसको मार देगा।

आरू- वो प्रेताल…. वो सबको मार देगा। 

भीमा- घबराओ मत बेटा वो बस एक सपना था। 

घबराये हुए आरु को बाबा ने पानी पिलाया  और उसके सर पर हाथ फेरता हुए बाबा ने कहा के “ये सिर्फ एक सपना है जिससे तुम्हें घबराना नहीं चाहिए। अगर तुम इन सपनों से ही घबरा गए तो अपना मनोबल कैसे बढ़ा पाओगे। अब आराम से सो जाओ मैं तुम्हारे पास ही बैठा हूँ” ।

बाबा की मौजूदगी ने आरु के मन को शांत कर दिया था, कुछ ही देर बाद आरु सो तो गया था , पर इस घटना ने बाबा को शंका में डाल दिया था। आरु कोई आम बच्चा नहीं था , और उसको ऐसे सपने आना किसी बड़ी दुर्घटना की और संकेत कर रहे थे। 

अगले दिन सुबह नाश्ता करने के बाद आरु ने बाबा से कहा - बाबा हम बहुत दिनों से अभ्यास कर रहे हैं, क्या आज मैं थोड़ा आराम कर लूं .

भीमा ने आरु की मानसिक और शारीरिक स्थिति को जान लिया था, इसलिए उन्होंने मुस्कुराते हुए आरु को जवाब दिया। 

भीमा- ज़रूर बेटा, शरीर को आराम देना भी अभ्यास का एक हिस्सा ही होता है। आज तुम आराम कर लो या गांव में अपने दोस्तों के साथ घूम लो। 

आज बहुत दिनों बाद आरु अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। श्रुति भी आज आरु को देख कर बहुत खुश थी। कुछ देर खेलने के बाद सब बच्चे अपने घरों में दोपहर का खाना खाने चले गए, पर श्रुति आरु के पास ही बैठी रही।  बातें करते करते दोनों नदी के पास अपनी मनपसंद जगह पर जाकर बैठ गए।आरु ने श्रुति को अपने सपने के बारे में बताते हुए कहा। 

आरू- श्रुति कल रात मुझे ऐसा सपना आया की, एक लड़के ने मुझे पेड़ से बांध दिया था, और उसने सरे गांव को ख़त्म कर दिया था, जब वो मुझे मारने आया तो मैं ज़ोर से चिल्ला कर उठ गया था। 

श्रुति- तुम घबराओ मत, भीमा बाबा हैं ना तुम्हारे साथ. 

आरू- हाँ जब वो मेरे कमरे में आये तो मुझे थोड़ा होंसला मिला। 

श्रुति- तुम बहुत दिन से सिर्फ शिक्षा और अभ्यास पर ध्यान दे रहे थे, ऊपर से आग उगलने वाले पक्षी की घटना हो गयी। जब हमारा शरीर और दिमाग थक जाता है तो ऐसे बुरे सपनों आते है।इसीलिए कहती हूँ कुछ वक़्त अपने लिए भी निकाला करो। 

श्रुति हमेशा सयाने लोगों की तरह बातें करती थी, उसकी समझदारी वाली बातों की वजह से ही वो आरु की पक्की दोस्त बन गयी थी। इन दोनों की बातों का सिलसिला जारी था पर कुछ देर बाद ही ऐसी घटना होती है, जिससे आरु के माथे पर डर से पसीना आ जाता है। उसे काफी दुरी पर नदी के दूसरे किनारे की तरफ प्रेताल खड़ा हुआ नज़र आता है। उसकी डरावनी मुस्कुराहट आरु को बेचैन किये जा रही थी। आरु को लगा शायद ये उसका भ्रम हो सकता है। उसने अपना डर छिपाते हुए श्रुति से कहा। 

आरू- श्रुति वो देखो वो दूर नदी के किनारे के पास क्या तुम्हें कोई बच्चा नज़र आ रहा है? 

श्रुति- नहीं तो, वहां तो कोई नहीं है। 

वही हुआ जिसका डर था, आरु को ऐसा लग रहा था मानों उसका डर उसकी जिंदगी पर हावी हो रहा था। वो प्रेताल को पहले मिल चुका था , पर अब वो खुद समझ नहीं पा रहा था की उसे प्रेताल को देख कर डर क्यों लग रहा था। श्रुति को लगा शायद आरु को कोई जानवर नज़र आया होगा। उसने आरु की तरफ देखते हुए कहा। 

श्रुति- आरु तुम आज कल सोचते बहुत ज्यादा हो। वहां कोई जंगली जानवर होगा, और मेरी तरफ देखो मैं जो कहने जा रही हूँ उसे ध्यान से सुनना.आरु तुम खुद पर यकीन रखो, एक दिन तुम सबसे ताकतवर बनोगे। 

आरू- यही तो दिक्क्त है, मुझे जब भी लगता है के मैं ताकतवर बन रहा हूँ , तो उसी वक़्त कोई ऐसी घटना हो जाती है जिस से मेरा मनोबल टूट जाता है। 

श्रुति- नहीं आरु तुम यहां गलत हो, मुझे लगता है कि ऐसी घटनाओं से तुम्हारा मनोबल और मज़बूत बनेगा। कोई भी इंसान पैदा होते ही बलवान नहीं बन जाता। समय की ठोकर ही इंसान को ताकतवर बनाती है।

सबकी ज़िन्दगी में श्रुति जैसी दोस्त होनी चाहिए, जो मुश्किल समय में हमेशा साथ रहे। और श्रुति की बात सुनने के बाद आरु ने नदी के उस पार देखा तो, वहां उसे प्रेताल अब नज़र नहीं आ रहा था।  दोनों ने नदी किनारे बैठ कर खूब बातें की और शाम होने से पहले दोनों अपने अपने घर चले गए थे। आरु कुटिया में वापस आ गया था, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट देख कर भीमा के मन को भी कुछ शांति मिली थी। दोनों ने एक साथ खाना खाया और अपने अपने कमरे में सोने चले गए। पर शायद आज की रात भी आरु के लिए लम्बी होने वाली थी। जब आरु सो रहा था, तो फिर से उसके कानों में आवाज़ आयी 

प्रेताल - तुम हार गए तुम्हारा गांव बर्बाद हो गया है हा हा हा 

आरू- नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। 

आरु सपने में देख रहा था के उसे पेड़ से बांधा गया था और उसके सामने ‘दैत्यार’ नाम के बड़े से जानवर पर प्रेताल बैठा था। ये वही जानवर था जिसके बारे में भीमा ने आरु को बताया था। ‘दैत्यार’ आरु की और तेज़ी से बढ़ता है, और जैसे ही वो आरु को टक्कर मारने वाला होता है आरु चिल्लाता है। 

आरू- नहीं...... मुझे मत मारो मुझे मत मारो 

आरु की आवाज़ सुनकर भीमा उसके कमरे में आ जाते हैं, रोता हुआ आरु भीमा से कहता है -

आरू- बाबा मुझे बचा लो,, मुझे बहुत डर लग रहा है, वो मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा। 

भीमा- बेटा घबराओ मत मैं हूँ हमेशा तुम्हारे साथ, मैं तुम्हें कभी भी कुछ भी नहीं होने दूंगा। 

आरू- मैं बहुत डरपोक लकड़ा हूँ बाबा… 

भीमा- तुम डरपोक नहीं हो बच्चे, तुम पर बस ‘भ्रम माया’ का साया पड़ गया है। 

भीमा जान चुके थे के आरु को जो सपने आ रहे थे , ये कोई आम सपने नहीं थे। असल में ये एक ‘भ्रम माया’ का रचा हुआ खेल था। पर ये ‘भ्रम माया’ आखिर होती क्या है? क्या आरु इस से बच पायेगा, किसकी वजह से आरु पर पड़ा है ‘भ्रम माया’ का साया ? जानने के लिए पढ़ते रहिए काल का जाल

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