अब काफी वक़्त बीत चुका था।

शहर, गाँव, कस्बे हर जगह कुछ बदल रहा था लेकिन यह बदलाव किसी नियम, टेक्नोलॉजी या कानून से नहीं आया था। यह बदलाव आया था उन छोटे गोल घेरों से जो हर जगह बनने लगे थे। उन्हें कोई नाम नहीं दिया गया था पर लोग उन्हें "सुनने की जगहें" कहने लगे थे।

कोई स्कूल की छत पर दो कुर्सियाँ रख देता था।

कोई बस स्टॉप के पीछे एक गोल पत्थर का घेरा बना देता था।

किसी कैफ़े में वेटर की टेबल के पास एक छोटा कार्ड रख देते जिसपर लिखा होता था–

“यहाँ सिर्फ़ चाय नहीं मिलेगी आपकी बात भी सुनी जाएगी।”

–––

ऐरन अब एक शहर में नहीं था। वह एक यात्रा पर निकल चुका था। कोई प्रचार करने नहीं बल्कि यह देखने कि क्या लोग खुद से जगह बनाना सीख गए हैं? और उसने पाया कि ’हाँ’ अब लोग एक-दूसरे के लिए लिसनर बनते जा रहे थे।

बर्लिन में एक बुकशॉप में बच्चों ने "रीडिंग सर्कल" को

"लिसनिंग सर्कल" में बदल दिया था।

मुंबई में एक लोकल ट्रेन के डिब्बे में हर शुक्रवार एक कोना डिसाइड किया जाने लगा जहाँ कोई अनजान व्यक्ति आकर बिना टोके जो चाहे कह सकता था।

और टोक्यो में एक यूनिवर्सिटी कैंपस में एक दीवार पर पेंट किया गया–

“इफ यू नीड साइलेंस, सिट हेयर।

इफ यू नीड टू स्पीक, वी विल स्टे।"

ऐरन को अब हर जगह निया दिखती थी। कभी किसी स्केच में, कभी किसी किताब के पन्ने पर लेकिन अब कोई उसे देवी या आंदोलन की तरह नहीं देखता था। अब वह "पहली सुनने वाली" के रूप में याद की जाती थी और शायद यही उसका सबसे सुंदर बदलाव था।

एक गाँव में, ऐरन एक चायवाले से मिला।

चायवाले ने कहा–

“हमने यहाँ ‘खाली चाय-कुर्सी’ शुरू की है। जो ग्राहक बोलना न चाहें वो बस वहाँ बैठ जाते हैं। हम उन्हें चुपचाप चाय देते हैं और उनका मौन ही हमारी कमाई बन जाता है।”

ऐरन ने मुस्कराकर पूछा–

“और क्या आपको लगता है कि ये लोग दोबारा आते हैं?”

चायवाले ने जवाब दिया–

“हाँ, लेकिन अब वो बोलने लगते हैं क्योंकि उन्होंने किसी दिन खुद को सुना था।”

ऐरन अब एक जगह रुका, जो एक पहाड़ी स्कूल था।

वहाँ बच्चों ने अपना “गोल घेरा” बना रखा था। हर शुक्रवार को वो एक गोल घेरे में बैठते और कोई भी बच्चा जो चाहे वो बोल सकता था। लेकिन उनका एक नियम था–

"जो बोले उसे न काटा जाए।

जो चुप रहे उसे न टोका जाए।

जो रो दे उससे न पूछा जाए– क्यूँ?"

ऐरन ने बच्चों से पूछा–

“ये नियम किसने बनाए?”

एक बच्ची ने जवाब दिया–

“हमने नहीं बनाए पर जब हम पहली बार बोले और किसी ने टोका नहीं तो हमने समझ लिया कि ऐसा ही होना चाहिए।”

यह सुनकर ऐरन की आँखें नम हो गईं और उसने अपनी डायरी में लिखा–

“सुनने की परंपरा अब बड़ों ने नहीं बच्चों ने सहेजी है।

अब ये सिस्टम नहीं एक आदत बन चुकी है।”

उस शाम, ऐरन एक पुराने चर्च की सीढ़ियों पर बैठा था। उसके पास में एक बुज़ुर्ग व्यक्ति आया। उसके हाथ कांप रहे थे पर आंखों में एक तेज था। उसने पूछा–

“क्या तुम निया को जानते थे?”

ऐरन ने सिर हिलाया और बोला–

“नहीं, पर मैंने उसकी खाली कुर्सी देखी थी।”

बुज़ुर्ग मुस्कराया और बोला–

“फिर तो तुम उसे जानते हो।”

 

–––

ऐरन इस बार वाल्मेरा पहुँचा था। जो एक साफ-सुथरा, व्यवस्थित और एडवांस्ड शहर है।

यहाँ हर चीज़ ट्रैफिक लाइट से लेकर क्लासरूम के शब्दों तक एक "सिस्टम" के तहत चलती थी।

पर जिस चीज़ ने उसका ध्यान खींचा वो था एक बड़ा सा पोस्टर–

“वेलकम टू लिसनिंग हब्स–

सर्टिफाइड सेफ लिसनिंग ज़ोन।"

नीचे एक क्यूआर कोड और टैगलाइन थी–

“स्पीक फ्रीली। विदिन प्रोटोकॉल।"

यह पढ़कर ऐरन चौंका और खुद में बोला–

“विदिन प्रोटोकॉल।

सुनने के लिए अब प्रोटोकॉल की ज़रूरत पड़ रही है?”

यह जानने की इच्छा में वो एक लिसनिंग हब में गया। वहां एक शानदार कमरा था जिसमें गोल घेरा बना हुआ था और एसी चल रहा था। वहां दीवार पर लिखा था–

“साइलेंस इज़ रेस्पेक्टिड हेयर।

स्पीकिंग टाइम: 2 मिनिट्स पर पार्टिसिपेंट।"

ऐरन ने चारों ओर देखा वहां लोग बैठे थे। जो शांत और मुस्करा रहे थे लेकिन कुछ अनजानी सी रिहर्सल में खोए हुए थे।

तभी एक बच्ची उठी और उसने कहा–

“मैं आज यह साझा करना चाहती हूँ कि मैंने अपनी चिंता पर कैसे जीत पाई।”

उसने समय देखा, बोली और फिर बैठ गई। उसके लिए ताली बजी।

ऐरन की मुस्कराहट गायब होने लगी थी। क्योंकि उसके अनुसार ये कोई सुनने की जगह नहीं थी ये एक प्रदर्शन था।

हब के आखिर में एक "फीडबैक स्क्रीन" थी। जहां लोग अपनी बात को 1 से 5 तक रेट करते थे। उसका आधार थे कुछ सवाल– 

“कितनी कीमत था?”

“कितना क्लियर था?”

और फिर एक एल्गोरिदम तय करता कि अगली बार किसे बोलने का मौका मिलेगा।

ऐरन को अंदर–ही–अंदर कुछ खलने लगा। वह वहां से बाहर आया और उसने सड़क किनारे एक युवा वॉलंटियर से पूछा–

“क्या यहाँ कोई ऐसी जगह है जहाँ कोई बस आकर बैठ जाए बिना टाइम स्लॉट के और बिना पूछे?”

वॉलंटियर ने सिर हिलाया और बोला–

"नहीं सर, यहाँ हर चीज़ व्यवस्थित है।

अनकंट्रोल्ड चीज़ें लोगों को अनकंफर्टेबल करती हैं।"

यह सुनकर ऐरन चुप रहा और वहां से चला गया। फिर शाम को वो शहर के पुराने हिस्से में गया। वहाँ एक टूटे-फूटे पार्क में पत्थरों से कूड़े के डिब्बों के पास एक छोटा सा घेरा बना मिला। वहां कोई स्क्रिप्ट नहीं, कोई वॉलंटियर नहीं थे। बस एक बूढ़ा आदमी अकेला बैठा था।

ऐरन उनके पास जाकर बैठ गया। दोनों चुप रहे।

कुछ देर बाद बूढ़े व्यक्ति ने पूछा–

“तुम भी किसी हब से भाग कर आए हो?”

ऐरन मुस्कराया और बोला–

“हाँ, क्योंकि वहाँ सुनने के लिए कान तो हैं पर कोई फीलिंग नहीं है।”

बूढ़े ने एक छोटा सा नोट ऐरन की ओर खिसकाया जिसपर लिखा था–

“लिसनिंग इज़ नॉट ए सर्विस।

इट्स ए सरेंडर।"

यह पढ़कर ऐरन ने आँखें बंद कर लीं। उसे ऐसा लगा जैसे निया फिर से उसके पास बैठी है।

उस रात, ऐरन ने अपनी डायरी में लिखा–

"हमने जो छोड़ा था, वो एक चिंगारी थी पर अब लोग उसे जलती हुई आग में बदलना चाहते हैं।

शायद मुझे फिर से वो चिंगारी फैलानी होगी वो भी बस एक खुली हवा में।”

वाल्मेरा की एक पुरानी गली थी। जहाँ पुराने घर, टूटी हुई सीढ़ियाँ और दरी बिछे आंगन थे।

यह जगह लिसनिंग हब की चमक से दूर थी। यहाँ की दीवारों पर पोस्टर नहीं सिर्फ़ सीलन थी।

ऐरन इस गली में सुबह-सुबह पहुँचा। उसके कंधे पर एक छोटा बैग था। जिसके अंदर सिर्फ़ एक छोटा पत्थर, एक टुकड़ा चॉक और एक खाली काग़ज़ था।

उसने सबसे कोने वाली दीवार के सामने एक छोटा चबूतरा चुना। वहाँ सिर्फ़ कुछ कबूतर और एक बेज़ुबान बिल्ली के अलावा कोई नहीं आता था। वहां बैठकर ऐरन ने चुपचाप अपना बैग खोला। पत्थर को सामने रखा और चॉक से पत्थर पर लिखा–

"यहाँ कोई नियम नहीं हैं।

हम सिर्फ़ सुनेंगे अगर तुम कहने की हिम्मत करो तो।"

और वो वहीं बैठ गया। उसका कोई बैनर नहीं, कोई प्रचार नहीं था। बस एक आदमी और एक पत्थर था और धीरे-धीरे लोग वहां से गुज़रने लगे, उसे देखने लगे और फिर रुकने लगे थे।

पहली लड़की जो उसके पास आई वो 9 साल की रही होगी।

उसने ऐरन से कुछ नहीं पूछा। वो बस उसके पास बैठ गई और थोड़ी देर बाद उसने धीरे से कहा–

“मम्मी से कुछ कहना चाहती हूँ पर मम्मी के सामने बोल नहीं पाती हूँ।”

ऐरन ने कुछ नहीं कहा, कोई जवाब नहीं दिया।

लड़की ने फिर कहा–

“क्या मैं यहाँ बोल सकती हूँ जैसे कि मम्मी को सुनाई दे रहा है?”

ऐरन ने बस सिर हिलाया।

लड़की ने एक लंबी साँस ली और पहली बार बिना डर के बोली–

“माँ, मुझे बुरा नहीं लगता जब आप चुप रहती हो। बस कभी-कभी मैं चाहती हूँ कि आप पूछो कि मैं कैसा हूँ।”

पास की एक खिड़की से एक औरत ने यह सुना। वो कुछ कहने को हुई लेकिन वो रुक गई। उसकी आँखों में कुछ तैर गया और वो वापस बैठ गई। शायद वही मम्मी थी।

दूसरे दिन, दो लड़के आए और बोले–

“हमें नहीं पता हमें क्या कहना है पर बस कोई टोकेगा नहीं इतना भरोसा चाहिए।”

ऐरन ने फिर कुछ नहीं कहा। वह तो बस वो जगह बना रहा था जहाँ कोई "सुनने वाला" नहीं बस मौजूद होने वाला होता है।

तीसरे दिन, वहाँ एक बेंच रखी मिली।

किसी ने कोई पूछताछ नहीं की थी बस वहां आकर चुपचाप एक बेंच रख दी थी।

चौथे दिन, बिना प्ले किए एक पुराना रेडियो रखा गया।

पाँचवें दिन, एक बच्चा चॉक से दीवार पर लिख गया–

“मैं ठीक नहीं हूँ लेकिन यहाँ बैठकर थोड़ा बेहतर लगता है।”

अब ये गली सिर्फ़ एक जगह नहीं रह गई थी। ये एक संभावना बन गई थी।

ऐरन ने इसे कोई नाम नहीं दिया था पर बच्चों ने इसे कहना शुरू कर दिया –

"निया की गली।”

एक दिन वाल्मेरा के सरकारी अधिकारी वहां आए और उन्होंने पूछा–

“क्या आपने इस जगह की अनुमति ली है?”

ऐरन ने जवाब दिया–

“नहीं, क्योंकि जो सुनना चाहता है उसे अनुमति की नहीं उपस्थिति की ज़रूरत होती है।”

अधिकारियों ने कहा–

“यह ठीक नहीं है। इससे अव्यवस्था फैलेगी।”

ऐरन मुस्कराया–

“अगर चुप्पी को सुनना अव्यवस्था है तो शायद हमें फिर से अव्यवस्थित होना सीखना चाहिए।”

उसी रात, किसी ने ऐरन के पत्थर पर चुपके से एक नई लाइन जोड़ दी–

"हम सब निया नहीं बन सकते हैं पर कोई न कोई वो जगह ज़रूर बन सकता है जहाँ अगली निया खड़ी हो सके।”

ऐरन ने उसे मिटाया नहीं, बस एक चॉक वहीं रख दी ताकि कोई और भी कभी कुछ जोड़ सके।

 

 

जब सुनने की परंपरा एक स्ट्रक्चर्ड सिस्टम बन जाए तो क्या उसकी आत्मा खो जाती है या सिर्फ़ उसका रूप बदलता है?

क्या ऐरन का पत्थर किसी नई निया के लिए जगह बनेगा या अब अगली निया नाम की नहीं सिर्फ़ फीलिंग की होगी?

अगर हर कोई किसी और के लिए जगह बनाना सीख जाए तो क्या फिर किसी को "नेता" बनने की ज़रूरत रहेगी?

 

 

 

 

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