पहाड़ों की गोद में और नदी के किनारे बसा एक छोटा-सा लेकिन तेजी से बदलता शहर जिसका का नाम अर्डेना था। जहां न कोई नेटवर्क सर्विलांस और न सरकारी स्कैनर्स थे। वहां पर लोग अब भी पुराने तरीकों से जीते थे, हफ्ते में एक बाज़ार, रेडियो पर लोकगीत, और बच्चों के लिए बाहर खेलने की खुली जगह थी और इसी शहर के बाहरी किनारे पर एक खाली मैदान था जिसे लोग "शब्द चौक" कहने लगे थे।
वहाँ कोई बिल्डिंग या कोई मंच नहीं था। बस कुछ पत्थर थे जिन पर लोग आकर बैठ जाते थे। शुरुआत में तो ये जगह खाली थी लेकिन फिर धीरे-धीरे किसी ने एक बेंच ला दी, किसी ने पेड़ की छाँव में एक छोटी शेड बना दी और फिर एक दिन ऐरन वहाँ आया।
उसके पास कोई प्लान नहीं था और नई शुरुवात करने के लिए कोई फ़ंडिंग भी नहीं थी।
उसके पास तो बस एक छोटा बैग, एक पुरानी डायरी, और जेब में निया की कुर्सी के नीचे रखा पन्ना था। उस पर अब भी लिखा था:
“मैं भी अब सुनना चाहता हूँ लेकिन यह मेरी कुर्सी नहीं होनी चाहिए।”
ऐरन ने एक पुराने पत्थर को साफ़ किया। वहाँ बैठा और पास से गुज़रते दो बच्चों को देखा जो झगड़ रहे थे। उसने कुछ नहीं कहा बस मुस्कराया।
बच्चों ने उसे देखा और फिर चुप हो गए और उनमें से एक ने धीरे से पूछा–
“क्या हम यहाँ बैठ सकते हैं?”
ऐरन ने कोई जवाब नहीं दिया। उनके सामने बस अपनी डायरी का एक खाली पन्ना खोल दिया। बच्चे भी वहां बैठ गए।
अगले दिन, एक बूढ़ा व्यक्ति आया। उसके हाथ में एक पुराना रेडियो और आँखों में थकान थी। वो वहां आकर बैठा गया।
ऐरन ने उसे भी कुछ नहीं कहा बस एक पन्ना उसकी ओर खिसका दिया। बूढ़े व्यक्ति ने उस पर कुछ लिखा–
"कभी-कभी मैं चाहता हूँ कि कोई मेरी बात दोबारा न पूछे, बस सुन ले।”
फिर धीरे-धीरे लोगों को समझ आने लगा कि ये कोई संस्था नहीं, कोई इलाज नहीं, कोई सुझाव देने वाली जगह नहीं है। ये बस एक खुला मैदान था जहाँ अगर आप आकर अपनी बात कहें तो कोई टोकेगा नहीं और शायद कोई ज़वाब भी न दे पर आप खुद को थोड़ा हल्का महसूस करेंगे।
ऐरन अब हर दिन वहाँ आता, वो बैठता, बच्चों की लड़ाइयाँ सुनता, बड़ों के डर पढ़ता, अधूरी प्रेम कहानियाँ देखता। उसकी डायरी भरती जा रही थी पर अब वो डेटा नहीं थी। वो एक शहर की जिम्मेदारी की किताब थी। जहाँ कोई एक आदमी सबका बोझ नहीं उठाता था, बस सबकी बातें संभाल कर रखता था।
एक दिन एक औरत आई उसने पूछा–
“क्या यहाँ कोई बोलने के लिए कहता है?”
ऐरन ने कहा–
“नहीं, लेकिन अगर कुछ कहना है तो हम सब सुनने के लिए बैठे हैं।”
वो वहां बैठी और बहुत देर तक कुछ नहीं बोली फिर अचानक उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
अबकी बार ऐरन ने डायरी आगे नहीं बढ़ाई। उसने बस अपनी हथेली ज़मीन पर रख दी जैसे कह रहा हो, “यहीं बैठो।”
वो बैठ गई और बोली–
“आज कई साल बाद किसी ने मेरी खामोशी को पूरा माना है।”
अब अर्डेना शहर में “शब्द चौक” एक अनोखी जगह बन गई थी। यहाँ कोई नाम नहीं लिखा जाता था। कोई फॉर्म नहीं भरवाया जाता था। बस एक पत्थर पर बैठा कोई इंसान होता है जो कहता नहीं, सुनता है।
शहर की पंचायत में किसी ने ऐरन को बुलाकर पूछा–
“क्या तुम कुछ सिखाते भी हो?”
ऐरन ने जवाब दिया–
“मैं कुछ नहीं सिखाता पर कभी-कभी जब कोई बोलता है तो खुद ही सीख लेता है।”
एक स्कूल का बच्चा जिसका नाम रानू था वो वहां रोज़ आता था। वो ज़्यादा बात नहीं करता था। बस ऐरन की डायरी में पेज पलटता था लेकिन एक दिन उसने लिखा–
“मैं अपनी मम्मी को यहाँ लाना चाहता हूँ क्योंकि उन्हें भी लगता है कि कोई उन्हें नहीं सुनता।”
ऐरन ने बस सिर हिलाया–
"ले आओ, हम कोई हल नहीं देंगे पर शायद उनका बोझ थोड़ा हल्का हो जाए।”
शाम का वक्त था।
ऐरन "शब्द चौक" के अपने पत्थर पर बैठा था। वो वही जगह थी जहाँ अब लोग रुकते, बैठते, कुछ कहते या बस चुपचाप चले जाते थे।
एक छोटा बच्चा, एक थकी औरत, एक बेरोज़गार युवक सभी रोज़ बदलते रहते थे।
और ऐरन?
वो अब भी वही करता था– सुनना।
लेकिन उस दिन एक अलग सा अजनबी आया। जिसका ऊँचा कद, कंधे पर बैग, चेहरे पर थकान और निगाहों में कुछ तेज़ था। उसने सीधे आकर ऐरन के सामने खड़े होकर पूछा–
“तुम ही हो वो जो चुप रहकर जवाब देता है?”
ऐरन ने हल्के से सिर हिलाया।
अजनबी ने फिर पूछा–
“तो अगर कोई सिर्फ़ सुनता है तो वो क्या खुद से भाग रहा होता है?”
ऐरन चुप रहा और उस आदमी को उसने अपने पास बैठने को इशारा किया।
अजनबी नहीं बैठा वो बस वहीं खड़ा रहा और बोला–
"मैं कई जगह गया जहाँ लोग बोलते हैं, चिल्लाते हैं, कुछ सिखाते हैं लेकिन यहाँ सब चुप क्यों हैं?
कभी-कभी लगता है कि ये चुप्पी भी एक ढाल है, एक तरीका कि हम सच से बच जाएँ।"
ऐरन ने एक गहरा साँस ली फिर बोला–
“चुप रहना भागना नहीं होता है। कभी-कभी ये वो जगह होती है जहाँ से तुम फिर से अपनी आवाज़ सुनना शुरू करते हो। बोलना हिम्मत का काम है, लेकिन सुनना और भी ज्यादा हिम्मत का काम होता है।”
अजनबी ने धीरे से सिर झुकाया और फिर बोला–
"पर तुम तो निया को मानते हो न?
वो भी सिर्फ़ सुनती रही और फिर गायब हो गई थी।
क्या तुम्हें कभी डर नहीं लगता कि तुम भी बस गुम हो जाओगे?"
ये सवाल सीधा नहीं था। ये किसी समस्या से नहीं बल्कि किसी पुराने डर से आया था।
ऐरन के चेहरे की मुस्कान कुछ पल के लिए थम गई। उसे लगा जैसे निया की वही पुरानी साँसें, वो जो उसने एक कुर्सी पर बैठकर ली थीं उसके अंदर गूंज रही हैं।
फिर उसने जवाब दिया–
"निया गायब नहीं हुई थी। वो बस वहां से हट गई थी जहाँ लोगों को अब खुद को सुनने की आदत हो गई थी।
और मैं?
अगर मैं भी किसी दिन चला गया तो यक़ीन मानो इस पत्थर पर बैठने कोई और ज़रूर आएगा क्योंकि सुनने की ज़रूरत कभी खत्म नहीं होती।"
वो अजनबी कुछ सेकंड चुप रहा और फिर उसने बैग से एक मुड़ा-कुचला पन्ना निकाला। उस पर सिर्फ़ एक लाइन थी–
“मैं कभी निया से नहीं मिला पर लगता है जैसे वो मेरी खामोशी में रहती है।”
उसने वो पन्ना ऐरन की डायरी में रख दिया।
ऐरन कुछ नहीं बोला। बस उस पन्ने को वहीं छोड़ दिया जहाँ बाकियों की कहानियाँ लिखी हुईं थीं।
थोड़ी देर बाद अजनबी चला गया।
अब शब्द चौक फिर से शांत था।
लेकिन ऐरन के अंदर हल्का सा कुछ टूट चुका था किसी चोट की तरह नहीं बल्कि जैसे किसी ने कोई दरवाज़ा धीरे से खोल दिया हो।
उस रात ऐरन ने अपनी डायरी में सिर्फ़ एक लाइन लिखी–
“शायद अब सुनना काफी नहीं रह गया है। कभी-कभी किसी को ये भी बताना पड़ता है कि उसका सवाल अकेला नहीं है।”
सुबह हल्की नारंगी थी। नदी के पार से आती हवा में मिट्टी और फूलों की गंध थी।
“शब्द चौक” आज भी वैसे ही बिछा था जैसे रोज होता था कुछ पत्थर, हल्की–हल्की धूप और ऐरन पर आज वो अकेला नहीं था।
उसके पास एक 12 साल का लड़का बैठा था जिसका नाम समर था।
समर अक्सर यहां आता था। वो ज़्यादा बोलता नहीं था। बस ऐरन की डायरी के पन्ने पलटता और कभी-कभी किसी लाइन के पास अपनी उंगली रोक देता था। पर आज वो एक कोने में बैठकर अपनी हथेली में कुछ मसल रहा था।
ऐरन ने उसे देखा पर हमेशा की तरह वो चुप रहा।
कुछ देर बाद समर उठा उसने ऐरन की डायरी की ओर देखा और फिर धीरे से पूछा–
“क्या मैं इसमें कुछ लिख सकता हूँ?”
ऐरन ने डायरी उसके आगे कर दी बिना पेन दिए क्योंकि समर अपना वही नीला पेन जिसमें पुरानी टेप चिपकी थी उसे हमेशा साथ में लाता था।
समर ने लिखा–
“मुझे नहीं पता कि मुझे क्या कहना है पर मैं ये नहीं चाहता कि कोई मेरे लिए बोले। मैं बस इतना चाहता हूँ कि जो कुछ मेरे अंदर है वो मेरा ही रहे।”
ऐरन ने देखा और पहली बार सुनने से आगे बढ़कर न कोई भाषण, न कोई सलाह दी बस एक सीधा सवाल किया–
"समर अगर तुम्हें कोई सुन रहा हो तो तुम सबसे पहले क्या कहना चाहोगे?”
समर चौंक गया क्योंकि उसने पहली बार अपनी ओर सवाल आते देखा वो भी न समाज से, न माता-पिता से बल्कि किसी ऐसे व्यक्ति से जिसने हमेशा सिर्फ़ सुना था।
उसने सिर झुकाया और फिर बोला–
“मैं कहना चाहूँगा कि मैं कोई प्रोजेक्ट नहीं हूँ, कोई भविष्य की मशीन नहीं हूँ, मैं बस एक बच्चा हूँ जिसे हर वक़्त कुछ बनने के लिए कहा जाता है लेकिन कभी होने की इजाज़त नहीं मिलती है।”
यह सुनकर ऐरन चुप हो गया और आज उसने समर की ये बात डायरी में खुद अपने हाथ से लिखी–
“बिइंग इज़ इन्फ।
बिकमिंग कैन वैट।"
कुछ देर तक दोनों चुप बैठे रहे और फिर समर वहां से उठकर चला गया। ना उसने गुडबाय किया और ना ही मुड़कर देखा।
लेकिन ऐरन जानता था कि अब एक नया चक्र शुरू हो गया है।
अब ऐरन सिर्फ़ सुनने वाला नहीं रह गया था। अब वो वो बन चुका था जो किसी के अंदर के पहले सवाल को ज़मीन देने वाला था।
अब शब्द चौक सिर्फ़ बातें लिखने की जगह नहीं रही गई थी। अब वो ऐसी जगह थी जहाँ कोई पहली बार अपने लिए सोच पाता था।
एथन की पुरानी डायरी अब ऐरन के पास नहीं थी। निया का स्कार्फ़ भी उस कुर्सी पर नहीं रखी हुई थी लेकिन अब ऐरन के पास एक और चीज़ थी–
सवाल करने की हिम्मत।
शाम को उसने अपने पत्थर पर बैठकर डायरी खोली और पहली बार सबसे ऊपर एक लाइन लिखी–
“क्या कोई और है जो मुझसे कुछ पूछना चाहता है?”
उसके नीचे थोड़ी सी जगह खाली छोड़ दी थी।
अगली सुबह, जब ऐरन वहाँ पहुँचा तो देखा कि वो पन्ना भर चुका था।
20 बच्चों ने उसपे एक-एक लाइन लिखी थी:
“क्या मैं कभी बिना डर के बोल पाऊँगा?”
“क्या मेरी गलती ही मेरा भविष्य तय करती है?”
“क्या कोई जवाब नहीं देना भी सही होता है?”
ऐरन मुस्कराया, उसने डायरी बंद की और मन ही मन कहा–
"अब मैं निया की तरह चुप नहीं हूँ मैं उसकी तरह जगह बनाता हूँ। जहाँ सवाल खुद-ब-खुद जवाब बन जाते हैं।”
जब सुनने वाला पहली बार सवाल करता है तो क्या वो अब भी सुनने वाला रह जाता है या कुछ नया बन जाता है?
क्या समर जैसे बच्चे जिनकी आवाज़ें अभी जन्म ले रही हैं वो निया या ऐरन से अलग रास्ता चुनेंगे या वही दूसरों के लिए जगह बनने का चक्र दोहराएंगे?
अगर हर सवाल एक नई कुर्सी बना सकता है तो क्या पूरी दुनिया एक दिन सिर्फ़ कुर्सियों का शहर बन सकती है जहाँ बोलने से पहले सुनना सिखाया जाए?
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