एक छोटी सी बेहोशी के बाद…एक बार मीरा को फिर से होश आया, पर अब उसकी आंखे आसुंओं से भरी थी....सामने कुंती बैठी थी, उसकी अपनी जन्म देने वाली मां।
यह कैसा संयोग था उसके जन्म देने वाले पिता और पालने वाले पिता दोनों ही लोग एक ही जुर्म में जेल के अंदर थे और एक जन्म देने वाली मां जिससे मीरा जिंदगी भर अनजान थी, वह अचानक सामने आ गई और वह मां जिसने पाला पोसा, कभी भी यह एहसास होने ही नहीं दिया कि मीरा को उन्होंने जन्म नहीं दिया है, वह दुनिया छोड़कर चली गई।
मीरा उनसे बहुत कुछ पूछना चाहती थी, बहुत सारी शिकायतें करना चाहती थी, लड़ना चाहती थी, झगड़ना चाहती थी पर सबकुछ तो खत्म हो गया…उनका अस्तित्व इस दुनिया से मिट चुका है।
मीरा एकटक कुंती को देख रही थी, मीरा जानती थी कि नीता मां ने कई कारणों से मुझे कुंती मां से गोद लिया होगा, पहला तो कुंती पर कुंआरी मां बनने का दाग लगता जिसके कारण उनसे बहुत से सवाल पूछे जाते और दूसरा लोग उनका जीना हराम कर देते, नीता मां ने कुंती मां की सारी समस्याएं ही हल कर दी थी, पर इन सब में सुमेधा को अपने जान की कुर्बानी देनी पड़ी, पर मरते-मरते वह बलवंत की सारी पोल खोल गई।
मीरा को कुंती से कोई शिकायत या नाराजगी नहीं थी, करती भी क्या? वह कुंती की मजबूरी समझ रही थी, पर काश वह नीता मां के अंतिम संस्कार में शामिल तो सकती, काश उन्हें अंतिम समय में देख तो लेती और काश उनके शरीर से लिपटकर जी भरकर रो तो लेती।
वह कुंती से बोली, ‘’आप कुछ समय के लिए रूक जाती मां, मैं उनके अंतिम दर्शन तो कर लेती।‘’ मीरा ने कुंती को मां कहा, जिसे सुनने के लिए कुंती जैसे एक युग से तरस रही थी।
कुंती अपने आंसू नहीं रोक सकी, वे बोली, ‘मैं खुद चाहती थी कि तुम उस देवी के आखिरी दर्शन करो, जिसने तुम्हें इस समाज के कई तानों से बचाया था, हमने एक दिन तुम्हारा वेट किया कि तुम होश में आ जाओ….डाक्टरों ने कहा कि तुम्हारे सिर पर भी चोट लगी है तो कम से कम तीन दिन से पहले तुम्हें होश नहीं आएगा। और बेटा, उन्हें चार गोलियां लगी थी और उनकी बॉडी सड़ने को थी, इसलिए वेट करना सही नहीं लगा। उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया, पर तुम चिंता मत करो, एकदम ठीक हो जाओ तो उनकी अस्थियों को तुम गंगा जी में अपने हाथों से बहा देना, मैंने उनकी अस्थियां अपने पास रखी है, और उनकी आखिरी इच्छा भी यही थी कि तुम ही उनकी राख को गंगा जी में प्रवाहित करना।‘
मीरा हिचकियां लेकर रोने लगी..उसकी मां जो उसकी सबसे प्यारी सहेली थी वे उसे छोड़कर चली गई थी। मुंबई से लौटने के बाद दिल का एक कोना कह रहा था कि मीरा अपनी मां से मिल ले पर पिछली बार की कुछ कड़वी यादें थी जो बार-बार मीरा को याद आती थी और मीरा गुस्सा हो जाती थी। उसे अब पता चला कि यह सब गुस्सा मीरा को बचाने के लिए नीता ने किया था।
काश एक बार चली जाती, दिल्ली में इतने नजदीक रहकर भी गहरी नाराजगी लिए बैठी थी।
‘’मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाउंगी‘’ मीरा ने सुबकते हुए कहा।
‘’इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, अपने आप को दोष मत दो, उन्होंने खुद कहा है कि उन्हें याद करके मत रोना बस दूसरों की भलाई के लिए काम करते रहना। इस बारे में तुम ज्यादा मत सोचो, डाक्टर ने कहा है कि सबकुछ ठीक रहा तो परसों तुम्हें डिस्चार्ज कर देंगे, अब तुम्हारी हालत सुधर रही है, अब केवल कुछ दिनों तक तुम्हारी ड्रेसिंग होगी जिसे एक नर्स घर पर आकर कर दिया करेगी।‘’
ये दो दिन मीरा के लिए हजारों साल के बराबर बीते थे, इस बीच उसने कुंती के मना करने के बाद भी मीरा न्यूज लगाकर देखने लगती थी, इतने दिन के बाद भी न्यूज पर केवल आर्यन और बलवंत ही छाए हुए थे, क्योंकि ये दोनों ही बहुत बड़े सेलिब्रिटी थी। इन सबके बीच में राघव की कोई खबर नहीं दिखाई गई, वह जानना चाहती थी कि उसका क्या हुआ?
राघव ने ही तो मुझे आर्यन से बचाया था, मुझे तो गोली लग गई थी और उसके बाद सिर में चोट फिर आगे क्या हुआ था? राघव तो ठीक है ना..? उसके बारे में कैसे पता करूं? अब घर जाकर ही पता चलेगा।
वह दिन आ ही गया जब मीरा को हास्पिटल से छुट्टी मिल गई और कुंती उसे लेकर घर की ओर रवाना हो गई।
रास्ते में मीरा ने कुंती से पूछा, ‘’आप मुझे कहां लेकर जा रही हैं?‘’
‘’अपने घर, तुम अब अपनी मां के साथ रहोगी‘’ कुंती ने मुस्कुराकर कहा।
उनकी कार एक बहुत बड़े आश्रम के सामने आकर रूक गई....यह बाल विधवा और वृद्ध आश्रम था, जिसमें अनाथ बच्चे, विधवा औरतें और अपने घर से ठुकराए गए बुजूर्ग थे।
मीरा कार से उतरकर वह आश्रम देखते हुए बोली, ‘’आप मुझे यहां क्यों लेकर आई हैं?‘’
‘’क्योंकि यही तो हमारा घर है, अब से तुम यही रहोगी, तुम्हारा वह घर जिसमें तुम पली बड़ी हो वहां पर कुछ लोगों ने तोड़फोड़ की है, तुम्हारे एक्सीडेंट, नीता की मौत और तुम्हारे पापा के जेल जाने की खबर सुनते ही तुम्हारा भाई चिराग यहां आया था, वह लोगों के गुस्से का शिकार बनता कि मैंने उसे यहां से वापस जाने के लिए कह दिया, अगर वह यहां रहता तो उसकी जान भी जा सकती थी।‘’
यह सुनकर मीरा के होश उड़ गए, उसे तो अपने भाई का ध्यान ही नहीं आया, वे भी यह सब देखकर सुनकर कितना परेशान हो गए होंगे, उनका तो परिवार ही खत्म हो गया। पता नहीं चिराग भैया को पता भी है या नहीं कि मैं उनकी बहन नहीं हूं?
कुंती ने आगे कहा, ‘’तुम्हें बचाना बहुत जरूरी था, इसलिए यहां लेकर आई हूं। मैं यहीं पर काम करती हूं, अनाथ बच्चों को पढ़ाती हूं, विधवा औरतों को कई सारे काम सिखाती हूं और बुजूर्गों से जीवन का अनुभव लेती हूं उनसे बहुत कुछ सीखती हूं। यहां तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होगी, यह आश्रम मैं ही चलाती हूं, इसकी एक शाखा प्रतापगढ़ में भी है, यहां मैं अक्सर आती-जाती रहती हूं, एक तरह से कह सकती हो कि मैं इस आश्रम की सीईओ हूं।‘’
मीरा मुस्कुरा दी।
‘आओ तुम्हारे लिए एक रूम रेडी करवा रखा है।‘
यह पांच मंजिला बड़ा सा अपार्टमेंट था, जिसके पीछे बड़ा सा मैदान उसके बाद एक सुंदर सा गार्डन था, उस गार्डन के बीचों-बीच एक स्वीमिंग पूल था।
मीरा जैसे ही प्रवेशद्वार पर पहुंची, एक औरत आरती की थाल लिए दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी, उसके पहनावे से लग रहा था कि वह एक विधवा है, मीरा ने यह भी अंदाजा लगाया कि उसकी उम्र बीस साल से ऊपर की नहीं होगी। उस मुस्कुराती हुई लड़की ने मीरा को टीका लगाकर अंदर आने का इशारा किया।
कुंती मीरा को उसके कमरे में ले गई, कमरे को मीरा की पंसद के हिसाब से डेकोरेट किया गया था…जरूर नीता मां ने कुंती मां को मेरी पसंद बताई होगी।
कुंती ने मीरा से कहा, ‘’अब तुम आराम करो, मैं ज़रा आश्रम का एक चक्कर लगा लेती हूं, दो तीन कपल आए हैं जिन्हें बच्चा गोद लेना था कुछ कागजी कार्यवाही करनी होगी मैं वह सब कर के आती हूं, लेकिन तुम परेशान मत होना…मनीषा तुम्हारा ध्यान रखेगी।‘’ कहकर कुंती ने मनीषा को आवाज लगाई और वही लड़की जिसने मीरा को टीका लगाया था वह सामने आकर खड़ी हो गई।
‘’बच्चा गोद लेने आए हैं, यहां से?‘’
"हां बताया तो तुम्हें यह अनाथ आश्रम है, कई कपल जिन्हें बच्चे नहीं हो पाते हैं यहां आते हैं, निसंतान लोगों को बच्चे मिल जाते हैं और बच्चों को एक अच्छे मां बाप। हम विधवाओं की दूसरी शादी करवाने का भी प्रयास करते हैं, लेकिन हमारे समाज में कुछ लोग हैं जिन्हें यह पसंद नहीं…लेकिन फिर भी हम कोशिश नहीं छोड़ते, अच्छा तुम्हें कुछ चाहिए तो मनीषा से बोल देना।‘’
कहकर कुंती ने मनीषा से कहा, ‘’मीरा दीदी का ध्यान रखना‘’ फिर कुंती बाहर निकल गई।
मनीषा ने हां में गरदन हिला दी और मुस्कुराते हुए कमरे में प्रवेश किया और बेड के पास रखे एक चेयर पर बैठ गई।
मीरा अपने उस घर के बारे में सोच रही थी जिसे तोड़ दिया गया, क्या आसपास के लोग मुझसे भी नफरत कर रहे होंगे? क्यों नहीं? आखिर अभी तक तो सभी यही जानते हैं कि मैं अमरीश मल्होत्रा की ही बेटी हूं। यह सुनकर अच्छा लगा कि चिराग भैया सही सलामत हैं और कुंती मां ने उन्हें समझा-बुझाकर वापस भेज दिया वरना उनकी जान खतरे में आ सकती थी। पापा की करतूतों की कीमत अब हमें ही चुकानी होगी, जिन लोगों के अपने गुम हो चुके हैं उनके गुस्से का तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।
मनीषा ने मीरा का ध्यान तोड़ा, ‘’क्या सोच रही हैं दीदी आप? आपको कुछ चाहिए?‘’
मीरा ने कहा, ‘’नहीं…नहीं बस ऐसे ही।‘’
मनीषा ने फिर से कहा, ‘’आपकी तबीयत ठीक है तो आप बगीचा घूमने चलेंगी, बहुत ही सुंदर है।‘’
‘’अभी नहीं, शाम को चलूंगी, अच्छा यह बताओ तुम यहां कब से हो?‘’
‘’मैं तो पांच महीने से।‘’
मीरा उसकी सफेद साड़ी ओर चेहरे के सूनेपन को देखकर समझ गई कि यह एक विधवा है, लेकिन पूछना नहीं चाहती थी, ‘’तुम्हारे माता पिता नहीं है, तुम अनाथ हो?
मनीषा ने ना में गरदन हिलाते हुए कहा, ‘’नहीं दीदी मैं विधवा हूं, मेरे मां बाप हैं।‘’
‘’ओह, आई एम सॉरी, तुम्हारे हसबैंड को क्या हो गया था?‘’
‘’ब्रेन हैमरेज।‘’
मीरा कुछ सेकेंड चुप रहकर बोली, ‘’तुम्हारे मां बाप हैं तो यहां विधवा आश्रम में क्यों रह रही हो?‘’
मनीषा चुप हो गई, मीरा को लगा कि उसे यह सवाल नहीं पूछना चाहिए था।
मीरा ने माहौल को बदलने के लिए फिर से पूछा, ‘अच्छा तुम यहां कुछ काम भी करती हो?‘’
मनीषा अचानक चहकती हुई बोली, ‘’हां दीदी, मैं सिलाई करती हूं, मैं कुर्ती, लहंगा और ब्लाउज बहुत अच्छा सिलती हूं, मेरा बहुत अच्छा बुटीक था....’’ आखिरी लाइन कहते-कहते मनीषा का चेहरा उदास हो गया।
मीरा समझ गई...’’कोई बात नहीं, तुम फिर से बुटीक खोल लेना, वैसे देखो तो यह एक संयोग है मैं भी यही काम करती हूं, मुंबई में मेरा अपना खुद का बुटीक था, मैं फैशन डिजाइनर हूं।‘’
‘सच में दीदी, मैं फिर से बुटीक खोल सकती हूं, वैसे यहां बहुत सारी औरतें और लड़कियां है जो सिलाई, बुनाई, कढ़ाई करती हैं, कुछ तो क्रोशिये का काम भी जानती हैं, कुछ तो खिलौने भी बनाती हैं।‘’ कहते-कहते मनीषा की आंखे चमक उठी…
‘’हां…हां बिल्कुल, मैं मां से बात करूंगी, अपने सपने को कभी नहीं मरने देना चाहिए।‘’
फिर कुछ सोचकर मीरा ने मनीषा से पूछा, ‘’क्या तुम मेरे साथ बाहर चल सकती हो?‘’
‘’कहां दीदी?‘’
‘’पुलिस स्टेशन।‘’
पुलिस स्टेशन सुनते ही मनीषा के चेहरे के भाव बदल गए।
मीरा ने कहा, ‘’टेंशन मत लो, बस एक काम था, मुझे वहां कुछ पूछना था, आर्यसमाज मंदिर में जो हादसा हुआ था उसके बारे में तो तुमने सुना ही होगा ना?
मनीषा ने हां में गरदन हिलाई।
मीरा बोली, ‘’बस उसी के बारे में कुछ जानना था।‘’
मैं कुंती चाची से पूछकर कार का इंतजाम करवाती हूं‘ कहकर मनीषा तेजी से बाहर निकल गई।
मीरा का दिल धड़क उठा, पता नहीं मां उसे जाने की परमिशन देगी भी या नहीं, वैसे अब वह अच्छा महसूस कर रही थी, पर वह राघव के बारे में जानने के लिए बेचैन हो रही थी। बस एक बार पता चल जाए कि वह कैसा है फिर मैं कभी इस बारे में नहीं सोचूंगी, मैं जानती हूं कि राघव मुझे बचाने के लिए ही मुझे छोड़कर गया था और मुझे बचाने के लिए ही वापस आया था, पुलिस स्टेशन जाकर ही पता चल सकता है कि मंदिर में कितने लोग मारे गए थे और कितने लोग घायल हुए थे, ये न्यूज वाले तो कभी कुछ भी सटीक न्यूज देते ही नहीं हैं।‘
‘’कार तैयार है दीदी, आते ही मनीषा ने कहा, ‘’कुंती मां ने आपको परमिशन दे दी है, बल्कि उन्होंने ने तो आर्यसमाज मंदिर के पास जो पुलिस स्टेशन है वहां आपको जाने को कहा है, शायद आपको वहां काम की चीज मिल जाए।‘’
‘’क्या मां को यह आभास हो गया कि मैं राघव के बारे में जानना चाहती हूं, हो सकता है…‘’
मीरा, मनीषा के साथ कार में बैठकर पुलिस स्टेशन की ओर चल दी।
क्या मीरा राघव का पता लगा पाएगी?
क्या मीरा अपनी जिंदगी की नई शुरूआत कर पाएगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए बहरूपिया मोहब्बत।
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