मीरा ने झटके से आंखे खोल दी, उसने अपनी सांसो के जरिए कुछ दवाईयों की मिलीजुली गंध को महसूस किया....कुछ पल तो उसे कुछ समझ में ही नहीं आया कि यह सब है क्या? फिर उसने लेटे-लेटे ही अपनी दांई ओर देखा तो खुद को बिस्तर पर पाया।
अब मीरा ने अपनी नजर चारों ओर दौड़ाई तो देखा कि यह एक बंद कमरा था, मीरा ने अचानक उठने की कोशिश तो उसके पूरे शरीर में असहनीय दर्द की एक लहर उठ गई, वह फिर से बिस्तर पर गिर गई।
उसने अचानक उठकर बैठने का इरादा त्याग दिया, फिर वह धीरे-धीरे अपनी कुहनी के बल उठी, बेड के क्राउन पर अपनी पीठ टिकाई और चारों ओर देखकर सबकुछ समझने की कोशिश करने लगी। मीरा ने सबसे पहले तो अपने पहने कपड़ों पर नजर डाली तो उसे पता चला कि वह किसी हास्पिटल में है।
उसके बेड से सटे स्टूल पर पानी का जग, एक कांच का उल्टा गिलास ट्रे में रखा था, एक बिस्किट का पैकेट और दवाईयों से भरी एक थैली। पानी का जग देखते ही मीरा को प्यास लग गई उसने अपना हाथ जग की ओर बढ़ाया तो देखा उसकी हाथ की नस पर ग्लूकोज चढ़ाने वाली इंजेक्शन लगी है।
मीरा के हाथ की पसलियों मे भी दर्द हो रहा था। गरदन की दाहिनी ओर जिस पर पट्टी लगी हुई थी वहां भी दर्द हो रहा था। किसी तरह से पानी को गिलास में डालकर तीन चार घूंट गटागट पीने के बाद अचानक से उसे खांसी आ गई। खांसने पर उसकी पसलियों में ऐसा दर्द उठा कि लगा फेफड़े के साथ उसकी एकाध पसली भी कहीं बाहर न आ जाए।
उसने अपनी छाती पर हाथ रखा और धीरे-धीरे सांस लेते हुए खुद को सामान्य करने लगी…थोड़ी राहत मिलने पर उसने लम्बी सांस ली और सोचने लगी, मैं कब से हास्पिटल में हूं? यहां रूम में मेरे अलावा और कोई नहीं है, मुझे हुआ क्या था? कोई एक्सीडेंट.? मीरा अपने दिमाग पर जोर डालते हुए फिर से पूरे कमरे को ध्यान से देखने लगी।
कमरे में वह बेड था जिसमें मीरा लेटी थी, एक स्टूल जिसपर दवाइयां रखी थी, एक छोटा सा कम चौड़ाई वाला थ्री सीटर सोफा रखा हुआ था जो शायद विजिटर के लिए था। कमरा वैसा ही साफ सुथरा था जैसा एक अच्छे प्राइवेट हास्पिटल का होना चाहिए। सामने की दीवार पर एक टीवी लगी हुई थी, जिसमें बहुत ही धीमा एक भजन बज रहा था, इतना धीमा की बेड पर लेटे हुए मरीज की आराम में खलल न पहुंचे।
मीरा ने ध्यान से टीवी के एक कोने में लिखे दिन, टाइम और डेट को देखा। शुक्रवार का दिन था, सुबह के ग्यारह बज रहे थे। मीरा ने अनुमान लगाया अगर आज शुक्रवार है यानी मैं पूरे तीन दिन से भी ज्यादा समय के लिए बेहोश थी।
बीते मंगलवार की शाम जब उस आर्यसमाज मंदिर में वह वीभत्स और भयानक गोलीकांड हुआ था, उसमें तो मीरा को भी गोली लग गई थी, पहली गोली तो उसके गरदन को छूते हुए निकली थी, दूसरी उसकी छाती ओर पेट के बीच में लगी थी और इसके बाद मीरा का सिर बहुत ही तेजी से किसी भारी चीज से टकराया था, शायद वह पत्थर था।
नैना को गोली लगते ही उस मंदिर में जैसे महाविस्फोट सा हो गया था, आर्यन ने अपने हाथ का खून रोकने के लिए मीरा का हाथ तो छोड़ दिया था, तभी किसी ने मीरा को बचाने के लिए उसे आर्यन की बगल से खींचा था। उस मंदिर में कई मंडप बने थे, जिसके बीच बने अग्निकुंड में किसी ने ढेर सारे लोबान छिड़क दिए थे। जिससे पूरे मंदिर में धुंआ ही धुंआ फैल गया था, इसी का फायदा जतिन, राघव और उसकी पुलिस फोर्स ने उठाया था।
मीरा पलटी और अपना हाथ पकड़े उस शख्स को देखा, इन उड़ते हुए काले धुंए के बीच भी मीरा वो आंखे पहचान सकती थी, इन आंखो से तो उसका गहरा नाता था, जो कभी दिल से टूटा ही नहीं था।
यह राघव की आंखे थी, जिसे वह कभी नहीं भूल पाई थी, वह राघव सामने खड़ा था…एक बार फिर उसे प्यार से निहारते हुए, उसे मुसीबत से बचाने के लिए वह आया था।
‘’चलो यहां से‘’ उसने मीरा के कान में फुसफुसाकर कहा।
मीरा के लिए ऐसा लगा मानो पूरी कायनात इसी फुसफुसाहट में रूक गई है।
‘’चलो, जल्दी से निकलो यहां से‘’ मीरा हमेशा इस हाथ को थामे रखना चाहती थी, क्यों छोड़ दिया तुमने मुझे राघव? अपनी तकलीफ को अकेले क्यों झेला? हम साथ में झेलते तो क्या हो जाता?
तभी एक गोली मीरा की गरदन के दाहिनी हिस्से को छूकर निकल गई, मीरा की गले से हल्की चीख निकली, गोली ने इतना तो घाव कर ही दिया था कि मीरा के गले से खून निकलने लगा।
‘’ओह माई गॉड, राघव ने कहा, और अपनी जेब से एक रूमाल निकालकर मीरा के गरदन पर लगाकर कहा, ‘’इटस ओके।‘’
इधर अपने बगल से मीरा को गायब देख आर्यन पागल सांड की तरह उन्मत्त हो उठा, वह चिल्ला उठा, ‘’मीरा, तुम मुझसे बच नहीं सकती हो, जहां भी हो अभी वापस आ जाओ, वरना इस मंदिर को कब्रिस्तान बनते देर नहीं लगेगी।‘’
फिर आर्यन ने अपने दूसरे हाथ से हवा में ही फायरिंग करनी शरू कर दी थी….बाउंसर आर्यन को घेरकर खड़े हो गए थे, मंदिर में इतना धुंआ भर चुका था कि किसी को देखकर पहचानना मुश्किल हो रहा था कि कौन बाउंसर है और कौन पुलिस आफिसर? सबका खांस-खासंकर बुरा हाल था।
जतिन, युग अभिजीत, राघव और उनकी पुलिस फोर्स की पहले से ही तैयारी थी वे अपने चेहरे पर मास्क और आंखों में चश्मा लगाकर आए थे। आर्यन अपने सामने उड़ रहे धुंए को अपने हाथों से छांटकर देखने की कोशिश करने लगा, उसे राघव के साथ मीरा मंदिर के बाहर जाती हुई दिखाई दी।
आर्यन का खून खौल उठा, उसने उनकी ओर गोली चला दी, आर्यन ने तो राघव के सिर को निशाना बनाकर गोली मारी थी, लेकिन राघव और मीरा इतनी जल्दी-जल्दी उतर रहे थे कि गोली राघव को लगने के बजाय मीरा की कमर के पास लगी, वह पलटी तब तक कहीं से आ रही दूसरी गोली मीरा की छाती और पेट के नीचे धंस गई।
सीढ़ियों के पास राघव का पैर लड़खड़ाया और मीरा का उसकी पकड़ से हाथ छूट गया था, मीरा अपने आप को संभाल नहीं पाई और जाकर सीधे सीढ़ी की मजबूत लोहे की बनी रेलिंग से टकरा गई। उसके बाद जैसे सबकुछ सुन्न सा हो गया था, कानों में कुछ सेकेंड तक गोलियों की आवाजें आती रही फिर धीरे-धीरे मीरा पर बहोशी छा गई और उसकी आंखें बंद हो गई थी।
यह सब याद आते ही मीरा बुरी तरह चिहुंक उठी, मुझे हास्पिटल कौन लेकर आया? क्या हुआ था वहां पर? बाकी सब लोग तो ठीक होंगे ना? मैंने राघव को देखा था, और मेरे पापा भी थे, उनके साथ नैना थी...हां उसे भी तो गोली लगी थी। सुमेधा तो मेरे ही सामने मर गई थी और वह इंसान बलवंत सिंह जो मेरे असली पिता है बाकी मेरी मां और आर्यन....क्या उसने सबको मार दिया? कहीं वही तो मुझे हास्पिटल लेकर नहीं आया?
मीरा के दिल में बुरी तरह खलबली मचने लगी। वह चिल्लाकर किसी को बुलाना चाहती थी पर गले से जैसे आवाज ही नहीं निकल रही थी, उसके गले के दाई ओर दर्द और खिंचाव सा हो रहा था।
क्या बाहर किसी को पता नहीं है कि मैं होश में आ गई हूं? मैं जानना चाहती हूं कि मेरे बेहोश होने के बाद वहां क्या हुआ था?
मीरा की नजर सामने टीवी पर गई...यह कोई छोटी बात नहीं थी, पुलिस बिजनेस मैन आर्यन देशमुख और मंत्री बलवंत सिंह का आर्यसमाज मंदिर में होना और वहां इतना बड़ा कांड का हो जाना, न्यूज में तो आया ही होगा।
मीरा न्यूज देखना चाहती थी, वह रिमोट के लिए इधर-उधर ताकने लगी। पर रिमोट भी टीवी के नीचे एक मेज पर रखा हुआ था, मुश्किल से तीन कदम की दूरी थी, पर वहां तक पहुंचना भी मीरा के लिए दुश्वार हो गया था। तभी रूम का दरवाजा खुला और एक नर्स मुस्कुराती हुई अंदर आई, उसके हाथ में ड्रेसिंग का सामान था।
‘’ओह आपको होश आ गया, गुड गुड, आप उठकर बैठ भी गई है, आप अच्छा इम्प्रूव कर रही हैं। आप ऐसे ही बैठी रहिए मैं आपकी ड्रेसिंग कर देती हूं। आपको पेन भी हो रहा होगा, ड्रेसिंग के बाद मैं आपको पेनकिलर भी दे दूंगी। अभी थोड़ी देर में दलिया और सूप आ जाएगा आज से आप लेना शुरू कर दीजिए।
वह नर्स किसी तोते की तरह बोलती जा रही थी।
मीरा ने किसी तरह उससे पूछा, ‘’मेरे साथ यहां कौन आया है?‘’
‘’आपकी मदर आई है, वे अभी घर गई हैं…नहा धोकर खा-पीकर आ जाएंगी।‘’
‘’मेरी मां, ओह।‘
पापा तो पक्का शर्म से मुंह छुपा रहे होंगे, क्या पता यह झूठ हो वे तो हैं ही बेशर्म, वैसे तो मुझे नैना के मरने का दुख है पर उसने जो कुछ किया था शायद वह इससे भी बुरी मौत की हकदार थी।
‘’मुझे यहां लेकर कौन आया था?‘’ मीरा ने अगला सवाल उस नर्स से किया।
उस नर्स ने कंधे उचकाकर कहा, ‘’मुझे नहीं पता मैडम, मैं तो दो हफ्ते की छुट्टी पर गई थी, आज सुबह ही ड्यूटी ज्वाइन की है, मुझे बस आपकी ड्रेसिंग के लिए बोला गया तो मैं आ गई।‘’
न्यूज से कुछ पता चल सकता है, उसने नर्स से कहा, ‘’क्या आप न्यूज लगा देंगी प्लीज।‘’
‘’ओके, पर न्यूज क्यों देखना है आपको? मत देखिए, न्यूज चैनल वाले केवल निगेटिव न्यूज दिखाते हैं जिससे और भी ज्यादा दिमाग खराब हो जाता है। आप कहिए तो कोई कामेडी मूवी या म्यूजिक चैनल लगा दूं, आपको रिलैक्स फील होगा।‘’
‘’नहीं नहीं, मुझे न्यूज ही देखनी है।‘’
‘’आपको अपने दिमाग को और भी ज्यादा स्ट्रेस नहीं देना है‘’ नर्स मीरा की गरदन पर दवाई लगाते हुए बोली।
मीरा ने कहा, ‘’मुझे कोई स्ट्रेस नहीं होगा, मैं न्यूज को इतना सीरियसली नहीं लेती हूं।‘’
नर्स ने कंधे उचका दिए और रिमोट हाथ में लेकर मीरा से पूछा, ‘’कौन सा चैनल?‘’
मीरा ने कहा , ‘’कोई भी लगा दीजिए, और रिमोट मुझे दे दीजिए।‘’
नर्स बोली, ‘’अरे नहीं….नहीं आप रिमोट आपरेट मत कीजिए, आपके हाथ में दर्द होगा, और अभी ब्रेकफास्ट कर के आपको दवाईयां भी लेनी हैं और फिर आपको रेस्ट करना है।‘’
मीरा ने कहा, नहीं मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी, मुझे बस रिमोट दे दीजिए, मुझे भी पता है कि अगर मैं लापरवाही करूंगी तो मेरी प्राब्लम और भी बढ़ जाएगी।‘’
नर्स ने एक न्यूज चैनल लगा दिया और रिमोट मीरा के बगल में लाकर रख दिया और छाती के नीचे वाले हिस्से में जहां गोली लगी थी वहां ड्रेसिंग करने लगी।
‘’आपको गोली लगी थी मैडम? नर्स ने घाव पर दवा लगाते हुए पूछा।
‘’हां…कहकर मीरा टीवी देखने लगी।
टीवी पर जो कुछ दिखा रहे थे वह देखकर मीरा भौंचक्की सी रह गई थी... तीन दिन पहले जो कुछ हुआ था वह अब भी ब्रेकिंग न्यूज की तरह चल रहा था। आर्यन देशमुख मारा गया था, उसकी कई कम्पनियां सील कर दी गई थी और उसके बनाए हास्पिटल में अवैद्य रूप से बहुत सारे ह्युमन ऑरगन पाए गए थे, इसमें किडनी, लीवर, और आंखे मुख्य रूप से थे।
हास्पिटल के गटर में बहुत सारी डेड बॉडी भी मिली थी, जिनके शरीर के अंग निकाल लिए गए थे। उनमें से कुछ की पहचान तो हो गई थी जो कुछ दिनों पहले ही लापता हुए थे, ज्यादातर मजदूर और झोपड़पट्टी में रहने वाले लोग थे।
वह आर्यन राक्षस था, अच्छा हुआ वह मारा गया।
आर्यन के कई सारे सहायकों की भी डेथ हो गई थी...और कुछ ने तो आत्महत्या कर ली थी।
एक दूसरे न्यूज चैनल पर तो डिबेट चल रहा था कि यकीन नहीं हो रहा इतना बड़ बिजनेस मैन का ऐसा काला धंधा होगा। एक अलग चैनल पर उसके पापा अमरीश की न्यूज चल रही थी, उन्हें चौदह दिन की पुलिस रिमांड पर ले जाया जा रहा था, लोग उन्हें फांसी देने की बात कर रहे थे।
मीरा को बहुत अफसोस हुआ, वह अपनी मां नीता को बारे में सोचने लगी….ऐसी हालत में जब उनके पति पर भारी मुसीबत आ पड़ी है वे मेरे साथ हैं।
बलवंत ने अपना सारा गुनाह कुबूल कर लिया था, पर उन्हें वैसे ही जानलेवा बिमारी थी इसलिए उन्हें एक अलग जेल में रखा गया, जिससे वे अपने बचे-कुचे दिन काट सके।
न्यूज एंकर बोल रही थी कि ‘’इस मानव अंगों की तस्करी का कांड कहां से कहां तक जुड़ा हो सकता है इसका खुलासा होना अभी बाकी है, अफसोस की बात यह है कि इस गोली कांड में बहुत से बेकसूर लोग भी मारे गए, अब तक हमने जितने भी मारे गए बेकसूर लोगों की पहचान की उसमें बलवंत की बेटी सुमेधा, उनका पीए सुनील और अमरीश मल्होत्रा की पत्नी नीता मल्होत्रा इस मुटभेड़ में बेवजह मारे गए।‘’ न्यूज एंकर के यह कहते ही स्क्रीन पर मरे हुए लोगों की फोटो चलने लगी, मीरा की मां नीता की फोटो को सबसे पहले दिखाया गया।
मीरा जैसे सकते में आ गई, उसकी पलकें मानो झपकना भूल गई थी, वह विश्वास नहीं कर सकती थी।
यह कैसे पॉसिबल है? अभी यह नर्स तो बता रही थी कि मेरे साथ मेरी मां आई है, फिर यह न्यूज में झूठ क्यों दिखा रहे हैं?
मीरा के चेहरे का भाव देखकर नर्स ने उससे कहा, ‘’देखा आप परेशान हो गई।‘’
मीरा तुरंत उस नर्स से बोली, ‘ सच में मेरी मां मेरे साथ आई है ना?‘’
‘’हां मैडम बताया तो….‘’ तभी उस रूम का दरवाजा खुला और अंदर कुंती ने प्रवेश किया।
उन्हें देखकर मीरा के होश उड़ गए, सामने जन्म देने वाली मां खड़ी थी यानी मेरी वो नीता मां…. सोचकर मीरा का सिर घूम गया।
क्या मीरा नीता के खोने का सदमा सहन कर पाएगी?
क्या मीरा अपनी जन्म देने वाली कुंती मां को अपना पाएगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए बहरूपिया मोहब्बत।
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