मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।
आज जेल में कोई ख़ास आने वाला था। नहीं, नहीं, कोई मंत्री-संत्री नहीं। आज जो आ रहा था, वह कांड करके भाग गया था नेपाल। पुलिस उसे नेपाल से पकड़ कर लाई थी। भारत सरकार ने नेपाल सरकार से गुज़ारिश की और फिर नेपाल पुलिस ने ढूँढ निकाला।
उससे बात करना आसान था। क्योंकि उस बेचारे को लगता था कि शायद मैं उसकी मदद कर दूँगा। शायद उसकी फांसी रुकवा दूँगा। उसे लगता था कि मैं जल्लाद हूँ तो मेरे हाथ में सब कुछ है और बस इसी भोलेपन में उसने मुझे एक-एक कर सब बातें बता दी उस रात। बस हालातों का मारा था बब्लू।
एक बड़ा-सा घर था, शहर के मशहूर इलाके में। उस बड़े से घर की रसोई में बब्लू नौकर काम कर रहा था। एक अमीर बुज़ुर्ग दंपत्ति के घर में वह नौकर के तौर पर काम करता था। बूढ़ा पति बाहर गया हुआ था और बूढ़ी पत्नी घर में अकेली थी। हर चीज़ शांत थी, लेकिन इस शांति के पीछे कुछ और ही छिपा हुआ था। बब्लू के चेहरे पर एक अजीब-सी मुस्कान थी, उसकी आँखों में कुछ खतरनाक इरादे झलक रहे थे।
बूढ़ी पत्नी को इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि जिस नौकर पर उसने सालों से भरोसा किया था, उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। वह अपने कमरे में बैठी आराम कर रही थी, जबकि बब्लू धीरे-धीरे रसोई से बाहर आया। बब्लू की नज़र अब उस बूढ़ी औरत पर थी। उसके दिमाग़ में अब अपने इरादों को अंजाम देने का समय आ गया था।
कमरे में सन्नाटा गहरा गया था और बब्लू धीरे-धीरे उस ओर बढ़ने लगा। उसने एक छोटा-सा तकिया उठाया और धीरे-धीरे बूढ़ी महिला की ओर बढ़ने लगा। उसकी चाल में एक ठंडी क्रूरता थी, मानो उसने अपने दिमाग़ में यह फ़ैसला पहले ही कर लिया हो कि क्या करना है। बूढ़ी महिला अपने आरामकुर्सी पर आंखें मूंदे बैठी थी, बिल्कुल अनजान कि उसके ठीक पीछे क्या होने वाला है।
बब्लू ने चुपचाप तकिया उसके चेहरे के ऊपर रख दिया और पूरी ताकत से उसे दबाने लगा। बूढ़ी महिला अचानक हड़बड़ाई, उसकी आंखें खुल गईं, लेकिन उसकी उम्र और ताकत इतनी नहीं थी कि वह उससे लड़ सके। उसकी कमजोर कोशिशें धीरे-धीरे ख़त्म होने लगीं।
कुछ ही पल में सब कुछ शांत हो गया। बब्लू ने तकिया हटाया और एक गहरी सांस ली। कमरे में अब बस एक खामोशी थी। वह धीरे-धीरे उस बूढ़ी महिला के शरीर को खींचकर स्टोर रूम की ओर ले गया। स्टोर रूम अँधेरा और गंदगी से भरा हुआ था, जहाँ शायद ही कोई आता था। यही सोचकर बब्लू ने वहाँ उस शरीर को छिपाने का फ़ैसला किया।
वहाँ पहुँचकर उसने लाश को एक कोने में धकेल दिया और ऊपर से कुछ पुराने कार्टन और बोरियाँ डाल दीं, ताकि किसी को शक न हो। पूरे घर में एक भयानक सन्नाटा पसरा हुआ था, मानो दीवारें भी इस ख़ौफ़नाक घटना की गवाह बन चुकी थीं।
बब्लू ने चारों तरफ़ देखा और वह जल्दी से रसोई में वापस लौट आया, मानो कुछ हुआ ही न हो। रसोई की बर्तनों की खनक और चूल्हे की हल्की-सी आवाज़ें उसके अपराध को छिपाने का काम कर रही थीं।
रसोई में काम करते समय उसकी नजरें बार-बार दरवाजे पर जाती थीं, मानो वह बूढ़े पति के लौटने का इंतज़ार कर रहा हो। लेकिन अंदर ही अंदर वह जानता था कि आज का दिन उसके लिए बहुत ख़ास था।
तभी दरवाज़े पर बेल बजी। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसके मन में ख़ौफ़ और उत्तेजना दोनों थे। क्या यह कोई अनजान बंदा था या फिर शायद बूढ़ा पति ही वापस आ गया हो?
उसने एक गहरी सांस ली और धीरे-धीरे दरवाजे की ओर बढ़ा। दरवाज़ा खोला और सामने घर का बूढ़ा मालिक खड़ा था। बूढ़े मालिक ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, दरवाज़ा खोलने में इतनी देर क्यों हुई? सब ठीक है न?"
बब्लू के माथे पर पसीने की बूंदें साफ़ नज़र आने लगीं, लेकिन उसने जल्दी से ख़ुद को संभालते हुए जवाब दिया, "जी हाँ, सब ठीक है, मालिक। बस रसोई में काम कर रहा था, इसलिए थोड़ी देर हो गई।"
बूढ़े मालिक ने अपना बैग उसे थमाते हुए कहा, "अच्छा, ठीक है। तुम चाय बना दो, मैं अंदर जाकर देखता हूँ कि तुम्हारी मालकिन कैसी हैं।"
उसने तुरंत कहा, "जी, वह आराम कर रही हैं। डॉक्टर ने उन्हें आराम करने के लिए कहा है। शायद अभी उन्हें डिस्टर्ब न करें।"
बब्लू ने जल्दी-जल्दी रसोई की ओर क़दम बढ़ाए, लेकिन उसके दिमाग़ में अब एक ही सवाल था—अब क्या करेगा?
करना तो वही था जो उसने सोच रखा था।
चाय में वह पहले से ही ज़हर मिला चुका था। अब उसके मन में दोहरी चिंता थी। एक तरफ़ तो उसे बूढ़े मालिक को चाय पिलाने का काम पूरा करना था और दूसरी तरफ़ उसे यह सुनिश्चित करना था कि उसके इरादे कामयाब हों।
बब्लू ने चाय की केतली से कप में चाय डालते हुए अपने हाथों को मजबूती से थाम रखा। जब उसने चाय के कप को बूढ़े मालिक के सामने रखा, तो उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई। बूढ़े मालिक ने कप उठाया और एक सिप लिया।
"बहुत बढ़िया, तुम्हारी चाय तो हमेशा की तरह शानदार है," बूढ़े मालिक ने कहा।
बूढ़े मालिक ने चाय का दूसरा सिप लिया और कप को मेज पर रख दिया। "मुझे... मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा..." उसने कहा और उसकी आवाज़ में हल्की-सी थरथराहट थी।
उसने तड़क से अपनी चिंता छिपाते हुए कहा, "क्या हुआ, मालिक? क्या आपको कोई परेशानी है?"
बूढ़ा मालिक अपनी कुर्सी पर झूलने लगा और उसकी आँखों में भय था। अब बब्लू को यह समझ में आ गया था कि उसकी योजना सफल हो रही थी, लेकिन फिर भी, उसके मन में एक डर था कि कहीं कोई आना-जाना न हो जाए।
दोनों मर चुके थे। बूढ़ा मालिक अपनी कुर्सी पर झूलते हुए गिर गया और नौकर ने देखा कि उसकी आँखें अब स्थिर हो गई थीं। यह सब कुछ पल में हुआ और उसकी योजना पूरी हो गई।
वह जल्दी से बूढ़े मालिक के शरीर को एक तरफ़ खींचने लगा और उसे उसी स्टोर रूम की ओर ले गया, जहाँ उसने पहले बूढ़ी पत्नी के शव को छिपाया था। उसे यह सुनिश्चित करना था कि किसी को भी इस ख़ौफ़नाक घटना का पता न चले।
अब उसे सारा माल चुराकर छिपाना था और ख़ुद को चोट लगानी थी, ताकि पुलिस को एक यक़ीन दिलाने वाली कहानी सुनाने में मदद मिल सके। नौकर ने जल्दी से घर के चारों ओर देखा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई देख न रहा हो।
वह बिखरे सामान के पास गया, जो बूढ़े मालिक और उसकी पत्नी के कमरे में था। उसने तुरंत कुछ कीमती सामान, जैसे कि जेवरात और नकद पैसे, इकट्ठा करने शुरू कर दिए। सब कुछ जल्दी-जल्दी करते हुए, उसने सोचा कि उसे इस सब को जल्दी से समेटकर एक सही जगह पर छिपाना होगा।
फिर, उसने एक छोटी-सी चाकू उठाई और अपने हाथ पर एक कट लगा लिया। दर्द तो हुआ, लेकिन वह जानता था कि यह सब उसके इरादों को छिपाने के लिए ज़रूरी था। उसने अपने चेहरे पर चिंता और दर्द का एक नकली भाव लाने की कोशिश की।
इसके बाद, उसने चाकू को अपने हाथ से दूर फेंक दिया और ख़ुद को खून से लथपथ दिखाने के लिए अपनी बाँह को कपड़े से लपेटा। अब वह रसोई में आया, जहाँ उसने ज़ोर से चीखना शुरू किया-"मालिक! मदद करो!" उसने चिल्लाते हुए कहा, "कोई अंदर आया और उन्होंने... उन्होंने सब कुछ लूट लिया!"
बब्लू का दिल तेजी से धड़क रहा था, लेकिन उसने अपने चेहरे पर डर और चिंता का नकाब रखा। अब, उसे इंतज़ार था कि कोई उसे सुने और पुलिस को बुलाने के लिए आ सके।
पुलिस आ गई। उन्होंने जल्दी से स्थिति का जायजा लिया और कमरे में चारों ओर देखना शुरू कर दिया। एक पुलिस ऑफिसर ने नौकर से पूछा, "क्या हुआ? तुम्हें चोट कैसे लगी?"
बब्लू ने घबराते हुए कहा, "चार लोग घर में आए थे। मालिक से मिलने। मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था, लेकिन मालिक के वह जानकार थे। मालिक उनसे बैठकर बातें कर रहे थे। थोड़ी देर मालिक से बातें करके उनमें से दो ने मुझे अचानक पकड़ लिया और हमला कर दिया। बाक़ी दो ने शायद मालिक-मालकिन को मार दिया। मैं तो रसोई में बंद था।"
पुलिस ऑफिसर ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर उसके हाथों पर लगी चोट को देखा। "क्या तुम उन लोगों के नाम बता सकते हो?"
बब्लू ने पुलिस को बताया, "जी नहीं, मुझे उन चार लोगों के नाम नहीं पता, लेकिन वे मेरे बूढ़े मालिक के जानकार थे।"
पुलिस ऑफिसर ने गहरी सांस ली और उसकी बातें ध्यान से सुनते रहे। एक पुलिस ऑफिसर ने उसकी आँखों में गहराई से देखा, जैसे वह उसकी आंखों में उसकी कहानी का सच ढूँढने की कोशिश कर रहा हो।
"तुम्हारे मालिक की किसी से दुश्मनी थी?" पुलिस ने पूछा।
बब्लू ने घबराहट में कहा, "नहीं, मैंने कभी नहीं सोचा था। वे हमेशा हंसते-खिलखिलाते थे, उनकी किसी से कोई दुश्मनी कैसे हो सकती है।"
पुलिस ने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर एक-दूसरे से इशारा किया। "हम तुम्हारी बातों को ध्यान में रखेंगे। लेकिन अगर तुम्हें उनके बारे में और जानकारी मिले, तो तुरंत हमें बताना," पुलिस ने जाते हुए उसकी और उसके पहचान पत्र की फोटो खींच ली।
जैसे ही पुलिस वहाँ से गई, बब्लू ने राहत की साँस ली, लेकिन उसे यह भी समझ में आ गया कि यह सब ख़त्म नहीं हुआ था। उसे अपनी योजना को और भी मज़बूत करना होगा ताकि उसकी सच्चाई किसी को भी न पता चले।
पुलिस ने मृत शरीरों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया था। उनके कोई बच्चे नहीं थे, लेकिन रिश्तेदार थे, जिन्हें इस घटना की सूचना दे दी गई थी। पुलिस ने बब्लू को सख्ती से आदेश दिया था कि वह कहीं न जाए।
लेकिन बब्लू था चालाक। उसने रात को सारा माल समेटा और चुपचाप दीवार कूदकर भाग गया। वह सीधे स्टेशन पहुँचा और बिना देर किए ट्रेन में सवार हो गया। अगली सुबह जब पुलिस आई तो बब्लू गायब था। अब पुलिस को कोई जांच नहीं करनी थी, उन्हें सिर्फ़ बब्लू को पकड़ना था।
पुलिस ने बब्लू के सभी जानकारों, फल-सब्जी वालों, ठेले वालों और चौकीदारों से उसके ठिकानों की जानकारी इकट्ठी की। सभी ने बताया कि वह नेपाल का रहने वाला था। पुलिस ने नेपाल जाने वाले सभी रास्तों पर नाकाबंदी करवा दी। ट्रेनों में तलाशी अभियान भी शुरू कर दिया गया था।
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। सीमा पर जाकर पता चला कि बब्लू तो नेपाल में घुस चुका है। पुलिस पर इस केस को ख़त्म करने का बहुत दबाव था क्योंकि बुज़ुर्ग दंपत्ति का मर्डर हुआ था। पूरे शहर के बूढ़ों में ख़ौफ़ का माहौल था। सब डर रहे थे अपनी जान को लेकर।
हर किसी के मन में यह सवाल था कि आख़िर बब्लू जैसा नौकर इतना खतरनाक कैसे बन गया। लोग अपने घरों से बाहर निकलने में भी घबराने लगे थे। पुलिस लगातार बब्लू की तलाश कर रही थी, लेकिन उसकी चालाकी ने उन्हें परेशान कर रखा था। ऐसे में पुलिस को बब्लू को पकड़ने के लिए किसी भी क़ीमत पर और भी सख्त क़दम उठाने पड़े।
हमारी पुलिस और नेपाल की पुलिस ने मिलकर सर्च ऑपरेशन शुरू किया और पूरे 72 घंटे बाद काठमांडू से 57 किलोमीटर दूर एक गाँव से बब्लू धरा गया। सरकारी कागजी काम पूरे किए गए और बब्लू को हिंदुस्तान वापस लाया गया।
बब्लू की गिरफ्तारी ने पूरे शहर में एक राहत की लहर दौड़ा दी। लोग अब थोड़ा सहज महसूस करने लगे थे, लेकिन यह सब तब तक नहीं हुआ जब तक बब्लू को अदालत में पेश नहीं किया गया।
पुलिस ने बब्लू के खिलाफ ठोस सबूत जुटाए थे और उसे court में पेश करने के लिए तैयार हो रही थी। सभी की नजरें अब अदालत पर थी।
अदालत में केस शुरू हुआ। बब्लू को मुफ्त में एक सरकारी वकील भी दिया गया ताकि वह अपनी बात भी रख सके। लेकिन उसका केस पानी की तरह साफ़ था। सबूत और गवाह उसके खिलाफ थे और अदालत ने उसकी दलीलों को सुनने के बाद उसे कोई भी राहत नहीं दी।
बब्लू ने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन उसके तर्कों को अदालत ने खारिज कर दिया। बब्लू का चालाकी भरा चेहरा अब चिंता में बदल चुका था और आखिरकार, अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई।
और ऐसे नेपाल का बब्लू मेरी जेल में आ गया। उसके केस में जेल के अंदर किसी को कोई खास दिलचस्पी भी नहीं थी। शायद वह गरीब था, इसलिए। और यूं ही दिन गुजरते रहे। वह चुप रहता। शायद उसे अपने किए पर पछतावा था। शुरुआत में डरा हुआ बब्लू अब शायद अपनी जिंदगी के होने वाले अंत को स्वीकार कर चुका था। बस, आ गई वो सुबह। 3 बजकर 45 मिनट का समय रखा गया था। उसे नहाने को कहा गया। फांसी घर ले जाया गया। मैंने सफेद कपड़ा डाल दिया।
उसकी आखिरी इच्छा के अनुसार, उसके रिश्तेदार नेपाल से आकर उससे मिल लिए थे। बहुत रोए बेचारे। पर रोने से कुछ हासिल नहीं होना था।
और मैंने जेलर साहब का आदेश मिलते ही लीवर खींच दिया।
जैसे ही लीवर खींचा गया, पूरा वातावरण सन्नाटे में बदल गया। बब्लू के चेहरे पर एक क्षण का डर था, लेकिन फिर उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, मानो वह अपने अतीत को भुलाने की कोशिश कर रहा हो। कुछ ही सेकंड में, सब कुछ खत्म हो गया। फांसी का फंदा बब्लू के लिए उसकी आत्मा की मुक्ति बन गया।
मरने वाले का नाम- बब्लू
उम्र - 28 साल
मरने का समय - सुबह 3 बज कर 45 मिनट
लालच बुरी बला है, कितनी बार समझाऊं। आप सोचते हैं कि पुलिस को चकमा दे देंगे। अजी नहीं, इतनी भी नासमझ नहीं होती पुलिस। वो हमेशा आपसे दो कदम आगे ही रहती है। लालच ना होता तो आज बाबू एक आलीशान घर में अपने मालिक-मालकिन के साथ रह रहा होता। लेकिन लालच की पट्टी आँखों पर बंध जाए तो सब खत्म हो जाता है।
मिलूँगा फिर किसी और अपराधी की कहानी के साथ।
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