मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।
आज जेल में थोड़ा डर का माहौल था। क्यों था डर का माहौल? क्योंकि आज जो क़ैदी आ रहा था, उसने बड़ी ही बेहरमी से मारा था एक चौकीदार को और कोई दुश्मनी नहीं थी। बस रास्ते में आ गया था उसके। मार दिया। जब ऐसे खूंखार मुजरिम आते हैं तो सब डर से सहम जाते हैं।
ख़ैर, 2-4 दिन बीत गए थे उसे आए हुए और उसने मुझसे पूछा, "कपड़े टांगने की तार नहीं दिख रही?"
मैंने उसे तार दिखा दी और उसी तार से हमारे तार जुड़ गए। कपड़े सुखाते-सुखाते संजय ने मुझे बताया कि उस रात क्या हुआ था...
एक सुनसान गली में गहरा अँधेरा था। गली के चारों ओर एक अजीब-सी ख़ामोशी छाई हुई थी, जो कभी-कभी ठंडी हवा के झोंकों के साथ और भी भयानक लगती थी। अचानक, गली के दूसरे कोने से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आई, जो इस ख़ामोशी को तोड़ती हुई दूर तक सुनाई दी। वह आवाज़ जैसे किसी ख़तरे का इशारा कर रही थी।
गली का चौकीदार, जो एक पुरानी कुर्सी पर बैठा था, एकदम चौक गया। उसने अपना डंडा उठाया और धीरे-धीरे उस तरफ़ बढ़ने लगा जहाँ से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आ रही थी। हर क़दम के साथ उसका दिल तेज़ धड़कने लगा, लेकिन उसके फ़र्ज़ ने उसके क़दमों को रुकने नहीं दिया।
चौकीदार जब उस कोने के पास पहुँचा, तो अंधेरे में उसे एक धुंधली-सी परछाईं दिखाई दी। "कौन है वहाँ?" उसने ज़ोर से आवाज़ लगाई, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। कुत्तों की आवाज़ धीमी पड़ने लगी थी, लेकिन अब उस हवा में एक अजीब-सी घबराहट थी, जैसे कुछ ग़लत होने वाला हो।
तभी चौकीदार थोड़ा और आगे बढ़ा और उसे एक बड़ी-सी काली परछाईं दिखाई दी। पहले तो चौकीदार ने सोचा कि ये कोई भूत है, क्योंकि वह परछाईं अजीब तरीके से हिल रही थी। उसकी रूह कांप उठी और हाथों से डंडा भी ढीला पड़ गया। लेकिन फिर उसने ख़ुद को संभाला और ध्यान से देखा। धीरे-धीरे वह परछाईं और बड़ी होती गई। चौकीदार की साँसें तेज़ हो गईं, दिल की धड़कनें बेकाबू होने लगीं। उसके मन में सवाल उठने लगे, "क्या ये सच में कोई भूत है, या फिर कोई इंसान?" जैसे-जैसे परछाईं नज़दीक आती गई, उसके क़दम थमने लगे। लेकिन उसका कर्तव्य उसे पीछे हटने नहीं दे रहा था।
तभी परछाईं ने अचानक से एक इंसानी शक्ल ले ली। चौकीदार ने ध्यान से देखा तो पाया कि वह कोई आदमी था, जो लंबी काली चादर ओढ़े हुए था। उसकी चाल धीमी और डरावनी थी, जैसे कुछ छिपाने की कोशिश कर रहा हो। चौकीदार की धड़कनें एक पल के लिए रुक-सी गईं।
चौकीदार ज़ोर से चिल्लाया, "कौन है? कौन है वहाँ?"
थोड़ी देर तक कोई हलचल न देखकर चौकीदार ने ज़ोर से अपना डंडा ज़मीन पर मारा, "धप!" उस आवाज़ से गली का सन्नाटा एक पल के लिए टूट गया।
वो फिर चिल्लाया, "कौन है? और यहाँ क्या कर रहे हो?"
इस बार थोड़ी सरसराहट सुनाई दी, जैसे कोई धीरे-धीरे कदमों से चौकीदार की ओर बढ़ रहा हो। अंधेरे में उस काले चादर वाले शख़्स की परछाईं अब और साफ़ दिखाई देने लगी। वहाँ एक लंबा-चौड़ा आदमी खड़ा था। चौकीदार ने देखा कि उस आदमी के हाथ में एक वायर कटर था, जो तार काटने के काम आता है और उसकी पीठ पर एक बड़ा-सा बैग लटका हुआ था।
उस आदमी का नाम संजय था। संजय की आँखों में अजीब-सी चमक थी। उसने एक पल के लिए चौकीदार की ओर देखा, फिर बिना कोई जवाब दिए, इधर-उधर देखने लगा। चौकीदार अब पूरी तरह सतर्क हो चुका था।
चौकीदार ने फिर से सख़्ती से पूछा, "ये वायर कटर क्यों है तेरे पास? और ये बैग में क्या है?"
संजय ने धीमी, रहस्यमयी आवाज़ में कहा, "मुझे जो करना है, वह मैं करूँगा। तुझे इसमें दखल देने की ज़रूरत नहीं है।"
उसने चौकीदार की ओर देखते हुए धीमी लेकिन सख्त आवाज़ में कहा, "चुप रहेगा तो ज़िंदा रहेगा और माल भी मिलेगा। मुझे पैसे चाहिए और मैं एटीएम काटने आया हूँ। अगर परेशान करेगा, तो इस कटर से एटीएम से पहले तुझे काट दूंगा।"
चौकीदार का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसे समझ में आ गया था कि सामने वाला आदमी मज़ाक नहीं कर रहा था। संजय की बातों में एक ठंडक थी, जो उसके इरादों को साफ़ बयाँ कर रही थी।
चौकीदार को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। संजय ने कटर को थोड़ा हवा में घुमाया, जैसे चेतावनी दे रहा हो और फिर एटीएम की ओर बढ़ने लगा। "तेरे पास एक ही रास्ता है–चुपचाप यहाँ खड़ा रह, नहीं तो तेरा खून इसी गली में बहेगा," संजय ने कहा, बिना पीछे देखे।
चौकीदार को अपना फर्ज़ प्यारा था। उसने बिना कुछ सोचे-समझे संजय को पीछे से ज़ोर से डंडा मारा और गुस्से में कहा, "मैं तुझे एटीएम लूटने नहीं दूंगा!" डंडे की मार से संजय थोड़ी देर के लिए लड़खड़ा गया, लेकिन वह अभी तक पूरी तरह होश में था। चौकीदार ने एक और बार डंडा उठाया और पूरी ताकत से मार दिया। अब संजय को गुस्सा आ गया था।
संजय ने पलटकर चौकीदार की आँखों में घूरते हुए कहा, "तू मरकर ही समझेगा!" इससे पहले कि चौकीदार कुछ और कर पाता, संजय ने अपने हाथ में पकड़े हुए कटर को ज़ोर से चौकीदार के चेहरे पर मारा। कटर की नुकीली धार चौकीदार के मुँह पर गहराई से लगी और वह दर्द से कराहते हुए ज़मीन पर गिर पड़ा। खून उसके चेहरे से बहने लगा और उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया।
संजय बिना किसी पछतावे के एटीएम की ओर बढ़ने लगा। उसकी चाल में अब एक ठंडा आत्मविश्वास था, जैसे उसने रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट हटा दी हो। उसकी नजरें अब एटीएम पर थीं, जहाँ से वह अपना मकसद पूरा करने वाला था।
संजय ने वायर कटर से एटीएम को काटा और बिना किसी दिक्कत के सारे पैसे निकाल लिए। एटीएम में कोई सायरन भी नहीं बजा। संजय ने जितनी जल्दी हो सकती थी, सारे पैसे बैग में भर लिए। जब वह जाने लगा, तो उसकी नज़र एक पल के लिए चौकीदार पर पड़ी। चौकीदार खून से लथपथ सड़क पर बेहोश पड़ा था, उसकी साँसें धीमी पड़ चुकी थीं। लेकिन संजय के चेहरे पर कोई पछतावा या घबराहट नहीं थी। उसने बस एक ठंडी नज़र डाली और फिर अपनी चाल में कोई बदलाव लाए बिना आगे बढ़ गया। संजय आराम से उस सुनसान गली से निकल गया, पैसों से भरा बैग उसकी पीठ पर लटका हुआ था। उसे ये ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि जिस चौकीदार को उसने सिर्फ़ घायल समझा था, वह अब इस दुनिया में नहीं था। चौकीदार की धड़कनें थम चुकी थीं और वह अपनी जान गँवा चुका था, अपने फ़र्ज़ की रक्षा करते हुए।
हर अपराध की एक सज़ा होती है, चाहे देर से ही सही।
कुत्तों का भौंकना रात भर तेज होता गया। भौंकते-भौंकते सुबह के 5 बज गए थे। गली में अब भी सन्नाटा था। सुबह जब अख़बार वाला अपनी साइकिल पर आया और उसने गली में चौकीदार को खून से लथपथ सड़क पर पड़ा देखा, तो उसकी हालत खराब हो गई। उसने तुरंत पुलिस को फ़ोन मिलाया।
"साहब, जल्दी आइए, यहाँ गली में चौकीदार खून में लथपथ पड़ा है... शायद मर चुका है!" उसकी आवाज़ में डर और घबराहट साफ़ झलक रही थी।
कुछ ही देर में पुलिस की गाड़ी के सायरन गली में गूंजने लगे। आस-पास के लोग भी धीरे-धीरे जागने लगे और दरवाजों से झांकने लगे कि आख़िर रात में इस गली में क्या हुआ था। पुलिस के आने के बाद गली की खामोशी टूट चुकी थी।
अभी कुछ ही देर में एंबुलेंस वहाँ पहुँच गई। पुलिस ने चौकीदार की लाश को सावधानी से उठाया और एंबुलेंस में रख दिया। कुछ लोग चुपचाप खड़े होकर देख रहे थे, जबकि कुछ लोग आपस में बातें करने लगे कि आख़िर ये सब कैसे हुआ।
जैसे ही एंबुलेंस चली गई, पुलिस ने घटनास्थल की जांच शुरू की। उन्होंने आस-पास के लोगों से पूछताछ की और गली के सीसीटीवी फुटेज चेक करने का फ़ैसला किया। यह सब कुछ ही देर में पूरे शहर में फैल गया। खबरें जैसे जंगल की आग की तरह फैल गईं कि एटीएम लूट लिया गया और चौकीदार को मार दिया गया।
लोगों में दहशत और घबराहट फैल गई। हर कोई इस घटना को लेकर चिंतित था कि अब उनकी सुरक्षा का क्या होगा। चौकीदार, जो हमेशा उनकी रक्षा के लिए खड़ा रहता था, अब ख़ुद ही इस तरह की वारदात का शिकार हो गया था।
शहर के लोग चौकीदार की बहादुरी को याद करने लगे, लेकिन साथ ही साथ वह एक सवाल भी उठा रहे थे–क्या इस शहर में अब सुरक्षित रहना संभव है? पुलिस ने वादा किया कि वह जल्द ही अपराधी को पकड़ेंगे, लेकिन लोगों के मन में एक डर बैठ चुका था।
पुलिस ने पूरे इलाके के सीसीटीवी फुटेज की जांच की। जैसे-जैसे उन्होंने वीडियो को स्कैन किया, उन्हें संजय की पहचान करने में देर नहीं लगी। चौकीदार पर हमला करने वाला वही लंबा-चौड़ा आदमी था, जो एटीएम के पास देखा गया था। लेकिन अब उनकी चुनौती यह थी कि उसे ढूँढा कैसे जाए।
पुलिस ने तुरंत एक्शन लिया और 22 टीमों का गठन किया। ये टीमें शहर की अलग-अलग सड़कों, गली-कूचों और बाजारों में संजय की खोज करने लगीं। हर टीम को अलग-अलग इलाकों में भेजा गया, ताकि संजय को किसी भी कोने से पकड़ने का कोई मौका न छूटे।
सड़क पर हर जगह पुलिस की गाड़ियाँ घूमने लगीं और चौकसी बढ़ा दी गई। हर किसी से पूछताछ की जा रही थी। लोग डरे हुए थे, लेकिन उनमें एक उम्मीद थी कि पुलिस इस खतरनाक अपराधी को जल्द पकड़ लेगी। जैसे-जैसे समय बीत रहा था, पुलिस की टीमें संजय के संभावित ठिकानों की तलाश में लगी रहीं, जबकि संजय ख़ुद को छिपाने के लिए जगह-जगह भागता रहा। उसे पता था कि उसकी हर चाल अब उसे गिरफ्तारी के करीब ला रही थी।
पुलिस की टीमें जब शहर की हर गली-कूचे में संजय की खोज में जुटी थीं, तभी उन्हें एक सूचना मिली। किसी ने देखा था कि एक आदमी, जो भिखारी की तरह कपड़े पहने हुए था, मंदिर के बाहर बैठा था। पुलिस ने तुरंत उस जगह की ओर दौड़ लगाई।
संजय, जिसने एटीएम से 4 लाख रुपये चुराए थे, अब ख़ुद को छुपाने के लिए एक भिखारी के रूप में मंदिर के बाहर भीख मांगने का नाटक कर रहा था। उसे उम्मीद थी कि इस रूप में वह पुलिस से बच जाएगा।
पुलिस ने जैसे ही मंदिर के आसपास की जगह की तलाशी ली, एक पुलिसकर्मी की नज़र संजय पर पड़ी। उसने तुरंत पहचान लिया कि ये वही आदमी है, जिसे वह खोज रहे थे। पुलिस ने संजय को घेरने का फ़ैसला किया और तुरंत वहाँ पहुँच गए।
पुलिस ने उसे पकड़ लिया और उसके पास से वह बैग बरामद किया, जिसमें वह चुराए गए पैसे थे। अब संजय की कोशिशें बेकार हो गई थीं। वह गिरफ्तारी के लिए मजबूर था और उसके चेहरे पर अब डर और पछतावे की छाया थी।
पुलिस ने संजय को अपनी गाड़ी में डालकर थाने ले जाने के लिए तैयार किया, जबकि लोग मंदिर के बाहर जमा होकर इस घटना को देखने लगे।
संजय को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उसके खिलाफ केस चलाया गया। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, पुलिस को पता चला कि संजय के माता-पिता ने उसे परेशान होकर घर से निकाल दिया था। उसके माता-पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और संजय की ग़लत आदतों ने उन्हें और ज़्यादा परेशान कर दिया था। उनकी उम्मीदें टूट गईं और उन्होंने उसे घर से बेदखल कर दिया।
इस जानकारी ने संजय के मामले को और भी मुश्किल बना दिया। उसकी दयनीय स्थिति के बारे में जानकर कोर्ट में बहस शुरू हुई। संजय ने अपने बचाव में कई दलीलें दीं, लेकिन चौकीदार की हत्या और एटीएम लूटने के आरोप गंभीर थे। कोर्ट ने सभी गवाहों के बयान और सबूतों का गहराई से अध्ययन किया। जब सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया, तो कोर्ट ने संजय को दोषी ठहराया। अंत में, न्यायाधीश ने उसे हत्या के आरोप में फांसी की सज़ा सुनाई।
बस कुछ इस तरह संजय जेल में आ गया और उसने यह कहानी मुझे सुनाई। वह हमेशा मुझसे यही कहता था कि वह बेगुनाह है और उसे किसी भी तरह सिर्फ़ पैसे चाहिए थे।
जिस चौकीदार को उसने मारा था, वह एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी भी था। इस वज़ह से भी पुलिस वाले उसे पसंद नहीं करते थे।
तारीख आ गई और संजय की कोई आख़िरी इच्छा नहीं थी। माता-पिता का उससे कोई लेना-देना नहीं था। उनके लिए वह पहले ही मर चुका था।
मरने वाले का नाम-संजय
उम्र-40 साल
मरने का समय-सुबह 6 बज कर 19 मिनट
मेरे दिल में संजय के लिए कोई सहानुभूति नहीं थी। लेकिन उसकी बातों में एक सवाल था—पैसा। संजय ने ये सब पैसे के लिए ही तो किया था। पैसे को हमने सिर पर चढ़ा रखा है। क्या कम पैसों में नहीं जिया जा सकता? संतोष भी कुछ होता है। लेकिन नहीं, हमें तो ख़ूब पैसा चाहिए, ज़रूरत से कहीं ज़्यादा।
चलिए, फिर मिलूंगा एक और अपराधी की कहानी के साथ।
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