जल्लाद। मैं हूँ जल्लाद। जल्लाद चक्रधर।

जेल में आज बहुत शांति का माहौल था। वज़ह ये थी कि कल एक कैदी का जन्मदिन था और उसके घरवाले आए थे और सभी कैदियों के लिए केक लेकर आए थे। केक काटा गया और सबने खाया। मुझे नहीं पता कि ये ऊपरवाले का करिश्मा था या केक बनाने वाले की गलती, पर जिसने-जिसने भी केक खाया, वह सब बीमार पड़ गए। इसीलिए आज शांति थी। सब आराम कर रहे थे। मैं जेल से बाहर था, इसलिए उस केक के प्रकोप से बच गया।

लेकिन आज जेल में एक अंतर्राष्ट्रीय अपराधी आने वाला था। वह था तो भारतीय ही, लेकिन उसका अपराध अंतर्राष्ट्रीय हो गया था। हर रोज़ मीडिया में उसकी चर्चा थी। उसका केस फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहा था।

अंतर्राष्ट्रीय अपराधी आ गया था। बेचारा, देखने में तो एक मासूम-सा लड़का था जिसे जल्द ही फांसी पर लटकाना था। ऊपर से आदेश आया था।

मैं सच में उससे बात करना चाहता था क्योंकि उसकी उम्र अभी जाने लायक नहीं थी। उसकी उम्र तो सिर्फ़ 22 साल थी। उसकी आंखें रो-रो कर लाल हो चुकी थीं और वह लंगड़ाते हुए चल रहा था... शायद पुलिस ने उससे ज़्यादा ही पूछताछ कर दी थी।

एक दिन मैं उसके पास गया और कहा, "तुम्हें पता है ना कि तुम्हारे पास ज़्यादा दिन नहीं बचे हैं?"

"एक ना एक दिन तो जाना ही है," उसने जवाब दिया।

"बाबा बन गए हो अंदर आकर," मैंने कहा।

"बाबा-वाबा नहीं, बस सच का सामना करने की कोशिश कर रहा हूँ।"

"इस सच तक कैसे पहुँचे, बर्खुर्दार?" मैंने पूछा।

कई झूठों से होकर... उसके जवाब ने मुझे भी एक झटका-सा दे दिया। मैं जाने लगा तो उसने ख़ुद ही रोक दिया... मैं रुक गया और फिर पूरे साढ़े तीन घंटे बाद उठा, प्रीतम की कहानी सुनकर।

**प्रीतम**, 22 साल का एक युवा, एक टूरिस्ट गाइड था। लेकिन उसकी असली पहचान उसके लालची स्वभाव में छिपी हुई थी। उसे पैसे कमाने का इतना जुनून था कि कई बार उसने अपने काम की जिम्मेदारियों को भी नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया।

उसकी ज़िंदगी का बस एक ही लक्ष्य था—जैसे भी करके जल्दी से जल्दी, ज़्यादा से ज़्यादा पैसे जुटाना।

शहर में टूरिस्ट गाइड के रूप में उसकी शुरुआत ठीक थी। वह हर दिन नए पर्यटकों से मिलता, उन्हें शहर की ऐतिहासिक जगहों की ओर ले जाता और अपनी बातों से उन्हें इम्प्रेस करने की कोशिश करता। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, प्रीतम ने महसूस किया कि असली ख़ुशी और मज़ा तो पैसे में है।

वह अपनी टूर पैकेज को ख़ास बनाने के बजाय, केवल पैसे कमाने पर ध्यान देने लगा।

एक दिन, प्रीतम ने एक महंगा पैकेज बनाने का विचार किया। उसने अपने पैकेज का नाम "सिटी एक्सप्लोरर" रखा और इसके लिए एक वेबसाइट भी बनाई। अपने दोस्तों से मदद लेकर उसने झूठे रिव्यू लिखवाए, जिससे टूरिस्टों को यह यक़ीन हो गया कि यह पैकेज बेहद ख़ास है।

जब टूरिस्टों ने उसका पैकेज खरीदा, प्रीतम ने सोचा कि अब वह अपनी मेहनत का फल चखने वाला है। शुरू-शुरू में सब कुछ ठीक रहा। टूरिस्टों ने देखा, घूमे-फिरे, खाया-पीया, मौज-मस्ती की। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, टूरिस्टों की उम्मीदें बढ़ने लगीं, जबकि प्रीतम केवल अपने मुनाफे की चिंता करता रहा।

एक दिन, उसे एक 20 साल की रूसी टूरिस्ट, अनास्तासिया, का कॉल आया। अनास्तासिया ने कहा, "मैं अगले हफ्ते आपके शहर आ रही हूँ और आपके पैकेज के बारे में जानकारी चाहती हूँ।"

प्रीतम ने तुरंत जवाब दिया, "बिल्कुल! हमारा पैकेज विशेष है। इसमें लोकल साइटसीइंग, कल्चर और खाने-पीने का विशेष ध्यान रखा गया है।"

उसकी बातें सुनकर अनास्तासिया प्रभावित हुई और उसने तुरंत पैकेज बुक कर लिया। प्रीतम ने सोचा, "यह तो शानदार है! एक और ग्राहक! और वह भी russian लड़की।"

जब अनास्तासिया शहर पहुँची, तो वह बहुत उत्साहित थी। उसने प्रीतम से कहा, "मैं इस यात्रा को यादगार बनाना चाहती हूँ।"

जब प्रीतम ने अनास्तासिया को पहली बार देखा, उसकी खूबसूरती और कॉन्फिडेंस ने उसे चौंका दिया। उसकी लंबी सुनहरी बाल, नीली आंखें और मुस्कान ने प्रीतम के मन में खतरनाक ख़्याल लाने शुरू कर दिए।

अनास्तासिया एक अमीर घर की लड़की थी, जो अपने आत्मविश्वास और स्टाइल के लिए जानी जाती थी। उसके पास हर चीज़ थी—पैसा, खूबसूरती और एक पर्सनालिटी। जब प्रीतम ने उसे देखा, तो उसके मन में एक नया ख़्याल आया: "इसके पास तो बहुत पैसा होगा। अगर मैं इसे अपने टूर पर खुश रख पाऊँ, तो शायद ये मुझे भी अच्छा इनाम देगी।"

प्रीतम ने अनास्तासिया को शहर में घुमाना शुरू किया। उसने पहले दिन ही उसे अच्छे होटलों में ठहरवाया, जहाँ की सुविधाएँ शानदार थीं। उसने सोचा, "इससे उसे मेरी सर्विसेज का अनुभव अच्छा लगेगा और वह मुझे याद रखेगी।"

अनास्तासिया ने शहर की खूबसूरती और सांस्कृतिक धरोहर को देखना शुरू किया। प्रीतम ने उसे प्राचीन किलों, म्यूजियम और कला गैलरियों में ले जाकर लोकल कल्चर दिखाया। उसने ख़ास ध्यान रखा कि हर जगह की जानकारी देने के साथ-साथ वह अनास्तासिया की पसंद-नापसंद का भी ध्यान रखे।

शाम के खाने के लिए, प्रीतम ने उसे लोकल खाने का अनुभव करवाने का मन बनाया। उसने अनास्तासिया को एक प्रसिद्ध रेस्टोरेंट में ले जाकर कहा, "यहाँ की खासियत है 'बिरयानी' और 'हैदराबादी हक्का नूडल्स'।" अनास्तासिया यह सब देखकर बहुत खुश थी।

प्रीतम ने पक्का किया कि अनास्तासिया को उसके मनपसंद व्यंजन मिलें। उन्होंने खाने के साथ-साथ बातचीत में भी गहराई लाने की कोशिश की। प्रीतम ने अपनी ज़िन्दगी की बातें बताईं, उसकी ज़िन्दगी की बातें सुनीं। रूस के बारे में कई सवाल किए। पुतिन के बारे में पूछा। अनास्तासिया ने बताया कि वह तो राष्ट्रपति पुतिन से मिल भी चुकी है बचपन में। प्रीतम ने अनास्तासिया से रिक्वेस्ट की कि वह रूसी लड़की से दोस्ती भी करना चाहता है। अनास्तासिया ने हंसते हुए कहा कि वह वापस जाकर अपनी फ्रेंड्स से पूछेगी।

प्रीतम को उम्मीद थी कि अनास्तासिया उसे अच्छे टिप्स देगी, खासकर उसके द्वारा की गई मेहनत और ईमानदारी को देखते हुए। लेकिन तीन दिन बीत जाने के बाद भी, उसने देखा कि अनास्तासिया ने उसे केवल वही पैसे दिए जो पहले तय हुए थे—कोई अतिरिक्त टिप नहीं।

यह सब देखकर प्रीतम को बड़ा गुस्सा आया। वह लालची तो उम्मीद लगाए बैठा था कि माल मिलेगा, वह भी रूसी मुद्रा में। उसने तो बैंक में जाकर पूछ भी लिया था कि रूसी मुद्रा के बदले में अपने रुपये मिल जाएंगे ना।

प्रीतम की निराशा बढ़ती गई। उसे समझ में आ गया था कि अनास्तासिया को सिर्फ़ पैसों की परवाह थी और शायद उसने उसे सिर्फ़ एक ग्राहक के रूप में देखा था। उसने सोचा, "अगर उसे पैसे चाहिए, तो मुझे भी कुछ ख़ास करना होगा।" उस समय, उसके मन में एक खतरनाक योजना बनी।

उसने योजना बनाई कि एक रात वह अनास्तासिया को ख़ास जगह बताकर सुनसान इलाके में ले जाएगा, जहाँ उसके कुछ दोस्त पहले से ही तैयार रहेंगे और मौका देखकर हाथ साफ़ कर देंगे अनास्तासिया पर।

उसने अनास्तासिया का भरोसा जीतकर, उसे बातों में लगाकर...उस सुनसान जगह ले जाने को मना लिया।

जैसे ही वे उस जगह पर पहुँचे, प्रीतम ने इशारा दिया और उसके दोस्त बाहर आए। प्रीतम के दोस्तों ने अचानक धावा बोल दिया। उनके चेहरे ढके हुए थे और दो के हाथ में चाकू था। अनास्तासिया घबराकर पीछे हट गई और उसके चेहरे पर डर साफ़ झलक रहा था। प्रीतम का दिल भी तेजी से धड़कने लगा।

उन्होंने टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में अनास्तासिया को पैसे, सोना-चांदी, एटीएम सब कुछ देने को कहा। अनास्तासिया वैसे तो बहादुर थी, पर 2-2 चाकू देखकर कोई भी डर सकता है। अनास्तासिया ने कुछ भी देने से मना कर दिया।

प्रीतम के दोस्त ने उससे छीना-झपटी शुरू कर दी... अनास्तासिया नहीं मानी। दोस्तों ने धमकाया। वह फिर नहीं मानी। इतने में एक दोस्त ने सिर्फ़ डराने के लिए हवा में चाकू लहराया था... लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। अनास्तासिया की गर्दन पर गलती से चाकू लग गया और खून की धारा बहने लगी... वह सांस नहीं ले पा रही थी।

प्रीतम अपने दोस्त पर चीखा-"साले, ये क्या कर दिया तूने!" उसके सारे दोस्त डर के मारे भाग गए।

प्रीतम ने अनास्तासिया की ओर देखा, उसकी हालत चिंताजनक थी।

प्रीतम ने अनास्तासिया की मदद करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। जब उसने अपने दोस्तों को भागते देखा, तो उसे एहसास हुआ कि अब उसे अकेले ही संभालना पड़ेगा।

उसने अपने दोनों हाथों में अनास्तासिया को उठाया और अपनी गाड़ी में डाला। हॉस्पिटल बहुत दूर था। उसने बहुत तेज़ गाड़ी चलाई और हॉस्पिटल ले गया। इमरजेंसी वार्ड में जब डॉक्टरों ने चेक किया तो बताया कि यह तो मर चुकी है। बहुत सारा खून बह चुका था।

प्रीतम को हॉस्पिटल में ही मौजूद सिक्योरिटी वालों ने रोक लिया और पुलिस को फ़ोन कर दिया। पुलिस आई और प्रीतम को उठाकर ले गई। जल्दी ही यह बात पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। रात को ही मुख्यमंत्री को भी बता दिया गया क्योंकि मरने वाली एक विदेशी लड़की थी।

अब यह केस इंटरनेशनल बन गया था। सीएम ने जल्दी-जल्दी जांच के आदेश दे दिए। प्रीतम से सख्ती से पूछताछ की गई। उसने सब कुछ सच-सच बता दिया। उसके दोस्तों को ढूँढ़ने के लिए पुलिस की 10 टीमें लगाई गईं।

सरकार पर बहुत दबाव था क्योंकि अब इस केस में 2 देश शामिल थे। बात रूस तक भी पहुँच गई थी। मॉस्को से लेकर दिल्ली तक हंगामा मच गया था।

प्रदेश के सीएम ने फास्ट ट्रैक कोर्ट बना दी ताकि सब कुछ फटाफट चले और फटाफट ख़त्म हो।

और 2 दिन की खोज के बाद प्रीतम के सभी दोस्त पकड़े गए। उन्होंने सब कुछ सच-सच बता दिया कि कैसे प्रीतम ने ही अनास्तासिया को लूटने की योजना बनाई थी।

प्रीतम ने कई बार कहा कि सिर्फ़ पैसा लूटना था, मारना नहीं था। उसे मार कर हमें क्या ही मिलता। लेकिन पुलिस को यह सब पर यक़ीन नहीं हुआ। होना भी नहीं था उन्हें। पुलिस ने मज़बूत केस बनाया। फास्ट ट्रैक अदालत में सारे सबूत पेश किए। फास्ट ट्रैक अदालत में सब कुछ तेजी से चला और प्रीतम को लूटपाट की साज़िश रचने और हत्या करने में साथ देने के इल्ज़ाम में फांसी की सजा सुनाई गई। उसके बाक़ी दोस्तों को भी सजा हुई, लेकिन फांसी की नहीं। फांसी के लिए फंसा सिर्फ़ प्रीतम।

 

और पहुँच गया ऐसे प्रीतम मेरी जेल में। आखिरी इच्छा क्या होती उसकी, वही परिवार से मिलना, रोना-धोना, वही चिल्ला-चिल्ला कर कहना कि मैंने कुछ नहीं किया है। पर क्या फायदा इन चीज़ों का। यह केस था ही इतना खतरनाक कि कोई भी उसे बचा नहीं सकता था और फिर आ गया वही दिन। वही दिन जिसका किसी को इंतज़ार नहीं होता। मुझे भी नहीं। पर मेरा कर्म है वो।

 

प्रीतम को नहलाया गया, ले जाया गया फांसीघर, मैंने "हे राम" कहा और लीवर खींच दिया।

मरने वाले का नाम–प्रीतम

उम्र–22 साल

मरने का समय–सुबह 6 बजकर 39 मिनट

22 साल क्या होता है। पूरी ज़िन्दगी सामने होती है। लेकिन प्रीतम को किसी और ने नहीं मारा, उसे मारा तो उसके पने लालच ने। अरे बड़े-बूढ़े ऐसे ही थोड़ी ना बोलकर गए हैं कि लालच बुरी बला है। लालच न करता वो, तो बच जाता।

लालच से जितना दूर, उतना भला... जब वक़्त बहुत ही बुरा आता है तो पैसा भी कुछ नहीं कर पाता। इसलिए मन से लालच को हमेशा दूर ही रखो। संतोष करना सीखो। संतोष नहीं रहा आजकल के लोगों में और चाहिए और चाहिए... अरे यार, बस भी करो। कहाँ रखोगे इतना? कहाँ लेकर जाओगे...

मिलूंगा एक और अपराधी की कहानी के साथ, अगले एपिसोड में। 

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