मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।
आज जेल का माहौल कुछ अलग था। एक मैडम आ रही थी। जवान-हसीन-खूबसूरत और इन सब से बढ़कर धोकेबाज़ और उस जवान-हसीन-खूबसूरत और इन सब से बढ़कर धोकेबाज़ को देखने सुबह से ही हलचल-सी थी।
और तभी सफेद साड़ी पहने वह मेरी जेल में आती है। आती है और आते ही बेहोश। मैं भाग कर जाता हूँ और महिला स्टाफ की मदद से उसे संभालता हूँ। वह मेरा धन्यवाद करती है और मुझे महसूस होता है कि इससे बात करना आसान होगा और होता भी है।
एक शाम जब जेल में मंत्री जी आए थे दौरा करने... मैं उसके पास जाकर कहता हूँ-तुम्हें यहाँ सब धोकेबाज़ औरत कहते हैं। वह कहती है "आप सुनकर फ़ैसला कर लो।" और बैठ जाते हैं मैं और मीरा।
35 साल का साहिल एक अमीर घर से था। उसकी शादी को 10 साल हो चुके थे और उसका एक बेटा भी था, जो 8 साल का था। साहिल का ख़ुद का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बड़ा बिज़नेस था, जिससे उसे काफ़ी नाम और पैसा मिला था। उसकी पत्नी, मीरा, एक घर संभालने वाली औरत थी, जो अपने बेटे और घर को पूरे दिल से देखती थी। साहिल की ज़िन्दगी बाहर से बिल्कुल सही लगती थी–एक आदर्श परिवार, अच्छा कारोबार और खुशहाल जीवन।
लेकिन, अंदर ही अंदर साहिल की ज़िन्दगी में कुछ कमी थी, जो उसे बेचैन करती थी। उसका बिज़नेस भले ही बहुत अच्छा चल रहा था, लेकिन उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी अब वह पुरानी गर्मजोशी नहीं बची थी, जो कभी उनके बीच हुआ करती थी। साहिल अपने काम में इतना व्यस्त रहता था कि उसका ज्यादातर समय ऑफिस में या बिज़नेस ट्रिप्स पर ही बीतता। परिवार के लिए समय निकालना मुश्किल हो गया था और इस दूरी ने साहिल और मीरा के बीच एक अनकहा तनाव पैदा कर दिया था।
मीरा ने कई बार उससे इस बेरुखी की बात की, पर वह नहीं सुनता था। उल्टा वह मीरा को पीट देता था। कई बार तो बच्चे के सामने ही।
फिर एक दिन जब साहिल तीन रात घर नहीं आया, तो मीरा ने बहुत झगड़ा किया। उसने कहा कि हमें तलाक ले लेना चाहिए। कुछ बचा तो है नहीं हमारे बीच।
तलाक शब्द सुनते ही साहिल का दिमाग़ खराब हो गया। वह किचन में गया और चिमटे से मीरा को मारना शुरू कर दिया। मारता गया, मारता गया।
घर के नौकर ना आते बीच में तो शायद मीरा मर ही जाती।
मीरा की शादी को इतने साल हो गए थे, फिर भी उसने कभी अपने मां-बाप को यह सब नहीं बताया था। पर उस दिन मीरा ने और न सहने की क़सम खा ली थी।
एक दिन, साहिल अपने ऑफिस में बैठा था, जब उसका पुराना दोस्त रोहित उसे मिलने आया। रोहित और साहिल बचपन के दोस्त थे और लंबे समय के बाद उनकी मुलाकात हो रही थी। दोनों ने बिज़नेस और ज़िन्दगी के बारे में बातें कीं। बातचीत के दौरान, रोहित ने साहिल को अपने एक ख़ास दोस्त, समर, से मिलवाने की बात की।
साहिल ने सोचा, उसकी ज़िन्दगी में कुछ नया करने की ज़रूरत है, शायद ये मुलाकात उसके लिए कुछ नया अवसर लेकर आए। अगले दिन साहिल और रोहित, समर से मिलने गए। उसकी बातें सुनकर साहिल प्रभावित हो गया। समर ने साहिल को अपने नए प्रोजेक्ट के बारे में बताया, जो काफ़ी मुनाफे वाला था। साहिल ने बिना ज़्यादा सोचे इस प्रोजेक्ट में निवेश करने का फ़ैसला किया।
जैसे-जैसे साहिल इस प्रोजेक्ट में शामिल होता गया, समर ने उसे अपने लाइफस्टाइल, महंगी पार्टियों और नए लोगों से मिलवाया। धीरे-धीरे साहिल की ज़िन्दगी बदलने लगी। वह अपने घर से दूर होता गया, मीरा और बेटे से उसकी दूरी बढ़ने लगी। साहिल अब देर रात घर आता, कभी-कभी तो कई दिन तक घर भी नहीं लौटता।
समर की संगति में आकर साहिल के अंदर बदलाव आने लगे। वह ज़्यादा से ज़्यादा पैसे कमाने की होड़ में लग गया और अब उसे अपने परिवार का ख़्याल रखने का समय भी नहीं मिलता था। मीरा के साथ उसकी अनबन बढ़ने लगी और उनका रिश्ता धीरे-धीरे टूटने की कगार पर पहुँच गया।
लेकिन साहिल को इस सबका अंदाजा नहीं था कि उसकी ज़िन्दगी की दिशा किस ओर जा रही थी। समर के प्रोजेक्ट ने उसे एक ऐसी दुनिया में धकेल दिया था, जहाँ से वापसी मुश्किल थी।
मीरा तो पहले ही साहिल को सबक सिखाने का मन बना चुकी थी। साहिल, जो कभी अपने बेटे के लिए समर्पित था, अब पूरी तरह बदल चुका था। घर में उसका आना-जाना और भी कम हो गया था और जब भी आता, तो उसके मन में परिवार के लिए कोई दिलचस्पी नहीं होती थी।
मीरा ने दोबारा हिम्मत करके साहिल से बात करने की कोशिश की, लेकिन हर बार साहिल उसे नजरअंदाज कर देता या कोई बहाना बना देता। अगर कुछ नहीं समझ आता, तो चार थप्पड़ मार देता। उनके रिश्ते में अब कोई प्यार, सम्मान या समझ नहीं बची थी। हालात बद से बदतर होते जा रहे थे। साहिल अब ज्यादातर समय घर के बाहर बिताता था और मीरा अकेली पड़ती जा रही थी।
एक दिन, साहिल देर रात घर लौटा, नशे में धुत। मीरा ने फिर से उससे बात करने की कोशिश की, लेकिन साहिल ने उसे बुरी तरह से पीट दिया। **"बस, अब और नहीं। मैंने इतने मौके दे लिए। अब कोई बातचीत नहीं होगी, अब बस अंत होगा," ** मीरा ने मन ही मन सोचा।
अब उसे इस रिश्ते से कोई उम्मीद नहीं थी। उसने महसूस किया कि साहिल को उसकी परवाह नहीं थी और शायद कभी थी भी नहीं। मीरा ने अपने मन में ठान लिया कि अब वह और इंतज़ार नहीं करेगी। उसे अपना और अपने बेटे का भविष्य बचाना था और इसके लिए साहिल को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा।
मीरा ने साहिल को ख़त्म करने का फ़ैसला किया। लेकिन ये काम आसान नहीं था। मीरा कई रातें जागकर सोचती रही कि किस तरह से साहिल की हत्या की जाए ताकि कोई उस पर शक न करे। वह जानती थी कि एक छोटी-सी गलती उसकी और उसके बेटे की ज़िन्दगी को बर्बाद कर सकती है।
एक दिन मीरा ने अपने कॉलेज के दिनों की एक पुरानी दोस्त, श्वेता, से मुलाकात की। श्वेता अब एक वकील थी और उसका क्राइम से जुड़ी कानूनी मामलों में अच्छा अनुभव था। मीरा ने श्वेता से अपनी हालत का ज़िक्र किया, हालांकि उसने सीधे तौर पर हत्या की बात नहीं कही। लेकिन श्वेता की बातों से मीरा को कई कानूनी पहलुओं का अंदाजा हुआ। उसने श्वेता से बिना खुलासा किए कुछ सवाल किए, जिससे उसे हत्या को अंजाम देने के तरीके और पुलिस से बचने के रास्ते समझ में आने लगे।
मीरा ने योजना बनाई कि वह साहिल को एक एक्सीडेंट में मारेगी, ताकि इसे एक हादसा माना जाए। साहिल की रातों की आदतें और शराब पीने की लत को ध्यान में रखते हुए, मीरा ने उसके साथ एक शाम बिताने का सोचा। उसने साहिल को बातचीत के बहाने अपने करीब लाने की कोशिश की। उस रात, मीरा ने साहिल को ख़ूब शराब पिलाई। जब साहिल पूरी तरह से नशे में धुत हो गया और अपने होश खो बैठा, मीरा ने अपनी योजना को अंजाम दिया। उसने साहिल की गाड़ी के ब्रेक में छेड़छाड़ की और उसे ड्राइव करने के लिए उकसाया। साहिल नशे की हालत में गाड़ी चलाने निकल पड़ा। मीरा ने अपनी सांसें थाम लीं, क्योंकि उसने जो किया था, वह उसकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा क़दम था।
मीरा ने अपनी योजना बेहद चालाकी से बनाई थी। उसने साहिल की गाड़ी के उसकी तरफ़ वाले airbags खराब कर दिए थे, ताकि एक्सीडेंट होने पर उसे कोई नुक़सान न पहुँचे और साहिल को बचने का कोई मौका न मिले। इसके अलावा, उसने ख़ुद के लिए सारे इंतज़ाम पहले से कर रखे थे। सड़कें सुनसान थीं और साहिल ने रफ़्तार बढ़ा रखी थी। मीरा बार-बार उसे और तेज़ चलाने के लिए उकसा रही थी, जैसे वह कोई मज़ाक कर रही हो। साहिल को अहसास भी नहीं था कि वह मौत के करीब जा रहा है।
कुछ ही देर बाद, जैसे ही गाड़ी ने एक मोड़ लिया, साहिल का संतुलन बिगड़ गया और गाड़ी तेज़ी से एक पेड़ से टकरा गई। साहिल की तरफ़ के एयरबैग नहीं खुले और वह बुरी तरह से घायल हो गया। खून से लथपथ, साहिल वहीं दम तोड़ बैठा।
मीरा ने तुरंत इमरजेंसी सर्विस को कॉल किया और रोते-बिलखते आवाज़ में कहा कि एक भयानक एक्सीडेंट हो गया है। कुछ ही मिनटों में एंबुलेंस और पुलिस वहाँ पहुँच गई। मीरा को गाड़ी से बाहर निकाला गया और उसे मामूली चोटें आईं, जबकि साहिल को मृत घोषित कर दिया गया।
पुलिस ने शुरुआती जांच में इसे एक सड़क दुर्घटना माना। साहिल नशे में था, गाड़ी तेज़ चला रहा था और ब्रेक फेल हो गए थे। किसी को भी मीरा पर शक नहीं हुआ।
मीरा ने साहिल की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार में भी एक दुखी पत्नी की तरह हिस्सा लिया। लोगों ने उसे सांत्वना दी, उसके दुख को समझा और साहिल की अचानक हुई मौत पर शोक मनाया। मीरा के अंदर कहीं एक ठंडापन था, क्योंकि उसने जो चाहा था, वह हासिल कर लिया था। साहिल अब उसके रास्ते से हट चुका था और उसके लिए अब नई ज़िन्दगी की शुरुआत हो सकती थी–बिना किसी रुकावट के, बिना किसी बोझ के।
लेकिन क़िस्मत हमेशा इंसान के हाथ में नहीं होती। साहिल के एक्सीडेंट के कुछ हफ्ते बाद, इंश्योरेंस कंपनी ने जब गाड़ी की तकनीकी जांच की, तो उन्हें ब्रेक और एयरबैग में गड़बड़ी का पता चला। पुलिस ने मामले की फिर से जांच शुरू की और धीरे-धीरे मीरा की चालाकियों का पर्दाफाश होने लगा। मीरा के खिलाफ सबूत इकट्ठे होने लगे और धीरे-धीरे उसकी योजना का सच सामने आने लगा। मीरा ने सोचा था कि वह बहुत चालाकी से साहिल को मारकर बच जाएगी, लेकिन अब उसकी साज़िश का पर्दाफाश होने वाला था।
आखिरकार, मीरा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गाड़ी में जानबूझकर की गई छेड़छाड़ और उसके बदलते बर्ताव ने पुलिस को यक़ीन दिला दिया कि ये कोई साधारण एक्सीडेंट नहीं, बल्कि एक सोची-समझी साज़िश थी। अदालत में उस पर साहिल की हत्या का मुकदमा चला और सभी सबूत और गवाहों के बयान सुनने के बाद, जज ने अपना फ़ैसला सुनाया।
अदालत ने मीरा को फांसी की सजा सुनाई।
ये फ़ैसला सुनकर मीरा के चेहरे पर हल्की-सी घबराहट आई, लेकिन उसने ख़ुद को शांत रखने की कोशिश की। उसे इस बात का एहसास था कि जो उसने किया है, उसकी यही क़ीमत है। उसकी सारी चालाकी और साज़िश का अंत अब आ चुका था। साहिल के परिवार और दोस्तों ने इस फैसले का स्वागत किया। उन्होंने इसे न्याय की जीत माना, क्योंकि मीरा ने अपने पति के साथ विश्वासघात कर उसके जीवन को ख़त्म किया था। साहिल का बेटा, जो अब इस घटना के बाद अनाथ हो गया था, अपने दादा-दादी के साथ रहने लगा।
फांसी की सजा की तारीख तय हो गई और मीरा को मेरी जेल में रखा गया।
काफी देर हो गई थी हमें बैठे बैठे। मीरा ने पूरी कहानी सुनाकर पूछा-बताइए आप, अगर आप मेरी जगह होते तो क्या करते?
मैंने कहा "मैं नहीं जानता कि मैं क्या करता, लेकिन मैं ये बता सकता हूँ कि मैं क्या नहीं करता। मैं साहिल को कभी न मारता।"
मेरा जवाब सुनकर मीरा चुप हो गई। यूं ही दिन बीतते गए। जेल की दीवारों के अंदर, अब उसके पास सिर्फ़ पछतावा और सन्नाटा था। उसने जो भी किया, उसके नतीजे उसे घेरने लगे थे। फांसी के दिन, मीरा को जब आखिरी बार पूछा गया कि क्या उसे अपने किए पर कोई पछतावा है, तो उसने चुपचाप सिर झुका लिया।
आखिरी इच्छा पूछी गई तो उसने अपने बेटे से भी मिलने से मना कर दिया। उसने कहा मैं उसकी भी गुनहगार हूँ। नहीं नज़र मिला पाऊंगी उससे भी।
मैंने अपना काम कर दिया। बस लीवर पर हाथ था और जेलर साहब के इशारे का इंतज़ार था।
मरने वाले का नाम-मीरा
उम्र-32 साल
मरने का समय-सुबह 5 बजकर 23 मिनट
साहिल और मीरा के रिश्ते में सबसे बड़ी कमी थी बातचीत की। अगर दोनों ने अपनी समस्याओं को समय पर एक-दूसरे से खुलकर साझा किया होता, तो शायद हालात इतने बिगड़ते नहीं। रिश्तों में पारदर्शिता और बातचीत का अभाव खतरनाक हो सकता है। पैसा हमें कई बार रिश्तों से दूर ले जाता है। कभी-कभी पैसा और सफलता भी हमें ग़लत रास्ते पर ले जा सकते हैं और रिश्तों की क़ीमत पर ऐसी सफलताएँ खोखली होती हैं।
जब हम गुस्से, हताशा, या बदले की भावना से प्रेरित होकर कोई घातक कदम उठाते हैं, तो उसका परिणाम केवल तबाही ही होता है। गुस्से और हताशा के बजाय समाधान के रास्ते खोजने चाहिए। सही समय पर सही निर्णय लेना बेहद जरूरी है, क्योंकि गलत फैसलों का परिणाम बहुत बड़ा हो सकता है। रिश्तों में समझ, संवाद, और धैर्य का होना जरूरी है। धोखे से किसी भी समस्या का हल नहीं निकलता, बल्कि समस्या बड़ी हो जाती है।
फिर लाऊंगा किसी और अपराधी की कहानी अगले एपिसोड में।
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