मैं हूँ जल्लाद। चक्रधर जल्लाद।
कल रात एक फ़िल्म देखी थी। मेरे ज़माने की। शादी वाली फ़िल्म। पूरी फ़िल्म में शादी और गाने। पर अपने को बड़ा मज़ा आता है ऐसी फ़िल्में देखने में। ऊपर से फ़िल्म में कुत्ता भी था। क्या एक्टिंग की कुत्ते ने भी।
अभी तक वह फ़िल्म याद आ रही है। फ़िल्म का नाम था-हम आपके हैं कौन।
क्योंकि कल ही जेल में एक मंगेतर आया है। वह मंगेतर, जो अब क़ैदी बन गया था।
उदास-सा बैठा था कोने में। मैंने सोचता रहा कि कैसे करूं शुरू बात... बस फिर कल रात वाली फ़िल्म आ गई दिमाग़ में। मैंने गुज़रते हुए कहा, "तुम्हारी वाली भी सीढ़ियों से गिर गई थी क्या?"
उसने नाराज़गी भरी आँखों से मुझे देखा। मैं जाने लगा तो पीछे से बोला, "काश गिर गई होती। सीढ़ियों से गिर जाती तो मुझे फाँसी की सीढ़ियाँ ना चढ़नी पड़ती।"
बस यही मौका था जब मुझे चौका मारना था... उसके कंधे पर हाथ रखा और बिठा लिया प्रदीप को और ये है प्रदीप की कहानी...
पार्क में पेड़ के नीचे जो लाल रंग बह रहा था, वह खून ही था...पहले तो किसी ने ध्यान नहीं दिया, शायद किसी जानवर का खून हो सकता था, पर जैसे-जैसे लोग उस जगह के पास आने लगे, एक अजीब-सी घबराहट मच गई। लाल रंग धीरे-धीरे ज़मीन में फैलता जा रहा था और उसके साथ एक तीखी, गंदी-सी बू भी आ रही थी।
एक बच्चा जो वहाँ खेल रहा था, सबसे पहले उस खून के पास गया। उसने अपनी माँ को आवाज़ लगाई, "माँ, यहाँ देखो!" माँ ने पहले तो हँस कर कहा, "अरे, छोड़ ना बेटा, ये कुछ नहीं है," पर जब उन्होंने भी ध्यान से देखा, तो उनका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
लोग इकट्ठा होने लगे और किसी ने पुलिस को बुला लिया। जब पुलिस वहाँ पहुँची, तो पेड़ के पास जो लाल रंग का दरिया था, उसका असल समझ आने लगा। पेड़ के नीचे मिट्टी को थोड़ा हटाया गया और तब एक छुपी हुई लाश का राज़ खुला।
पुलिस ने पेड़ के नीचे की मिट्टी हटाने का काम शुरू किया और जैसे-जैसे मिट्टी हट रही थी, वैसे-वैसे एक इंसान का हाथ दिखने लगा। सारे लोगों की साँसें थमी-सी थीं। ये सच में एक लाश थी और खून उसी लाश से बह रहा था।
इंस्पेक्टर ने तुरंत अपनी टीम को इस पूरी जगह को घेरने का हुक्म दिया। सब कुछ बहुत ही रहस्यमय था। कौन था ये इंसान? और कैसे इस पार्क के बीच में, एक पेड़ के नीचे दफना दिया गया था?
लोगों के बीच कानों-कानों में बातें होने लगीं। क्या कोई ख़ूनी इसी बीच-चलती जगह पर अपनी हरकतें अंजाम दे रहा था? या फिर ये किसी पुरानी दुश्मनी का नतीजा था?
इंस्पेक्टर ने लाश को ध्यान से देखा और उसके चेहरे पर एक अजीब-सी हैरानी थी। लाश की हालत इतनी बुरी थी कि उसे पहचानना भी मुश्किल हो रहा था, पर जो चीज़ उसका ध्यान खींच रही थी, वह थी लाश के हाथों पर एक छोटा टैटू—एक दिल, जिसमें किसी का नाम लिखा हुआ था।
इंस्पेक्टर के हाथ में लाश का हाथ आते ही एक अजीब-सी खामोशी छा गई। टैटू को देखते ही उसने अपने असिस्टेंट से कहा, "इस टैटू को ज़ूम करके देखना, नाम साफ़ पढ़ने की कोशिश करो।" असिस्टेंट ने तुरंत अपने फ़ोन का कैमरा इस्तेमाल किया और फोटो ली। जैसे ही ज़ूम किया, टैटू पर लिखा था "रिया" ।
इंस्पेक्टर के चेहरे पर एक छाया-सी दिखने लगी। "रिया... ये नाम कहीं सुना हुआ लगता है," उसने सोचा। तभी असिस्टेंट ने कहा, "सर, कुछ दिन पहले एक लड़की के गुमशुदा होने की रिपोर्ट आई थी। उसका नाम भी रिया था और उसके हाथ पर ऐसा ही टैटू होने का ज़िक्र किया गया था।"
रिया के घर वालों को बुलाया गया और जैसे ही उन्होंने लाश का टैटू देखा, उनका चेहरा पीला पड़ गया। लेकिन थोड़ी देर के बाद, रिया की माँ ने थोड़ा झिझक कर कहा, "ये मेरी बेटी नहीं है... हमारी रिया के हाथ पर ऐसा टैटू नहीं था।"
इंस्पेक्टर और पूरी टीम एक पल के लिए हैरान रह गए। सबको लग रहा था कि ये लाश रिया की ही है, लेकिन अब ये एक नया राज़ था। अगर ये रिया नहीं थी, तो फिर कौन थी? और क्यों किसी और के नाम का टैटू इस लाश के हाथ पर था?
इंस्पेक्टर ने अपनी टीम को इस केस की गहनता से जाँच करने के लिए कहा। "ये अब सिर्फ़ एक सिंपल मर्डर का केस नहीं रहा, ये अब एक गहन रहस्य है," उसने कहा। उन्होंने तुरंत इस लाश की पहचान के लिए फॉरेंसिक टीम को बुलाया और डीएनए टेस्टिंग के लिए लाश का डेटा इकट्ठा करना शुरू किया।
इस बीच, पार्क के आस-पास के लोगों से पूछताछ का सिलसिला चला। एक बुड़िया, जो अक्सर पार्क में अपने दोस्तों के साथ बैठती थी, ने इंस्पेक्टर को रोका और कहा, "मैंने कुछ दिन पहले एक लड़की को देखा था यहाँ। वह अकेली थी, बहुत घबराई हुई लग रही थी। उसके पास एक आदमी भी था, जो उसे ज़ोर ज़बरदस्ती पार्क के उस कोने की तरफ़ ले जा रहा था।"
इंस्पेक्टर का दिमाग़ और तेज़ चला। "क्या आप उस आदमी को पहचान सकती हैं?" उसने पूछा। बुड़िया ने सोचा, फिर कहा, "उसका चेहरा तो धुँधला-सा याद है, लेकिन उसके कपड़ों पर एक नया-सा निशान था। जैसे किसी काम की यूनिफ़ॉर्म हो।"
इस नई जानकारी के बाद, इंस्पेक्टर ने पार्क के आस-पास के सीसीटीवी फुटेज को और ध्यान से देखना शुरू किया। एक जगह उन्होंने देखा कि एक शख़्स पार्क के उसी तरफ़ जा रहा था जहाँ लाश मिली थी। उस शख़्स के कपड़ों पर वाकई एक यूनिफ़ॉर्म थी, जो किसी सिक्योरिटी गार्ड या वर्कर की लग रही थी।
अब इन्वेस्टिगेशन और गहन हो गई। उस शख़्स को ढूँढने का काम ज़ोर-शोर से शुरू किया गया। थोड़े दिनों बाद, पुलिस ने एक सिक्योरिटी गार्ड को गिरफ़्तार किया जो पार्क के आस-पास काम करता था।
उसका नाम था प्रदीप।
जब प्रदीप से सख़्ती से पूछताछ हुई, तो उसने अपने जुर्म का कबूल कर लिया, लेकिन उसका जवाब सबको हैरान कर देने वाला था। उसने कहा, "ये लड़की मेरी मंगेतर थी... हम दोनों शादी करने वाले थे। लेकिन जब इसकी नौकरी एक बड़े शहर में लग गई, तो इसने मुझसे दूरी बनानी शुरू कर दी। मैंने बहुत बार समझाने की कोशिश की, पर ये अब शादी से इनकार कर रही थी।"
इंस्पेक्टर को अब एक नया मोड़ देखने को मिल रहा था। गार्ड के शब्दों में गुस्सा और पीड़ा साफ़ दिख रही थी। उसने बताया, "मैं उसे बहुत चाहता था, पर जब उसने मुझे छोड़ने का फ़ैसला किया, तो मैं अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाया। उस दिन पार्क में उससे मिलने गया था, मैंने सोचा था कि बात करूँगा, सब कुछ ठीक हो जाएगा। पर बात बढ़ गई और गुस्से में मैंने उसका गला घोंट दिया।"
प्रदीप की आँखों में आँसू थे, लेकिन कोई पछतावा या शर्मिंदगी नज़र नहीं आ रही थी। उसने अपने जुर्म को एक तरह से सही ठहराया, "मैंने उसे ज़िन्दगी दी थी, मैं उसके लिए सब कुछ था और उसने मुझे बेकार समझ कर छोड़ दिया।"
इंस्पेक्टर ने उससे और डिटेल्स माँगते हुए पूछा, "और ये टैटू? ये किसने बनवाया था?"
प्रदीप ने थोड़ी देर चुप रहकर जवाब दिया, "ये उसने मेरे लिए बनवाया था जब हमारा रिश्ता अभी अच्छा चल रहा था। पर जब उसने मुझे छोड़ने का फ़ैसला किया, तब उसने इस टैटू को हटवाने की बात की थी। उस दिन जब हम मिले, तब भी ये बात उठी और मैंने गुस्से में उसे मार दिया।" इंस्पेक्टर को ये बात समझ आ गई थी कि ये मर्डर एक जुनून का नतीजा था, एक ऐसे इंसान का जुनून जो अपने प्यार को अपनी जागीर समझने लगा था।
लाश के फॉरेंसिक रिपोर्ट्स और प्रदीप के कन्फेशन के बाद, केस लगभग सुलझ गया था। लेकिन एक चीज़ अब भी अधूरी थी—रिया।
इंस्पेक्टर ने एक पल के लिए सोचा। "अगर ये लड़की तुम्हारी मंगेतर थी, तो रिया कहाँ है? तुम उसके बारे में क्या जानते हो?"
प्रदीपने थोड़ा घबराते हुए जवाब दिया, "मुझे रिया के बारे में कुछ नहीं पता। मैं बस अपनी मंगेतर के साथ पार्क में आया था उस दिन। रिया का इससे कोई लेना-देना नहीं।"
लेकिन इंस्पेक्टर अब भी रिया के केस को बंद नहीं करना चाहता था। उसने अपनी टीम को कहा, "हमें अब भी रिया को ढूँढना है। इस प्रदीप गार्ड का जुर्म अलग है, पर रिया का लापता होना अब भी एक राज़ है।"
प्रदीप को गिरफ़्तार कर लिया गया और उस गुमशुदा रिया का केस अलग चलता रहेगाउसके लिए एक स्पेशल टीम भी बना दी गई. अभी तो पुलिस को प्रदीप का केस सुलझाने की ख़ुशी थी।
जब सिक्योरिटी गार्ड प्रदीप के गिरफ़्तार होने की ख़बर उसके गाँव पहुँची, तो पूरा गाँव एकदम से हैरान रह गया। लोगों ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक शांत और सीधा-सादा दिखने वाला लड़का, जो हमेशा सबका आदर करता था, ऐसे जुर्म में शामिल हो सकता है। उसका असली रूप सबके लिए एक बड़े झटके से कम नहीं था।
गाँव के लोग उसके घर के आस-पास जमा होने लगे और उसके माँ-बाप के चेहरे पर बेपनाह दर्द और शर्मिंदगी थी। उनका बेटा, जो उनकी नज़रों में हमेशा से एक मासूम और नेकदिल इंसान था, अब जुर्म की दुनिया में डूब चुका था।
जैसे ही प्रदीप को गिरफ़्तार किया गया और गाँव में यह ख़बर फैली, उसकी माँ और पिता ने अपने घर के दरवाज़े बंद कर लिए। वह दर्द सहन कर रहे थे, जो शायद हर माता-पिता के लिए सबसे बड़ा हो—अपने ही बेटे की शर्मिंदगी और जुर्म की सजा का सामना करना।
गाँव के बुज़ुर्ग आपस में बातें कर रहे थे, "किसी ने सोचा भी नहीं था कि ये लड़का, जो बचपन से सीधा-सादा और मददगार था, एक दिन ऐसा क्रूर क़दम उठाएगा।"
लेकिन किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि आख़िर क्यों वह प्रदीप, जो सबका चहेता था, इस क़दर गिर गया।
कुछ हफ्तों के बाद, अदालत में गार्ड के खिलाफ़ मुकदमा शुरू हुआ। कोर्टरूम में सभी की निगाहें गार्ड पर थीं। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी शांति थी, मानो उसने पहले से ही अपनी क़िस्मत को स्वीकार कर लिया हो। उसकी मंगेतर की हत्या का सच अब सबके सामने आ चुका था, लेकिन उसने कोई पछतावा नहीं दिखाया। उसकी दलील एक ही थी—"मैंने प्यार किया था और उसने मुझे धोखा दिया।"
जज ने उसकी बातों को सुना और फिर कहा, "तुम्हारा प्यार तुम्हारे साथी के जीवन पर अधिकार नहीं देता। कोई भी इंसान किसी दूसरे की ज़िंदगी लेने का हक़दार नहीं होता।"
प्रदीप के जुर्म की गंभीरता को देखते हुए, अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई। यह फ़ैसला आते ही कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया। उसकी माँ जोर-जोर से रोने लगी और उसके पिता सिर झुका कर बैठे रहे।
फैसले के बाद उसे जेल भेज दिया गया, जहाँ उसे अपनी अंतिम सजा का इंतज़ार करना था। उसकी ज़िन्दगी अब ख़त्म हो चुकी थी और उसके साथ-साथ उसके परिवार का सम्मान भी मिट्टी में मिल चुका था।
और इस तरह प्रदीप की कहानी शुरू हुई थी, जो कुछ दिनों बाद ख़त्म होने वाली थी। कहानी सुनाते-सुनाते वह रो पड़ा। उसे अब दुख होने लगा था कि एक लड़की के चक्कर में अब उसकी पूरी दुनिया ही छूट जाएगी।
और छूटने का दिन आहिस्ता-आहिस्ता आ ही गया। उसकी आखिरी इच्छा थी कि उसे किसी से नहीं मिलना। वह दोबारा अपने माँ-बाप को रोता नहीं देख सकता था। उसे लगा कि कहीं ये सुनकर माँ की तबीयत और ज़्यादा ही न ख़राब हो जाए।
बस वह सुबह आ गई। जेलर साहब और चार हवलदार उसे उसके बैरक से बाहर लाए। कपड़े बदले गए। आखिरी इच्छा फिर से पूछी गई और ले आए फांसीघर में। मैं पहले से ही सब कुछ तैयार करके खड़ा था। प्रदीप का चेहरा एकदम ठंडा-सा पड़ गया था। मौत को इतना करीब देख किसी का भी पड़ जाता है। बस सफेद कपड़े से उसका चेहरा ढंका। फंदा टाइट किया। जेलर साहब ने इशारा किया और खींच दिया लीवर।
मरने वाले का नाम-प्रदीप
उम्र-25 साल
मरने का समय-सुबह 8 बजकर 11 मिनट
प्रदीप मेरी नज़र में समझदार नहीं था। मेरी नज़र में हर वो इंसान समझदार नहीं है जो प्यार के नाम पर अपराध करता है। शादियाँ तो ऊपरवाला कराता है और अगर दोनों में से कोई एक कह रहा है कि उसे शादी नहीं करनी, चाहे वजह जो भी हो, उसके फ़ैसले को भगवान का इशारा समझो और पीछे हट जाओ। खून कर देने से क्या हुआ। एक बेचारे माँ-बाप की लड़की चली गई, लड़के को फांसी हो गई। दो परिवार हमेशा-हमेशा के लिए बर्बाद हो गए। औलाद खोने का दुख कभी नहीं जाता। वो आपके साथ ही दुनिया से जाता है। पर ये बात नहीं समझते ये आजकल के प्यार करने वाले।
फिर मिलूंगा। किसी और अपराधी की कहानी के साथ।
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