मैं हूँ जल्लाद, जल्लाद चक्रधर।
कई बार लोग मुझसे पूछते हैं, "कैसे कर लेते हो ये सब? इतने सारे लोगों को मौत के घाट उतारना आसान नहीं होगा।"
मैं उनसे कहता हूँ, "ये मेरा काम है। किसी को करना ही पड़ेगा।"
पर इस काम ने मुझे एक अजीब-सी ज़िन्दगी दी है। हर रोज़, एक नई कहानी, एक नया चेहरा और एक नया अंत।
जैसे आज मेरे सामने प्रिया का चेहरा था।
प्रिया को जब पहली बार मैंने देखा, तो वह अपनी कोठरी में बैठी हुई थी। बाक़ी कैदी या तो रोते हैं या बौखलाते हैं, लेकिन प्रिया एकदम ख़ामोश थी।
मैंने उसे कई दिनों तक देखा। उसने कभी मुझसे बात नहीं की, लेकिन उसकी आंखें कई बार मुझसे टकराईं। उन आंखों में एक कहानी थी—गुस्सा, दर्द और बदले की भावना, लेकिन साथ ही एक संतोष भी। जैसे उसने वह सब किया हो, जो उसे करना था। उससे बात करने के लिए मैंने झूठ बोला। क्या करता, ज़रूरी था उसकी कहानी जानने के लिए। मैंने कहा मेरी भी एक बहन थी...बस बहन सुनते ही वह रो पड़ी और सुना दी अपनी कहानी-
उसे तो सिर्फ़ बदला लेना था उस लड़के से, जिसने उसकी पूरी दुनिया तबाह कर दी थी। प्रिया की ज़िन्दगी में सब कुछ ठीक चल रहा था, जब तक उस लड़के ने उसकी बहन की ज़िंदगी में क़दम नहीं रखा था। उसकी बहन, मीरा, एक मासूम और सीधे-सादे स्वभाव की लड़की थी, जिसे प्यार के नाम पर धोखा मिला। वह लड़का, जिसका नाम समीर था, दिखने में स्मार्ट और हंसमुख था, लेकिन उसके इरादे बिल्कुल उल्टे थे।
प्रिया ने शुरू से ही समीर पर भरोसा नहीं किया था, लेकिन मीरा उसकी बातों में आ चुकी थी। मीरा समीर से बेहद प्यार करने लगी थी और उसकी हर बात मानती थी। एक दिन, अचानक मीरा का व्यवहार बदल गया। वह उदास रहने लगी, किसी से बात नहीं करती और ख़ुद को कमरे में बंद कर लेती। प्रिया को कुछ ग़लत होने का एहसास हुआ, लेकिन जब उसने मीरा से पूछने की कोशिश की, तो मीरा कुछ भी नहीं बताती।
फिर एक दिन, जब मीरा की लाश प्रिया को अपने कमरे में लटकी मिली, उसकी ज़िन्दगी ही बिखर गई। प्रिया का दिल टूट गया था, लेकिन जब उसने मीरा की डायरी पढ़ी, तब उसे समझ में आया कि मीरा ने यह क़दम क्यों उठाया था। समीर ने उसे प्यार का झूठा सपना दिखाकर धोखा दिया था और उसके निजी पलों का वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल किया था। मीरा उस मानसिक दबाव को सहन नहीं कर सकी और आत्महत्या कर ली।
केस पुलिस के पास गया। समीर एक अमीर और प्रभाव वाला इंसान था सो उसने मामले को रफ़ा-दफ़ा करवा दिया और मीरा को मानसिक रूप से परेशान रोगी घोषित करवा दिया।
प्रिया को अब एक ही चीज़ चाहिए थी-बदला। समीर को उसकी सज़ा मिलनी ही चाहिए। प्रिया ने अब खुद समीर को सबक सिखाने की ठानी।
क्योंकि मीरा की वज़ह से समीर प्रिया को अच्छी तरह से पहचानता था, इसलिए प्रिया के लिए सीधे-सीधे बदला लेना मुश्किल था। समीर चालाक और शातिर था और वह प्रिया की हरकतों पर नज़र रखने से नहीं चूकता। प्रिया को समझ आ गया कि अगर उसने सीधे समीर का सामना किया, तो वह तुरंत सतर्क हो जाएगा और अपने बचाव का कोई तरीक़ा निकाल लेगा।
अब प्रिया को एक ऐसा रास्ता चुनना था, जिसमें वह समीर को सबक सिखा सके, लेकिन बिना यह जताए कि वह बदला ले रही है। उसे अपनी चालाकी का इस्तेमाल करना पड़ा। प्रिया ने गहराई से सोचा और फिर एक योजना बनाई. प्रिया ने सबसे पहले अपनी पहचान को बदलने का फ़ैसला किया। वह ऐसे दिखना चाहती थी कि समीर उसे पहचान न सके। उसने अपना पहनावा, हेयरस्टाइल और यहाँ तक कि अपना बोलने का तरीक़ा भी बदल दिया। वह एक चेहरे की सर्जरी वाले डॉक्टर के पास भी गई और चेहरे में भी थोड़ा बहुत परिवर्तन करवा लिया। हालाँकि वह ज़्यादतर वक़्त चेहरा दुपट्टे से ढक कर ही रखती थी
वह अब प्रिया नहीं थी, बल्कि एक नई पहचान के साथ सामने आई थी। उसने एक नकली नाम "सोनिया" अपनाया और अपनी असलियत छिपाने के लिए शहर से थोड़ी दूरी पर एक नई जगह रहने लगी।
अब उसका मकसद था समीर से फिर से मिलने का कोई मौका खोजना। प्रिया को मालूम था कि समीर अक्सर रात को क्लब जाता था और वहाँ नए-नए लोगों से मिलता-जुलता था। वह भी उसी क्लब में जाने लगी, जहाँ समीर अक्सर आता था। सोनिया के रूप में प्रिया ने समीर से धीरे-धीरे जान-पहचान बढ़ानी शुरू कर दी। वह जानती थी कि समीर लड़कियों पर जल्दी भरोसा कर लेता है और ठीक वैसा ही हुआ। कुछ मुलाकातों के बाद, समीर उसके क़रीब आने लगा।
प्रिया का पहला मकसद था समीर को मानसिक रूप से तोड़ना। उसने अपने नकली पहचान का इस्तेमाल करके समीर की कमजोरियों को समझा। वह उसकी बातों में घुलने-मिलने लगी, उसकी हरकतों को ध्यान से देखने लगी। समीर उसे भरोसे में लेने लगा था और उसने अपने कई गहरे राज़ उसे बताए। अब प्रिया को समीर की असलियत को सबके सामने लाने का मौका मिल रहा था।
एक रात, जब समीर ने शराब के नशे में अपना सारा घिनौना सच प्रिया के सामने खोलकर रख दिया, प्रिया ने उसकी बातें रिकॉर्ड कर लीं।
प्रिया का इरादा अब साफ़ हो चुका था। उसने सारी बातें रिकॉर्ड कर तो ली थीं और वह चाहती भी थी कि समीर की असलियत सबके सामने आए, ताकि उसे दुनिया के सामने शर्मिंदा किया जा सके। लेकिन मीरा के केस के बाद, प्रिया का कानून से भरोसा उठ चुका था। उसे यह यक़ीन नहीं था कि न्याय व्यवस्था समीर को उसकी गुनाहों की सज़ा देगी। आख़िर मीरा के साथ भी तो ऐसा ही हुआ था। पुलिस ने उसकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया था और अदालत ने समीर को निर्दोष साबित कर दिया था।
प्रिया अब कानून के रास्ते से संतुष्ट नहीं थी। उसे ख़ुद ही इंसाफ़ करना था। उसका दिल एक ही बात पर अटक गया था–समीर को ज़िंदा छोड़ना उसकी बहन के साथ हुई नाइंसाफ़ी का मज़ाक बनाने जैसा होगा।
इसलिए प्रिया ने ठान लिया कि वह अपने हाथों से समीर का खून करेगी।
प्रिया ने धीरे-धीरे समीर को अपने हुस्न के जाल में और मज़बूती से फँसाना शुरू किया। वह उसे रोमांटिक मैसेज भेजने लगी। उसे कहती कि वह अक्सर रातों को सो नहीं पाती क्योंकि समीर उसके पास नहीं होता। उधर समीर को लगा कि एक और मछली जाल में फंस रही है
एक रात, प्रिया ने समीर को एक होटल में मिलने बुलाया। समीर प्रिया के बताये कमरे में पहुँचा तो देख कर पागल हो गया। प्रिया बहुत ही छोटे कपड़ों में बाल खोल कर बैठी थी और सामने मेज़ पर दारु की बोतल थी। प्रिया ने बहुत ही मदहोश भरी आवाज़ में कहा-पहले शराब पीजिये हुज़ूर, फिर शबाब का मज़ा लीजियेगा। समीर अब भी समझ नहीं पा रहा था कि प्रिया क्या करने वाली है।
प्रिया ने तुरंत एक पैग बनाकर समीर को दिया। समीर ने इतराते हुए लेने से मना कर दिया।
प्रिया बोली-ओह हो, तो जनाब मेरे हाथ से पियेंगे।
समीर मुस्कुरा दिया। प्रिया ने उसे खींच कर एक कुर्सी पर बिठाया और उसकी गोद में जाकर बैठ गई और मुँह से लगा दिया गिलास को। समीर एक ही बारी में पी गया और पीने के दस मिनट बाद बेहोश हो गया।
जब होश आया तो समीर एक कुर्सी से बंधा हुआ था।
प्रिया ने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया, "समीर, तुम्हें पता है कि मैं कौन हूँ?"
समीर ने पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब प्रिया ने अपना असली नाम बताया, उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं।
"प्रिया... मीरा की बहन?" समीर के चेहरे पर घबराहट साफ़ थी। उसके पैरों तले से ज़मीन खिसक गई थी। अब वह भागने की कोशिश करने लगा, लेकिन प्रिया ने उसे पहले ही ऐसा जाल बिछाकर फंसा लिया था कि समीर के लिए भागना नामुमकिन था।
"तुमने मीरा की ज़िन्दगी बर्बाद की, उसे आत्महत्या करने पर मजबूर किया। तुमने कानून को धोखा दिया, लेकिन अब... अब तुम्हारी सजा मैं दूंगी," प्रिया ने ठंडे लहजे में कहा।
समीर कांपते हुए बोला, "प्लीज़... मुझे माफ़ कर दो... मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ता हूँ।"
लेकिन प्रिया का चेहरा एकदम निश्चयी था। उसके दिल में अब कोई दया नहीं बची थी। उसने धीरे से अपने बैग से एक चाकू निकाला, जिसकी धार तेज़ थी और उस पर गहरा नीलापन चमक रहा था।
"माफ़ी? जो तुमने मीरा के साथ किया, उसके लिए कोई माफ़ी नहीं है," प्रिया ने यह कहते हुए चाकू को समीर के सीने में घोंप दिया।
समीर दर्द से चिल्लाया, लेकिन वहाँ उसकी चीख सुनने वाला कोई नहीं था। प्रिया ने अपनी सारी नफ़रत और गुस्से को समीर के खून में घोल दिया। उसने तब तक वार किए, जब तक समीर की सांसें नहीं थम गईं।
खून से लथपथ प्रिया खड़ी रही, उसकी आँखों में आंसू नहीं थे, बस एक अजीब-सी शांति थी। उसने समीर का खून कर दिया था और अब उसे कोई पछतावा नहीं था। उसे यक़ीन था कि यही इंसाफ था।
समीर का खून करने के बाद प्रिया ने न तो भागने की कोशिश की और न ही ख़ुद को छिपाया। उसने अपने मन में पहले से यह तय कर लिया था कि वह इस अपराध के बाद भागेगी नहीं। उसके लिए यह एक सामान्य हत्या नहीं थी, यह इंसाफ़ था, जो उसने अपनी बहन के लिए किया था।
चाकू से खून से सने हाथों के साथ, प्रिया ने एक गहरी सांस ली और कमरे से बाहर निकल गई। उसकी चाल में कोई घबराहट या बेचैनी नहीं थी। वह सीधी होटल के रिसेप्शन की तरफ़ बढ़ी। रिसेप्शन पर काम करने वाला कर्मचारी अपनी दिनचर्या में व्यस्त था, लेकिन जब उसने प्रिया की हालत देखी, तो वह चौंक गया। प्रिया के कपड़े खून से लथपथ थे और उसके चेहरे पर एक अजीब-सी शांति थी।
प्रिया ने शांत आवाज़ में कहा, "मैंने समीर का खून कर दिया है। आप पुलिस को बुला दो।"
रिसेप्शनिस्ट एक पल के लिए हैरान रह गया। उसकी आंखें बड़ी हो गईं और वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। प्रिया की बातों ने उसे स्तब्ध कर दिया था। उसने तुरंत अपने होश संभाले और फ़ोन उठाकर पुलिस को बुलाने लगा।
प्रिया वहीं खड़ी रही, एकदम शांत और स्थिर। उसे किसी भी चीज़ का डर नहीं था। अब उसके दिल में केवल संतोष था कि उसने अपनी बहन मीरा के लिए न्याय किया। उसके लिए अब पुलिस का आना और सजा पाना कोई बड़ी बात नहीं थी।
कुछ ही मिनटों में पुलिस होटल पहुँच गई। जब पुलिसकर्मी कमरे में पहुँचे, तो समीर की लाश वहाँ पड़ी थी, खून से लथपथ। प्रिया ने बिना किसी विरोध या भागने की कोशिश के पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उसने सारा अपराध कबूल कर लिया।
"मैंने समीर का खून किया है। वह इसका हक़दार था," प्रिया ने ठंडे लहजे में कहा।
पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और हथकड़ियों में बाँधकर थाने ले गए। प्रिया ने एक बार भी अपने फैसले पर पछतावा नहीं किया। उसके चेहरे पर शांति और सुकून की झलक थी, जैसे उसने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया हो।
प्रिया पर हत्या का मुकदमा चला। अदालत में उसने खुलकर कहा कि उसने यह खून क्यों किया था। वह समीर के धोखे और मीरा की आत्महत्या की पूरी कहानी बताई। लेकिन कानून की नज़र में हत्या हमेशा हत्या होती है। आखिरकार, अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी।
और ऐसे प्रिया मुझ जल्लाद चक्रधर की जेल में पहुँची।
कहानी सुनाते-सुनाते वह रोने लग गयी थी। मैंने उसे चुप करवाया और समझाया कि तुम हालात की मारी हो । फांसी से ठीक एक दिन पहले मैंने उससे आखिरी बार मिलने की इजाज़त मांगी। मैं चाहता था कि शायद उसकी कोई आखिरी ख़्वाहिश हो या कुछ कहना हो, लेकिन उसने सिर्फ़ एक ही बात कही, "मैंने जो किया, वह इंसाफ था। मुझे कोई पछतावा नहीं है।"
उसकी आवाज़ में न कोई घबराहट थी, न कोई हिचकिचाहट। ऐसा लगा जैसे वह मौत को गले लगाने के लिए तैयार हो चुकी थी।
अगले दिन, सुबह-सुबह फांसी का दिन आ गया। मैंने प्रिया को फांसी के तख्ते तक ले जाने की तैयारी की। जब मैं उसे फांसी के तख्ते पर लेकर गया, तो उसके चेहरे पर वही शांति थी। मैंने फांसी का फंदा उसके गले में डालते हुए उससे पूछा, "आखिरी ख्वाहिश?"
प्रिया ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, "बस ये दुआ है कि मेरी बहन मीरा जहां भी हो, उसे अब सुकून मिले। और मैं उससे जल्द ही मिलूंगी। उसने एक आखिरी बार आसमान की तरफ देखा और मुस्कुराई। शायद वह अब मीरा के पास जाने वाली थी।"
उसकी बातों में एक अजीब सी गंभीरता थी, जिसने मुझे कुछ पल के लिए रोक दिया। लेकिन फिर मैंने अपने हाथ से लीवर खींचा, और प्रिया का शरीर फांसी के फंदे से झूलने लगा।
मरने वाले का नाम: प्रिया
उम्र: 28 साल
मरने का समय: सुबह 7 बजकर 04 मिनट
उस दिन, जब मैं प्रिया की डेड बॉडी को देख रहा था, तो मुझे एहसास हुआ कि कुछ लोग मरकर भी जिंदा रहते हैं। प्रिया ने अपनी बहन के लिए इंसाफ लिया था, और वो अपने मकसद में कामयाब हुई थी।
प्रिया को अगर मीरा के मामले में कानून से इन्साफ़ मिल जाता तो शायद यह दिन न देखना पड़ता। कानून कोई हर बार सही नहीं होता। कानून को भी अपने अंदर झाँकने की ज़रूरत है.
मिलूंगा फिर किसी अपराधी की कहानी के साथ बहुत जल्द।
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