मैं हूँ जल्लाद चक्रधर। मैं ही हूँ वह जो समाज में अपराधियों की सजा का जिम्मा उठाता है। मेरे हाथों में मौत का फंदा है, लेकिन मेरी आत्मा में एक गहरी ज़िम्मेदारी का बोझ है। मैं एक ऐसा इंसान हूँ जो जीवन और मृत्यु के बीच की कड़ी को समझता हूँ। कई बार लोग मुझे नफरत की नज़र से देखते हैं, लेकिन मैं हर एक को सहानुभूति की नज़र से ही देखता हूँ।
उस अमीर क़ैदी औरत को भी मैं सहानुभूति की नज़र से ही देखता था, पहले ही दिन से। उसे तो नफरत थी मर्दों से। हालांकि मैंने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा था, पर हूँ तो मैं भी मर्द जात। लेकिन उसे समझने के लिए उससे बात करना बहुत ज़रूरी था।
फिर एक दिन मौका मिला जब उसका वकील उससे मिलने आया था। उससे मिलकर जाने लगी तो मैंने मज़ाक में कहा - कहाँ वकीलों के चक्कर में पड़ रही हो, ये तो किसी के नहीं होते।
उसने गुस्से में जवाब दिया - सारे वकील एक जैसे नहीं होते।
मैंने तुरंत कहा, "सारे मर्द भी एक जैसे नहीं होते।"
वह ठिठक गई, मेरी तरफ मुड़ी और फिर मैंने घंटों तक बातें की कविता से:
शहर में क़त्ल हो रहे थे और हर क़त्ल में एक बात जो पुलिस को बार-बार परेशान कर रही थी। लाश होती एक मर्द की और लाश के हाथ में होती एक परफ्यूम की बोतल। हर बार वही परफ्यूम। न कोई सुराग, न कोई गवाह। कई संदिग्धों को पकड़ा गया, मगर किसी से भी कोई ठोस जानकारी नहीं मिली। हत्याएं लगातार हो रही थीं, और पुलिस के पास वक्त कम था।
शहर में धीरे-धीरे खौफ फैलने लगा था। लोग रात को घरों से बाहर निकलने से डरने लगे थे। एक के बाद एक लाशें मिल रही थीं, और हर लाश के पास वही परफ्यूम — एक ट्रिगर की तरह, जो पुलिस को और ज्यादा उलझन में डाल देता था।
इंस्पेक्टर विकास, जो इस केस की जांच कर रहे थे, हर बार जब नयी हत्या की सूचना मिलती, तो वह अपनी टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंचते। इस बार भी कुछ अलग नहीं था। उन्हें एक और शव मिला — 35 साल का एक आदमी, एक फ्लैट में मरा हुआ। उसके हाथ में वही परफ्यूम था।
विकास ने बॉडी को ध्यान से देखा। "ये वही पैटर्न है," उसने अपनी टीम की ओर मुड़कर कहा। "लेकिन ये कातिल ये परफ्यूम हर बार क्यों छोड़ रहा है? इसका क्या मतलब हो सकता है?"
उसकी टीम में से एक कांस्टेबल ने कहा, "सर, मैंने इस ब्रांड का परफ्यूम पहले भी देखा है, ये बहुत महंगा है। सिर्फ खास लोग ही इसे इस्तेमाल करते हैं।"
विकास यह सुनकर कुछ सोचने लगा। "तो क्या कातिल भी खास लोगों के बीच से है? या फिर वो किसी खास तबके को निशाना बना रहा है?"
तभी एक और अधिकारी ने रिपोर्ट दी, "सर, हमने मरने वाले का बैकग्राउंड चेक किया है। ये आदमी भी अमीर तबके से था, जैसे बाकी सब पीड़ित।"
विकास की शक की सुई अब एक नई दिशा में घूमने लगी। सारे पीड़ित अमीर तबके के लोग थे, और हर कत्ल के बाद वही परफ्यूम।
क्या ये कोई इत्तेफ़ाक़ था, या किसी planning का हिस्सा?
कुछ दिन बाद एक और कत्ल हुआ। इस बार एक और जाने-माने बिज़नेसमैन का। उसी परफ्यूम की बोतल उसके हाथ में थी। विकास इस बार सीधा परफ्यूम बनाने वाली कंपनी की ओर मुड़ा।
कंपनी के मालिक से मिलने के बाद उसने एक दिलचस्प बात पता चली — ये परफ्यूम सिर्फ चुनिंदा ग्राहकों को ही बेचा जाता था, और उन चुनिंदा ग्राहकों की लिस्ट बहुत छोटी थी।
विकास ने उस लिस्ट पर नज़र डाली, और एक नाम उसके ध्यान में अटक गया — "कविता मेहता"।
कविता, एक मशहूर सोशलाइट, जो हर बड़ी पार्टी और इवेंट में नज़र आती थी। उसका नाम कई पीड़ितों के साथ जुड़ा था। वह उन पार्टियों में शामिल थी जहां ये लोग अक्सर जाते थे।
विकास ने तुरंत कविता को निगरानी में लेने का फैसला किया। उसे कविता के बारे में और जानना था। क्या वह केवल एक सामाजिक हस्ती थी, या उसके पीछे कोई गहरा राज़ छिपा था?
जब कविता की बैकग्राउंड की जांच शुरू हुई, तो कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आईं।
कविता मेहता, जो बाहर से बेहद ग्लैमरस और सफल नज़र आती थी, असल में अंदर से बिल्कुल अकेली थी। वह शहर के सबसे अमीर परिवारों में से एक से थी, लेकिन उसकी ज़िंदगी में सिर्फ तन्हाई थी। उसने कभी शादी नहीं की थी, और उसके बारे में जो अफवाहें थीं, वे उसे एक समाज की 'परफेक्ट' और 'मजबूत' महिला दिखाने का दिखावा करती थीं। लेकिन असलियत यह थी कि हर रात वह अपने बिस्तर में अकेली होती, और उसकी तन्हाई उसे धीरे-धीरे अंदर से खा रही थी।
कविता ने अपने जीवन में कई रिश्ते बनाए, लेकिन उनमें से कोई भी पक्का नहीं बन पाया। उसकी खूबसूरती और पैसे के पीछे कई लोग आकर्षित हुए, मगर कोई भी उसके दिल की गहराइयों तक नहीं पहुंच पाया। उसके लिए रिश्ते बस दिखावे तक सीमित रहे। बाहर की दुनिया के लिए वह एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर महिला थी, लेकिन उसके दिल में खालीपन था जिसे वह किसी भी कीमत पर भर नहीं पा रही थी।
कविता की दुनिया पैसों और पार्टियों से भरी थी, लेकिन जब रात होती और सब खामोश हो जाता, तब उसे अपनी असली हालत का अहसास होता। उसे महसूस होता कि उसके पास पैसा, शोहरत, और सब कुछ है, सिवाय एक सच्चे साथी के। धीरे-धीरे यह तन्हाई उसके दिमाग पर हावी होने लगी थी।
विकास और उसकी टीम कविता के जीवन की तहकीकात कर रहे थे। उसकी दिनचर्या, उसके संबंध, और सबसे ज़रूरी, उन लोगों के साथ उसके रिश्ते जिन्हें मारा गया था। हर पीड़ित से कविता का किसी न किसी तरह का जुड़ाव था—पार्टियों में, दोस्तों के तौर पर, या फिर बिज़नेस मीटिंग्स में। मगर यह सब महज एक इत्तेफाक था, या कुछ और?
विकास अब कविता पर गहरी नज़र रखे हुए था। एक दिन वह अचानक से पुलिस स्टेशन में पेश हुई। उसकी आंखों में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे वह कुछ छिपाने की कोशिश कर रही हो।
"इंस्पेक्टर, मुझे पता है कि आप मुझसे कुछ पूछताछ करना चाहते हैं," कविता ने कहा। उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास था, लेकिन विकास उसकी आंखों के पीछे छिपी घबराहट को भांप चुका था।
विकास ने बिना देर किए सीधा सवाल किया, "आप इन तमाम हत्याओं में पीड़ितों से जुड़ी हैं, और हर कत्ल के बाद उनके हाथ में वही परफ्यूम क्यों मिलता है? क्या आप कुछ जानती हैं?"
कविता ने एक पल के लिए चुप्पी साध ली, फिर उसने धीमे स्वर में कहा, "वो परफ्यूम...वो मेरी पहचान है। मैंने उन लोगों को वो परफ्यूम उपहार में दिया था, हर किसी को, जो मेरे करीब था। पर मैंने उन्हें नहीं मारा, इंस्पेक्टर।"
विकास उसकी बातों पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं था। "तो फिर कौन कर रहा है ये सब? अगर आप निर्दोष हैं, तो कोई और आपकी पहचान का इस्तेमाल क्यों कर रहा है?"
कविता की आंखों में आंसू छलक आए। उसने धीमी आवाज़ में कहा, "मैं तन्हा हूं, इंस्पेक्टर। मेरी ज़िंदगी में कोई भी सच्चा नहीं था। सब बस मेरे पैसे और शोहरत के पीछे थे। मैं उनसे प्यार करना चाहती थी, मगर उन्होंने मुझे सिर्फ इस्तेमाल किया।"
विकास ने देखा कि कविता की हालत मानसिक रूप से डांवाडोल हो रही थी। क्या उसकी तन्हाई ही इस हत्यारे के पीछे की वजह थी, या वह खुद ही इस खौफनाक खेल की कड़ी थी?
लेकिन हकीकत अभी सामने आनी बाकी थी।
इंस्पेक्टर विकास और उनकी टीम कविता से सवाल-जवाब कर ही रहे थे, तभी अचानक उनके फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ से एक कांस्टेबल की घबराई हुई आवाज़ आई, "सर, एक और लाश मिली है... वही पैटर्न। लाश के हाथ में फिर से वही परफ्यूम है।"
विकास का चेहरा एकदम गंभीर हो गया।
उसने तुरंत फोन काटा और अपनी टीम की ओर मुड़कर कहा, "कविता को यहीं रखो। हम इस लाश का मुआयना करने जा रहे हैं।"
कविता, जो पहले से ही बेहद परेशान थी, चुपचाप बैठी रही, उसकी आँखों में एक खालीपन सा झलक रहा था। पुलिस टीम तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गई।
जब विकास और उसकी टीम वहाँ पहुँचे, तो यह मामला और उलझ गया। लाश एक आलीशान होटल के कमरे में मिली थी। वह आदमी एक व्यापारी था, और उसकी पहचान राकेश वर्मा के नाम से हुई। उसका हाथ बिल्कुल उसी तरह परफ्यूम की बोतल को थामे हुए था जैसे बाकी पीड़ितों का। लाश के चेहरे पर वही ठंडा और भयभीत भाव था, जैसे मरने से पहले उसने कुछ बेहद डरावना देखा हो।
विकास ने तुरंत कमरे का बारीकी से निरीक्षण शुरू किया। उसने देखा कि कमरे में कोई जबरदस्ती घुसने के निशान नहीं थे, न ही कोई लड़ाई-झगड़े के निशान। कमरे में सब कुछ सामान्य था, सिवाय उस लाश और परफ्यूम की बोतल के।
उसने अपने साथी को इशारा किया, "यहाँ हर चीज़ को ध्यान से देखो। हमें कोई न कोई सुराग जरूर मिलेगा।"
फोरेंसिक टीम ने कमरे की पूरी जाँच की, लेकिन वहाँ से कुछ खास नहीं मिला। अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि यह हत्यारा बहुत चालाक और योजना के साथ काम कर रहा था। उसने कोई ऐसा निशान नहीं छोड़ा जिससे उसकी पहचान हो सके।
लेकिन इस बार एक चीज़ अलग थी — होटल के सीसीटीवी कैमरों में कुछ संदिग्ध फुटेज मिले थे। विकास ने फुटेज की समीक्षा की। कैमरे में एक शख्स को होटल के अंदर आते हुए देखा गया, जिसने चेहरे को पूरी तरह से ढक रखा था। वह सीधा राकेश वर्मा के कमरे की ओर गया था और कुछ देर बाद वहाँ से निकल गया।
विकास ने फुटेज को ध्यान से देखा और अचानक एक बात उसके दिमाग में आई — हत्यारा सिर्फ अमीर लोगों को ही निशाना बना रहा था, और वह परफ्यूम हर लाश के हाथ में एक संदेश के रूप में छोड़ा जा रहा था। क्या यह कोई व्यक्तिगत दुश्मनी थी, या फिर कोई ऐसा खेल जिसे सिर्फ मारने वाला और मरने वाले ही जानते थे?
विकास ने सीसीटीवी फुटेज को ध्यान से देखने के बाद महसूस किया कि यह मामला किसी साधारण हत्यारे का नहीं था। यह कोई बहुत ही संगठित और शातिर शख्स था, जो अपना काम बड़ी सफाई से कर रहा था। लेकिन एक बात उसे अब भी परेशान कर रही थी — कविता का इसमें क्या रोल था? क्या वह सिर्फ एक संयोग था कि उसके दिए हुए परफ्यूम हर लाश के हाथ में थे, या फिर वह भी इस साजिश का हिस्सा थी?
विकास ने तुरंत अपनी टीम से कहा, "हमें कविता पर नज़र रखनी होगी। हो सकता है कि वह हत्यारे के बारे में ज्यादा जानती हो, जितना वह बता रही है।"
पुलिस का शक पूरी तरह से गलत नहीं था कि कविता मेहता कुछ न कुछ ज़रूर जानती थी। मगर असल सवाल यह था — कविता क्या छिपा रही थी? उसकी हरकतों और जीवनशैली से कुछ ऐसा ज़ाहिर हो रहा था कि वह कत्ल के इन खेलों से अनजान नहीं हो सकती थी। लेकिन पुलिस के हाथ बंधे हुए थे। कविता की सामाजिक हैसियत और राजनीतिक पहुँच इतनी ऊँची थी कि उससे ज़ोर-ज़बरदस्ती करना संभव नहीं था। अगर पुलिस ने कोई गलती की, तो मामला पूरी तरह से उल्टा पड़ सकता था, और इस केस की सुलझने की रही-सही उम्मीद भी खत्म हो सकती थी।
इंस्पेक्टर विकास अच्छी तरह जानता था कि इस मामले में धैर्य और योजना से काम लेना होगा। उन्होंने कविता से अब तक जितने सवाल किए थे, उससे साफ था कि वह मानसिक और भावनात्मक रूप से परेशान थी, मगर खुलकर कुछ नहीं बोल रही थी। विकास को यकीन था कि कविता के दिल में ज़रूर कोई ऐसा राज़ था, जो इन हत्याओं से जुड़ा हुआ था, मगर उसे तोड़ना आसान नहीं था।
पुलिस का हर कदम अब बेहद सतर्कता से उठाया जा रहा था। कविता को बुलाने या सीधे तौर पर उस पर आरोप लगाने का मतलब था कि केस को पूरी तरह से खत्म कर देना। इसलिए, विकास ने एक और तरीका अपनाने का फैसला किया — कविता की हरकतों पर निगरानी रखना और उसकी गतिविधियों को बारीकी से ट्रैक करना।
कुछ दिन बीते, और कविता की जिंदगी सामान्य लगने लगी। वह वही पार्टियों में जाती, लोगों से मिलती, और फिर अकेली अपने आलीशान बंगले में लौट आती। लेकिन विकास की टीम उसकी हर गतिविधि पर पैनी नज़र रखे हुए थी।
इसी दौरान, एक और घटना ने मामले को और उलझा दिया। कविता ने अचानक अपने कुछ पुराने दोस्तों से मिलना बंद कर दिया। वह उन लोगों से दूरी बना रही थी, जो कभी उसके बेहद करीब थे। विकास को यह बदलाव बहुत अजीब लगा। आखिर कविता उन लोगों से क्यों कट रही थी, जिन्हें वह सालों से जानती थी?
कुछ समय बाद, पुलिस को एक ऐसा सुराग मिला, जो पूरी कहानी को एक नई दिशा में ले गया। विकास के एक भरोसेमंद मुखबिर ने जानकारी दी कि कविता का नाम एक सीक्रेट सोशल क्लब से जुड़ा था, जहाँ सिर्फ शहर के सबसे अमीर और रसूखदार लोग शामिल होते थे। यह क्लब केवल सदस्यों के लिए था, और वहाँ अंदर क्या होता है उसके बारे में बाहरी दुनिया को कुछ भी पता नहीं था।
इस क्लब की जानकारी मिलते ही विकास को एहसास हुआ कि कहानी की जड़ें कहीं गहरी थीं। उसने अपने एक सीनियर अफसर से बातचीत की और उन्हें विश्वास दिलाया कि इस क्लब की गुप्त जाँच शुरू की जानी चाहिए। सीनियर अफसर पहले तो हिचकिचाए, मगर विकास के तर्कों ने उन्हें मानने पर मजबूर कर दिया। इस बीच, कविता के जीवन में और बदलाव आने लगे। वह अचानक से शहर के बड़े आयोजनों में कम नज़र आने लगी। कुछ ऐसी बातें सामने आने लगीं जिनसे विकास को यकीन हो गया कि कविता ज़रूर किसी बड़े राज़ को छिपा रही थी।
इसी बीच, एक रात अचानक कविता ने पुलिस को खुद बुलाया। उसने कहा, "मुझे खतरा महसूस हो रहा है... मुझे लगता है कि अब मेरी बारी है।"
क्या यह कविता की कोई नई चाल थी या सच में ऐसा था?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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