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मेल्विन की ज़िंदगी अब धीरे-धीरे पटरी पर आ रही थी। डिकॉस्टा के साथ हुए उस भयानक अनुभव की परछाई अभी भी उसके मन में थी, पर उसे मिस्टर ओझा जैसे दोस्त का साथ मिला था जिसने उसे इस सबसे उबरने में मदद की थी। ‘मी’ भी अब काफी हद तक ठीक हो चुकी थी, और उसके चेहरे पर अब एक नई चमक दिख रही थी। मेल्विन के घर के शांत माहौल और उसकी माँ के प्यार ने ‘मी’ को एक नई ऊर्जा दी थी। वह अब घर के बगीचे में टहलने लगी थी, फूलों की खुशबू उसे सुकून देती थी।

हाल ही में, ‘मी’ ने 'नवजीवन' नामक एक एनजीओ द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। यह एक रचनात्मक प्रतियोगिता थी, जिसमें लोगों को अपने जीवन के अनुभवों और सपनों को साझा करना था। मेल्विन ने ही उसे इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था, यह सोचकर कि शायद इससे ‘मी’ को अपने दर्द से बाहर आने में मदद मिलेगी। ‘मी’, जो अपनी पिछली ज़िंदगी के भयानक अनुभवों से जूझ रही थी, इस प्रतियोगिता में भाग लेकर खुद को अभिव्यक्त कर पाई। उसने अपनी भावनाओं को शब्दों और रंगों के माध्यम से उतारा, जो उसके अंदर दबे हुए थे। और सबसे बड़ी बात, उसने यह प्रतियोगिता जीत ली थी।

पुरस्कार वितरण समारोह में, जब ‘मी’ का नाम पुकारा गया, तो उसकी आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उसने मेल्विन की ओर देखा, जिसने उसे यह मौका दिया था, उसे फिर से जीने की वजह दी थी। मेल्विन, जिसे याद था कि उसने डिकॉस्टा को बहकाने के लिए 'कॉम्पिटिशन' और 'एनजीओ' की कहानी गढ़ी थी, ‘मी’ को यूँ सच में किसी प्रतियोगिता में जीतते देख थोड़ा हैरान भी था और बहुत खुश भी। उसे लगा कि किस्मत ने उसकी गढ़ी हुई कहानी को एक खूबसूरत हकीकत में बदल दिया था। ‘मी’ ने अपना पुरस्कार स्वीकार किया, और मंच पर खड़े होकर उसने महसूस किया कि वह कितनी ख़ास है। तालियों की गड़गड़ाहट उसके कानों में गूँज रही थी, और उसे लगा जैसे यह जीत उसके पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगा रही हो। यह जीत उसके लिए सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत थी, एक ऐसी शुरुआत जहाँ उसे अपनी पहचान मिली थी, एक ऐसी पहचान जो डिकॉस्टा के चंगुल में कहीं खो गई थी। वह अब सिर्फ एक 'उत्पाद' नहीं थी, बल्कि एक विजेता थी, एक ऐसी महिला जिसने अपने दर्द को अपनी ताकत में बदल दिया था।

इधर, मेल्विन के ऑफिस में उसके दोस्त लक्ष्मण और पीटर उसकी रेबेका के साथ होने वाली शादी को लेकर बेहद उत्साहित थे। मेल्विन ने उन्हें फ़ोन पर ही अपनी कोर्ट मैरिज के बारे में बताया था, और तब से वे दोनों उसे छेड़ने और बधाई देने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे थे। उनकी खुशी मेल्विन के लिए भी सुकून भरी थी, क्योंकि उन्हें देखकर उसे लगता था कि ज़िंदगी में सब कुछ सामान्य हो रहा है।

एक दोपहर, जब मेल्विन लंच ब्रेक में अपने ड्रॉइंग टेबल पर कुछ स्केच ठीक कर रहा था, लक्ष्मण और पीटर उसके पास आए।

"ओए दूल्हे राजा! आजकल तो तुम हमें भूल ही गए हो," पीटर ने मज़ाक में कहा, उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी। पीटर स्वभाव से मज़ाकिया था और हमेशा मेल्विन को छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ता था। “हमें लगा कि तुम अब सीधे हनीमून से ही वापस आओगे।”

लक्ष्मण ने पीटर को कोहनी मारी। "शांत हो जा, पीटर। मेल्विन को छेड़ने का यही समय नहीं है।" फिर उसने मेल्विन के कंधे पर हाथ रखा। "हम सच में बहुत खुश हैं तुम्हारे लिए, दोस्त। आख़िरकार रेबेका ने तुम्हें लाइन पर ला ही दिया! टीम दोनों की शादी के बीच अड़चने ही इतनी आ रही थी कि हमने उम्मीद ही छोड़ दी थी। हम तो सोच रहे थे कि तुम कभी शादी करोगे भी या नहीं।" उसकी आवाज़ में सच्ची खुशी थी, जो उसकी आँखों में साफ झलक रही थी।

मेल्विन मुस्कुराया। "तुम दोनों भी न! ऐसा कुछ नहीं है। बस, सही समय आ गया था।" उसने अपनी पेंसिल को कागज़ पर घुमाते हुए कहा।

"सही समय!" पीटर हँसा, उसकी हँसी पूरे ऑफिस में गूँज गई।

लक्ष्मण ने फिर से पीटर को कोहनी मारी, पर खुद भी मुस्कुरा रहा था। "बस कर, पीटर। मेल्विन के सामने उसकी होने वाली बीवी की बुराई मत कर।" फिर उसने मेल्विन की ओर देखा। "हम सच में बहुत खुश हैं तुम्हारे लिए, दोस्त। रेबेका बहुत अच्छी लड़की है। तुम दोनों एक-दूसरे के लिए बने हो।"

 उसकी आवाज़ में एक भाईचारा था, जो मेल्विन को हमेशा पसंद आता था।

"हाँ, यार," पीटर ने कहा, अब उसकी आवाज़ में थोड़ी गंभीरता थी, "हम हमेशा से चाहते थे कि तुम दोनों एक हो जाओ। यह सुनकर बहुत खुशी हुई कि तुम लोग कोर्ट मैरिज कर रहे हो। हमें बुलाया है न? वरना हम सीधे तुम्हारे घर पहुँच जाएंगे।"

मेल्विन ने सिर हिलाया। "हाँ, बिल्कुल! तुम दोनों के बिना कैसे हो सकती है। तुम दोनों मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो।"

"तो फिर पार्टी कब दे रहे हो?" पीटर ने फिर से अपनी मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, उसकी आँखों में चमक थी। "हमें पता है कि तुम बड़े कंजूस हो, लेकिन अपनी शादी की पार्टी तो देनी पड़ेगी! हमें तो लगता है कि तुम हमें सिर्फ पानी पिलाकर भेज दोगे।"

मेल्विन हँस पड़ा। "ज़रूर, ज़रूर। पहले शादी तो हो जाने दो। और पार्टी ऐसी होगी कि तुम दोनों याद रखोगे।"

लक्ष्मण और पीटर दोनों मेल्विन की खुशी देखकर खुश थे। उन्हें लगा कि मेल्विन की ज़िंदगी में अब सब कुछ परफेक्ट हो रहा था – एक अच्छी नौकरी, प्यार करने वाली रेबेका, और एक सुरक्षित घर जहाँ ‘मी’ भी अब खुश थी। उन्हें लगा कि मेल्विन ने आखिरकार अपनी ज़िंदगी में वो सुकून पा लिया था जिसकी उसे तलाश थी। मेल्विन को भी लगा कि उसकी ज़िंदगी में अब प्यार और स्थिरता थी, जो उसे एक नई ताकत दे रही थी, और उसे किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार कर रही थी।

यहाँ खुशियों का माहौल था और वहीं दिल्ली में।

डिकोस्टा का शांत पड़ा फोन अचानक से बीप-बीप करने लगा जिससे उसे तुरन्त समझ आ गया कि वो शख्सियत, न जाने कितने दिनों बाद यहाँ उससे मिलने आ रहा है। सिंडिकेट का चीफ खुद उससे मिलने आ रहा था। 

दिल्ली से अभी-अभी डिकॉस्टा का बॉस, उस सिंडिकेट का चीफ, उस वीरान वेयरहाउस में पहुँचा था। उसकी मौजूदगी से पूरे माहौल में एक खौफ फैल गया था। डिकॉस्टा उसके सामने एक आज्ञाकारी नौकर की तरह खड़ा था, हालाँकि उसके चेहरे पर भी हल्का तनाव दिख रहा था। बॉस ने मिस्टर वर्मा को एक खंभे से बंधा हुआ देखा। मिस्टर वर्मा का चेहरा डर से पीला पड़ चुका था और वह लगातार रहम की भीख माँग रहा था।

"मिस्टर वर्मा," बॉस की आवाज़ कमरे में गूँजी, "तुम्हारे कारण मुझे नुकसान हुआ है। तुमने उस ‘मी’ नाम के 'माल' को हाथ से जाने दिया, और मेल्विन को बेवकूफ बनाकर छोड़ दिया।" उसकी आवाज़ में गुस्सा और निराशा साफ झलक रही थी।

मिस्टर वर्मा गिड़गिड़ाए, "माफ़ कर दीजिए, सर! मैंने पूरी कोशिश की थी। मेल्विन बहुत चालाक निकला। उसने मुझे धोखे में रखा।"

बॉस ने एक ठंडी हँसी हँसी। "चालाक? या तुम अक्षम हो?" उसने अपने हाथ में एक छोटी, चमचमाती पिस्तौल निकाली। डिकॉस्टा ने एक पल के लिए अपनी नज़रें झुका लीं। बॉस ने अपने आदमियों को इशारा किया। दो मोटे ताजे आद’मी’ तुरंत आगे आए और मिस्टर वर्मा के सिर पर अलग-अलग फल, जैसे सेब, संतरा और तरबूज़ रखने लगे।

मिस्टर वर्मा की आँखें फटी रह गईं। वह डर से काँप रहा था। "सर, नहीं! प्लीज़! मुझे माफ़ कर दीजिए! मैं आपकी सारी भरपाई कर दूँगा!" वह लगातार रहम की भीख माँग रहा था, उसके आँसुओं से उसका चेहरा भीग गया था।

बॉस ने पिस्तौल उठाई और निशाना साधा। "यह तुम्हारी अक्षमता की सज़ा है, मिस्टर वर्मा। एक सबक कि जब मैं कुछ कहता हूँ, तो वह होना चाहिए।" उसने पहला निशाना तरबूज़ पर साधा, और एक धमाके के साथ तरबूज़ फट गया, उसके टुकड़े मिस्टर वर्मा के चेहरे पर आ गिरे। मिस्टर वर्मा चीख पड़ा। बॉस ने मुस्कुराते हुए अगला निशाना लगाया। उसकी आँखें बेहद ठंडी थीं, जिनमें कोई दया नहीं थी।

डिकॉस्टा खामोशी से यह सब देख रहा था, यह जानता हुए कि बॉस किसी को भी नहीं बख्शता, खासकर जब बात उसके कारोबार की हो। 

बॉस ने पिस्तौल नीचे की। "मुझे तुम्हें मारना नहीं है, मिस्टर वर्मा। तुम अभी भी मेरे काम आ सकते हो।" उसने अपने आदमियों को इशारा किया। "इसे खोल दो।"

मिस्टर वर्मा को आज़ाद किया गया। वह ज़मीन पर गिर पड़ा, हाँफ रहा था, उसके शरीर में जान नहीं बची थी। "धन्यवाद, सर! धन्यवाद!"

बॉस ने अपनी पिस्तौल अपनी बेल्ट में डाली। "तुम्हें एक और मौका मिल रहा है, मिस्टर वर्मा। लेकिन यह तुम्हारी आखिरी गलती होगी। उसे मेरे पास लाओ। और इस बार, अगर तुमने कोई गलती की, तो यह फल नहीं, तुम्हारी हड्डियाँ होंगी जो टूटेंगी।" उसकी आवाज़ में एक जानलेवा चेतावनी थी।

 "जाओ!"

मिस्टर वर्मा ने बिना एक पल भी रुके, हाँफते हुए वेयरहाउस से बाहर की ओर दौड़ लगा दी।

डिकॉस्टा ने एक गहरी साँस ली, उसके चेहरे पर मिली-जुली भावनाएँ थीं – इतने दिनों बाद बॉस को देखकर खुशी थी, लेकिन उसके डर को वह छिपा नहीं पा रहा था। "बॉस! आपका स्वागत है। मैं जानता था आप आएँगे।"

बॉस ने डिकॉस्टा की ओर देखा, उसकी आँखों में कोई भाव नहीं था। "तुम्हें याद है न, डिकॉस्टा, मैंने तुम्हें यह पूरा सेटअप किसलिए दिया था?"

"हाँ, बॉस। माल जुटाने के लिए। उच्च गुणवत्ता वाले माल के लिए।" डिकॉस्टा ने तुरंत जवाब दिया।

"और क्या वह माल मिल रहा है?" बॉस ने सवाल किया, उसकी आवाज़ में हल्का कटाक्ष था।

डिकॉस्टा ने ज़मीन की ओर देखा। "हाँ, बॉस। सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा है। पिछले सौदे में थोड़ी गड़बड़ हो गई थी, लेकिन हमने उसे संभाल लिया है।"

"गड़बड़?" बॉस ने धीरे से दोहराया। "क्या वह गड़बड़ थी, या तुम्हारी नाकामी थी?"

डिकॉस्टा के माथे पर पसीना आ गया। "नहीं, बॉस। वो एक धोखेबाज ग्राहक था। जो थोड़ा चालाक और शातिर था।"

बॉस ने एक लंबी साँस ली। "ठीक है। मुझे पिछली बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे सिर्फ भविष्य चाहिए।" उसने डिकॉस्टा की ओर देखा, उसकी आँखों में एक नई चमक थी। "क्या तुम तैयार हो, डिकॉस्टा? हमारी अगली और सबसे बड़ी डील के लिए।"

डिकॉस्टा की आँखें चौड़ी हो गईं। वह जानता था कि बॉस जब 'सबसे बड़ी डील' की बात करता है, तो इसका मतलब क्या होता है। "हाँ, बॉस! मैं पूरी तरह तैयार हूँ।"

"बढ़िया!" बॉस ने मुस्कुराते हुए कहा। "तुम्हें पता है कि हमारे पास एक नया खरीदार है। बहुत बड़ा खरीदार। इतना बड़ा कि अगर यह डील हो गई, तो हम इस खेल के राजा बन जाएँगे।" उसने एक पल के लिए डिकॉस्टा को देखा। "और इस बार, हमें किसी भी कीमत पर कोई गलती नहीं करनी है।"

"नहीं होगी, बॉस। मैं वादा करता हूँ," डिकॉस्टा ने दृढ़ता से कहा।

बॉस ने अपने हाथ में एक टैबलेट निकाला और उस पर कुछ तस्वीरें दिखाईं। डिकॉस्टा ने तस्वीरों को देखा, और उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव आया – हैरानी और लालच का मिश्रण।

"यह हमारा अगला प्रोडक्ट है, डिकॉस्टा," बॉस ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी चमक थी। "और इसे हासिल करने के लिए, हमें मुंबई में कुछ गहरी खुदाई करनी होगी।" उसने मुस्कुराते हुए टैबलेट की स्क्रीन को बंद कर दिया। डिकॉस्टा के भी चेहरे पर एक मुस्कान आ पड़ी। 

यह एक स्पष्ट संदेश था मेल्विन के लिए भी, कि अब खेल और ज़्यादा खतरनाक हो चुका था। 

और इसका पता मेल्विन को जल्द ही चलने वाला था। एक शांत दोपहर, जब मेल्विन अपने ऑफिस में बैठा मैगज़ीन के एक नए लेआउट पर काम कर रहा था, उसके कंप्यूटर पर एक अनजान ईमेल पॉप-अप हुआ। सब्जेक्ट लाइन में सिर्फ एक शब्द था: "याद?" मेल्विन ने पहले इसे स्पैम समझा, लेकिन फिर पता नहीं क्यों, उसने उसे खोलने का फैसला किया।

जैसे ही उसने ईमेल खोला, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। ईमेल में कोई टेक्स्ट नहीं था, बस एक अटैचमेंट था – एक धुंधली सी तस्वीर। तस्वीर में एक पुरानी, वीरान दिखने वाली वेयरहाउस थी, ठीक वैसी ही जहाँ डिकॉस्टा का ठिकाना था। और तस्वीर के ठीक नीचे, छोटे अक्षरों में एक तारीख और समय लिखा था: 26 मई, रात 9 बजे।

मेल्विन का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसे पता था कि यह कोई साधारण ईमेल नहीं है। यह एक सीधा संदेश था, एक चुनौती थी, और एक याद दिलाना था कि उसका अतीत अभी मरा नहीं था। डिकॉस्टा, या उसका कोई शागिर्द, अभी भी उसे भूला नहीं था। इस तस्वीर में एक धमकी छिपी थी, और तारीख-समय किसी आने वाले टकराव का संकेत दे रहे थे।

उसके दिमाग में ‘मी’ का चेहरा कौंध गया, फिर रेबेका की मुस्कुराती हुई तस्वीर। उसने इतनी मेहनत से सब कुछ ठीक किया था, अपनी ज़िंदगी को एक नया मोड़ दिया था। लेकिन ऐसा लग रहा था कि उसका अतीत उसे इतनी आसानी से आज़ादी नहीं देने वाला था।

वह अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसके सहकर्मी उसे अजीब नज़र से देख रहे थे, क्योंकि उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। लक्ष्मण और पीटर ने उसे देखा, पर मेल्विन ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। उसे पता था कि यह शांत जीवन की समाप्ति का संकेत था, और उसे एक बार फिर उस अँधेरी दुनिया में लौटना होगा जिससे वह भाग रहा था।

क्या मेल्विन इस चुनौती का सामना करेगा? क्या वह अपने और अपने करीबियों के लिए इस नए खतरे से लड़ पाएगा? जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग। 

 

 

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