डोरबेल बजते ही मृत्युंजय के चेहरे पर छाया ग़म मानो पल भर में गायब हो गया। मृत्युंजय हड़बड़ी में दरवाज़ा खोलता है मानो दरवाज़े की उस ओर नेहा खड़ी हो. मगर मृत्युंजय को पता है की इस कल्पना को हक़ीक़त में तब्दील करने में अभी बहुत वक़्त है. दरवाज़े के उस पार नेहा तो नहीं, पर नेहा तक पहुंचने का जरिया ज़रूर है.
मृत्युंजय दरवाजा खोलता है, और सामने उसका पुराना दोस्त राघव खड़ा होता है। राघव को देखते ही मृत्युंजय के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी और बिना कुछ कहे और सोचे मृत्युंजय ने आगे बढ़कर राघव को ज़ोर से गले लगा लिया.
मृत्युंजय- अरे यार, तुमने कितना वेट करवाया मुझे। मैं तुमसे कितनी बेसब्री से मिलना चाहता था। बहुत अच्छा हुआ की तुम आ गए. आओ अंदर आओ प्लीज़
राघव- अरे भाई, तुम मुझे बुलाओ और मैं तुमसे मिलने न आऊं। तुम्हारी कॉल से ही मै समझ गया था की कुछ तो गड़बड़ है। किसी बात से तुम बेहद परेशान हो।
राघव की बात सुन मृत्युंजय का दिल एक बार फिर भर आता है। उसकी आँखों में आंसू भर उठते है। वह समझ नहीं पाता कि अब आखिर इतना सब जो उसके दिल में था, वह अपने दोस्त के आगे कैसे बोले। मृत्युंजय का चेहरा देख राघव उसके कंधे पर हाथ रख उसे सहानुभूति देने लगा। मृत्युंजय के दिमाग़ में बस एक ही ख्याल है कि वह किसी भी तरह नेहा को वापस घर ले आये। उसके सामने जो शख्स खड़ा है, वह सिर्फ एक दोस्त ही नहीं, बल्कि शहर का सबसे अच्छा प्राइवेट डिटेक्टिव है। मृत्युंजय को यकीन है, कि अगर कोई नेहा का पता लगा सकता है, तो वह राघव ही है।
मृत्युंजय सहमी और धीमी आवाज़ में अपने दोस्त को सब बताना शुरू करता है।
मृत्युंजय (सेहमी और धीमी आवाज़ में): "यार, राघव .. मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए। तुम्हारे अलावा और किसी पर भरोसा नहीं है। मेरी पत्नी नेहा… वह मुझसे दूर हो गई है। और मैं… मैं उसे वापस लाना चाहता हूँ।"
डिटेक्टिव राघव थोड़ा सीरियस होकर मृत्युंजय की बात को गौर से सुनने लगा। वह समझता है कि मृत्युंजय के लिए यह केस सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि उसके जीवन का एक अहम रिश्ते को वापस पाने का एक आखिरी मौका है। मृत्युंजय की आखों में छुपी बेबसी राघव को साफ़ दिखाई पड़ रही थी. मृत्युंजय की ऐसी हालत देख राघव भी शॉकेड था, कॉलेज में मृत्युंजय हमेशा इमोशंस से दूर सिर्फ पढाई पर फोकस करता था, और आज अपनी पत्नी के लिए मृत्युंजय की ये तड़प…
मृत्युंजय: जिस दिन नेहा यहाँ से गयी उस दिन हमारी लड़ाई हुई थी। वह बहुत गुस्से में थी, और फिर बस बिना कुछ कहे ही चली गई। मैं… मैं उसकी नाराजगी को समझ नहीं पाया, मैं उससे माफ़ी मांगना चाहता हूँ, उससे एक और चांस की भीख माँगना चाहता हूँ , लेकिन… वह कहाँ है ये मुझे नहीं पता।"
मृत्युंजय के चेहरे पर नेहा से बिछड़ने का गहरा दर्द साफ़ झलक रहा था। उसकी हालत देखकर कोई भी समझ सकता था कि वह कितनी बड़ी तकलीफ़ से गुज़र रहा है।
अपने दोस्त को इतने टूटे हुए हाल में देखकर, राघव ने एक गहरी सांस ली। उसके भीतर एक जज़्बा जागा, एक कमिटमेंट कि वह हर हाल में अपने दोस्त की मदद करेगा। उसने अपने पुराने दोस्त को पहले कभी इतनी बेबसी में नहीं देखा था। राघव ठान चुका था कि वह नेहा को वापस लाने के लिए हर तरह की कोशिश करेगा, और मृत्युंजय की टूटी ज़िंदगी को फिर से जोड़ने में उसकी मदद करेगा।
ये पूरी बात सुनने के बाद अब राघव को इतना तो समझ आ गया था कि ये केस आसान नहीं होगा। इसमें मेहनत और सूझबूझ के साथ काम करना बेहद ज़रूरी है।
राघव- मृत्युंजय, मैं तुम्हें यह वादा करता हूँ, मैं नेहा का पता लगा कर रहूँगा। तुम इतना उदास मत हो। जो भी कुछ होगा, उसका हल जरूर निकालेंगे।"
राघव की बात सुन मृत्युंजय के चेहरे पर थोड़ा सुकून दिखा, जैसे उसके मन से कोई बड़ा बोझ उतर गया हो। उसने राघव को गले से लगा लिया। मृतयुंजय् ने यह तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह एक दिन अपनी ज़िन्दगी की इतनी बड़ी उलझन में अपने दोस्त के आगे ऐसे खड़ा होगा। उसे यह यकीन है कि अगर कोई उसके लिए नेहा का पता लगा सकता है, तो वह उसका पुराना दोस्त ही है।
मृत्युंजय: “यार, तुमने इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाई है… मैं बस यही चाहता हूँ कि नेहा वापस आ जाए। तुमने सच में मेरा साथ दे कर मेरा बहुत बड़ा बोझ हल्का कर दिया है।”
डिटेक्टिव राघव के लिए यह केस सिर्फ एक प्रोफेश्न्ल असाइनमेन्ट नहीं, बल्कि एक निजी मामला था। वह थोड़ी देर तक मृत्ययंजय के साथ हंसी-मज़ाक के बाद, अपने काम में लगने का फैसला करता है। वही मृत्युंजय के मन में एक आशा की किरण जग उठी, एक आस... नेहा को वापस पाने की।
इतनी देर में राघव नेहा और मृत्युंजय के कमरे से लेकर उसके पूरे घर की छानबीन शुरू करता है। एक-एक सुराग ढूंढता है। राघव को कहीं न कहीं इस बात पर शक था कि नेहा किसी ऐसी जगह गई होगी जहाँ मृत्युंजय उसे ना खोज पाए, लेकिन आखिर ऐसी कौन सी जगह हो सकती है? नेहा का कोई दोस्त? कोई रिश्तेदार? या उसके पेरेंट्स का घर? ये तमाम सवाल राघव के मन में मानो तूफान की तरह घूम रहे है।
राघव- देखो मृत्युंजय मुझे ये बताओ की नेहा ने आखिरी बार तुम्हे कुछ कहा था ? या तुम्हे शक है की वो कहाँ जा सकती है ? उसकी कोई फेवरेट प्लेस ?
मृत्युंजय (कुछ देर सोचता है )- नहीं राघव, ऐसी कोई ख़ास जगह तो नहीं। हाँ नेहा को घूमने का शौक है ,उसके दोस्त है लेकिन किसके यहाँ होगी , ये बताना मुश्किल है।
मृत्युंजय की आंखें एक पल के लिए उस दिन की ओर मुड़ जाती है जब उनकी लड़ाई हुई थी। नेहा की वह मायूस और थकी हुई आंखें उसे आज भी याद है, जब वह मृत्युंजय के गुस्से और जिद्दी बर्ताव से तंग आकर उसे छोड़कर चली गई थी।
मृत्युंजय के चेहरे पर पछतावे और दर्द की गहरी लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं। मृत्युंजय अपने दोस्त के लिए, वह उस दिन की हर एक बात याद करने की कोशिश करता है।
पर हर बार, उसकी यादें धुंधली पड़ जाती है। जैसे कोई अधूरी कहानी जिसे वह पूरा करना चाहता हो, लेकिन कर नहीं पाता। मृत्युंजय ने अपनी इस नाकामी से फ़्रस्ट्रेट होकर अपना सर पकड़ लेता है।
राघव (समझते हुए)- कोई बात नहीं, परेशान मत हो। कुछ न कुछ ज़रूर पता लगेगा। मैं वादा करता हूँ। अब मैं चलता हूँ। तुम्हे अगर नेहा से जुडी कोई भी ख़ास बात याद आये तो मुझे फ़ौरन फोन करना।
मृत्युंजय- ठीक है !
जैसे ही राघव मृत्युंजय के घर से निकलता है, उसके चेहरे पर एक नई उम्मीद और एक नए मिशन का जज़्बा नजर आने लगता है। मृत्युंजय भी अपने दोस्त पर भरोसा करके अब एक लंबे वक्त के बाद थोड़ा हल्का महसूस करता है। उसके ज़ेहन में अब एक ही आस है कि बस वह जल्दी से नेहा का पता लगा ले और नेहा उसके पास वापस लौट आए।
उस पल, मृत्युंजय को एहसास होता है कि उसका अपना ऐटिट्यूड और फैसले उसके रिश्ते पर कितने भारी पड़े है। पर अब वह अपनी गलतियों को सुधारने के लिए तैयार है, यही उम्मीद के साथ वह अपने दोस्त को अलविदा कहता है और अंदर चला जाता है। राघव अब अपने मिशन में लग जाता है। एक-एक कर कड़ियाँ बुनता है। वह दिमाग़ में अपने प्लान्स ऑर्गनाइज़ करता है। वही मृत्युंजय घर के अंदर उदास और अकेला खड़ा रहता है। वह जानना चाहता है कि नेहा कैसी है, कहाँ है। मृत्युंजय के लिए एक पल तक काटना मुश्किल था, लेकिन अब उसकी एक ही उम्मीद है, वो भी उसका दोस्त।
मृत्युंजय का मन भटक रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे वह एक लंबे सफर के बीच रुक गया हो। वह सोचता है कि अगर नेहा के उससे दूर जाने की वजह से ही वह अपनी गलतियों को समझ पाया है, तो शायद यही एक आखिरी मौका हो अपनी गलतियों को सुधारने का। उसका मन करता है कि नेहा वापस आए, लेकिन वह जानता था कि सिर्फ चाहने से कुछ नहीं होगा। उसे ये साबित करना होगा कि वह अपने रिश्ते को समझता है और उसकी इज़्ज़त करता है, ये सब सोचते हुए वो मन ही मन सोचता है कि-
मृत्युंजय(खुद से ): "नेहा... मैं तुम्हें कभी इतना हर्ट नहीं करना चाहता था। अगर तुम सुन पाती तो तुम समझ पाती कि मैं तुम्हें दिल से चाहता हूँ।"
अब राघव ने भी अपने काम की शुरुआत कर दी है। वह नेहा के पुराने दोस्तों, उसके परिवारवालों, और उन सभी जगहों पर नज़र रखता है जहाँ नेहा के जाने की उम्मीद थी। धीरे-धीरे, राघव को कुछ क्लू मिलते है, जो कहीं न कहीं नेहा के ट्रिप की ओर इशारा कर रहे है ।
एक दिन का समय बीता और राघव को अब एक नया क्लू मिला, एक ऐसा क्लू जो बहुत कुछ बिगाड़ या बना सकता था। राघव ने मृत्युंजय को कॉल किया।
राघव: "मृत्युंजय, मैंने एक ट्रैकर लगा दिया है... शायद तुम्हारे जो सबसे करीबी लोग है, वे कुछ छुपाने की कोशिश कर रहे है।"
राघव की ये बात सुनकर मृत्युंजय को झटका सा लगता है. आखिर ऐसा क्या चल रहा है जो राघव इस तरह की बातें बोल रहा। उसके दिमाग़ में तुरंत सवाल घूम जाते है – यह किस तरह का गेम चल रहा है? नेहा के दोस्त और परिवार वाले क्या छिपा सकते है?
मृत्युंजय: "क्या मतलब? तुम क्या कह रहे हो?"
राघव- "मैं तुम्हें जल्द-ही मिलने आता हूँ, फिर सब कुछ क्लियर करूंगा। लेकिन तुम तैयार रहना, हो सकता है तुम्हें सच जानकर झटका लगे।”
यह कहकर राघव ने कॉल कट कर दी। पर ऐसा क्या था जो बड़ा हो सकता था? आखिर ऐसी क्या बात है जो राघव ने इस तरह मृत्युंजय को तैयार रहने के लिए कहा? क्या राघव को नेहा का कोई राज़ पता चला है. मृत्युंजय को राघव के कैपेबिलिटीज़ पर पूरा भरोसा है. अगर राघव ने ये बोला है, तो मतलब ज़रूर कुछ बहुत बड़ी बात है
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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