5 दिन बीत चुके थे। एक-एक पल काटना अब मृत्युंजय के लिए मुश्किल हो रहा था। नेहा को जन्मदिन की बधाई तो मृत्युंजय ने दी थी, लेकिन अब भी मृत्युंजय ये नहीं जानता था कि आखिर नेहा है तो है कहां। उसका एंटीलिया पैलेस अब इतना खाली हो चुका था कि न अब उस जगह किसी की हंसी की आवाज़ थी, न ही चहचहाने की। नेहा का जाना अब मृत्युंजय के लिए इमोशनल ट्रॉमा बन चुका है। मृत्युंजय को एहसास हो रहा है कि उसके काम के अलावा उसके जीवन में सबसे ज़रूरी जो है, वो है उसका प्यार - उसकी नेहा। लेकिन एक ओर, नेहा है जो अब मृत्युंजय से मिलना भी नहीं चाहती। जो अब मृत्युंजय के पास वापस भी नहीं आना चाहती। नेहा की हंसी, उसकी शरारतें… सब कुछ जैसे एक पल में खो गया। वह अपने काम में इतना खो गया था कि वह भूल ही गया कि घर पर कोई उसका इंतजार कर रहा था। और अब, वह इंतजार खत्म हो चुका है। नेहा उसे छोड़कर जा चुकी है। नेहा की कमी उसके दिल में एक अजीब सा खालीपन भर रही है।

मृत्युंजय को अब आखिरकार इस बात का एहसास होने लग गया है कि वाकई उसने नेहा को कभी टाइम ही नहीं दिया। वो इम्पोर्टेन्स जो नेहा डिज़र्व करती थी, उसे इतने सालों में कभी मिली ही नहीं। ये सब सोचकर मृत्युंजय रोने लगा। उसने तो उसे प्यार किया, लेकिन कभी दिखाया नहीं। अब जब वह नहीं है, तो उसके बिना जीने का सोचकर ही उसका दिल कांप उठता है। वह अब अपनी ईमोशन को भी संभाल नहीं पा रहा है। अपने पिछले दिनों में मृत्युंजय लगातार गलती पर गलती किए जा रहा था। पहले नेहा का यूं चले जाना, उसे समय न देना और अब कनिका का भी उसके साथ न होना।


मृत्युंजय अब इस सोच में पड़ गया है कि आखिर वह करे तो करे क्या? नेहा को वापस अपने घर कैसे लाए? और कनिका को आखिर कैसे मनाए, कनिका से कैसे माफी मांगे? मृत्युंजय कनिका पर चिल्लाया था, वो भी उसकी एक छोटी सी गलती पर, बिना उसकी पूरी बात सुने। वह बहुत ज़्यादा गुस्से में था।
कनिका ने बस एक छोटी सी गलती की थी… पर वह भी तो बिजनेस में समझदार है। उसने अपनी गलती को पहले ही सुधार लिया था, लेकिन मृत्युंजय के पास इतना समय ही नहीं था कि वह उसकी बात सुनता।


घर की खामोशी में आज आखिरकार मृत्युंजय को यह समझ आता है कि उससे कितनी बड़ी गलती हो चुकी है। पहले नेहा को खोया और अब कनिका को मना न सका। लेकिन मृत्युंजय यह बात जानता था कि कनिका को जैसे-तैसे वह मना लेगा, लेकिन इस वक्त उसका नेहा के साथ सब ठीक करना बेहद ज़रूरी हो चुका है। इतनी देर में मृत्युंजय सोचता है कि अब वह नेहा के माता-पिता यानी मिस्टर-मिसेस सिंघानिया से मिलने जाएगा और नेहा के बारे में जानने की कोशिश करेगा, उनसे माफी मांगेगा।


मृत्युंजय तुरंत अपनी कार की चाबी उठाता है और नेहा के घर की ओर निकल जाता है। मृत्युंजय जैसे ही नेहा के घर पहुंचता है, मिस्टर और मिसेस सिंघानिया उसे देखकर खुश हो जाते है। नेहा के माता-पिता को यह लगता है कि, आखिरकार किसी का तो गुस्सा शांत हुआ। मृत्युंजय की यह हालत देखकर मिस्टर और मिसेस सिंघानिया समझ नहीं पाते कि मृत्युंजय ऐसे क्यों पहुंचा था। उन्होंने सबसे पहले तो मृत्युंजय को संभाला, फिर उससे बात करने की कोशिश की। मृत्युंजय की शक्ल से साफ़ समझ में आ रहा था कि, उसे अपनी गलतियों का एहसास हो चुका है। मृत्युंजय मिस्टर और मिसेस सिंघानिया के पास ऐसे अचानक इतनी देर रात क्यों आया था, ये बात सोचने वाली थी। वह सारे लोग, दरवाजे से हटकर जाकर हाल में बैठ गए थे।


मृत्युंजय( हलकी रोती हुई आवाज़ में ): "पापा! मैं मानता हूं, मैंने बहुत सारी गलतियां की है। पर मैं सच में, मैं नेहा को वापस से मनाना चाहता हूं। हर वो गलती जो मैंने की है, उन सारी गलतियों को सुधारना चाहता हूं। मैं नेहा के बिना नहीं रह सकता हूं पापा।"

 

मिस्टर सिंघानिया- "मृत्युंजय, तुम शांत हो जाओ। हम जानते है, तुम नेहा से बहुत प्यार करते हो"

 

मृत्युंजय: "पापा, नेहा मुझसे बहुत नाराज़ है, तभी तो मुझे छोड़कर आपके पास आ गई। मैं उसे कैसे मनाऊं पापा?"

 

मिस्टर सिंघानिया- सब ठीक हो जाएगा बेटा, रिलैक्स !

 

मृत्युंजय- पापा मुझे नेहा से मिलना है। मैं उससे कैसे मिल सकता हु पापा ? मैं.. मैं जानता हु वो घर पर नहीं है.. आपको पता है की वो अभी कहा है ?

 

मिस्टर. और मिसेस. सिंघानिया एक-दूसरे को देख यह सोचते है कि आखिर नेहा ने जाते-जाते जो आखिरी प्रॉमिस उनसे लिया था, आखिर उस प्रॉमिस को वो कैसे तोड़े? नेहा ने कैंप जाने से पहले अपने माता-पिता से बस एक रिक्वेस्ट की थी। वह रिक्वेस्ट यह थी कि, जब तक नेहा वापस न आ जाए, कोई भी मृत्युंजय को उसके बारे में कुछ भी नहीं बताए। लेकिन मृत्युंजय को आखिर वे दोनों मना भी कैसे करें? अगर नेहा उनकी बेटी थी, तो वह मृत्युंजय की पत्नी भी तो थी। मृत्युंजय का भी यह जानने का हक है, कि उसकी पत्नी अभी कहां थी। पर नेहा की हालत भी तो ठीक नहीं थी। उसे वक्त चाहिए था।

 

नेहा के पेरेंट्स उसे समझाते है कि अभी के लिए उन दोनों का दूर रहना ही एक-दूसरे के लिए सबसे बेहतर है। न नेहा इस वक्त मृत्युंजय से मिलना चाहती है और न ही मृत्युंजय को नेहा से मिलने की ज़िद करनी चाहिए।


मायूस होकर मृत्युंजय नेहा के घर से निकलता है। कोई भी सुराग न मिलने पर मृत्युंजय का मन परेशान होने लगता है। लेकिन फिर तुरंत मृत्युंजय को एक शख्स याद आता है, जिसे मृत्युंजय तुरंत फोन मिलाता है।

 

मृत्युंजय: "यार, घर आकर मिल ज़रा, एक ज़रूरी बात करनी है… अभी, हां बस अभी!"

 

मृत्युंजय तुरंत अपने घर पहुँचता है। इतनी देर में वह कनिका को कॉल करने लगता है ताकि वह कनिका से माफी मांग सके। जो गलती उसने कनिका पर चिल्ला कर की थी, अब उस गलती को सुधारना चाहता था। मृत्युंजय कनिका को लगातार कॉल करता है लेकिन वह फोन नहीं उठाती। एक बार फिर वह कनिका को कॉल ट्राई करता है तो कनिका उसका फोन उठा लेती है।

 

मृत्युंजय- थैंक गॉड कनिका तुमने कम से कम मेरा फ़ोन तो उठाया। कनिका मुझे माफ़ कर दो यार। मुझ से गलती हो गयी।  मुझे ऐसे नहीं चिल्लाना चाहिए था (रोते हुए)

कनिका- मृत्युंजय प्लीज़. अब बस ! ऐसे तुम क्या मुझ पर कोई नहीं चिल्ला सकता। तुम्हे क्या लगा तुम कुछ भी कहोगे और मैंने तुम्हे कुछ नहीं कहूंगी ?

मृत्युंजय- कनिका सॉरी ! बस एक बार मिल लो, मैं सब ठीक कर दूंगा यार. बस एक बार प्लीज़

कनिका (कुछ देर सोचते हुए )- ठीक है ठीक है, बस करो। कुछ देर में मिलती हु। लेकिन आखिरी बार माफ़ कर रही हूँ। समझे ?

मृत्युंजय (हस्ते हुए)- हाँ समझ गया।


कनिका को मनाने के बाद, मृत्युंजय का दिल थोड़ा हल्का लगता है। जैसे उसके ऊपर से कोई भारी बोझ उठ गया हो। उसका चेहरा एक हल्की सी मुस्कान से भर गया है, और आंखों में थोड़ा सुकून है जो पिछले कुछ दिनों में उसने महसूस नहीं किया था। जैसे ही वह फोन रखता है, एक लंबी सांस लेता है… अब उसके दिल में पहली बार उम्मीद जागती है कि शायद सब कुछ ठीक हो सकता है।


उसका मन कहता है कि कनिका से यह मुलाकात सिर्फ एक दोस्ती को बचाने का मौका नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत का भी इशारा है। उसकी ज़िंदगी के दो सबसे करीबी रिश्ते, नेहा और कनिका, दोनों को लेकर वह एक नई जगह पर पहुंच सकता है। उसका बस इतना ही सपना है – कि वह नेहा को वापस पा ले, उसका घर फिर से खुशियों से भर जाए, और ऑफिस में कनिका का साथ और उसका यकीन हमेशा बना रहे।


मृत्युंजय के चेहरे पर पहली बार एक हल्की खुशी की चमक है। वह सोचता है, "अगर कनिका को मनाया जा सकता है, तो नेहा को भी मनाया जा सकता है।" उसके दिल में अब वह गिल्ट नहीं, बल्कि कुछ कर गुजरने की ताकत है, अपनी गलतियों को सुधारने का जज़्बा है। जैसे ही वह चाय का एक और घूंट लेता है, उसके दिल में एक उम्मीद भर आती है – शायद, यह पहला कदम है अपनी ज़िंदगी को वापस से संभालने का।


तभी, उसके दरवाजे पर आहट होती है, और डोरबेल बज उठती है।


मृत्युंजय: "फाइनली तुम आ गए"


आखिर गेट पर कौन आया था? कौन था ऐसा शख्स जिसे देख कर मृत्युंजय इतना खुश था? क्या नेहा से मिलने का समय पास आ रहा था? क्या कनिका के साथ रिश्ता बेहतर हो सकता था? आखिर कौन सा था वो चेहरा जिसे देख मृत्युंजय का दुख खुशी में बदल गया था?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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