लगभग पांच मिनट बाद सीमा ने दरवाजा खोला और सूरज को धकेलता हुआ एक तगड़ा-सा अधेड़ उम्र का व्यक्ति आवेग से पतलून की बेल्ट कसता हुआ बाहर निकल आया| सीमा ने जल्दी से अजनबी को सम्बोधित करके कहा-

“ऐ जी, नायक साहब! तो फिर मेरा चांस पक्का?”

उस व्यक्ति ने मुड़े बिना कहा 'बिलकुल पक्का, अपन चीफ असिस्टेन्ट का बात कोई टालने को नहीं सकता— स्क्रीन प्ले अपने खुद लिखेंगा तुम्हारा करेक्टर को चार चांद लगा देंगा- तुम्हारे को स्टेबलिश्ड साइड हीरोइन बनाएंगा- यह अपन का प्रॉमिस।'

फिर वह जल्दी जल्दी उतरता चला गया। जब सीढ़ियों पर ओझल हो गया, तब सीमा ने सूरज का गिरेबान पकड़कर अन्दर खींचा और दरवाजा बन्द करके मुस्कराकर बोली, 'अरे तू काहे को बुत बना खड़ा है?’ 

'भाभी! व... व... वह्।'

सीमा ने मुस्कराकर कहा वह अपन का सपना है, जिसके लिए अपन अपना घर छोड़कर भागी थी।'

‘ओर, और भैया?'

'वह, अपन का शेल्टर है।'

'लेकिन आपने तो उनसे शादी की है।'

सीमा हंस पड़ी और बोली, 'कौन बेवकूफ बोला?’

'भैया ने लिखा था।'

'अरे, जब अपन दोनों साथ रहेंगा तो रिश्तेदार लोग को क्या बोलेगा? तुम्हारे भैया को एक औरत मांगती थी, अपन को शेल्टर| अपन दोनों एक एग्रीमेंट पर हैं।'

‘लेकिन मैंने तो सुना है कि आप दोनों का एक एग्रीमेंट है कि कभी फिल्म की तरफ मुंह भी नहीं करेंगे।’

सीमा फिर हंसी और बोली, 'ऐसा तो लिखा-पढ़ी का एग्रीमेंट भी टूट जाता— धीरज भी जानेला है कि अपन फिल्म के बिना नहीं रहने को सकती। अपन भी जानेली है कि धीरज बुड्ढा होकर भी रोल मिलने पर करेंगा– यह साला फिल्म का कीड़ा ऐसा ही है। एक बार घुस जाएंगा तो कभी नहीं निकलेंगा।'

अचानक सूरज को ध्यान आया। सीमा के ऊपरी शरीर पर सिर्फ ब्रोसरी थी और नीचे एक छोटा-सा तौलिया लिपटा हुआ था। लेकिन वह इतने इत्मीनान से खड़ी थी जैसे कोई बात ही न हो या यह उसकी दिनचर्या हो।

सूरज की रीढ़ की हड्डी में चींटियां-सी रेंगने लगीं। अचानक सीमा ने मुस्कराकर कहा, 'अरे हां, सवेरे को जब अपन नहाएली थी तो क्या तुम आएले थे?'

सूरज ने बड़ी मुश्किल से थूक निगलकर कहा, 'म... म... मैं?'

सीमा हंस पड़ी और बोली, 'अपन समझेली थी कि धीरज लौट आया है, अपन नहाते में बाहर निकल आई पर साला तुम ऐसे भागेला जैसे कोई शर्मीली छोकरी।'

'व... व... वह वह।'

'पगले, काहे को भागेला था? अरे औरत के पास ऐसा क्या छुपाने को होयला है जो मर्द कोई-न-कोई औरत के रूप में न देखेला हो?"

सूरज थूक निगलकर रह गया। 

सीमा ने कहा, 'तेरे चेहरे से लगेला है कि तेरे को भूख लगेला है।"

'हां, बहुत जोर की।'

सीमा ने अर्थपूर्ण मुस्कराहट के साथ पूछा, 'बोल क्या खाएंगा पहले?'

'क... क... क्या मतलब?"

'अरे साला भाभी बोलेला है तो भाभी, देवर का बीवी होयला है। तेरे को कोई मना नहीं, जब मंगता है बोलने का चल आजा अन्दर।'

सीमा ने उसकी बांह पकड़कर अन्दर खींचना चाहा तो सूरज ने जोर से गर्दन झटकी और जल्दी से बांह छुड़ाकर बोला, 'नहीं नहीं, भाभी।'

"अरे काहे को डरेला है। जब अपन नहीं डरेला।'

'भाभी! हमारे यहां बड़ी भाभी का सम्बन्ध मां के समान होता है।'

सीमा ने जोरदार ठहाका लगाया और बोली, 'पगला कहीं का, यह रामायण का युग नहीं। अरे यही भारत में तो पांच पांडवों की एक पत्नी भी थी और तुम तो दो ही भाई हो।'

'भाभी! मुझे कल से कुछ खाने को नहीं मिला।'

'अच्छा चल, हाथ-मुंह धो-पहले तेरे को डबल नाश्ता कराती।'

सूरज जल्दी से बाथरूम में घुस गया।

कुछ देर बाद नाक में अण्डों की आमलेट की गन्ध आई तो सूरज के मुंह में पानी भर आया। वह जल्दी-जल्दी मुंह धोने लगा। बाहर निकला तो चार अण्डों का आमलेट। एक पूरा ढेर बटर लाईस का, चड़ा, एक सेब और एक केला थाली में रखे थे।

सीमा इस समय लम्बी मैक्सी पहने थी, उसने कहा, 'चला, खाले जल्दी से।' सूरज ने खाने के लिए मुंह खोले ही थे कि अचानक घण्टी बजी और बजती ही चली गई। सूरज का दिल जैसे उछलकर गले में आ गया, ऊपर का सांस ऊपर, नीचे का नीचे। उसके हाथ भी रुक गए और वह खड़ा भी हो गया।

सीमा ने दरवाजा खोला तो धीरज आंधी-तूफान की तरह अन्दर दाखिल हुआ। उसकी आंखें खूनी हो रही थीं।

सीमा ने पीछे हटकर अचम्भे से कहा 'अरे, आज इतनी जल्दी?"

धीरज ने कोई जवाब नहीं दिया। बस, आते ही एक चप्पल उठाई और सूरज पर टूट पड़ा। गन्दी गन्दी गालियों के साथ सूरज कई चप्पलें खाकर पीछे हटता गया। अचानक झपटकर सीमा दोनों के बीच में आ गई और बोली 'अरे अरे, जवान भाई को इस तरह मारते हैं क्या?"

'तू हट जा सामने से- आज मैं इसकी हत्या कर दूंगा।'

"अरे, कुछ बताओ तो सही।'

धीरज ने हांफते हुए कहा- 'अरे, इस पाजी को इतनी मुश्किल से नौकरी पर लगवाया था— उन्नति के अनगिनत चांसेज थे—कहीं से कहीं जा पहुंचता।'

'मगर हुआ क्या?’

'यह तो इसी से पूछो, क्या कांड करके आया है स्कूल में?’ 

'तो तुम ही बता दो न।'

'अरे, इस दुष्ट ने वहां की प्रिंसिपल मिस रामानी पर हमला कर दिया था गन्दी भावना से।'

सूरज ने थूक निगलकर कहा, 'यह झूठ है भैया! पिताजी के चरणों की सौगन्ध।'

'अरे हरामी, तो फिर सच क्या है?'

'सच यह है कि वह आप...!’

धीरज ने दहाड़कर कहा, 'अबे 'उल्लू के पट्ठे, तो इसमें बुराई क्या थी? साढ़े चार हजार रुपए तनख्वाह मिल रही थी। शानदार रहने की जगह मिस रामानी दिल वाली औरत है। गाड़ी भी दे देती। एक साथ कई पोस्टों की तनख्वाह मिलती।'

सूरज हक्का-बक्का-सा धीरज को देखता रह गया। धीरज ने कहा- 'इस हरामी की वजह से मेरी नौकरी पर बन आई थी। मैंने तो जाते ही विद्या देवी के चरण पकड़ लिए कि वह मेरा सगा भाई नहीं-पिताजी के दोस्त का बेटा है। साले को चाहो तो फांसी पर चढ़वा दो।'

‘यह क्या किया तुमने?’

'नहीं तो क्या अपनी गर्दन फंसवाता मिस रामानी कुओ में जाल डलवा देगी और इसे उम्रभर के लिए अन्दर कराएगी। अपने ऊपर आपराधिक और प्राणघातक हमले की रपट लिखवाई है उसने और एक बार गिरफ्तारी के बाद जमानत भी नहीं हो सकती।'

सूरज के शरीर में थरथरी-सी दौड़ रही थी। पैरों तले से धरती निकली जा रही थी। ऐसा लगता था जैसे वह वहीं बेहोश होकर गिर पड़ेगा।

सीमा ने धीरज से कहा, 'अरे, अभी नया नया तो बम्बई आया है, बेचारा अनाड़ी है। अपन इसे ट्रेण्ड कर लेंगी, तुम किसी तरह से मिस रामानी को समझाओ।'

धीरज ने कहा- 'असम्भव, मिस रामानी एक खतरनाक औरत है जिसकी एक बार दुश्मन बन जाती है, फिर कभी उसको क्षमा नहीं करती।'

'अरे, कुछ तो करो।'

'मुझे अपनी नौकरी नहीं गंवानी- मैं अपने हाथों से इसे पुलिस के हवाले करूंगा।"

फिर उसने दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए कहा 'मैं पुलिस स्टेशन फोन करके आता हूं- इसे कहीं जाने मत देना।" फिर धीरज बाहर भी निकल गया और दरवाजा भी बाहर से बन्द कर गया।

सूरज थर थर कांप रहा था। उसने सीमा से रोआंसे स्वर में कहा- 'भाभी! पिताजी सदमे से मर जाएंगे और दीदी बेसहारा हो जाएंगे। उन दोनों का मेरे सिवाय कोई नहीं।'

'अपन का यह धीरज बड़ा जनूनी है। उपकार नहीं लेकिन तू भागेंगा भी कैसे?"

'कैसे ही भाग जाऊंगा बस कुछ रुपए मुझे दिलवा दो। किसी तरह मुझे बचा लो भाभी कभी नहीं भूलूंगा।'

'अच्छी बात है, मेरे पास दो हजार रुपए हैं  मगर पहले तू मेरे बाल नोंच डाल और गाल पर दांतों के निशान बना दे मैक्सी फाड़ दे।"

'नहीं-नहीं।'

'अरे पगले, मैं तेरे भैया को यही तो बोलूंगी कि तू मुझे मारपीट करके भाग गया, वरना वह मुझे पकड़वा देगा, एक नम्बर का बूचड़ है।'

अचानक सूरज ने सीमा के बाल नोंच डाले। मेक्सी फाड़ दी और गाल पर भी दांत मार दिए।

ठीक उसी समय दरवाजा खुला और सूरज का सांस ही रुक गया। सामने खड़ी हुई हरी हरी आंखों वाली मोना कपूर ने उसकी तरफ रिवाल्वर तानकर कठोर स्वर में कहा, 'छोड़ दो उसे।'

सूरज ने सीमा को छोड़ दिया। सीमा ने हांफते हुए कहा, 'अच्छा हुआ मेम साहब आप अच्छे समय पर आ गई वरना यह कमीना तो।'

मोना कपूर ने उसकी बात काटकर कहा, 'चुप रहो और सुनो–सूरज सी० आई० डी० की हिरासत में जा रहा है।  सिविल पुलिस को तुम यही बयान दोगी कि यह तुम पर हमला करके भाग गया।"

फिर वह सूरज से बोली- 'जल्दी चलो, वरना फायर करती हूं।'

सूरज लड़खड़ाता हुआ जल्दी से निकल आया। मोना कपूर ने दरवाजा खींचकर बन्द कर दिया और बाहर से कुंडी भी लगा दी। नीचे मोना की बन्द मारुती जिप्सी खड़ी थी, जिसमें सवार होते सूरज को किसी ने नहीं देखा। दरवाजा बन्द करके मोना कपूर आगे आ बैठी। स्टेयरिंग सम्भाला और गाड़ी आगे बढ़ कर एम० आई० जी० कॉलोनी के रास्ते पर उतर गई।

कुछ देर बाद वह पक्की सड़क पर दौड़ रही थी और सूरज इस तरह बैठा था जैसे उसका हनन करने के लिए ले जाया जा रहा हो ।मारूती जिप्सी उसी बंगले में रुकी जिसमें से सूरज निकल कर भागा था।

पिछला दरवाजा खोलकर मोना ने सूरज को नीचे उतारा। कुछ देर बाद वे दोनों उसी कमरे में थे, जिसमें सूरज की नींद खुली थी ।

मोना कपूर ने सूरज को घूरकर कहा, 'क्यों भागे थे तुम यहां से?"

सूरज से कहा के होंठ हिलकर रह गए। मोना कपूर ने फिर गुस्से में, 'मैं पूछती हूं, क्यों भागे थे यहां से?"

सूरज ने थूक निगलकर कहा, 'म... मैं... आपके आगे हाथ जोड़ता हूं या तो मुझे गोली मार दीजिए या फिर मुझ पर विश्वास कीजिए कि मैं निर्दोष हूं। अगर मेरे पिताजी या दीदी को कुछ हो गया तो...!’

कहते-कहते सूरज की आंखें अंगारा हो गईं और वह दहाड़ कर बोला, 'फिर मैं वही बन जाऊंगा जो आप लोग मुझे समझ रहे हैं।'

मोना ने दहाड़कर कहा, 'शटअप, बैठ जाओ।'

सूरज बैठ गया। मोना ने घण्टी पर हाथ मारा। एक नौकरानी अन्दर आई और मोना ने कहा, 'इसके लिए नाश्ता लाओ।'

सूरज ने जल्दी से कहा- 'मुझे नहीं करना नाश्ता।'

इस बार मोना ने इतनी जोर से मेज पर डण्डा मारा कि सूरज खुद हिलकर रह गया। मोना का डण्डा स्टील का था।

कुछ देर बाद सूरज के सामने ट्रे लाकर रखी गई। जिसमें चार हाफ फ्राई अण्डे थे। सैंडविच्स का ढेर था। कुछ फल थे। एक चाय का भरा हुआ पाट।

( सूरज ने एक बार नाश्ते को हाथ लगाया तो वह मौत को भी भूल गया। इतनी बुरी तरह खाने पर टूटा कि उसे सामने बैठी हुई मोना कपूर भी याद नहीं रही। साथ में वह प्याली भर भरकर गरम गरम चाय गले से उतारता जा रहा था।)

मोना कपूर की आंखों से ऐसा लगता था जैसे कोई खतरनाक बिल्ली किसी शिकार पर हमले के लिए तैयार हो, लेकिन यह उसकी आंखों का धोखा था। यही धोखा उसके शिकार को बुरी तरह डरा देता था।

नाश्ता और पूरी चार प्यालियां चाय खत्म करने के बाद सूरज का शरीर इस तरह ढीला पड़ गया जैसे शरीर की सारी मशीनरी ने ही काम करना बन्द कर दिया हो। उसने कुर्सी की पीठ पर गर्दन लटकाकर आंखें बन्द कर लीं।

मोना कपूर ने उसे ध्यानपूर्वक देखकर पूछा, 'कुछ और चाहिए?'

सूरज ने नशीली-सी आवाज में कहा— 'कुछ नहीं।'

'नींद और लेना चाहते हो?’

'सिर्फ चुप रहना चाहता हूं।'

"जाओ, उस बैंड पर लेट जाओ।'

‘आप जाकर लेटिए, मैं अभी आता हूं।'

मोना कपूर ने धीरे से पूछा, 'मैं क्यों लेटूँ?’

'मैं जानता हू आप मुझसे क्या चाहती हैं।'

'क्या चाहती हूं?'

'जो यहां की हर औरत चाहती है अब मैं किसी से इंकार भी नहीं करूंगा, अगर मैंने प्रिंसिपल मैडम की बात मान ली होती तो इतनी मुसीबत में न फंसता।'

 

क्रमशः 

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