मोना ने कहा, 'तुमने उस लड़की को कम्पार्टमेंट में अकेली पाकर रेप कर दिया था।'
मोना ने उसे घूरकर दहाड़ते हुए कहा।
सूरज फिर भी कुछ न बोला, मोना ने कहा, 'अभी-अभी तुम एक इज्तदार औरत की आबरू पर हमला करते हुए पकड़े गए हो और मैंने उसे अपनी आंखों से नंगी देखा है।'
सूरज का मुंह फैला। सीने में गोला-सा उमड़ा और फिर अनानक वह नीचे बैठकर कोहनी में मुंह छुपाकर बच्चों की तरह फूट-फूटकर रो पड़ा।
बड़ी देर तक वह रोता रहा और मोना चुपचाप उसे घूरती रही। जब सूरज की हिचकियां सिसकियों में बदल गईं तो मोना ने दहाड़कर कहा, 'शायद तुम समझ रहे होगे, मुझ पर इन आंसुओं का बहुत असर हुआ होगा। मिस्टर सूरज, मैं जिस डिपार्टमेंट में हूं उसमें बहुत बड़े-बड़े मक्कार देखे हैं और उनसे सच्चाई कैसे स्वीकार कराई जाती है- मैं अच्छी तरह जानती हूं।'
सूरज धीरे-से खड़ा हो गया और एकाएक ऐसा शांत दिखाई देने लगा। जैसे कोई रोगी समझ ले कि उसका रोग असाध्य है और उसका मरना अनिवार्य है। उसने अपने आंसू। पोंछे और बड़े स्पष्ट स्वर में बोला, 'आपने इस विभाग में आकर बहुत बड़ी भूल की है— आपके लिए मात्र एक ही जगह उपयुक्त थी। आप किसी फांसी घर में जल्लाद की नौकरी कर लेती।'
'आप इसमें से एक मेंढ़क भी किसी निर्दोष को बलपूर्वक दीजिए तो वह हिटलर होने को भी स्वीकार कर लेगा— विश्वास न हो तो आप एक मौका मुझे दीजिए- -आप जैसी कट्टर और नारी समाज के नाम पर कलंक औरत को मैं एक मेंढ़क खिलाकर आपसे भी यह लिखवा सकता हूं कि आप इस देश के प्रधानमन्त्री की हत्या का षड्यन्त्र रच रही थीं।'
'तुम जानते हो, किससे बात कर रहे हो?"
‘मैं जानता हूं, एक ऐसी निमर्म औरत से जो रोबोट की तरह काम करती है और रोबोट ही सिर्फ दूसरे के हुक्म का बुलाम होता है- मैंने वे आंसू श्रद्धा के रूप में आपके चरणों में नहीं चढ़ाए- अपने श्वास के रोगी पिता और अपनी पैंतीस वर्षीय कुंवारी बहन के भविष्य के विनाश पर चढ़ाए हैं जिनका दायित्व भार अकेले मेरे ही कंधों पर है और अब इन कंधों को आप किसी योग्य नहीं छोड़ेंगी, क्योंकि आप किसी तरह भी मजबूर नहीं हैं।’
उसने कुछ क्षण रुककर कहा, 'आपने एक वक्त की भी भूख नहीं देखी- आप शायद मेरी तरह से कल सुबह चार बजे की जागी हुई नहीं होंगी। आपकी जेब में मेरी तरह दो रुपए दस पैसे भी नहीं होंगे जो मेरी पहली तनख्वाह तक का सहारा थे और वह तनख्वाह मुझे पूरे पच्चीस दिन बाद मिलती।
"आप प्रिंसिपल जैसी किसी विलासी औरत के जाल में नहीं फंसी होंगी जिसके ब्लाउज ब्रोसरी से लेकर पेटीकोट तक में जहरीले कीड़े घुस गए थे और खुजाने के लिए जिस सिवाय मेरे और कोई नहीं था।'
कुछ क्षण रुककर वह फिर बोला—
'इस धरती पर जितने निर्मम अपराधी हैं— उतने ही निर्मम कानून के रक्षक भी— सुना है न्याय की देवी अन्धी थी, उसका सबूत यहां आकर मिला है जब न्याय की देवी की आंखों पर ही पट्टी बंधी होगी तो वह किसी निर्दोष अथवा दोषी में क्या भेद कर सकेगी?"
कुछ पल रुककर वह फिर बोला, 'मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने एक लड़की को ट्रेन में रेप करके आत्महत्या को बाध्य किया। इतना बड़ा मूर्ख हूं कि उसके हाथ से अपने लिए मौत का आज्ञा पत्र लिखवाकर जेब में लिए घूम रहा हूं जो आपको दे दिया।’
'मैं यह भी स्वीकार करता हूं कि मैंनें सरस्वती स्कूल की प्रिंसिपल जैमी सती सावित्री ओरत की इज्जत पर हमला करके अपनी कमीज फड़वाई और बिना अपनी वासना पूरी किए उसे सिर से पांव तक नंगी छोड़कर भाग खड़ा हुआ- आप अब मुझ पर जो धारा चाहें लगाइए- जी चाहे उम्रकैद कराइए, जी चाहे फांसी दिलवाइए।'
इस्पेक्टर मोना कुछ न बोली। वह चुपचाप विचारमग्न सी सूरज को देखती रही, जिसका चेहरा अब बिलकुल शांत था, आंखें बिलकुल सपाट।
अचानक वह किसी बेजान खम्भे की तरह सीधा फर्श पर चला आया। इंस्पेक्टर मोना हड़बड़ाकर पीछे हट गई। सूरज औंधा गिर चुका था लेकिन फिर उसके शरीर में हल्की-सी जूंबिश भी न हो सकी। वह जैसा पड़ा हुआ था वैसे ही पड़ा रह गया।
मोना ने जल्दी से बैठकर उसकी नाड़ी देखी, वंह चल रही थी। उसे सीधा करके दिल की धड़कन देखी-भाली, वह भी पूर्ववत थी। केवल वह गहरी-गहरी सांसें ले रहा था।
मोना उसे चिन्ता भरी नजरों से देखती रही। सूरज के गिरने का धमाका बाहर भी सुना गया था। लेकिन किसी में इतना साहस नहीं था कि वह बाहर से अन्दर आकर यह जान सकता कि धमाका कैसा था और क्यों हुआ था? कुछ देर बाद मोना खुद ही बाहर आई तो इंचार्ज इंस्पेक्टर जल्दी से खड़ा हो गया। मोना ने उससे कहा, 'हवालाती को एक जीप में भिजवा दीजिए और एक ड्राइवर कांस्टेबल भेज दीजिए।'
'बेहतर है।'
फिर मोना लम्बे-लम्बे डग भरती हुई बाहर आ गई। एक खाली जीप में दो कांस्टेबल सूरज को लाकर डाल गए। मोना ने आप ड्राइविंग सीट संभाली। ड्राइवर कांस्टेबल पीछे सूरज के साथ बैठ गया।
कुछ देर बाद जीप सड़क पर दौड़ रही थी। डॉक्टर ने सूरज का अच्छी तरह निरीक्षण किया। इस बीच इंस्पेक्टर मोना उसे निरन्तर चिन्तातुर दृष्टि से देखती रही। कुछ देर बाद डाक्टर मोना को बाहर से आया और बोला,
'रोगी को कोई रोग नहीं।'
मोना ने पूछा — 'क्या वह सिर्फ बेहोश है?"
'नहीं, सो रहा है।'
'क्या? सो रहा है?'
"हां, ऐसा लगता है जैसे कई दिनों से उसे पल भर को भी नींद नहीं आई थी।'
'उसके अलावा वह किसी भारी मानसिक तनाव में था, जो.. एकदम उसके दिमाग से निकल गया है और अब वह शांत है।"
'और कुछ?'
डाक्टर ने ठण्डी सांस ली और बोला, 'बस, उसे एक भयंकर-सा भारतीय रोग है।'
'वह क्या?’
"शायद बरसों का भूखा है।' ‘बरसों का भूखा?'
'हां, भारत में नब्बे प्रतिशत लोग बरसों आंधे पेट भूख रहते हैं- यह भी उन्हीं में से एक है और पिछले दो-तीन दिन से तो शायद उसे एक दाना भी खाने को नहीं मिला या मिला भी होगा तो बस नाममात्र को ही।'
'हुं, कब तक होश में आने की सम्भावना है?"
'शायद कभी नहीं।'
मोना चौककर बोली- 'कभी नहीं से क्या आशय है आपका?'
'अगर ये मूर्ख लोग चेत जाएं तो भारत का कायाकल्प ही न हो जाए। तुम जैसे लोगों के कपड़े इनके तन पर हों और इन जैसे लोगों के कपड़ों तुम जैसे लोगों के तन पर हों।'
मोना निचला होंठ दातों में दबाए डाक्टर को घूरती रही। डाक्टर ने उसे बहुत ज्यादा आंखें फाड़कर घूरा और बोला, 'इस आदमी से तुम्हारी कोई दुश्मनी है?'
मोना ने चौंककर कहा, 'क्यों? आपने यह कैसे समझा?"
‘ऐसे लोगों को इनके दुश्मन ही डाक्टरों के पास लाते है जिन्हें इनसे हमदर्दी होती है वे इन्हें इनके हाल पर ही छोड़ देते हैं ताकि जल्दी से जल्दी मर जाएं तो इनका भी पीछा छूटे और अनाज का एक उपभोक्ता भी कम हो। हमारा देश आज-कल वैसे ही भिखारी हो रहा है। पता नहीं कैसे तुम जैसे लोगों को ही पेट भरकर फाइव स्टारों में तन्दूरी चिकन और विदेशी खाने मिल जाते हैं।'
मोना कुछ न बोली। डाक्टर ने फिर पूछा, ‘तुम इसकी मां हो?'
मोना के होंठों पर अनायास हल्की सी मुस्कान आकर रह गई, उसने कहा— 'जी नहीं।'
'बेटी या बहन हो ?'
'जी नहीं।'
‘तो फिर यह तुम्हारा चाहने वाला होगा।'
'आपकी फीस क्या हुई?'
'पचास जूते और पचास गालियां।'
'मैं समझी नहीं?"
'ऐसे किसी रोगी को देखकर मेरा जी ऐसी ही फीस को चाहता है।'
'आपने यह क्लीनिक क्यो खोला है?'
'तुम जैसी लड़कियों के गर्भपात के लिए - कभी आवश्यकता पड़े तो आना— बड़े उचित पैसे लेता हूं और किसी को कानों कान खबर नहीं होती।'
मोना ने उसे अपलक देखकर पूछा, 'पत्ता नहीं, आपके हाथ अनुभवी भी हैं या नहीं?" डाक्टर ने उसे क्रूरता से घूरकर कहा, ‘लड़की! इस काम में मेरे अनुभव को चुनौती मत दो एक बार नजले जुकाम का रोगी मेरे हाथों में मर सकता है मगर गर्भपात का कोई केस नहीं बिगड़ता।'
"कितने गर्भपात किए हैं अब तक?'
‘गिनती याद नहीं, लेकिन मेरा नाम गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में जा सकता है, क्योंकि लगातार सात गर्भपात किसी एक औरत के दुनिया के पर्दे पर किसी ने नहीं किए होंगे— तीसरे गर्भपात के बाद लड़की के प्राण संकट में पड़ जाते हैं।’
'इस स्थान की लड़की का उदाहरण दीजिए तो विश्वास करूं।'
'कदाचित नहीं, मैं किसी एक का भेद दूसरे पर नहीं खोलता।'
'आपकी इच्छा, मैं किसी समय सरस्वती स्कूल की प्रिंसिपल की सिफारिशी चिट्ठी लेकर आऊंगी, तब इस विषय में बात करूंगी।'
डाक्टर ने चौंककर कहा ‘सरस्वती स्कूल की प्रिंसिपल, वह पैंतालीस वर्षीय मिस रोमानी?'
‘मिस रोमानी? उनका नाम तो मिस रामानी है।’
'अरे बड़ी रोमांटिक हैं सातवां गर्भ बात कराते हुए हाथी की मादा हथनी भी घबराएगी, लेकिन ये नहीं घबराईं।'
मोना ने हल्की सांस ली। डाक्टर ने कहा 'तुम उन्हें कैसे जानती हो लड़की?'
'मेरी मौसी हैं।' डाक्टर भौंड़े से ढंग में हंसकर अन्दर की तरफ इशारा करके बोला— 'यह रोगी कहीं उन्हीं का शिकार तो नहीं?"
'क्या मतलब?'
'अरे, उनके यहां जो चपरासी है, देखा है उसे?"
'देखा है।'
'जब नौकरी खोजता हुआ आया था तो इसी की तरह कई दिनों का भूखा था- मिस रोमानी ने उसका पूरा फिजीकल टेस्ट पांच बार ले डाला—गश खाकर बेहोश हो गया— समझीं कि मर गया है तो लेकर मेरे पास दौड़ पड़ीं मैंने समझाया कि इतनी बेसब्री भी अच्छी नहीं। बेचारा कहीं भागा थोड़े ही जा रहा था।'
मोना ने सौ रुपए का नोट निकालकर डाक्टर की मेज पर रखा जिसे उसने उपेक्षा भाव से आकर अपने कम्पाऊंडर को दे दिया और बोला,
'इन रुपयों से तुम अपनी गली के कुत्तों को मांस खिला देना — हो सकता है मिस रोमानी को कभी उन कुत्तों की भी 'जरूरत पड़ जाए।' मोना कुछ न बोली। उसने कम्पाऊंडर की मदद से सूरज को सम्भाला, बाहर लाई। पहले से खड़ी हुई एक टैक्सी में पिछली सीट पर लिटवा दिया और खुद आगे बैठ गई। कम्पाऊंडर को उसने एक सौ रुपए का नोट इनाम में देकर कहा, 'कभी तुम्हारी जरूरत भी पड़ सकती है।'
कम्पाऊंडर ने बहुत खुश होकर सादर प्रणाम किया और दांत निकालकर बोला, 'मैं तो आप जैसी लोगों को सेवा के लिए सब समय तैयार रहता हूं- मेरे साथी इसीलिए मुझे एवररेडी कहते हैं।'
मोना ने डाक्टर के बोर्ड पर निगाह डाली, जिस पर लिखा था- डाक्टर मिस्तरी बिजली वाला- एम० बी० बी० एस० स्पेशलिस्ट इन टी० डी०.
मोना ने फुल फॉर्म भी नहीं पूछी। टैक्सी चल पड़ी। उसकी कल्पना में बार-बार मिस रामानी घूम रही थी। उसका सूरज पर लगाया हुआ लांछन और फिर डाक्टर मिस्तरी बिजली बाला का उसके बारे में कथन|
फिर वह सूरज के आखिरी बयान के बारे में सोचने लगी।
सूरज को आभास नहीं उसे कितने घण्टों या दिनों के बाद होश आया। लेकिन होश आने के बाद उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी बहुत लम्बी बीमारी से उठा हो। हल्का-फुल्का शरीर और मीठी-मीठी-सी ऊंघन टूटन!
बड़ी देर बाद तो उसे यह आभास हुआ कि वह किसी सुविधाजनक बिस्तर पर लेटा है, सिर के नीचे गदेला तकिया, पीठ के नीचे डनलप का गद्दा। सूरज ने आंखें खोल दीं। मस्तिष्क में एक छनाका सा हुआ| बहुत सुसज्जित बैडरूम था। साथ ही उसकी कल्पना में प्रिंसिपल का बैंडरूम घूम गया और फिर वह बिल्ली जैसी आंखों वाली लेडी इंस्पेक्टर और वह हवालात, मेंढ़कों का जार। सूरज एक झटके से उठकर बैठ गया। एकाएक उसका दिल हजारों मील प्रति सैकण्ड की गति से धड़क उठा था।
उसके तन पर अपनी ही पतलून थी और किसी के स्लीपिंग सूट की शर्ट। बैंड के पास जूते भी पड़े थे। सूरज ने हड़बड़ाकर बिजली की पी फुर्ती से जूते पहने। उसे हल्का-सा चक्कर आया तो आभास हुआ कि वह अब तक भूखा है। लेकिन उसने अपने आपको सम्भाल लिया।
इधर-उधर देखा। पिछली तरफ एक खिड़की भी थी। दरवाजे के आगे किसी के जूतों की आहटें गूंजीं और सूरज ने फुर्ती से खिड़की के बाहर छलांग लगा दी!
यह कोई लम्बा चौड़ा बंगला था। उसे भागकर एक लम्बा लॉन क्रास करना पड़ा। दीवार भी अच्छी ऊंची थी, लेकिन जोश और हड़बड़ाहट में इससे ज्यादा ऊंची दीवार भी होती तो वह फलांग सकता था। पोछे कोई आवाज नहीं आई।
घबराहट में भागते हुए उसे जो पहला स्टॉप दिखाई पड़ा उस पर रुककर हांफते हुए उसने लाइन में लगे एक व्यक्ति से पूछा, 'भाई... भाई साहब! यह सरकारी कॉलोनी का रास्ता कौन-सा है?'
उस व्यक्ति ने इस तरह सूरज को सिर से पांव तक देखा जैसे पागल समझ रहा हो और फिर एक ओर इशारा करके बोला,
‘उधर चर्च गेट का लोकल स्टेशन है— लोकल ट्रेन पकड़ों -बांद्रा उतरो- वहां से किसी से भी मालूम कर लेना।' 'धन्यवाद साहब।' वह फिर सरपट स्टेशन की तरफ भाग खड़ा हुआ।
ट्रेन से उतरा तो भीड़ में घुसकर वह बाहर भी निकल गया। किसी ने उससे टिकट को नहीं पूछा और भी बहुत सारे यात्री निकल रहे थे।
कॉलोनी तक वह इतनी तेज पैदल चला कि आखिर में उसके फेफड़ों धौंकनी की तरह फूलने और पिचकने लगे। इस बार उसने यह भी नहीं सोचा कि धीरज आ चुका होगा या नहीं। वह सीधा बिल्डिंग में चढ़ा और फ्लैट की घण्टी बजाता चला गया।
क्रमशः
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