प्रिंसिपल ने फाईल पर नजरें जमाए-जमाए कहा, ‘बड़ी जल्दी आ गए आप?’

'ज... ज... ब... ब... बच्चों को पढ़ा रहा था।'

'चपरासी कह रहा था आप ऊंघ रहे थे।'

"व... वह बात यह है कि कल रात भर मुझे सोने को नहीं मिला था।'

'इसलिए कि मैंने दवाएं लेने आपको चर्च गेट भेज दिया था।’

‘क्या?’

'म... म... मेरा मतलब यह नहीं था।'

‘इसलिए थक गए होंगे कि मैंने अलमारी सरकावाई थी?"

सूरज का चेहरा हतप्रभ हो गया। मैडम ने सीधी बैठकर फुर्सी की पीठ से टेक लगाई और लम्बी सांस लेकर बोली, 'देखिए, मिस्टर सूरज! हमने आपको इस अधबने स्कूल में सिर्फ इसलिए टीचर की नौकरी दे दी है कि आप जरूरतमंद नौजवान हैं। आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं, दो वर्ष बेरोजगारी में व्यतीत किए हैं।’

‘म... म... मैं आपका बहुत आभारी हूं। अब आपको शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा। बस, आज मुझे क्षमा कर दीजिए।'

प्रिंसिपल ने उसे अपलक देखकर कहा, 'लगता है आप तो सचमुच सारी रात जागे हैं।'

'जी हां, मुझे आखिरी लोकल ट्रेन भागकर मिली थी। गलती से फर्स्ट क्लास में चढ़ गया, कांदेवली पर डिब्बा बदलना पड़ा। अन्धेरी पर उस डिब्बे के पायदान पर से प्लेटफार्म पर गिर गया।'

'ओहो, च च च ।'

'बस भी नहीं मिली, चार बजे जब बस सर्विस शुरू हुई तो।'

'मैं समझ गई, आपको अपने भैया के साथ रहना पड़ता है।'

'जी हां।'

‘बांद्रा यहां से बहुत दूर पड़ता है आने-जाने में ही चार घण्टे खराब होंगे। फ्लैट से स्कूल और स्कूल से घर तक।’

"जी हां, यही तो समस्या है फिर एक काम का फ्लैट है।"

'अच्छा, मैं आपके रहने की समस्या सुलझाए देती हूँ।’

सूरज के मस्तिष्क में खुशी का छनाका सा हुआ। इतने में चपरासी सीधा अन्दर चला आया तो प्रिंसिपल ने उसे घूरकर कहा,

'क्या बात है?’

'मैडम! होटल में नॉनवेज नहीं मिल रहा।’ 

'नानसेंस, तो वेज लाओ और बिना अनुमति अन्दर आओगे सो धक्के मारकर निकाल दिए जाओगे, समझे?’ 

'जी, मैडम।'

'बच्चों की छुट्टी कर दो - मास्टर जी से कुछ फाइलें चेक करानी हैं।'

'जी मैडम। और अब ऊपर तब आना जब मैं घण्टी बजाऊं!'

'जी मैडम।'

'गेट आऊट।'

चपरासी जल्दी से भाग गया। मैडम का मूड एकदम फिर सुधर गया, उसने सूरज की तरफ देखते हुए कहा, 'हां, तो मैं क्या कह रही थी? 

'हां, अभी स्कूल निर्माणाधीन है और यह चपरासी ही...!’

'आप कह रही थीं मेरी आवास की समस्या..।'

चौकीदार भी है लेकिन यह बदनीयत मालूम होता है कई चीजें गायब हो चुकी हैं।'

'ओहो।'

'हमें विश्वासपात्र व्यक्ति चाहिए और आप ऐसे लगते हैं।’ 

‘जी हम हैं।'

'जी, धन्यवाद।'

'यहां किचन भी है और गैस सिलेन्डर भी अपने खाने पीने का सामान लाकर रखिएगा- मैं एक बाई का प्रबन्ध कर दूंगी, वह सुबह-शाम सफाई भी कर जाएगी और नाश्ता लन्च ओर डिनर भी बना जाया करेगी।'

'आपका उपकार कभी नहीं भूलूंगा मैडम मेरी एक बड़ी बहन है जिसकी शादी की उम्र बीत गई है। एक बाप हैं जो श्वास रोगी हैं— भैया के पास इतना बचता नहीं कि वे उनका भार उठा सकें।

‘च-च-च, इतना कुछ तो मैं नहीं जानती थी। मैं स्वयं भी अब तक अविवाहिता हूं। आपकी बहन का दुख समझ सकती हूं। आपको अगर हजार, दो हजार एडवांस चाहिए तो वह भी मुझसे निजी रूप से ले लीजिए, मैं वेतन में से काटती रहूंगी।'

'मैडम ! आप तो सचमुच देवी हैं।'

'ठहरिए, अभी तक यहां एक ही टीचर है। दस से छः बजे तक की शिफ्ट में मैं एक और टीचर का अप्वाइंटमेंट लेटर बना दूंगी। आप एक ही शिफ्ट में दो क्लासें दो नामों से संभाल लीजिए आपकी तनख्वाह डबल हो जाएगी।'

'मॅडम ! आ आप।'

प्रिंसिपल ने हाथ उठाकर कहा, 'आप अगर क्लर्क का काम भी देख लेंगे तो वह भी मैं एडजस्ट कर लूँगी। आपको कुल मिलाकर साढ़े चार हजार रुपए प्रतिमास मिल जाया करेंगे।'

सूरज के तन-बदन में खुशी से ठण्डी-ठण्डी लहरें दौड़ रही। प्रिंसिपल कुर्सी के पीछे से निकलती हुई बोली- 'आइए, आपको कमरा दिखा दूं।'

प्रिंसिपल के पीछे सूरज जब भीतरी कमरे में आया तो उसकी आंखें भी फटी रह गईं और जैसे ही उसकी निगाहें दीवार पर लगी उस नंगी औरत की पेटिंग पर पड़ीं तो उसका माथा भी जोर से ठनका।

प्रिंसिपल ने उसे किचन, टॉयलेट कम बाथरूम दिखाया और मुस्कराकर बोली— 'पसन्द आया कमरा?'

सूरज ने थूक निगलकर कहा, "ज ज जी हां, ब ब बहुत शानदार है। मैंने सपने में भी नहीं सोच था की आप इतनी देवी किस्म की निकलेंगी।'

“हाँ लेकिन मैं उसके बदले कुछ चाहती हूँ तुमसे।”

यह सुनते सूरज एकदम से घबरा गया अरु बोला- क क्या चाहती है आप?

प्रिन्सपल ने झट से कमरे को बंद किया और उसको अपने करीब आ के उसके कमर से जकड़ते हुए कहा-

देखों मैं काम कर के बहुत थक चुकी हूँ और अब मेरी उम्र भी पैंतालिस की हो चुकी है। मेरी भी कुछ शाइरी की इच्छाएं हैं जो मैं अकेले पूरी नहीं कर सकती। मुझे तुम्हारी हर शाम चाहिए।

सूरज ने झटके से उसे दूर किया और बोला-

नहीं ये पाप मुझसे नहीं होगा। मैंने आपको देवी समझा और आप... मैं अभी सबको हल्ला मचा के आपकी सच्चाई बता देता हूँ। 

इस से पहले की सूरज कुछ कहता वो प्रिन्सपल ने झट से अपने कपड़े फाड़ने शुरू किए और जोर से चीखने लगी-

बचाओ.. बचाओ मुझे इस दरिंदे से बचाओ। 

सूरज के यह देखते होश उड़ गए। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था की अब वह क्या करे?

 

2 घंटे बाद का समय:-

प्रिंसिपल की आंखें लाल हो रही थीं। इस समय वह पूरे लिबास में थीं और इमारत के निचले हिस्से में लेडी इंस्पेक्टर मोना से कह रही थी-

'मैंने इस सूअर के बच्चे को विद्या देवी की सिफारिश पर स्कूल टीचर की नौकरी दी—कल रात इसे लोकल ट्रेन में परेशानी हुई तो आज मैं इसके रहने की समस्या सुलझा रही थी। इसे मैं रहने का ठिकाना दिखाने गई और यह कुत्ता मूर्ख "भेड़िए की तरह मुझ पर टूट पड़ा। भगवान आपको देवी बनाकर भेज दिया वरना इस उम्र तक तो इंज्जत संभालकर रखी थी— शादी तक नहीं की थी इस उम्र में यह मेरे मुंह पर कालिख अवश्य मल देता।'

कहते-कहते प्रिंसिपल किसी मासूम कुंवारी लड़की की तरह फूट-फूटकर रोने लगी और सूरज किसी आजीवन कारावास की प्रतीक्षा कर रहे अपराधी की भांति खड़ा रहा। लेडी इन्स्पेक्टर मोना ने सूरज को घूरकर रिसिपल से कहा, 'आप इत्मीनान रखिए, मैडमI मैं इसे अच्छी तरह समझाऊँगी। आप रिपोर्ट लिखवा दीजिए स्थानीय थाने में।'

प्रिंसिपल ने लरजकर कहा, ‘नहीं-नहीं, रिपोर्ट नहीं लिखवाऊंगी, सारी सोसायटी मुझे जानती है। अखबारों वाले तत्काल ले उड़ेंगे। एक बार भी कटघरे में वादी बनकर खड़ा होना पड़ा तो दूरदर्शन वाले रात्क्षण कैच कर लेंगे।’

'जो भी हो, इसे किसी दूसरे आरोप में रखा जाएगा।'

'यही तो मैं भी चाहती हूं। इन्स्पेक्टर मोना ! चाहे दस बीस हजार रुपए खर्च हो जाएं लेकिन इसे कम से कम उम्रकैद होनी चाहिए।'

मोना ने रिवाल्वर के इशारे से सूरज से कहा, 'चलो मेरे साथ और याद रखना। तुम्हारी छोटी-सी चालाकी तुम्हें मौत की नींद सुला देगी। मैं डायरेक्ट गोली भारती हूं।'

सूरज लड़खड़ाता हुआ बाहर निकल आया। उसका ऊपरी शरीर बिलकुल नंगा था निचले धड़ पर सिर्फ पतलून थी।

क्षेत्रीय थाने के पूछ-ताछ वाले कमरे में सिर्फ इंस्पेक्टर मोना और सूरज ही थे। लेडी इन्स्पेक्टर मोना से मुंबई के प्रत्येक क्षेत्र के पुलिस वाले सुपरिचित थे। इसलिए कोई भी उसके काम में तब तक हस्तक्षेप नहीं करता था जब तक वह स्वयं न चाहती।

सूरज खड़ा हुआ था और उसके चेहरे पर मलीनता-सी छाई हुई थी। इंस्पेक्टर मोना ने जोर से घण्टी पर हाथ मारा। एक कांस्टेबल हड़बड़ाया हुआ अन्दर आया और मोना ने आंखें निकालकर कहा- 'इतनी देर लगती है?"

'क्षमा कर दीजिए।'

'गेट आऊट।'

कांस्टेबलं जल्दी से एक शीशे का जार मेज पर रखकर चला गया। जिसके अन्दर छोटे-छोटे मेंढ़क भरे हुए थे। सूरज ने थूक निगलकर गला तर करने की कोशिश की। मोना ने उसे घूरकर देखा और बोली 'अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मेरे हर सवाल का ठीक दो वरना याद रखो मैं मुजरिमों को मारना इस ठीक जवाब लिए पसन्द नहीं करती, क्योंकि मार खा-खाकर नए अपराधी ठोस हो जाते हैं फिर एक समय ऐसा जाता है कि उनके शरीर को जलती हुई सलाखों से भी दागो तो भी उनके ऊपर असर नहीं होता।’ 

सूरज कुछ नहीं बोला। मोना ने जार की तरफ इशारा करके कहा, 'ये मेंढ़क देख रहे हो?"

सूरज थूक निगलकर रह गया। मोना ने कहा 'एक बार ऐसा मुजरिम मैंने पकड़ा था जिसने पांच हत्याएं की थीं— मैंने उसे एक चांटा मारे बिना एक एक शब्द उगलवा लिया था। जानते हो कैसे? ' मोना ने फिर कहा

'हर झूठ पर उसे एक जिन्दा मेंढ़क निगलना पड़ता था।' सूरज बहुत अधिक भयभीत हो गया। उसे ऐसा लगा जैसे जीवित मेंढ़क उसके गले से उतरकर उसकी छाती में मचल रहा हो। उसके रौंगटे खड़े हो गए।

इन्स्पेक्टर मोना ने कहा, 'कल रात तुमने वीरार से चलने वाली आखिरी लोकल ट्रेन में बोरीवली से सफर किया था?'

सूरज जल्दी से कहा ने, "ज ज जी हां किया था।'

"तुम्हारी सर्विस की शिफ्ट सुबह दस बजे से शाम छ: बजे तक है फिर दो बजे के बाद तक तुम यहां क्या कर रहे थे?" सूरज ने प्रिंसिपल के छाप की दवा के लिए चर्चगेट जाने से वापसी तक की कहानी सुनाकर कहा-

'चर्चगेट का कैमिस्ट गवाह है।'

‘हुं, तुम लेडीज फर्स्ट क्लास में क्यों सवार हुए थे?’

'भागकर जल्दी में जो सामने डिब्बा नजर आया उसमें चढ़ गया— फिर कांदेवली पर उतरकर डिब्बा बदलने लगा तो एक टी० सी० और हवलदार ने पकड़ लिया। वापस उसी - डिब्बे में चढ़ा लिया और उन लोगों ने मुझे अन्धेरी स्टेशन पर छोड़ा दस रुपए लेकर।

'उस लेडीस कम्पार्टमेंट में तुमने किसी लड़की को भी देखा या?

सूरज की निगाहें जार में भरे मेंढ़कों पर पड़ीं और उसने कहा, 'जी हां, वह किसी पिछले स्टेशन से ही बैठी थी।'

'कांदेवली से पहले ही कहीं उतर गई?"

'जी नहीं, उसने मुझे एक लिफाफा दिया और कहा कि इसे ऊपर लिखे पते पर पहुंचा देना और फिर वह चलती गाड़ी से कूद गई।'

'नहीं।'

'उसने वह चिट्ठी मेरे सामने ही लिखी थी- अपने वैनिटी बैग से एक नोट बुक निकालकर उस पर बालपेन से लिखा था और एक लिफाफे पर पता लिखकर मुझे दे दिया।’

'और वह वैनिटी बैग - नोट बुक और बालपेन।'

'वह शायद उसी मीट पर रह गए थे—उसे ट्रेन से कूदते देखकर मेरे होश उड़ गए थे।'

'तुमने वह लिफाफा उसके बताए पते पर पहुंचा दिया ?"

'न..न...नहीं।'

'क्यों ?'

"क्योंकि उसके ऊपर लिखा था— जी० आर० पी० का कोई भी थाना।'

'ओहो।'

'मैंने सोचा था कि अगर मैं खुद लेकर जाऊंगा तो पुलिस मुझसे पूछ-ताछ करेगी, जबकि मैंने उस लड़की को जिन्दगी में पहली और आखिरी बार देखा था।'

'मैंने सोचा था उसे पोस्ट मार दूंगा।'

'फिर ? "

'पोस्ट किया?"

'नहीं, मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी।'

'कहां है वह लिफाफा?'

सूरज ने लिफाफा निकालकर मोना की तरफ बढ़ा दिया| मोना ने लिफाफे के ऊपर देखा, फिर उसके अन्दर से परचा निकाला। वही पंक्ति लिखी थी जो गेट बुक के निचले पन्ने पर अपना अंक छोड़ गई थी और उस नोट बुक से फाड़ा हुआ परचा भी था।

मोना ने सूरज को बहुत ध्यानपूर्वक देखा और बोली- 'तुम जानते हो, इसमें क्या लिखा है?"

'जी नहीं, मैंने खोलकर भी नहीं देखा।'

'लो पढो ।'

मोना ने पन्ना उसकी तरफ बढ़ा दिया। सूरज ने उस पर लिखी पंक्ति पढ़ी और उसे ऐसा लगा जैसे अब वह फांसी पर लटकने वाला हो।

उसके होंठों से कुछ न निकल सका। आंखें फाड़कर वह मोना की तरफ देखता रह गया।

'अब इस जार में रखे मेंढ़कों की गिनती गिन लो।'

 

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