'अभी भैया फ्लॅट से नहीं निकले होंगे ।

उसने सोचा और समय व्यतीत करने के लिए वह बस स्टैंड की तरफ चला गया। क्योंकि उसे चिट्ठी पढ़ने की उत्सुकता थी। लेकिन कोई जगह नजर नहीं आ रही थी।

बस स्टैंड पर हरेक नम्बर की बस के लिए लम्बी-लम्बी लाइनें लगी हुई थीं और एक जगह लाइन में लगी हुई एक खूब सूरत-सी औरत को लाइन वाले आगे-पीछे से दबा रहे थे । लेकिन उसे इस बात की रत्ती भर भी चिन्ता- खिन्नता क्रोध नहीं था, क्योंकि यह तो प्रतिदिन का नियम सा बन चुका था।

एक जगह रेलिंग पर दो मुंबइया लड़के बैठे थे, जिनमें से एक कह रहा था। 

लाइन में लगे-लगे उसे उस चिट्ठी का ध्यान आया जो मरने वाली लड़की ने उसे दी थी, लेकिन वह' चिट्ठी पढ़ने का अवसर ही नहीं था।

इतने में तीन सौ सोलह नम्बर की एक साथ चार बसें जाकर लगीं और लाइन तेजी से आगे बढ़ने लगी। सूरज ने इत्मीनान का सांस लिया।

गुप्तचर विभाग की लेडी इंस्पेक्टर मिस मोना कपूर को भरसक चेष्टा करने पर भी साढ़े आठ बजे अवकाश मिल पाया। साढ़े आठ बजे उसने इंस्पेक्टर खाण्डेक र को फोन करके क्षमा याचना की और बताया कि वह नौ बजे तक चर्च गेट पहुंच रही है।

तन पर टीशर्ट और पतलून, पैरों में स्पोर्ट्स शू, तराशे हुए बाल, गोरी रंगत, मोहक नयन-नक्श, गहरी हरी बिल्ली जैसी • आंखों से टपकती हुई प्रतिभा ने ही उसे विभाग में ख्याति दिला रखी थी ।

बड़े-बड़े आफीसर उसे देखकर आहें भरते थे लेकिन किसी में इतना साहस नहीं था कि वह मोना से आंखें भी मिला सके। ऐसा लगता था जैसे हर वक्त उसकी आंखों से बिजली का कैरंट गिकलता हो ।

सिवाय जरूरी काम के वह किसी से कोई बात नहीं करती थी। उसके हाव-भाव से ऐसा लगता था जैसे सब समय वह व्यस्त हो। अगर कार्यरूप में नहीं तो मानसिक रूप से तल्लीन रहती थी। शरीर सदैव पतिशील रहता था।

कुछ लोगों की धारणा थी कि अगर वह इस विभाग में जीवन नष्ट करने न आती तो किसी भी बड़े प्रोड्यूसर की फिल्म में हीरोइन का चांस आसानी से मिल सकता था।

अपने समय के एक जाने-माने और अपराध जगत के लिए प्राणघातक गुप्तचर विभाग के महाधीक्षक की बेटी थी। खान दानी दौलतमंद थी। लेकिन अपने बाप की इकलौती थी। मां के देहांत के बाद उसे बाप की ही संगत मिली थी और उसकी अभिरुचि पुलिस विभाग की ओर हो गई थी।

इस अभियाँच में विशेषकर उसकी मां की वह दुर्घटना प्रस्त मौत थी जो कुछ ऐसे बदमाशों के हाथों हुई थी जो उसके बाप से एक बड़े मुजरिम को छुड़वाने के लिए उसकी मां को उठाकर ले गए थे और बाप ने जब उस मुजरिम को छोड़ने से इनकार कर दिया था तो उन लोगों ने उसकी मां को कितनी रातें कितने लोगों से बलात्कार कराया था कि वह मर गई और उसकी लाश एक खुली सड़क पर बिलकुल नंगी हालत में पाई गई थी ।

मोना कपूर की बन्द जीप जिप्सी चर्च गेट के बाहर रुकी तो उसे जानने वालों की आंखों से बिजली-सी कौंध गई । मोना ने किसी की तरफ ध्यान भी नह दिया, अपना मजबूत डण्डा हाथ में पकड़े, वह लम्बे-लम्बे डग भरती हुई अन्दर दाखिल हुई। जी० आर० पी० थाने के इंचार्ज इंस्पेक्टर खाण्डेकर ने बड़े उत्साह और शिष्ट भाव से उसका स्वागत किया । मोना ने बिना किसी भूमिका अथवा औपचारिक बात चीत के कहा-

‘जो केस मेरे हाथ में था उसके मुंजरिम का मुंह खुलवाना बहुत जरूरी था वरना कई जानें जा सकती थीं।’

इंस्पेक्टर खाण्डेकर ने दांत निकालकर कहा ‘मैं जानता हूं, लेडी इंस्पेक्टर मिस मोना कपूर जैसी वक्त की पाबंद आफीसर का इतने घण्टे लेट होना अकारण नहीं हो सकता।’

'क्या मामला है ? मेक हेस्ट |

"मुझे मालूम है, सारी रात जागते बीती होगी।' 

'डोंट वेस्ट दी टाईम प्लीज ।'

 "सारी सारी ।'

इंस्पेक्टर खाण्डेकर ने एक नोट बुक निकालकर फटे हुए पन्ने के नीचे की लिखाई तेज रोशनी में शीशे से दिखाई । मोना कपूर के माथे पर सलवटें उभर आईं।

‘यह नोट बुक एक ऐसी वैनिटी बैग से मिली है जो श्रीमता शांति वर्मा को कल रात की आखिरी लोकल ट्रेन के लेडीस फर्स्ट क्लास में पड़ा हुआ मिला था।’

मोना ने चौंककर कहा-

"ओहो श्रीमती शांति वर्मा I

‘जी हां।’

‘थोड़ा जल्दी जल्दी मुझे डिटेल बताइए।’

इंस्पेक्टर खाण्डेकर मोना से भली-भांति परिचित था। उसने जल्दी-जल्दी सविस्तार बताया, अन्त में बोला 'बस, संयोगवश ही नोट बुक के इस फटे हुए पत्ते ने मुझे आकृष्ट कर लिया और फिर मैंने इसके नीचे यह लिखाई की "छाया खोज ली “”

'ठीक है, ठीक है, आपने मुंबई सेन्ट्रल से सम्पर्क किया ?' 'जी हां, इंस्पेक्टर शिन्दे को मैंने निर्देश दिए थे कि वह उस हवलदार और टी० सी० के नाम मालूम करके रखें जिनकी ड्यूटी आखिरी ट्रेन पर थी और जिन्हें श्रीमती शांति वर्मा ने उस कम्पार्टमेंट से उतरते देखा था।' 

‘आप इंस्पेक्टर शिन्दे को फोन कीजिए कि हवलदार और टी० सी० को थाने में बुलवाएं-मैं वहां पहुंच रही हूं।’

‘बेहतर है।’

"और हां, यह वैनिटी बैग मेरे पास रहेगा।'

फिर उसने मारुती जिप्सी की चाबियां मेज पर डालकर कहा=

'किसी कांस्टेबल ड्राइवर से मेरी गाड़ी मुंबई सेन्ट्रल पहुं चवा दीजिए—मैं लोकल पकड़कर जाऊंगी मेरे पास समय कम

'बेहतर है, मैं जानता हुं - आपके पास समय का अभाव है।'

मोना कपूर व निटी बैग एक पुराने अखबार में लपेटकर तेज-तेज चलती हुई बाहर निकल आई। एक फास्ट लोकल ट्रेन चलने को ही थी। मोना ने दौड़कर जो कम्पार्टमेंट सामने आया पकड़ लिया। वहं दूसरी श्रेणी थी। खचाखच भरी हुई। मोना डण्डा पकड़े पायदान पर खड़ी रही। पीछे से कुछ मवाली टाईप के लड़के आवाजें कसने लगे और एक ने तो मोना के डण्डे पर रखे हुए हाथ पर अपना पूरा हाथ जमा लिया और मोना ने उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया।

फिर पलटकर किसी से बोला ‘ओए, क्या मक्खन मलाई है ?’

फास्ट ट्रेन थी, इसलिए सीधी चर्च गेट पर ही रुकी। मोना ने जैसे ही डिब्बा छोड़ा, सामने ही एक सब इंस्पेक्टर दिखाई दिया जो मोना को पहचानता था। उसने अटेंशन होकर सैल्यूट किया तो मवाली लड़का प्लेटफार्म पर छलांग लगाकर भाग खड़ा हुआ ।

मोना ने उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया । लम्बे-लम्बे डया भरती हुई वह थाने में पहुंची जहां इंस्पेक्टर शिन्दे ने उसका स्वागत किया।

टी० सी० रामचन्द कुलकर्णी और हवलदार तुलाराम भी वहीं थे। दोनों के चेहरों से लगता था जैसे उन्हें गाड़ने के लिए ले पाया जाने वाला हो ।

मोना ने मेज के कोने पर बैठकर इंस्पेक्टर शिन्दे से कहा 'मुझे जितना इंस्पेक्टर खाण्डेकर से पता चल चुका है उससे आगे मैं उन दोनों से मालूम करूंगी।' ‘जी, बेहतर है।’

मोना ने उन दोनों को देखा तो उनके चेहरों की मुर्दनी गहरी हो गई । मोना ने कहा— 'तुम दोनों वाइट ड्यूटी पर दोनों ने जवाब दिया ।

जी, हां।'

'वीरार से चले थे ?"

'नहीं, कांदेवली से सवार हुए थे। 

‘और मुंबई सेन्ट्रल पर उतरे थे ?"

'जी हां।’

'कांदेवली से मुम्बई सेन्ट्रल तक उस कम्पार्टमेंट में कोई घोरत चढ़ी या उतरी ?"

'जी नहीं।' 

‘मतलब यह कि तुम दोनों ने अकेले ही सफर किया ?’

‘जी हाँ ।'

‘और तुम दोनों को यह वैनिटी बैग नहीं नजर आया जो श्रीमती शांति वर्मा को मुंबई सेन्ट्रल से चर्च गेट तक के सफर ये बजर छा गया ?’

दोनों के होंठ हिलकर रह गए। मोना की आंखों से बिजली डी निकल रही थी। फिर भी दोनों में साहस नहीं था कि उसकी बांखों से आंखें हटा लें।'

मोना कपूर ने तीखे स्वर में कहा ‘इस वैनिटी बैग में तुम्हें कितने रुपए मिले थे ?’

ऐसा लगा जैसे दोनों गिर पड़ेंगे। हवलदार तो फिर कुछ जमा हुआ था लेकिन टी० सी० बोल पड़ा एप पांच हजार।'

'और इन रुपयों के लिए तुमने वैनिटी बैग वहीं छोड़ दिय और मुंबई सेन्ट्रल पर उतर गए शिन्दे का चेहरा उतर गया था। लेकिन मोना कपूर ने

रुपयों की बात आगे बढ़ाए बिना दोनों को बारी-बारी घूरकर

'कौन थी वह औरत जिसने डिब्बे में सफर किया था ? ‘सौगन्ध ले ली जिए, हमें नहीं मालूम ।’

'वीरार से चढ़कर कांदेवली से पहले उतरने वाली औरत अपना वैनिटी बैग नहीं भूल सकती-लम्बे सफर के मुसाफिर जरूर ऊंघ लेते हैं इसीलिए कुछ भूल सकते हैं।' टी० सी० ने थूक निगल कर कहा— ‘शायद वह मुसाफिर जानता होगा।’

‘कौन मुसाफिर?’

“हमें उस डिब्बे में एक मर्द नौजवान मुसाफिर भी मिला या लेकिन वह अकेला था और उसके पास दूसरी श्रेणी का पास।”

‘तुमने उसे जुर्माना और किराया लिए बिना छोड़ दिया ?’

‘उसके पास कुछ था ही नहीं— शक्ल और कपड़ों से ही गरीब और परेशान हाल नजर आता था - हमने उसे अन्धेरी स्टेशन से दूसरी श्रेणी में भेज दिया था।’

"सिर्फ उसके हुलिए से ही उसका नाम और पता थोड़े ही मालूम होगा- तुम लोगों ने उसका पास तो चेक किया “होगा ?”

‘जी, उसने पूरा परिचय दिया था— उसका नाम सूरज माटिया था— सरस्वती स्कूल बोरीवली में नया नया टीचर खना है।’

‘वह एम० काम० पास है— लेकिन दो साल से बेरोजगार या इसलिए उसे किसी की सिफारिश से स्कूल टीचर की नौकरी मिल गई तो तुरन्त कर ली वह दस बजे सबेरे से छः बजे शाम तक की शिफ्ट में पढ़ाता है।’

‘देट्स ओ० के०, जा सकते हो।’

दोनों के जाने के बाद मोना कपूर ने उठते हुए इंस्पेक्टर शिन्दे से कहा—'मेरी गाड़ी चनं गेट से एक ड्राइवर कांस्टेबल लाएगा उससे चाबियां ले रखिएगा- मैं लोकल से बोरीवली जा रही हूं।'

‘बेहतर है।’

“और हां, वह पांच हजार रुपए कहीं आपके गले में मछली का कांटा न बन जाएं-बेहतर होगा कि उन्हें इस वैनिटी बैंग में ही रखकर यहीं जमा कर लीजिए—मैं इंस्पेक्टर खाण्डेकर से कहकर उन रुपयों की ऐंट्री भी वैनिटी बैग के साथ करा दूंगी।”

“ज ज जी ”

इंस्पेक्टर शिन्दे का चेहरा उतर गया था। मोना कपूर आवेग से बाहर निकल गई।

पढ़ाते-पढ़ाते सूरज को कई बार ऊँघ आ गई। उसका जी चाहा कि वह क्लास रूम छोड़कर बाहर निकल जाए और जहां भी जगह मिले वह लेटकर बेखबरी की नींद से सो जाए। अचानक एक चपरासी ने उसके कान पर मुंह रखकर चिल्लाकर कहा, 'मास्टर जी।' सूरज इतनी बुरी तरह उछला जैसे रात वाली लड़की की आत्मा ने आकर उसे दबोच लिया हो और वह ऊंघते-ऊंघते जल्दी से खड़ा हो गया।

'हा, क्या हुआ? क्या बात है?"

चपरासी ने उसे घूरकर कहा- 'आप पढ़ा रहे हैं या सो रहे हैं?'

सूरज ने बावलों की तरह कहा— 'पढ़ा रहा हूं।'

'चलिए, आपको मैडम बुला रही हैं।'

'मैडम'! अभी थोड़ी देर पहले ही तो उन्होंने बुलाया था। 

'मुझे नहीं मालूम, मैं तो स्टेशन के बाजार तक गया था।'

'मैडम ने अलमारी दूसरे कोने में रखवाने के लिए बुलाया था। अब क्या काम है? उनकी मां की तबियत तो ठीक है?'

'आपको मैडम ने तत्काल बुलाया है और आप मुझसे वकीलों की तरह बहस कर रहे हैं।'

एकदम जैसे सूरज को होश आ गया, उसने कहा, 'म... म... माफ करना, मैं शायद अब भी ऊंघ रहा था।'

‘इसी तरह ऊंघते रहे तो नौकरी खो बैठोगे।'

सूरज के मस्तिष्क में बम का सा धमाका हुआ। अगले ही क्षण वह किताब मेज पर रखकर सरपट दौड़ लिया और उसके बाहर निकलते ही क्लास रूम में बैठे गिनती के सात बच्चे एक दूसरे से हाथापाई और धींगा-मुश्ती करने लगे।

स्कूल की अधबनी इमारत के तीसरे माले पर एक कमरा बड़ा-सा पूर्ण रूप से तैयार था जिसमें प्रिंसिपल का आफिस था। आफिस के नाम पर एक कोने में एक इतनी खूबसूरत मेज पड़ी थी जो किसी सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल ने सपने में भी न देखी होगी।

मेज के पीछे एक कीमती रिवाल्विंग चेयर एक गोदरेज की फुल साइज अलमारी एक बड़ा-सा रेक जिस पर फाईलों की लाईन लगी हुई थी। पार्टीशन करके एक दरवाजे से अन्दर जाकर एक कीमती शानदार सोफा पड़ा था और एक शानदार डबल बैंड, एक अलमारी, एक किचन, एक टॉयलेट कम बाथरूम, फर्श पर एक मोटा कालीन और दीवार पर एक ऐसी औरत की पेंटिंग जो अपनी कामोत्तेजक अंगड़ाइयों के साथ बालों को पीछे लटकाए, गर्दन पीछे ढलकाए, हाथ पीछे लटकाए और एक टांग दूसरी टांग पर चढ़ाए, छातियां उभारे अर्धलेटी थी। 

सूरज आफिस में हांफता हुआ पहुंचा, क्योंकि बिल्डिंग में सिर्फ सीढ़ियां थीं उन पर भी प्लास्टर नहीं हुआ था। दरवाजे पर से उसने अन्दर आने की अनुमति मांगी तो प्रिंसिपल की आवाज आई-

'कम इन।'

सूरज अन्दर दाखिल हुआ। प्रिंसिपल जिसकी रंगत सुर्ख और सफेद थी, सेहत अच्छी, बाल बिलकुल डाई किए हुए नजर खाते थे, उम्र पचास नहीं तो पैंतालीस अवश्य होगी। एक बहु मूल्य ले किन सादा से कपड़े की साड़ी पहने रिवाल्विंग चेयर पर बैठी बड़ी तन्मयता से कोई फाईल चेक कर रही थी।

सूरज मेज के सामने आदर से खड़ा हो गया। लगभग पन्द्रह-बीस सैकण्ड की खामोशी के बाद खुद सूरज को ही बोलना पड़ा।

'आपने मुझे बुलाया मैडम ?'

प्रिंसिपल ने फाईल पर नजरें जमाए-जमाए कहा, ‘बड़ी जल्दी आ गए आप?’

'ज... ज... ब... ब... बच्चों को पढ़ा रहा था।'

'चपरासी कह रहा था आप ऊंघ रहे थे।'

"व... वह बात यह है कि कल रात भर मुझे सोने को नहीं मिला था।'

 

क्रमशः 

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