ध्रुवी ने मि. सिंघानिया को जाते हुए देखा और कहा, "मैंने और आर्यन ने कोई शादी नहीं की है, डैड..."!!
मिस्टर सिंघानिया ध्रुवी की बात सुनकर पलटकर सवालिया नज़रों से उसकी ओर देखने लगे।
ध्रुवी ने फिर कहा, “हाँ डैड, मैंने और आर्यन ने कोई शादी नहीं की है... कोई शादी नहीं की... हाँ डैड, ये सब शादी एंड ऑल... सिर्फ़ दिखावा है... एक नाटक है... और मैंने ये सब नाटक सिर्फ़ इस फिजूल सी शादी और सगाई से बचने के लिए किया था... और मैंने ही आर्यन को फ़ोर्स किया था कि वो मेरे साथ इस ड्रामे में शामिल हो... हालाँकि इसने मुझे बार-बार मना किया था कि हमें ये नहीं करना चाहिए... लेकिन मेरी ही ज़िद थी ये सब ड्रामा करने की... और चाहे सिचुएशन जो भी हो डैड... मैं इतना बड़ा कदम आपकी मौजूदगी और मर्ज़ी के बिना कभी नहीं उठा सकती... हरगिज नहीं... आपका आशीर्वाद... और आपका साथ... दोनों ही मेरे लिए अहम हैं, डैड!!”
मि. सिंघानिया ने एक पल के लिए तंज भरी मुस्कान के साथ ध्रुवी की ओर देखा और कहा, “क्या वाकई में...? वाकई में मेरी मर्ज़ी तुम्हारे लिए कहीं भी... और थोड़ा भी मायने रखती है?? नहीं रखती... रत्ती भर भी नहीं रखती... क्योंकि अगर तुम्हें मेरी मर्ज़ी या रजामंदी की रत्ती भर भी ज़रा भी फ़िक्र होती... तो इस वक़्त तुम मेरे अगेंस्ट जाकर... इस बेकार से लड़के के साथ यहाँ कभी नहीं खड़ी होती... कभी भी नहीं!!”
ध्रुवी ने मि. सिंघानिया को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, “डैड आप...”
मि. सिंघानिया ने गुस्से और नाखुशी भरे भाव से अपनी हथेली दिखाकर ध्रुवी को बीच में ही टोक दिया, “कोई एक्सप्लेनेशन... कोई दलील... कोई बात नहीं... कुछ नहीं... कुछ नहीं सुनना चाहता मैं तुमसे... कुछ भी नहीं... और रही बात मेरी तुम्हारी खुशियों में शरीक होने... या दाखिल होने की बात... तो अब इस जन्म में तो ये हरगिज मुमकिन नहीं है... क्योंकि तुमने जो कुछ भी करना था... वो तुम कर चुकी हो... (एक तीखी नज़र आर्यन पर डालते हुए) जिसे तुम्हें चुनना था... वो भी तुम चुन चुकी हो... और अब कोई मायने नहीं रखता कि तुमने इस लड़के से शादी की है या नहीं... क्योंकि अपनी तरफ़ से तुम्हें जितना मुझे जलील कराना था... इतना जलील तुम करा चुकी हो... तो अब इसके बाद इससे ज़्यादा तुम मेरे साथ कुछ कर सकती हो... और ना ही मेरे पास अब तुम्हें कुछ देने के लिए ही बचा है... और ना ही मेरा तुमसे अब कोई लेना-देना ही रहा है... हमारा रिश्ता ख़त्म... अभी इसी वक़्त और यहीं... इसीलिए अभी इसी वक़्त... (गंभीर और सख्त भाव से) इस लड़के के साथ निकल जाओ यहाँ से!!”
ध्रुवी ने हैरानी भरे शॉक से कहा, “डैड...”
मि. सिंघानिया ने बेरुखी से अपनी नज़रें फेरते हुए कहा, “चली जाओ यहाँ से... अभी... इसी वक़्त!!”
मि. गुप्ता ने मि. सिंघानिया को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, “सर... ये आप क्या कह रहे हैं... माना उनसे गलती हुई है... मगर जो भी है... मगर ध्रुवी बिटिया बेटी है आपकी... और अगर आप उन्हें घर से निकाल देंगे... तो वह कहाँ जाएंगी... ये तो सोचिए ज़रा सर!!”
मि. सिंघानिया ने गुस्से और दुःख के मिले-जुले भाव से कहा, “मैं ही क्यों सोचूँ मिस्टर गुप्ता... जब इसने एक बार भी मेरी इज़्ज़त को मिट्टी में मिलाने से पहले नहीं सोचा... इसने एक बार भी... मेरी फीलिंग्स और इमोशंस को हर्ट करने से पहले एक बार भी नहीं सोचा... और वैसे भी आपको फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है मिस्टर गुप्ता... (तंज और गुस्से भरे लहजे में आर्यन की ओर देखकर) क्योंकि उसने बहुत पहले ही फैसला कर लिया है कि आख़िर उसे किसके साथ... और कहाँ रहना है!!”
मि. गुप्ता ने कहा, “लेकिन सर...”
ध्रुवी ने नम आँखों से दुखी स्वर में मि. गुप्ता की बात को बीच में काटते हुए कहा, “रहने दीजिए अंकल... कुछ मत कहिए आप डैड से... अगर मेरे इस घर से चले जाने में ही इनकी खुशी है... तो बेशक मैं यहाँ से चली जाऊँगी... क्योंकि डैड चाहे जो भी सोचें... लेकिन हक़ीक़त यही है कि मैं इन्हें बहुत प्यार करती हूँ... और इनकी खुशी से बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है... अगर मेरे इस घर से जाने से डैड के दिल को सुकून और खुशी मिलते हैं... तो मैं चली जाऊँगी यहाँ से... अभी और इसी वक़्त!!”
मि. सिंघानिया ध्रुवी की बात सुनकर अपना मुँह दूसरी दिशा में करके, उसकी ओर अपनी पीठ करके खड़े हो गए, जैसे वो उसे ये दिखा रहे थे कि अब उन्हें उससे या उसके इमोशंस से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था।
मि. गुप्ता ने बात लगातार संभालने की कोशिश करते हुए कहा, “सर ध्रुवी बिटिया तो बच्ची है ना... पर आप तो समझदार हैं ना सर... कम से कम आप तो समझदारी से काम लीजिए... और सोचिए ज़रा... कहाँ जाएगी बिटिया और कैसे रहेगी वो आपके और अपने घर के बिना?... सर गुस्सा थूक दीजिए... माफ़ कर दीजिए बिटिया को... प्लीज़ सर!!”
मिस्टर सिंघानिया कुछ पल शांत रहने के बाद बोले, “ठीक है मि. गुप्ता... क्योंकि मैं आपकी और आपकी वफ़ादारी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ... इसीलिए मैं आपकी बात मानते हुए... ठीक है... मैं भी सब कुछ भूलकर इसे माफ़ करने के लिए तैयार हूँ... लेकिन उसके लिए मेरी भी एक शर्त है!!”
ध्रुवी मिस्टर सिंघानिया के मुँह से शर्त का नाम सुनते ही जैसे सकते में आ गई और अनायास ही ध्रुवी के चेहरे पर भय और आशंका भरे भाव की घबराहट उभर आई।
मि. सिंघानिया ने एक पल रुककर बिना पीछे वापस पलटे ही कहा, “और मेरी शर्त ये है... (एक पल खामोश रहने के बाद) कि ध्रुवी को इस घर में वापस आने के लिए... इसे इस लड़के से सारे ताल्लुक... आज... अभी... और इसी वक़्त यहीं ख़त्म करने होंगे... और वादा करना होगा कि ये फिर भविष्य में कभी भी... दोबारा इस लड़के से मिलने... या कोई भी राब्ता रखने की कोशिश तक भी नहीं करेगी... और इस लड़के का नामोनिशान भी अपनी ज़िंदगी से पूरी तरह मिटा देने होंगे... अगर इसे मेरा यह फैसला मंज़ूर है... तो बेशक वह पहले की तरह... अपने इस घर की मालिक बनकर यहाँ रह सकती है... लेकिन अगर उसे मेरी ये शर्त मंज़ूर नहीं है... तो फिर मेरे घर में भी इसके लिए कोई जगह नहीं है... और वो अभी इसी वक़्त यहाँ से जा सकती है!!”
मि. गुप्ता ने परेशान होकर ध्रुवी के करीब आकर कहा, “ध्रुवी बिटिया... ज़िद छोड़ दो बिटिया... और मान लो अपने डैड की बात... तुम अच्छे से जानती हो... वह तुमसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करते हैं... और तुम्हारी खुशी से बढ़कर उनके लिए कुछ भी नहीं है... अगर वो तुमसे ऐसा करने के लिए कह रहे हैं... तो यक़ीनन... वो तुम्हारे लिए बेहतर ही सोच रहे हैं... तो बेटा तुम उनकी बात मान लो... उन्होंने कहा है वो तुम्हें माफ़ कर देंगे बिटिया... मान लो अपने डैड की बात... मान लो बिटिया!!”
ध्रुवी ने मिस्टर गुप्ता की बात का कोई भी जवाब नहीं दिया। उसने मि. सिंघानिया की बात सुनकर बस अपनी आँखों से अपने गालों पर बहकर आए आँसुओं को अपने हाथ से पोंछा और चेहरे पर दर्द भरे भाव के साथ वो फिर मिस्टर सिंघानिया की ओर बढ़ गई।
ध्रुवी ने मिस्टर सिंघानिया की पीठ को निहारते हुए कहा, “एम सॉरी डैड... एम सॉरी... कि मेरी वजह से आज आपको... अपने दोस्त के सामने शर्मिंदा होना पड़ा... सॉरी कि मैं आपकी एक अच्छी और लायक बेटी नहीं बन पाई... सॉरी कि मैंने आपका दिल दुखाया... सॉरी कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई... सॉरी कि... (एक पल रुककर अपने इमोशंस को काबू करने के लिए एक गहरी साँस लेते हुए भावुकता से) एम सॉरी... एम सॉरी डैड फॉर एवरीथिंग... एम रियली सॉरी!!”
मिस्टर सिंघानिया ने ध्रुवी की बात सुनी तो उम्मीद भरी नज़रों से उसकी ओर पलटे, लेकिन ध्रुवी के अगले शब्द सुनकर उनकी सारी उम्मीद पल में कांच के महल की तरह बिखर कर चूर-चूर हो गई और उनके चेहरे पर अविश्वास और गुस्से भरे भाव उभर आए।
ध्रुवी ने अपने इमोशंस पर काबू पाने की पुरज़ोर कोशिश करते हुए कहा, “पर डोंट वरी डैड... डोंट वरी... आइन्दा आपको मेरी वजह से... कभी कोई परेशानी नहीं होगी... कभी भी आपका दिल नहीं दुखेगा... कभी भी आपकी उम्मीदें नहीं टूटेंगी... जा रही हूँ मैं... (अपने घर पर चारों ओर नज़र दौड़ाते हुए) आपके घर और इस शानो-शौकत से बहुत दूर... जहाँ बेशक मुझे यह लग्ज़ेरियस लाइफ़ ना मिले... लेकिन एक खुशनुमा ज़िंदगी गुज़ारने के लिए... मेरी मोहब्बत मेरे साथ होगी... और मेरे लिए... जीने के लिए मेरी मोहब्बत ही काफी है... एम सॉरी डैड... एम सॉरी... लेकिन मैं आर्यन के बिना नहीं रह सकती... (नम आँखों से भावुक होकर) इनफैक्ट मैं उससे अलग होकर जी ही नहीं सकती डैड... और मैं इस रुतबे और शोहरत के लिए... अपनी मोहब्बत को हरगिज़ ठुकरा ही नहीं सकती डैड!!”
मिस्टर सिंघानिया ने हर्ट और दुखी भाव से कहा, “मगर अपने बाप को ज़रूर ठुकरा सकती हो!!”
ध्रुवी ने उलझन भरी भावुकता के साथ कहा, “डैड... एम सॉरी... एम रियली सॉरी डैड... मैं...”
मिस्टर सिंघानिया ने दुःख भरे गुस्से से ध्रुवी को बीच में ही टोकते हुए कहा, “अगर कल को मैं मर भी जाऊँ... तब भी मेरी सूरत मत देखना... और ना ही अपनी शक्ल कभी मेरे सामने मत लाना... (सख्त और गुस्से भरे भाव से) और आइन्दा अगर तुमने मुझे अपनी शक्ल भी दिखाने की कोशिश की... तो तुम मेरा मरा हुआ मुँह देखोगी!!”
ध्रुवी ने भावुक होकर तड़पकर कहा, “डैड प्लीज़... प्लीज़ डोंट से दिस... आप मुझसे नाराज़ हैं... तो बेशक मुझे कोसें... लेकिन अपने लिए ऐसे अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल हरगिज ना करें... प्लीज़ डैड!!”
मिस्टर सिंघानिया ने गुस्से से अपनी मुट्ठियों को भींचते हुए कहा, “अभी इसी वक़्त निकल जाओ मेरे घर से!!”
नेहा ने आगे कुछ कहने के लिए अपना मुँह खोलने की कोशिश की, तो मिस्टर सिंघानिया बीच में ही उस पर चीख पड़े।
मिस्टर सिंघानिया ने लगभग चीखते हुए कहा, “निकल जाओ यहाँ से सुना नहीं तुमने... निकलो यहाँ से... अभी... इसी वक़्त चली जाओ यहाँ से... (गुस्से से चिल्लाते हुए) चली जाओ!!”
पहली बार मिस्टर सिंघानिया की आँखों में अपने लिए इस कदर गुस्सा और नफ़रत देखकर ध्रुवी के लिए अब एक पल भी यहाँ ठहरना दुर्भर और असहनीय हो गया था। इसीलिए वह अपनी सुबकियों को रोकने के लिए अपने मुँह पर हाथ रखकर अगले ही पल लगभग दौड़ते हुए मेंशन के मेन दरवाज़े से बाहर निकल गई और यह देख आर्यन भी जल्दी से उसे संभालने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ा। आर्यन उसे रुकने के लिए लगातार आवाज़ दे रहा था, मगर ध्रुवी बिना रुके, बस सुबकते हुए दौड़े चली जा रही थी। कुछ देर बाद ध्रुवी बाहर के मेन दरवाज़े से दौड़ते हुए सड़क पर कुछ दूरी पर जाकर रुक गई और बेतहाशा रोते हुए भावुकता के साथ वह वहीं सड़क पर ही अपने घुटनों के बल बैठकर बेतहाशा सिसकने लगी।
आर्यन उसके पीछे आया और जब उसने ध्रुवी को इस हाल में देखा तो जल्दी से उसे संभालने के लिए उसके करीब अपने घुटनों पर बैठकर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसका सर अपने सीने से लगा लिया। ध्रुवी ने आर्यन के सीने से लगकर उसकी शर्ट को मज़बूती से अपनी मुट्ठी में कस लिया और वो पहले से और भी ज़्यादा भावुक हो उठी, जबकि आर्यन लगातार उसके सर को सहलाते हुए उसे शांत करने की भरपूर कोशिश कर रहा था, मगर हर बढ़ते पल के बाद ध्रुवी का रोना और सिसकना बढ़ता ही गया और कुछ देर में ही वहाँ ध्रुवी की बेतहाशा सुबकियाँ गूंजने लगीं।
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