दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई

काहे को दुनिया बनाई रे, काहे को दुनिया बनाई

भाई लोगों, आप लोगों ने यह गाना तो सुना ही होगा? और ये सवाल भी अक्सर मन में उठता होगा कि आखिर ये दुनिया बला क्या है? वही रोज़ रोज़ की खिटपिट. सुबह उठो, नहाओ धोवो, और मुंह उठाकर अपने अपने ऑफिस दफ्तर स्कुल कॉलेज या काम पर लग जाओ. यही एक रूल है जिसे हर कोई फॉलो करता है. कोई सरकारी अफसर हो तो वह सूटबूट पहिन कर जाएगा. कोई रिक्शा खींचने वाला हो, तो ऐसे ही चल देगा. लेकिन जाना तो सबको है. जाते तो सब हैं. रूल तो रूल है. और रूल ये है कि कुछ भी नहीं. क्यों सही कहा न? हाहा.

सब रुपये की माया बाबू भैया. सब रुपये की माया.

खैर चलो कोई सरकारी बाबू सुबह सुबह बढ़िया नाश्ता पानी करके किसी सरकारी दफ्तर में जाए तो समझ आता है, लेकिन ज़रा सोच कर देखो कोई रिक्शे वाला सुबह उठकर क्या कर रहा है भाई, हलकी हो या भारी, दस रूपए सवारी. अब लीजिये सवारी ही ढोए जा रहे हैं. किसी का काम कपडे धोने का है तो लीजिये उठाइये, चार बूँदों वाला आहा...उजाला और पीटना शुरू करिए कपड़ों को पत्थर पर. कैसे कैसे काम करते हैं लोग इस रुपैया के लिए. कहावत तो है ही, बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया. मेरे जानने वाले में एक लड़का था जिसका काम था धोना, क्या धोना ये उसे नहीं बताया जाता. चाहे बर्तन हो , गाडी हो, कपडे हो, या कोई भी चीज़, उसके सामने जो आता, वो धो देता. क्यों धोता? इसका जवाब तो वही है न, बाप बड़ा न...हाहा

रुपैया ऐसे ऐसे खेल कराता है कि पूछो न. भाई हमारा मल्टी नेशनल कंपनी में काम करता है. बॉस की आवाज़ से चिढ़ता है. मन करता है जब भी बोले तो खींचकर तमाचा जड़ दे. लेकिन क्या करें, रुपैये का खेल बाबू भैया. बॉस की चुभती हुई आवाज़ की रिप्लाई में भी शहद जैसी आवाज़ ही निकालता है भाई अपना. रुपया चीज़ ही ऐसी है.

इसी रुपये में खेल में हम फंसा लेते हैं खुद को. इ एम् आई भरनी है, घर की, फ़्लैट की, गाडी की, महंगे फोन की तो बॉस की गाआअ....गालिया भी खायेंगे.

फिर होता ये है कि ज़िन्दगी तो भैया आप लोगों की चल रही है किश्त पर. और आप एक किश्त फिर दूसरी किश्त के बोझ तले झुकते जाते हैं, झुकते जाते हैं. और एक समय ऐसा आता है, लेट ही जाते हैं.

पर चिंता नक्को करने का. बियर पीने का, काफी पीने का, चाय पीने का, माल फूंकने का, जो करने का कर, इधर दिमाग नहीं लड़ाने का, आगे की कहानी सुनने का. क्या बोलता है सर्किट? सुनाने का मांगता न?

तो सुन न बिडू, अक्खा बम्बई इलाके में अपना ही राज़ चलता है – हाहा, अबे नहीं यार. मज़ाक कर रहा था, सीरियस नहीं होने का. अब देखते हैं कि चुन्नी के क्या हाल हैं.

तो भाई लोगों. ख़ुशी की बात ये है कि अपने चुन्नी बाबू की नौकरी तो लग गयी . हाय पर नज़र न लगे. पर नौकरी लगने से बात नहीं बनती न. छोटी बच्ची हो क्या? जो सब समझाना पड़ेगा. अरे बाबा गाँव से भागा हुआ लड़का है अपना चुन्नी. कभी सपने में भी इन्डक्शन पर खाना नहीं बनाया है. उसके यहाँ तो कपड़ों को हाथ लात से कचर कचर कर धोया जाता था. रही बात पोछा लगाने की तो मिटटी के घरों में आज भी गोबर ही लीपा जाता है. अब ये तो है नहीं न कि इतने चमकते हुए फर्श पर गोबर लीप दिया जाए. और फिर सॉरी बोलकर और रायता फैला दिया जाए.

तो अपने चुन्नी का काम धाम आज से शुरू होने वाला है और चुन्नी की गाड़ी चलती का नाम ज़िन्दगी वाले पटरी पर आने वाली है. चुन्नी झूमते झूमते मिस चड्ढा के घर के दरवाज़े पर आ खड़ा होता है. तभी वो मुड़कर पीछे देखता है तो पाता है कि मोची टेढ़ी मुस्कान पास कर रहा होता है. चुन्नी यहीं से उसे राम राम कहता है. और मोची इशारे ही इशारे में उसे दस रुपये लाने को कहता है. इधर चुन्नी भी इशारे ही इशारे में उसको शाम में दस रुपये देने का वादा करता है. चुन्नी दरवाज़ा खटखटाता है तो अन्दर से आवाज़ आती है. हाँ हाँ, कौन है?

चुन्नी कहता है, मैं हूँ, परम.

हाँ चले आओ अन्दर

चुन्नी अन्दर जाता है. मिस चड्ढा और मिस्टर चड्ढा गार्डन में बैठते हुए थे. इतना सुन्दर गार्डन देखकर तो चुन्नी की आत्मा गाय के उस बच्चे की तरह हो जाती है जो अभी कुछ समय पहले ही पैदा हुआ है और उछल उछलकर खेत में उछल कूदमचा रहा हो. इतना सुन्दर गार्डन मानो अभी मोर की तरह पंख फैलाकर नाचने लगेगा. जब चुन्नी अपने ख्याल में खोया हुआ था तब मिस चड्ढा दो बार प्रतापी प्रतापी बुला चुकी थीं. तीसरी बार में चुन्नी का ख्याल टूटा और वो धडाम से असली की दुनिया में आ गिरा. हाँ हाँ मैडम. कहिये. कहाँ से शुरू करूँ.

तब मिस चड्ढा मिस्टर चड्ढा से कहती हैं, अच्छा सुनो डार्लिंग. मैं तुम्हें बताना भूल गयी. ये है हमारे घर का नया नौकर. नाम सुनोगे इसका. और थोडा हँसते हुए बोली, तो इसका नाम है, परम प्रतापी.

मिस्टर चड्ढा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा. एक सिंगल हड्डी. पतली सी डंडी जैसे. जैसे कभी नाले, तालाब काई में कोई एक बेहद पतला डंडा खड़ा होता है न, एकदम वैसा ही. सीधा खडा होने पर भी लगता है कि किसी का सहारा लेकर खड़ा है. और इसका नाम है परम प्रतापी. मिस्टर चड्ढा मन ही मन सोचकर मुस्कराए. परम प्रतापी, हम्म. वो हँसते हुए कूलर की तरफ गए उसका डायरेक्शन दूसरी और कर दिया. की कहीं हवा इस और आई तो यह उड़ न जाए.

और हँसते हुए पूछे, हाँ तो भाई परम प्रतापी जी! सुनाइये अपना प्रतापी किस्सा?

चुन्नी को समझ नहीं आया. उसने झेंपते हुए पूछा, क्या मालिक?

अरे भैया, अपने प्रताप के बारे में बताओ? कौन कौन सा किला फ़तेह किया है? कौन सा अश्वमेघ यज्ञ जीता है? कौन से राक्षस को हराया है? अरे भाई हम भी तो जानें परम प्रतापी जी के बारे में.

चुन्नी जब अब भी नहीं समझा. तब मिस्टर चड्ढा ने सीधे सीधे ही पूछ लिया. अरे क्या क्या कर लेते हो?

चुन्नी ने बताना शुरू कर दिया. साहब सब कुछ कर लेते हैं. जो आप कहें. खाना ऐसा बनाऊंगा कि आप उंगलियाँ चाटते रह जाओगे, बर्तन ऐसा धोऊंगा कि शक्ल भी दिखाई देगी उसमें.कपड़े इतना साफ़ कर दूंगा कि हफ्ते भर पहन लेंगे आप. और पोछा तो मैं ऐसा लगाऊंगा कि पत्थर का फर्श भी शीशा जैसा दिखेगा. फूल लगाना फूल उखाड़ना. बिजली पंखा ठीक करना. पानी चलाना. अरे आप कहें तो आपके एक इशारे पर मिनटों में पूरा घर ही साफ़ कर दूंगा.

हैं? नहीं नहीं. घर साफ़ करने की जरुरत नहीं. आदमी दिल्चस्प मालूम पड़ते हो. जाकर सबसे पहले अपनी मैडम और मेरे लिए दो कप बढ़िया चाय बनाकर पिलाओ तब जानूं. और ये कहकर मिस्टर चड्ढा ने उसे काम पर लगा दिया.

और अपने प्रतापी उर्फ़ चुन्नी बाबू नहीं नहीं, इसबार गलत बोल गया. चुन्नी उर्फ़ परम प्रतापी चाय बनाने के लिए किचन में घुसे. अब किचन में तो तीन मशीन. हर काम मशीन ही मशीन से. और कौन सी मशीन से क्या काम लेना है, ये तो कल मैडम ने बताया ही था लेकिन इतना याद कैसे रहे. चुन्नी को तो कल का ही कुछ याद नहीं रहता कि कल कल क्या हुआ था? तो आज का कैसे याद रहता. अब आप कहेंगे कि खाना खाना तो नहीं भूला होगा. तो मैं आपसे कुछ झूठ नहीं कह रहा. चुन्नी को खाना खाना भी वाकई याद नहीं रहता. क्यूंकि दो टाइम खाना मिला ही कब है. और जो चीज़ मिले न उसे याद क्या करना.

चुन्नी के सामने बढ़िया कांच के शीशे रखे थे. शीशों में चायपत्ती, चीनी, हल्दी, मिर्च, नमक और न जाने क्या क्या सब कुछ था. पर उसे अचानक मालिक की दी हुई हिदायत याद आई कि बिना पूछे कुछ नहीं छूना है. तो उसने किचन से झाँककर मिस चड्ढा से पूछा कि मैडम ये चीनी चायपत्ती के शीशे छू लूँ न?

मिस चड्ढा ने गार्डन में बैठे बैठे ही जवाब दिया, हाँ हाँ बिलकुल. लेकिन आराम से. देखना कुछ टूटे न.

अब देखिये भाई लोगों. ऐसा है कि आपको यह एकदम नहीं भूलना चाहिए कि अपने चुन्नी उर्फ़ परम प्रतापी भाई गोंडा के एक गाँव से भागे हुए छोकरे हैं. और वो भी ऐसे गाँव जहाँ बिजली आये हुए भी अभी जुम्मा जुम्मा एक साल हुए होंगे, तो उनके लिए तो खाना बनाना, चाय बनाना, खिचड़ी बनाना ये सब तो चूल्हे पर ही होता था न. और चूल्हा भी कौन सा, मिटटी का. जिसको सुलगने में भी समय लगता है. पहले उसमें उपला लगाओ. फिर ज़रा सी आग से सुलगाओ फिर लकड़ी डालकर उसमें फूँको, तब न आग पकड़ेगी और कुछ बनेगा. लेकिन यहाँ तो ऐसा कुछ था नहीं. यहाँ तो मशीने हैं और कल मिस चड्ढा ने इन्हीं मशीनों में किसी एक मशीन की ओर इशारा किया था जिसमें खाना बनाना है. अब किस मशीन की ओर इशारा किया था यह समझ नहीं आ रहा था. और चुन्नी को लगा कि अब इतनी छोटी चीज पूछने जाऊँगा तो अभी कुछ देर पहले साहब के सामने में जो लम्बी लम्बी हांककर आया हूँ, उसकी तो मिटटी पलीत हो जायेगी न. इसलिए चुन्नी ने अपना दिमाग लगाना ही सही समझा.

चुन्नी ने मशीनों को ध्यान से देखना शुरू किया. एक मशीन उसे बहुत छोटी ईंट के भट्टे की तरह दिखाई दी. वो उसके पास गया तो उसमें से मसालों की तेज गंध आई. उसने अंदाजा लगाया कि नहीं नहीं, इसमें चाय नहीं बनती होगी. फिर वो दूसरी मशीन के पास गया तो देखा कि उसकी बॉडी पर खाने के चित्र बने हैं. ये हुई न बात. चुन्नी की टेंशन सुलझ गयी. उसने खुद को शाबाशी दी. लेकिन फिर उसने सोचा कि यह तो चारों और से बंद है. आखिर इसमें चाय बनेगी कैसे?

तब उसने बुद्धि लगाई और इस फैसले पर पहुंचा कि पतेली में चायपत्ती, चीनी, दूध पानी डालकर इसमें रख देता हूँ. थोड़ी देर में जब भाप निकलेगी तो निकालकर छान दूंगा. सिंपल. चुन्नी ने ऐसा ही किया.

एक पतीले में चायपत्ती, चीनी, दूध पानी डालकर मशीन में रख दिया. और ऑन बटन दबाकर एक कोने में जाकर खडा हो गया. अब यह कोई चूल्हा तो था नहीं कि चाय पककर उबले तो बाहर गिरने लगे. यह तो ओवन था. और भैया ओवन में चाय रखता ही कौन है? वही, अपने चुन्नी बाबू जो इस समय अपने ख्याल में खोये हुए हैं. उन्हें लग रहा है कि अच्छी चाय पिलाकर वो साहब और मैडम का दिल जीत लेंगे.

चुन्नी अपने ख्यालों में खोये ही हुए थे कि एक बहुत तेज़ धमाके की आवाज़ आई.

क्या हुआ क्या हुआ क्या हुआ. गार्डन में बैठे मिस्टर चड्ढा और मिस चड्ढा ने यह शोर सूना तो भागते हुए किचन की तरफ आये. और चुन्नी ने देखा कि ओवन ब्लास्ट हुआ है तो वो चाय चाय पत्ती को वैसे ही छोड़कर बाहर भागे. बचाओ बचाओ बचाओ

मिस्टर चड्ढा और मिस चड्ढा ने किचन की हालत देखी तो गुस्से से आग बबूला हो गए. मिस्टर चड्ढा तो माथा पकड़ कर खड़े हो गए और ताना मारते हुए मिस चड्ढा से कहा ये लो तुम्हारे परम प्रतापी का प्रताप. मिल गयी कलेजे को ठंडक. हंह नौकर लायेंगी.

एक तो चुन्नी की ये हरकत, ऊपर से मिस्टर चड्ढा का ये ताना. मिस चड्ढा तो गुस्से से तमतमा गयी. बोली, आज इस प्रतापी की सारी प्रतापी न निकाल दी तो मेरा नाम भी मिस चढ्ढा नहीं.

तो भैया जान बची तो लाखो पाए, लौट के बुद्धू घर को आये. हालांकि अपने बुद्दू उर्फ़ चुन्नी उर्फ़ परम प्रतापी अपने घर तो नहीं गए. लेकिन हाँफते भागते मोची के पास जरूर पहुँच गए. अब संकट के इस घडी में वही कुछ कर सकता था.

क्या कर सकता था, जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

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