राजन से बचता हुआ आरु अब घने और डरावने जंगल में घुस चुका था। आरु को अभी भी उस बूढ़ी औरत की बात बेचैन किए जा रही थी। वह सोच रहा था आख़िर उसकी कही बातों का क्या मतलब है। अपनी ही सोच में डूबा आरु चलते-चलते जंगल के बीचों बीच पहुँच गया और खो गया। जंगल में अब जिस-जिस जगह आरु के पैर पड़ रहे थे, वह जगह नीऑन रंग से जगमगाने लगी। जंगल के पेड़ों की जटाएँ आरु को बहार जाने नहीं देना चाहती थी, ज़मीं पर पड़ी अपनी शाखाएँ हटाकर पेड़ अब आरु के लिए रास्ता बना रहे थे। मन में राजन से बच जाने का सुकून आरु के चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था। उसने उम्मीद से आसमान को देखा, और पाया की जंगल के पेड़ आसमान की ऊंचाइयों को छू रहे थे, पेड़ों की शाखाओं और घने पत्तों के बीच में से आरु को थोड़ी-सी चाँद की झलक दिखाई दी, पर आरु इस बात से अनजान था कि ये जंगल उसकी क़िस्मत बदलने वाला है।
जंगल में चलते-चलते अब उसे काफ़ी देर हो गयी थी, इतनी देर तक भागने की वज़ह से अब आरु को प्यास और भूख बेचैन कर रही थी,
छोटी-सी उम्र का ये बच्चा ज़िन्दगी के वह तजुर्बे ले रहा था, जो दादी नानी की कहानियों में सुनने को मिलते थे।
विज्ञान के नियमों से भी परे ये कोई चमत्कार ही हो रहा था। जंगल ने अपने राज़ से पर्दा उठाना शुरू कर दिया था। आरु समझ गया ये कोई आम जंगल नहीं है। धीरे-धीरे ये रोशनी पेड़ों के पत्तों की ओर जाने लगी, जुगनुओं की तरह चमक रहे पेड़ों के ये पत्ते अब धरती को ही स्वर्ग जैसा बना रहे थे। जहाँ कुछ देर पहले अँधेरा था अब वहाँ रोशनी ने अपना घर बना लिया था। पेड़ से टूटकर एक पत्ता आरु की ओर आया, जुगनू की तरह हलके से जलते और बुझते इस पत्ते को देख आरु हैरान भी हो रहा था और खुश भी, ये जगह सपनों जैसी लग रही थी, जंगल की ये खूबसूरती शब्दों में बयाँ नहीं की जा सकती थी।
ज़मीन पर पड़े चमकते पत्तों के ऊपर चलते हुए आरु एक तालाब की ओर पहुँचा। ऐसा लग रहा था मानो ये रहस्यमयी जंगल आरु के मन की उथल पुथल को जानता हो और उसकी हर इच्छा पूरी करना चाहता हो। आरु समझ गया उसका कुछ तो नाता है इस जंगल से, ये पेड़ जो कुछ पल पहले उसका रास्ता रोके हुए थे, ऐसा लग रहा था मानो अब ये आरु के दोस्त बन गए हों। आरु की नज़र तालाब के पास ही एक छोटे से पेड़ पर गयी जिसकी एक डाल ज़मीन की और झुकी थी, उसमें ऐसे फल लगे थे जिसे आरु ने भी कभी नहीं देखा था। आरु ने तालाब के पानी से अपनी प्यास बुझाई और भूख मिटाने के लिए उस पेड़ पर लगे फलों को तोडा। वह फल खाने ही वाला था उसके मन में आया की कहीं ये ज़हरीला तो नहीं, उसने अगले ही पल अपने दिमाग़ को शांत कर अपने चंचल मन की बात मानी और एक के बाद एक फल खाये। मन ही मन आरु ने सोचा क्यों ना हमेशा के लिए यहाँ रह जाऊँ, पर अचानक से उसके कानों में आवाज़ आयी ऐसा लगा मानो कोई उसके करीब आकर कह रहा हो,
बूढ़ी औरत-यहाँ से आगे बढ़ो तुम्हारी मंज़िल इंतज़ार कर रही है।
आरू-कौन है, कौन है यहाँ?
आरु ने हैरान होते हुए अपना सवाल पूछा ही था कि फिर वह रहास्यमई आवाज़ आयी,
बूढ़ी औरत-वो कर सकता है वार, तालाब को कर पार, तेरी मंज़िल कर रही है इंतज़ार।
आरू- पर आप हैं कौन मेरे सामने तो आओ
आरु के काफ़ी बार पूछने के बाद भी, उसे उसके सवाल का जवाब नहीं मिला। पर वह जानता था के ये जो भी है उसकी मदद ही कर रहा है। वह उठ कर जाने के लिए तैयार हुआ ही था कि अचानक फिर से एक आवाज़ आयी।
बूढ़ी औरत-जंगल का यही है कहना, आने वाले ख़तरे से सावधान रहना।
आरू- कौन-सा ख़तरा ये तो बता दो? क्या आपको वह बूढ़ी अम्मा ने मेरी मदद के लिए भेजा है?
इस बार भी उसे अपने सवाल का जवाब नहीं मिला, पर उसने अपना छोटा-सा थैला उठाया और तालाब से आगे जाने वाले रास्ते पर अपने क़दम बढ़ा दिए। ये तो सुना था कि दीवारों के कान होते है, पर यहाँ पेड़ों के कान के साथ-साथ उनकी ज़ुबान भी थी, ये रात बहुत लम्बी होने वाली थी, मन ही मन आरु ने ख़ुद से कहा ...
आरू- अगर ये जंगल ही मदद कर रहा है, तो वह कौन-सा ख़तरा है, जिससे ये जंगल भी मुझे नहीं बचा पा रहा। आख़िर मैं उस तालाब के पास भी तो आराम से रह सकता था और वह फल भी कितने मीठे थे काश मैं वहाँ रह सकता।
रास्ते में चलते हुए आरु ने महसूस किया कि जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो
पर उसे कदमों के चलने की आहट नहीं आ रही थी, घबराते हुए आरु ने अपने क़दम तेज़ कर लिए। अभी तक जो जंगल उसे अच्छा लग रहा था, वहाँ उसे अचानक ही बेचैनी महसूस होने लगी, कुछ देर आगे चलने के बाद वह एक दम रुका और हिम्मत करके पीछे मुड़कर देखा।
बादलों से अचानक आई एक चमकती रोशनी में, उसे बहुत दूर एक परछाई नज़र आयी।
आरु समझ नहीं पा रहा था कि ये है क्या? उसे लगा शायद किसी पेड़ की परछाई है।
गहरी सांस लेते हुए आरु फिर से अपनी मंज़िल की ओर आगे बढ़ने लगा। उसकी आँखों में नींद ने अपना डेरा ज़माना शुरू कर दिया था, थका हुआ नन्हा-सा ये बच्चा, ख़ुद को बचाने के लिए अब नींद के साथ जंग कर रहा था, ख़ुद से बात करते हुए आरु ने कहा,
आरू-सोना नहीं है आरु... यहाँ ख़तरा है, इस जंगल को पार कर ले फिर आराम से सो जाना।
खुद को समझाते और सँभालते हुए वह आगे बढ़ ही रहा था कि उसे फिर से ऐसा एहसास हुआ मानो उसे कोई देख रहा हो। इस बार ये मालूम नहीं था कि जो आस पास है, वह दोस्त है या दुश्मन। आरु ने फिर से पलट कर पीछे देखा, इस बार उसने जो देखा उससे आरु की आँखों की नींद गायब हो गयी, मन का सुकून बेचैनी में बदल गया, दूर से एक काला साया उसकी तरफ़ एक-तक देख रहा था ।
कुछ देर के लिए आरु उस साये से अपनी नज़र नहीं हटा पाया, ऐसा लगा मानो ये साया आरु को सम्मोहित करके अपनी ओर खींच लेगा
आरु ने जल्द अपनी नज़रें दूर खड़े उस साये से हटाई और फिर मुड़कर और तेज़ी से भागना शुरू कर दिया, उसके मन में उस बूढ़ी औरत की बात लगातार गूंज रही थी।
बूढ़ी औरत-बेटा तुम्हारी मंज़िल अभी दूर है, ये त्रिशूल लो जब तक ये तुम्हारे पास रहेगा कोई भी तुम्हें छू नहीं पायेगा और ना ही तुम्हारे उद्देश्य के आड़े आ पायेगा।
साये के प्रभाव से जंगल की चमक थोड़ी फीकी पढ़ चुकी थी, शायद इस साये से बचने के लिए ही उसके पास आकर किसी ने कहा था के तालाब से दूर चले जाओ,
ज़िन्दगी का हर मोड़ आरु के लिए एक नयी कहानी लिख रहा था, थकान से चूर इस बच्चे के पास भागने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था। आरु की निगाहें और कान अभी भी उस आवाज़ को ढूँढ रहे थे, जिन्होंने उसे इस खतरे से सावधान किया था। वह मन ही मन जंगल से मदद मांग रहा था कि फिर से उसे वह आवाज़ सुनाई दी,
बूढ़ी औरत-अंदर से है खाली बाहर से विशाल, मिलेगा तुम्हें अगर तो करेगा देखभाल
भागते हुए आरु को जंगल की ये आवाज़ सुनाई दी, पर वह छोटा-सा बच्चा इस पहेली को समझ नहीं पा रहा था, आख़िर ये जंगल किसकी बात कर रहा था, उसने जंगल से पूछा,
आरू-क्या फिर से बता सकते हो तुमने क्या कहा?
दो तीन बार पूछने के बाद भी, पिछली बार की तरह इस बार भी, आरु को जवाब नहीं मिला। अब उसमें और भागने की हिम्मत नहीं बची थी। उसने रुक कर पीछे मुड़कर देखा तो वह साया वहाँ नहीं था, आरु ने रास्ते के किनारे पड़ी कुछ चट्टानों के पीछे छिप कर आराम करने का फैंसला किया।
अचानक से इस जंगल में इतना सन्नाटा हो गया की, आरु अपने दिल की धड़कन भी साफ़ सुन पा रहा था। वह जंगल के उस हिस्से में आ चुका था, जहाँ हवा का नामो निशान नहीं था, पेड़ों का एक पत्ता तक नहीं हिल रहा था।
अचानक देखते ही देखते यहाँ भी पेड़ों की रोशनी कम होने लगी, आरु को महसूस हो गया के वह काला साया कहीं आस पास ही है। वह रास्ते से हटकर जंगल की तरफ़ चट्टानों के पीछे छिप कर बैठा था, पर उसके पैरों तले तब ज़मीन खिसक गयी, जब उसने जंगल की तरफ़ से उसी साये को अपनी ओर आते हुए देखा। आरु ने अपने शरीर की सारी बची हुई ताकत दौड़ने में लगा दी। मन ही मन वह सोच रहा था कि ये आख़िरी बार है जब वह दौड़ रहा है, अगर अब थक कर बैठ गया, तो फिर उस साये से बच नहीं पायेगा, आरु जल्द से जल्द इस रस्ते को ख़त्म करके, इस साये से छुटकारा पाना चाहता था। इतने में उसके कानो में एक आवाज़ आयी।
काला साया-तुम्हारे नन्हें-नन्हें क़दम तुम्हे मुझसे दूर नहीं लेकर जा सकते, इस जंगल में जो भी आया है वापिस कभी नहीं गया। कब तक मुझसे बचोगे ये रात तुम्हारी आख़िरी रात है!
ज़रा सोचिये ऐसी आवाज़ सुनकर बड़े-बड़े लोगों के होश उड़ जाएंगे, पर ये छोटा-सा लड़का हिम्मत दिखाते हुए आगे बढ़ता जा रहा था, पर कुछ ही पलों बाद वह हुआ जिसका डर था
आरु के शरीर में इतनी जान नहीं बची थी कि वह भाग सके, थका हारा आरु छुपने की कोई सेफ जगह ढूँढ रहा था कि उसकी नज़र एक विशाल पेड़ पर पड़ी। ये पेड़ बाक़ी पेड़ों से भी ऊँचा था, पर हैरानी की बात ये थी की इसका विशालकाय तना अंदर से खोखला था और बाक़ी की शाखाएँ पूरी हरी भरी थी। आरु और दम लगाकर भाया और इस पेड़ की खोल में घुस गया। अब तक अपनी पूरी जान लगा चुका, डरा सेहमा आरु अब बेजान हो चुका था। पेड़ की खोल में घुसते ही वह बेहोश हो गया, धीरे-धीरे इस पेड़ के आस पास भी रोशनी कम होनी शुरू हो गयी और वह साया भी आरु के पास आ गया, अपनी भयंकर आवाज़ में गरजते हुए उस साये ने कहा।
काला साया- मैंने कहा था ये रात तुम्हारी आख़िरी रात होगी।
उस विशाल पेड़ की खोल में पड़े आरु पर उस काले साये की परछाई गहरी होना जैसे-जैसे शुरू हुई पेड़ की खोल अपने आप बंद होने लगी। वह पेड़ कोई आम पेड़ नहीं था, इस विशालकाय पेड़ ने सदियाँ बित्ते देखी थी। उस पेड़ का बचा रहना और आरु का इस पेड़ तक पहुँचना, इस बात का संकेत था कि कुछ बड़ा जल्द ही होने वाला है।
जैसे ही पेड़ ने अपनी खोल बंद की साया गरजा और वापस जाते हुए कहा कि इस बार तुम मेरे रास्ते में नहीं आ सकते। क्या वह साया इस पेड़ को पहले से जानता था? क्या इन दोनों के अस्तित्व का सम्बन्ध आरु से था? क्या आरु पेड़ कि उस खोल में सुरक्षित था? यह जाने अगले चैप्टर में।
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