7 साल का मासूम लड़का आरु, अब राजन नाम के एक गुंडे के जाल में फँस चुका था। आरु के भागने की नाकाम कोशिश के बाद, राजन ने, उसे पीट-पीट कर अधमरा कर दिया और एक सज़ा भी सुनाई।
राजन-आज से एक हफ़्ते तक इसे सिर्फ़ एक टाइम ही खाना मिलेगा। वह भी सिर्फ़ रात को, ताकी इसके पास सुबह भीख मांगने लायक ताकत रहे। अगर इसने दिन में कुछ खाया और मेरे लड़कों से मुझे ये बात पता चली तो सभी बच्चों को सज़ा मिलेगी। समझे, तुम सब?
बाद ही निर्दय था राजन। वैसे भी सारे बच्चों को कहाँ भरपेट खाना मिलता था? जहाँ सबने भीख मांगने को ही अपनी क़िस्मत मान लिया था, वहीं दूसरी ओर था आरु, जो अपनी क़िस्मत से जंग करने का फ़ैसला ले चुका था। वह हर समय ये सोचता रहता कि राजन का जाल कैसे तोड़ा जाए और अपने घर कैसे पहुँचा जाए। अभी वह इस बात से अनजान था कि ज़िन्दगी उसको किसी और मोड़ पर ले जाने वाली थी। आज, ना जाने क्यों सुबह से ही आरु को उसके घर की बड़ी याद आ रही थी। उसकी आँखों की कोर पर पानी था। उसके दिल का हाल वहाँ के सभी जानवर जानते थे, इसलिए वह अक्सर आरु के मायूस होने पर उसके पास आ जाते थे। आरु को अचानक रात की घटना याद आई-उस बूढ़ी अम्मा ने कुछ तो कहा था। डर के मारे अभी उसे कुछ याद नहीं आ रहा था।
अपने ख़यालों में खोये आरु को एक कड़क आवाज़ होश में लाई, ट्रैफ़िक के लगातार बढ़ते शोर और हॉर्न में उसने राजन को सुना-
राजन-आराम हो गया हो तो, अब काम पर जाने का कष्ट करेंगे महाराज।
आरु को ताना मारते हुए राजन ने भीख मांगने के लिए जाने को कहा। अपने ख़यालों से बहार आकर, आरु ज़िन्दगी की इस कड़वी सच्चाई को जीने के लिए, फिर ट्रैफिक लाइट पर लोगों के सामने हाथ फैलाने चला गया। आरु को उस दिन रेड लाइट पर एक होर्डिंग दिखा, जहाँ बचत की बात हो रही थी। फिर क्या था आरु के दिमाग़ में एक आइडिया आया की वह पैसे बचाएगा, ताकि भागने में उसे मदद हो। फिर कुछ दिनों तक उसने राजन और उसके चमचों से छुप कर पैसे बचाने शुरू किये ।
आरु के दोस्त ने मासूमियत से पूछा "यार राजन ने तुझे पूरा हफ्ता सिर्फ़ एक टाइम ही खाने की सज़ा दी, पर तू तो पहले की तरह ही सेहतमंद दिख रहा है। तेरी जगह हम में से कोई होता, तो अब तक उसके शरीर में तो जान ही नहीं बचती। सच बता तू कुछ छुपा रहा है क्या?"
रात को कमरे में आरु के साथ में बैठे एक लड़के ने, जब आरु से ये बात कही तो आरु ने जवाब दिया।
आरु-नहीं मैं कुछ नहीं छुपा रहा, मैं ख़ुद नहीं जानता, मेरे में इतनी हिम्मत कैसे आ गयी।
आरु का दोस्त उसके जवाब से संतुष्ट नहीं था, उसने फिर से पूछा "तू क्या दूसरी दुनिया से आया है? तुझे भूख क्यों नहीं लगती?"
आरु-नहीं यार, मैं इसी दुनिया से हूँ, तू थोड़ा दिमाग़ कम इस्तेमाल करा कर। मैं तेरे जैसा ही तो दिखता हूँ। कुछ भी मत बोल।
आरु का दोस्त उसको लेकर थोड़ा परेशान था उसने फिर से पूछा "यार सच-सच बता, तू कुछ तो छिपा रहा है, राजन को देखते ही सब डर जाते है, पर तू तो मार खाकर भी वैसे का वैसा ही है। उस दिन तेरा गाल लाल हो गया था, पर कुछ टाइम बाद मैंने तेरे गाल को चमकते देखा और फिर तू पहले जैसा हो गया।"
आरु-अरे यार बात ये है कि मुझे भी नहीं पता की वह कैसे हुआ। जब में छोटा था और माँ मुझे प्यार से भी मार देती थी तो वह जगह लाल की जगह सोने जैसी सुनहरी होकर चमकने लगती थी। पर हाँ अब मुझे पता है कि मुझे क्या करना है, मुझे समझ आ गया है कि यहाँ हमें कोई नहीं बचाने आएगा। एक दिन ज़रूर आएगा जब मैं भाग जाऊंगा यहाँ से।
आरु के दोस्त ने उसकी हंसी उड़ाते हुए कहा "अबे आरु तू सिर्फ़ 7 साल का है, अपनी उम्र के हिसाब से बात कर। मार तो हम सब बच्चों पर भी पड़ी है, पर हम तो सोचते भी नहीं भागने का। वह सब छोड़ तू ये बता की तू रोज़ पहले से ज़्यादा ईशट्रान्ग कैसे बन रहा है।"
आरु- यार ये तो में भी जानना चाहता हूँ, तू अब ये सब छोड़ रात बहुत हो गयी है चल अब सो जाते हैं। वरना कल राजन फिर मारेगा।
आरु का बढ़ता हौसला अब सबकी नज़र में आने लगा था। सुबह होते ही बाक़ी बच्चों की तरह आरु भी भीख मांगने जाने के लिए तैयार हुआ, आरु के जो कपड़े कभी बहुत सुन्दर दिखते थे, आज वह मैले हो चुके थे। समय की मार के निशान इन कपड़ों पर आसानी से देखे जा सकते थे। राजन एक-एक पाई इन बच्चों से ले जाता था, उसका मानना था कि जितने गंदे कपड़े होंगे, उतने ही ज़्यादा पैसे मिलेंगे, आरु आज रात को भागने का मन बना चुका था। वह आरु इस बात से अनजान था कि आज दिन में उसके साथ क्या होने वाला है ।
ट्रैफिक पर आरु रोज़ की तरह गाड़ियों का शीशा खट खटाते हुए लोगों से पैसे मांग रहा था कि सड़क के सामने से चिल्लाने की आवाज़ आयी।
दो बैल लड़ रहे थे और एक औरत उस रास्ते में फंस गई थी, लोग देखते रहे, पर किसी की हिम्मत नहीं हुई की उन बेकाबू बैलों के सामने कोई जा सके, आरु बिना सोचे ही उन बेलों की तरफ़ भागा, आरु उनके पास जाकर ज़ोर से चिल्लाया,
आरु-रुक जाओ...
आरु के इतना कहने भर से ही वह बैल शांत होकर उसको देखने लगे, आरु ने उन्हें दूर जाने का इशारा किया,
बस आरु इशारा मिलने की देर ही थी के वह बैल वहाँ से चले गए,
वहाँ खड़ी भीड़ आरु को देख कर हैरान थी, जो बच्चा अभी भीख मांग रहा था, जिस पर कभी किसी का ध्यान नहीं गया, वह अचानक से लोगों में चर्चा का विषय बन गया था। जब तक वह औरत आरु का धन्यवाद करने आती, आरु वहाँ से दूर जाकर छिप गया, सब लोगों के चले जाने के बाद आरु वापिस ट्रेफिक लाइट पर अपने काम में लग गया। मन ही मन आरु सोच रहा था कि उन खूंखार बैलों ने एक बार में ही आरु की बात कैसे मान ली। वह ये तो जानता था कि ये जानवर उसकी तरफ़ आकर्षित होते है, पर आज उसे ये भी पता चल गया, की ये उसकी हर बात भी मानते हैं। इस घटना को आरु ने कुछ पल में ही भुला दिया और वह अपने इस बुरे वक़्त के बारे में सोचने लगा ।
वो कहते हैं ना वक़्त की एक ख़ासियत है कि ये बदलता ज़रूर है। बस इसी बदलाव का इंतज़ार ख़त्म करने के लिए आरु ने राजन के चंगुल से भागने का पूरा प्लान रेडी कर लिया। उसने सोचा इस बार वह शहर से भागने के लिए बड़ी वाली सड़क से नहीं, बल्कि थोड़ी दूर बने जंगल की पगडंडियों का सहारा लेगा। वह ये जनाता था कि राजन के डरपोक गुंडे उस जंगल वाले रास्ते पर नहीं आएंगे और वो, वह जंगल पार करके वहाँ से धीरे-धीरे शहर से बहार निकल सकता है,
रात होते ही आरु सब बच्चों के सोने का इंतज़ार करने लगा, आरु ने कमरे से कुछ दूरी पर एक गड्ढे में पैसे छिपा कर रखे थे। सब बच्चों के सो जाने के बाद वह रात के अँधेरे का फायदा उठाते हुए चुपके से कमरे से बहार निकला,
सुनसान सड़क को जल्दी से पार करते हुए मुहल्ले की गलियों से होता हुआ जंगल की ओर चल पड़ा, उसकी ओर देखकर कुछ कुत्ते दूर से भोंकने लगे, पर आरु के करीब आते ही उनका शांत होना स्वाभाविक था। नन्हे-नन्हे क़दमों के साथ मैले कुचेले कपड़े पहनें हुए, ये बच्चा आज क़िस्मत की ज़ंजीरें तोड़ कर आज़ाद होने के लिए तैयार था। अभी क़िस्मत ने थोड़ी और परीक्षा लेनी थी, कई बार राजन के साथी कमरे में रात को बच्चों को गिनने आते थे। आज भी आये पर आज आरु वहाँ नहीं था, इस बात का पता चलते ही न्होंने राजन को कहा, "भाई वह लड़का फिर से भाग गया" ।
बस इतना सुनते ही राजन आग बबूला हो गया और अपने सभी साथियों को इकट्ठा करके, आरु को ढूँढने के लिए निकल गया। उसके साथी अलग-अलग एरिया में आरु को ढूँढ रहे थे। आरु ने इन ख़तरों को पहले ही भांप लिया था, इसलिए उसने मोहल्ले की गलियों वाला रास्ता चुना था, जंगल की ओर जाने के लिए। अपने इस बुरे वक़्त को ख़त्म करने का मन बना चुके आरु ने, ये रास्ता इसलिए चुना था कि अगर जंगल में जानवर भी हुए तो वह उसे नुक़सान नहीं पहुँचाएंगे। इतना उसका मन जानता था।
सुनसान गलियों में आरु के दौड़ने की आवाज़ गूंजने लगी, दिन में जिस मोहल्ले में रौनक रहती थी, वहीं रात के अँधेरे में आरु को वह गलियाँ किसी भूतिया जगह जैसी लग रही थी,
पीठ पर छोटा-सा थैला लिए, माथे का पसीना पोंछता आरु जल्द से जल्द इस मोहल्ले को पार करना चाह रहा था।
यहाँ से दूर जाने की ख़ुशी तो थी उसे, पर आरु को वह बच्चे भी याद आ रहे थे, जो अभी भी उस कमरे से और राजन के जाल से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। उन बच्चों के साथ बिताये पल, आरु की आँखों में पानी ला रहे थे। ये पहली बार हुआ था, जब आरु अपने माँ बाप के अलावा किसी और को याद करके रो रहा था। हिम्मत करते हुए आरु ने अपने आंसू पोंछे और थोड़ी देर रुक कर आरु ने अपने आस पास देखा, अब वह मोहल्ले से जंगल की और आ गया था,
यहाँ आरु को महसूस हुआ के उसके पीछे कोई आ रहा है। आरु जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया तो उसे घुंघरू की आवाज़ आने लगी जो धीरे-धीरे बढ़ती गयी, हिम्मत करके जब आरु पीछे मुड़ा तो वह डर गया।
आरु- तुम कौन हो, मेरा पीछा क्यों कर रही हो?
आरु ने घबराते हुए पूछा, उसके सामने एक बूढी औरत खड़ी थी, सफ़ेद बाल चेहरे पर झुरियाँ, हलकी-सी झुकी हुई कमर, रात को कोई जवान आदमी भी इस औरत को देख कर डर जाए। फिर आरु तो 7 साल का बच्चा था, उसका डरना तो स्वभाविक ही था। बूढ़ी औरत ने आरु के सर पर हाथ रखते हुए प्यार से कहा,
बूढ़ी औरत-बेटा घबरा मत, मैं तेरी मदद के लिए आयी हूँ, मैं जानती हूँ तेरा नाम आरु है, मैं तुझे रास्ता दिखाने आई हूँ।
आरु इस बात से हैरान हो गया की, इस औरत को कैसे उसका नाम पता है? पर आरु इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाया की, वह ये सवाल उस औरत से पूछ सके। इसलिए वह सिर्फ़ सुनता रहा की, वह बूढी औरत क्या कहना चाहती है। बूढी औरत ने फिर वही बात दोहराई
बूढ़ी औरत-"पुराने पेड़ कि खोल में जब पड़ेगा काला साया, तो खुलेगा एक नया दरवाज़ा"।
ये कहते ही उस बुढ़िया ने आरु के नन्हे हाथों से भी, छोटा एक त्रिशूल दिया और फिर वह अँधेरे में कहीं गायब हो गयी।
आरु अभी कुछ समझ ही नहीं पाया था कि बाइक पर सवार राजन के गुंडे उसे अपनी ओर आते दिखे। आरु ने तेज़ी से भागना शुरू कर दिया, राजन और उसके साथियों ने आरु का रास्ता रोक लिया।
राजन-अबे टिन्गे, अब तू नहीं बचेगा। तेरी ना टाँग रहेगी अब, ना तू भाग सकेगा।
आरु राजन की बात ख़त्म होने से पहले ही, जंगल की ओर तेज़ी से भाग गया और घने पेड़ों के बीच कहीं गायब हो गया। राजन भी उसका पीछा करने के लिए भागता है, पर राजन के साथी उसे रोकते हुए कहते है "भाई वहाँ मत जाओ, बहुत सारे जंगली जानवर है वहाँ, अब ये लड़का वैसे भी नहीं बचेगा, चलो वापिस चलें" ये सुनते ही राजन कहता है,
राजन- ये बहुत चालाक लड़का है, इतनी जल्दी इसे कुछ नहीं होगा। हम सब सुबह फिर से इस इलाके में तलाशी करने आएंगे।
आरु ने राजन के जाल को तोड़ा था आज़ाद होने के लिए और वह इसमें सफल भी हुआ। क्या उसका फ़ैसला सही था? वह अभी भी उस बूढी औरत की पहेली को सुलझाने की कोशिश कर रहा था। क्या उसका दिया इतना छोटा-सा त्रिशूल आरु के काम का था? जंगल में भी ज़िंदा रह पाना आसान नहीं है, क्या वाकई आरु जंगल से जिन्दा निकल पायेगा।
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