पेड़ के बीच में आरु बेहोश पड़ा हुआ था और अब वह साया भी आरु के काफ़ी करीब पहुँच चुका था, आरु अब ज़िंदा रहने के लिए सिर्फ़ अपनी क़िस्मत पर निर्भर था, पर शायद आज उसकी खराब क़िस्मत हार चुकी थी। आज वक़्त ने फिर करवट ली, जैसे ही साया, आरु के करीब पहुँचा, उस पुराने खोंखले पेड़ की खोल एक दम से बंद हो गयी, ये संकेत था आरु की ख़राब क़िस्मत के अंत का।

गुस्से में तिल-मिलाया हुआ साया उस पेड़ पर कई वार करता रहा, पर सूखा-सा दिखने वाला ये पेड़ कोई साधारण पेड़ नहीं था। इस पेड़ के बीच में अब छिपी हुई थी भविष्य की धरोहर, बहुत कोशिशें करने के बाद भी वह साया उस पेड़ को खोल नहीं पाया।   उस बूढ़ी औरत की भविष्यवाणी सच हो रही थी, जिसने आरु से कहा था-

बूढ़ी औरत-पुराने पेड़ कि खोल में जब पड़ेगा काला साया, तो खुलेगा एक नया दरवाजा।  

यहाँ तो पेड़ बंद हो चुका था, पर उस औरत ने कहा था के खुलेगा नया दरवाजा?

अब कहानी में दिलचस्प मोड़ आने वाला था! आरु उस पेड़ में ज़्यादा देर नहीं रहा, विज्ञान की भाषा में जिसे पोर्टल कहते हैं, ये पेड़ वही पोर्टल था मतलब एक पैरेलल यूनिवर्स में जाने का रास्ता।

यहाँ से खुलता है 'विघात' नाम के एक गाँव का रास्ता। ये गाँव समय से परे है, जहाँ के लोग और जीव जंतु भी हम से बिलकुल अलग हैं,

आरु उस पेड़ से सीधा, इस गाँव में आ जाता है और इस गाँव में आरु के गिरते ही ज़ोरदार धमाके जैसी आवाज़ गूँजती है।। इस आवाज़ को सुनकर उस गाँव के लोग डर गए।  

पर ये चमत्कार ही था के आरु को एक खरोंच तक नहीं आयी। होश में आते ही आरु ने धीरे-धीरे अपनी आँखे खोलीं और उठकर बैठा।   इस गाँव का नज़ारा देख कर आरु ख़ुद हैरान था।   उसने देखा के उस से कुछ मीटर दूर ही  ऐसे लोग खड़े हुए हैं, जिन्होंने एक जैसे रंगीन कपड़े ओढ़े हुए थे। सब के चेहरों और शरीर पर टैटू के निशान थे कुछ लोगों की बाज़ुओं में ऐसे चित्र थे, जिन्हें देख कर ऐसा लग रहा था कि ये चित्र उन लोगों के देवी देवताओं के है। धरती पर रहने वाले लोगों के मुकाबले में इन लोगों का कद काफ़ी लम्बा था, सबसे छोटे कद वाला इंसान भी साढ़े 6 फुट लंबा था। ये लोग आरु को हैरानी से बस देखे जा रहे थे।  

आरु ने आस-पास नज़र घुमाई तो उसकी हैरानी और मन की जिज्ञासा और भी बढ़ गयी, उसने देखा यहाँ के पेड़ भी बहुत बड़े और अलग थे। हरे पत्तों के साथ-साथ कई पेड़ों पर रंग बिरंगे पत्ते भी थे और हर पेड़ को एक जटा ने लपेटा हुआ था। ये जटा पेड़ों की जड़ों से निकलकर पेड़ के ऊपरी हिस्से तक लिपटी हुई थीं, इस जटा का रहस्य भी अभी खुलना बाक़ी था।

धमाके की आवाज़ से घबराये हुए गाँव वालों में से किसी की हिम्मत ही नहीं हुई की आरु के पास जा सके, वह बस दूर से आरु को देखे जा रहे थे, उसी वक़्त उस गाँव के कुछ जानवरों ने आरु के करीब आकर आरु के हाथों और पैरों को अपनी जीभ से साफ़ करना शुरू कर दिया।

ये जानवर  हमारी दुनिया के जानवरों से बिलकुल अलग थे, आरु ये देख कर हैरान हो गया की जो जानवर उसके पैरों को चाट कर साफ़ कर रहे थे। उनके माथे पर तीन आंखें थी, भूरे रंग के लम्बी नाक और लम्बी पूंछ वाले इन जानवरों का कद धरती पर रहने वाले आम कुत्तों जैसा ही था। इन्हें देख कर आरु अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि उसके कंधे पर कुछ तितलियाँ आकर बैठ गयीं, ये तितलियाँ भी धरती के जीवों से बिलकुल अलग और आम तितलियों से बड़ी थी। कोई सुनहरी और कोई चांदी जैसी चमक रही थी, ऐसा लग रहा था मानों ये तितलियाँ अपने गाँव में आरु का स्वागत कर रहीं थी।

अचानक से एक गर्जना वाली आवाज़ सुनकर सभी जानवर भाग गए और तितलियाँ उड़ गई.

सरपंच-क्या हो रहा है यहाँ? कौन हो तुम? इस गाँव में कैसे और कहाँ से आये?  

ये आदमी था इस गाँव का सरपंच जिसका नाम था 'भंवर' ।  कद में ये आदमी सभी गाँव वालों से लम्बा था।   8 फुट जितने लम्बे इस आदमी की सेहत और शरीर पर लगी चोटों के निशान बयाँ कर रहे थे कि गाँव की सबसे बड़ी पदवी उसको उसके बल से ही मिली थी। उसकी आवाज़ सुनते ही गाँव वालों ने उसका रास्ता छोड़ दिया।   आरु के पास आकर उसने फिर से अपनी गरजती हुई भारी आवाज़ में पूछा,  

सरपंच-बच्चे कौन हो तुम? कहाँ से आये हो?  

इतने बड़े आदमी को देखकर आरु थोड़ा घबरा गया, उसने मासूमियत भरी आवाज़ में सरपंच की बात का जवाब देने की जगह, ख़ुद ही सवाल पूछ लिया,  

आरू-मैं कहाँ हूँ?   मैं यहाँ कैसे पहुँचा? क्या आपने उस साये से मुझे बचाया है?

सरपंच-कौन-सा साया? तुम मेरे सवाल का जवाब दो तुम्हारा नाम क्या है?  

आरू-मेरा नाम आरु है?

सरपंच-तुम यहाँ कैसे आये?

आरू-वो तो मैं नहीं जानता।  

थोड़ी देर के लिए तो सरपंच भी कुछ समझ नहीं पाया था कि आरु के साथ बात कैसे करें।   उसने गाँव वालों को पूजा जारी रखने का आदेश दिया और जश्न मनाने की तैयारी करने को कहा। यह गाँव समय की बुरी मार से गुज़र रहा था, यहाँ जो खेत कभी हरे भरे होते थे, आज वह धीरे-धीरे बंजर होते जा रहे थे। गाँव की खुशहाली के लिए यहाँ एक रिवाज़ का पालन किया जा रहा था, जिसमें शाम को आग जलाकर कुलदेवी की पूजा करते हुए आग के आस पास पारम्परिक तरीके से लोक गीत गा-गा के नृत्य किया जाता है। एक तरफ़ पूरा गाँव आरु को देख कर हैरान था, दूसरी तरफ़ सरपंच आरु के आने पर मन ही मन  खुश था।   उसके चेहरे पर हलकी-सी दबी हुई मुस्कान थी, ऐसा लग रहा था मानो सरपंच को आरु के आने का पहले से ही आभास था।  

गांव वालों को वापस भेजने के बाद सरपंच ने आरु के पास बैठकर,   ऐसे बात करनी शुरू की, जैसे के वह आरु को पहले से ही जानता हो-

सरपंच-बच्चे तुम घबराना नहीं ये गाँव वाले बहुत अच्छे हैं, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे, ऐसे कपड़े पहनने वाला बच्चा सबने पहली बार देखा है,   इसलिए उनकी तरह मैं भी हैरान हूँ।

आरू- मैंने भी आप जैसे कपड़े पहनने वाले लोग नहीं देखे थे, मैं भी तो हैरान हूँ।  

सरपंच-तुम बातें बनाना बहुत जानते हो।  

आरू-मैं तो यहाँ के जानवर देख कर भी हैरान हूँ, यहाँ के जानवर कितने अलग हैं, वह छोटे-छोटे जानवर जिनके माथे पर तीन आंखें थी और लम्बी-सी पूंछ थी वह कहाँ भाग गए?  

सरपंच-वो गाँव वापिस चले गए हैं, वह हमारे पालतू जानवर हैं जिन्हे हम 'मुष्ट' कहते हैं। जब कोई ख़तरा दिखे तो ये ज़ोर से गुर्राते हैं, पर तुम्हें देख कर तो ये प्रेम जता रहे थे, ऐसा मैंने पहली बार होते देखा है। 

आरू-मैं जिस जगह भी जाऊँ, उस जगह के जानवर और पंछी मेरे पास आने लगते हैं, पर यहाँ कोई पंछी क्यों नहीं दिखा।  

सरपंच-जब इन पेड़ों की ऊर्जा कम हो जाती है तो पंछी इन्हें छोड़ कर दूर चले जाते हैं, अब तो कई महीनें हो गए पंछियों को देखे हुए. 

आरू-बहुत अजीब-सा गाँव है ये, वैसे इस गाँव का नाम क्या है?  

सरपंच-इस गाँव का नाम है 'विघात' और मैं हूँ इस गाँव का सरपंच,   चलो आओ तुम भी इस पूजा का हिस्सा बनो।

सरपंच के कहने पर आरु खड़ा होकर, अपने कपड़ों से धूल झाड़ कर गाँव की ओर उसके साथ चल दिया, पर आरु ने जैसे ही उस गाँव की ज़मीन पर चलना शुरु किया, ऐसा लगा मानो वहाँ की धरती में एक नयी ऊर्जा का संचार हो गया हो।

जहां-जहाँ उसके क़दम पड़ रहे थे, वहाँ-वहाँ की सूखी ज़मीन में नमी आने लगी थी। जैसे-जैसे वह दोनों गाँव के करीब पहुँच रहे थे, तो पेड़ों में लिपटी जटाएँ जुगनू की तरह सुनहरी रंग में हलकी रोशनी के साथ जलने और बुझने लगी। इसे देख कर सभी गाँव वालों के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, आरु ने इन पेड़ों को देखकर सरपंच से पूछा-

आरू-ये हर पेड़ पर लिपटी जटा चमकनें क्यों लगी है?  

सरपंच- ये गाँव की खुशहाली की ओर इशारा कर रही है, बहुत दिनों बाद इन्हें जगमगाता हुआ देखा है।   लगता है देवी माँ ने हमारी प्रार्थना सुन ली है।   

हवा से पेड़ अब लहरा रहे थे, आरु के गाँव में आते ही हर तरफ़ ख़ुशहाली का माहौल हो गया था, गाँव के लोग पूरे जोश में जश्न की तैयारी में जुटे हुए थे।

अब शाम होते ही गाँव के बीचों बीच लकड़ियाँ जला कर कुल देवी की पूजा करने के बाद जश्न शुरू किया गया था।

गांव के  लोग अपने पारम्परिक साज़ की धुन पर लोक गीत गा रहे थे, कुछ लोग आग के आस पास नृत्य कर रहे थे और बाक़ी लोग आग से कुछ दूर बैठ कर आपस में बातें करते हुए इस जश्न का आनंद ले रहे थे, आरु की आंखों में ख़ुशी की चमक थी, उसने जिज्ञासा से सरपंच को पूछा- 

आरू- ये सब क्यों नाच रहें है, आज किस बात का जश्न मनाया जा रहा है। 

सरपंच- ये जश्न हमारी कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है, इससे वह हमारी फसलों को अच्छा करती हैं और दुखों को दूर करती हैं।   

आरू-आप सब इतने लंबे ऊंचे हैं, आप खाना भी बहुत खाते होंगे और आपके पास तो बहुत फसलें भी होंगी।  

सरपंच-नहीं बच्चे, हमारी धरती पर विपदा आई हुई थी, इसलिए देवी को प्रसन्न किया जा रहा है। 

आरू-मेरा मन कह रहा है, आज आपकी देवी बहुत प्रसन्न हैं, वह सब ठीक कर देंगी देख लेना।  

सरपंच-अच्छा तुम्हें कैसे पता?

आरू-वह देखो वह सब इतना अच्छा गाना जो गा रहे हैं?  

सरपंच- तुम बातें बहुत प्यारी करते हो, आओ मेरे साथ भोजन करने चलो।  

सरपंच ने ये कहते हुए आरु के हाथों में बड़ा-सा पत्ता थमा दिया, जिसमें उस गाँव की पारम्परिक सब्ज़ियाँ और चावल थे।   आरु को खाना बहुत पसंद आया। आज बहुत दिनों बाद आरु ने भर पेट खाना खाया था। खाना खाते हुए आरु की नज़र आसमान पर गयी, तो इस बार उसका मुंह खुला का खुला रह गया, उसने सरपंच से कहा-

आरू-ये आसमान में दो चांद कैसे?

सरपंच-आसमान पर तो दो चाँद ही होते हैं। 

आरू-अरे हमारी धरती पर तो सिर्फ़ एक चांद है, ये दूनिया तो जादू से भरी हुई है। 

सरपंच-ये तो बस देवी माँ ही जाने, ना जाने और कितनी धरतियाँ बनाई है देवी माँ ने।

इस रहस्यमयी गाँव ने आरु को हैरान तो किया था, पर उसके मन में एक सुकून भी था। क्योंकि गाँव के कुछ लोग आरु को अभी से बहुत पसंद करने लगे थे,  

आरु की ख़ुशी तब चिंता में बदल गयी जब उसने देखा की, आरु के सामने बैठा एक बूढ़ा आदमी जिसकी उम्र लगभग 95 साल की लग रही थी, वह दूर से आरु को घूर कर देख रहा था। लंबी-सी सफ़ेद दाढ़ी और लंबे सफ़ेद बालों वाले इस आदमी के चेहरे की झुर्रियाँ बता रहीं थी, की इस आदमी को जीवन का बहुत तजुर्बा रहा है। पूरे गाँव में सिर्फ़ इस आदमी ने ही बड़ी दाढ़ी मूंछे रखी थी।  ये आदमी कद में सरपंच से बस थोड़ा ही छोटा था। अगर बढ़ी हुई उम्र ने इसकी कमर ना झुकाई होती, तो ये गाँव का सबसे लम्बा आदमी होता, घबराया हुआ आरु सरपंच से कहता है-

आरू-ये जश्न कब ख़त्म होगा मुझे नींद आ रही है।  

सरपंच-बस थोड़ी देर और जब वह दोनों चाँद एक दूसरे से थोड़ा और दूर चले जायेंगे तब जश्न ख़त्म कर दिया जायेगा। तब हम सब सोने चल सकते है तुम यहीं बैठो मैं कुछ काम से जा रहा हूँ।  

सरपंच के वहाँ से जाते ही वह बूढ़ा आदमी आरु की ओर बढ़ने लगा। आरु की ख़ुशी डर में बदल चुकी थी, उसे डर था के ये पागल-सा दिखने वाला आदमी कहीं पास आकर हमला ना कर दे। कौन था ये बूढ़ा आदमी जो आरु के करीब आ रहा है? क्या ये आरु को कोई नुक़सान पहुँचाएगा, आख़िर क्यों आरु इस गाँव में आया है? इस वर्तमान के हर सवाल का जवाब भविष्य के पन्नों में है और आरु की क़िस्मत में क्या होने वाला है? यह जाने अगले चैप्टर में।

 

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