आरु उस खोखले पेड़ से  'विघात' नाम के गाँव में पहुँच जाता है, इस गाँव के लोगों की लम्बाई 7 से 8 फुट तक थी,   इस गाँव के सभी लोगों का पहनावा एक जैसा था, सभी ने अपने दाएँ कंधे से एक रंगीन कपड़ा अपने घुटनों तक पूरे शरीर में लपेट रखा था।  

सरपंच आरु को आग के पास अकेला छोड़ कर कुछ देर के लिए कहीं चला गया था, उसी समय आरु के पास एक बूढ़ा आदमी आ गया, जिसे देख कर आरु के माथे पर पसीना आ गया और हाथों में कपन आ गयी।   डर से आरु अपने पैर तक नहीं हिला पा रहा था, जैसे ही आरु को लगा वह आदमी उसे नुक़सान पहुँचाएगा, तभी उस आदमी ने आरु के पास आकर कहा-

भीमा-डरो मत बेटा, तुम्हारा जन्म डरने के लिए नहीं, बल्कि डर को मिटाने के लिए हुआ है।  

बूढ़े होने के बावजूद भी इस आदमी की आवाज़ में कोई कंपन नहीं थी, आरु ने डरते हुए मासूमियत से इस आदमी से कहा।  

आरू-आप घूर कर एक बच्चे को डराओगे तो डर तो लगेगा ही ना।  

भीमा-अरे मैं तुम्हें डरा नहीं रहा था, बस अच्छे से देख रहा था तुम्हारा पहनावा, यहाँ के गाँव के लोगों से अलग हैं। मुझे अपना दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त मानो।

आरू-दोस्त तो बना लूंगा, पर आप मुझे बताओ तो सही आप हो कौन?

भीमा-मेरा नाम है भीमा, कुल देवी की पूजा करना मेरी ही ज़िम्मेदारी है,   मैं एक ऋषि हूँ और इस गाँव को बुरी नज़र से बचना भी मेरी ही ज़िम्मेदारी है।  

आरू-अच्छा तो फिर आपके होते हुए भी इस गाँव की ज़मीन बंजर क्यों होने लगी, क्यों पेड़ों से पंछी चले गए, क्यों यहाँ के लोग उदास रहने लगे?  

भीमा-वो इसलिए क्योंकि मुझे किसी के साथ की ज़रुरत थी।  

आरू-किसके साथ की।  

भीमा-एक ताकतवर इंसान के साथ की और मैं उस ताकतवर इंसान का इंतज़ार कर रहा हूँ।  

आरू-आप भी कुल देवी से प्रार्थना करो, आपकी इच्छा भी पूरी होगी।  

भीमा-हाँ बेटा अब लगता है जल्द इच्छा पूरी होगी।  

भीमा एक सिद्ध ऋषि थे, वे अपनी विद्या से भविष्य में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगाने में सक्षम थे। उन्होंने ही सरपंच को आने वाले समय में होने वाली घटनाओं का आभास करा दिया था। अपने तपोबल से भीमा ने कई वर्षों से इस गाँव को बुरी शक्तियों से बचाया हुआ था। पर अब उन्हें इन बुरी ताकतों के प्रभाव को कम करने के लिए किसी और की सहायता की ज़रूरत थी। आरु और भीमा अभी बातें कर ही रहे होते है कि वहाँ सरपंच आ कर कहता है-

सरपंच-आरु ये हैं हमारे भीमा बाबा, बहुत शक्तियाँ हैं इनके पास, बाबा आप तो सब जान ही चुके होंगे के ये कौन है?  

भीमा-बेटा शक्तियों की भी सीमा होती है, मेरी दिव्य दृष्टि की भी एक सीमा है, मैं बस इस दुनिया के भविष्य में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगा सकता हूँ, पर आरु इस दुनिया का नहीं है, इसके बारे में पूरी जानकारी मुझे इस से बात करके ही प्राप्त होगी।  

सरपंच-ठीक है बाबा पर ये कह रहा था इसे नींद आ रही है और ऊपर आसमान में भी दोनों चांद एक दूसरे से दूर जा चुके हैं, हमें जश्न ख़त्म कर देना चाहिए।  

भीमा से इजाज़त लेकर सरपंच ने जश्न के समारोह के सम्पत्ति की घोषणा की, सरपंच आरु को अपने घर ले जाना चाहता था पर भीमा ने उसे रोकते हुए कहा-

भीमा-इस बच्चे को मेरी कुटिया में रहने दो।  

भीमा के कहने पर  सरपंच आरु का बिस्तर भीमा की कुटिया में लगवा देता है। इन गाँव वालों के घर देख कर आरु हैरान था, मिट्टी से बने ये घर दिखने में कच्चे लग रहे थे, पर इनकी दीवारें सीमेंट की दीवारों जितनी मज़बूत थी।  हर घर इस तरह से बनाया गया था, की जंगल से आती हुई हलकी-सी हवा भी पूरे घर को पलों में ठंडा कर देती थी।

प्राचीन-सा दिखने वाला ये गांव, विज्ञान के साथ क़दम से क़दम मिला कर चलता था, बांस और रस्सी से बनी चारपाई पर आरु के लिए नरम मुलायम बिस्तर जमाया गया। भीमा बाबा की कुटिया में एक कमरा बाबा का पूजा स्थल था। एक कमरे में बाबा रहते थे और एक कमरा उनसे मिलने आने वाले लोगों के लिए था, जहाँ वह लोगों की समस्या सुन कर समाधान देते थे।  इसी कमरे में आरु के आराम के लिए अस्थाई व्यवस्था की गयी थी, आज अरु को कई दिनों बाद बिस्तर पर सोने का मौका मिला था।

भीमा जानते थे की बुरी ताकतों का नाश करने के लिए कोई इस धरती पर ज़रूर आएगा, भविष्यवाणी के अनुसार भीमा ने सोचा था के शायद  कोई बड़ा और ताकतवर आदमी आएगा। अब वह इस दुविधा में थे के आरु तो छोटा-सा बच्चा है!   ये कैसे सब संभल पायेगा, समय के उस चक्र को समझ पाना भीमा के लिए भी अब मुश्किल था।  

सूरज की पहली किरण गाँव पर पड़ते ही गाँव के सब लोग जाग गए. आरु भी जब उठकर बाहर आया, तो उसने देखा बड़े-बड़े कई तरह के विशाल पक्षी आसमान में उड़ रहे थे। बड़ी-बड़ी चोंच वाले अलग-अलग प्रजाति के कुछ पक्षी पेड़ों पर अपने डेरा जमाये हुए थे। गाँव वाले इन्हें देख कर खुश थे, भीमा बाबा भी उन पक्षियों को देख रहे थे, जब उन्होंने आरु को कुटिया से बहार आते देखा, तो वह तुरंत आरु के पास गए और उसे बताया-

भीमा-ये देखो इन बड़े-बड़े पेड़ों से लिपटी जटाओं में ऊर्जा का बहाव कल शाम से ही बढ़ गया है, इसलिए ये पक्षी कई दिनों बाद दोबारा इन पेड़ों पर रहने आये हैं, ये हमारे गाँव के लिए शुभ संकेत है। 

आरू-देखा बाबा मैंने कहा था ना! देवी माँ मनोकामना ज़रूर पूरी करेंगी।  

भीमा-हाँ बेटा हाँ 

गांव के लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी थी कि जबसे आरु इस गाँव में आया है, हर तरफ़ खुशहाली फैल रही थी। धरती की नमी लोट आयी थी पेड़ों में ऊर्जा और पक्षी लौट आये थे, पूरे गाँव में आरु आकर्षण का केंद्र बन गया था। अपनी भावनाएँ संभालते हुए भीमा ने आरु से कहा-

भीमा-आओ नदी के किनारे स्नान करके आते हैं, तुम्हारे लिए सरपंच ने कपड़े भेजें है आज के दिन तुम ये कपड़े पहन लो और तुम्हारे ये मैले कपड़े साफ़ करवाकर तुम्हें कल दे दूंगा। 

गांव से कुछ ही दूर पैदल चलते हुए भीमा और आरु नदी के पास पहुँच गए, नदी का पानी थोड़ा-सा धूल भरा था, इसे देख कर आरु ने पूछा-

आरू-बाबा आप सब इसी पानी से नहाते हैं, ये पानी पूरी तरह साफ़ नहीं लग रहा। 

भीमा-बेटा ये नदी कभी दर्पण की तरह साफ़ होती थी, पर किसी बुरी शक्ति के प्रभाव ने इसके पानी को धीरे-धीरे मैला करना शुरू कर दिया। अब तुम निश्चिंत होकर इसमें स्नान करो, मैंने अपने तपोबल की शक्ति से इस पानी के अच्छे गुणों को ख़त्म नहीं होने दिया है। 

आरु के पानी में डुबकी लगाते  ही चमत्कार होना शुरू हो गया, जो पानी थोड़ा-सा गंदा दिख रहा था, वह साफ़ होना शुरू हो गया था, आरु ये सब देख कर हैरान हो रहा था और उसने जिज्ञासा में भीमा से पूछा-

आरू-बाबा ये चमत्कार आपने  किया है क्या?

भीमा-नहीं बेटा ये देवी माँ की कृपा है कि आज हमारी पवित्र नदी का पानी फिर से साफ़ होना शुरू हो गया।  भीमा ने कुटिया में आरु को फल खिलाये और गाँव से दूर एक खली मैदान में उसे कुछ शिक्षा देने के लिए ले गए।  पर गाँव में ये बात आग की तरह फैल गयी की जिस नदी का पानी कुछ सालों से गंदा होता जा रहा था, आज वह नदी फिर से दर्पण की तरह चमकने लगी है और सभी की ज़ुबान पर आरु का ही नाम था। इस बात की चर्चा ज़ोरों पर थी के आरु के पानी में जानें से नदी का पानी साफ़ हो गया था। 

इधर आरु और भीमा खाली मैदान में एक बड़े पेड़ की छाया के नीचे बैठे थे और भीमा आरु को ज्ञान देते हुए कहते हैं-

भीमा-आरु तुम्हें इस गाँव की परम्परायें सीखना बहुत ज़रूरी हैं, मैं तुम्हें इस धरती पर रहने की कला के साथ शस्त्र विद्या और शास्त्र विद्या का प्रशिक्षण दूंगा, मैं तुम्हें वह विद्या दूंगा जो मैंने आज तक गाँव में किसी को नहीं दी। 

आरू-पर मैं तो छोटा-सा बच्चा हूँ, क्या मैं ये सब विद्या सीख पाऊँगा?

भीमा-अपने आत्म बल को पहचानोगे तो सब सीख जाओगे।

आरू- पर आपने ये विद्या गाँव वालों को क्यों नहीं सिखाई?

भीमा-उन्हें भी कुछ गुण दिए हैं मैंने, परन्तु कुछ शक्तियाँ ऐसी हैं जिन्हें वश में रखना सब के बस की बात नहीं है। तुम में वह क्षमता है, जो इन शक्तियों को अपने अंदर समाये रख सकती हैं।   मैं आज तुमसे ये वचन चाहता हूँ जो विद्या मैं तुम्हे सिखाऊंगा, तुम इसे गुप्त ही रखोगे और इसका रहस्य किसी और को नहीं बताओगे।  

आरू- ठीक है जैसा आप कहें वैसा ही होगा।  

भीमा आरु को सबसे पहले इस गाँव के वन्य जीवन, पेड़ पौधों और यहाँ के कुछ महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताते हैं। 

भीमा-तुमने यहाँ के हर पेड़ पर एक जटा लिपटी हुई देखी होगी, ये इन पेड़ों की जीवन रेखा है अगर इसे काट दिया जाए तो पेड़ कुछ ही दिनों में सुख जाता है।    इसमें चमकती रौशनी से हम इन पेड़ों की भावनाओं को समझ सकते हैं और इन्हीं जटाओं से हमें आने वाले मौसम का भी संकेत मिलता है।

गांव में रहने के कुछ तौर तरीके सिखाने के बाद, भीमा शाम को आरु को अपने साथ कुटिया में वापिस ले आते है।   जहाँ सरपंच पहले से ही उनका इंतज़ार कर रहा था।

सरपंच-आरु  सुना है आज से आपका प्रशिक्षण शुरू हो गया है?

आरू-अरे आपको कैसे पता की  बाबा मुझे कुछ सीखा रहे हैं?

सरपंच-गांव का सरपंच हूँ, कोई पत्ता भी हिले तो मुझे ख़बर रहती है!

आरु से बात ख़त्म करके सरपंच ने भीमा से कहा।  

सरपंच-बाबा अब आप पर आरु की ज़िम्मेदारी आ गयी है। इस छोटे से बच्चे का ख़्याल रखने में आपको कोई दिक्कत ना आये, इसलिए आज से आपके घर का भोजन मेरे घर से आएगा।   इससे आपके काम का बोझ भी कम होगा, और आरु की शिक्षा में भी कोई कमी नहीं आएगी।  

वैसे तो भीमा हमेशा अपना भोजन ख़ुद ही बनाते थे, पर इस बार सवाल गाँव की खुशहाली का था। इसलिए सरपंच के बार-बार विनती करने पर भीमा बाबा मान जाते हैं। आरु ये समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर भीमा उसे ये सारी विद्याएँ क्यों दे रहे हैं? कुछ तो रहस्य है जो सरपंच और भीमा बाबा को ही मालूम है।  खाना खाने के बाद आरु अपने कमरे में सोने चला जाता है 

देर रात आरु के कानों में मंत्रों  की आवाज़ आती है।   आधी नींद में आरु अपनी आधी खुली पलकें मसलता हुआ,   भीमा बाबा के पूजा स्थल वाले कमरे की ओर जाता है। वह कमरे में देखता है कि आग की लपटें और धुंआ और जैसे ही वह दरवाज़े के पास पहुँचा। उसने कुछ ऐसा देखा की वह डर कर अपने कमरे में वापिस आ गया। बाबा ने आरु के क़दमों की आहट सुन ली थी, उन्होंने अपना मंत्र उच्चारण बंद करके आरु को पुकारते हुए कहा-

बाबा-आरु । आरु ... मैं जनता हूँ ये तुम ही हो!

अपनी मंत्र साधना बीच में छोड़ कर भीमा बाबा आरु के कमरे की ओर बढ़ रहे थे। पर आरु ने ऐसा क्या देखा था पूजा स्थल में, जिस से डर कर उसके पैर कांपने  लगे?   क्या बाबा किसी की बली दे रहे थे? या इसमें कोई और रहस्य था? क्या इस बार आरु हो जायेगा भीमा बाबा के गुस्से का शिकार? क्या लिखा है आरु की क़िस्मत में यह जाने अगले चैप्टर में।

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